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Monday, April 11, 2016

पत्ता पत्ता बूटा बूटा--जानी मानी भूतपूर्व समाचार वाचिका शुभ्रा शर्मा की श्रृंखला- पहली कड़ी

जानी-मानी भूतपूर्व समाचार-वाचिका शुभ्रा शर्मा का नाम 'रेडियानामा' के लिए नया नहीं है।
वे रेडियोनामा के लिए अपनी श्रृंखला 'न्‍यूज़ रूम से शुभ्रा शर्मा' और कुछ अन्‍य लेख भी लिख चुकी हैं।  रेडियोनामा पर उनका लिखा सब पढने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं। 


शुभ्रा जी आज से एक नयी श्रृंखला लेकर आ रही हैं, जिसका नाम उन्‍होंने रखा है--'पत्‍ता पत्‍ता बूटा बूटा'। इस श्रृंखला के बारे में वे कहती हैं-- 


"आकाशवाणी की नौकरी से फुर्सत पाकर अब मेरे दो पसंदीदा काम हैं - संगीत सुनना और बाग़बानी करना। तो मैंने सोचा कि क्यों न अपने इन दोनों कामों का गौरवपूर्ण सुख आप सबके साथ साझा करूँ ? जब बगीचे में मेरे लगाये किसी पौधे में नयी कोंपल फूटती है या फिर कोई भूला-बिसरा गीत अचानक मुखड़े-अंतरे समेत सुनने को मिल जाता है तो कैसे शुद्ध निर्मल आनन्द की अनुभूति होती है! दिन भर ख़ुशी-ख़ुशी बीत जाता है। आपको भी बाग़-बगीचे का न सही गीत-संगीत का शौक़ तो ज़रूर होगा, वरना आप रेडियो से और रेडियोनामा से जुड़े न होते। तो संगीत के साथ बगीचे के पेड़-पौधों को ताश की गड्डी की तरह फेंटकर एक नयी बाज़ी बाँटने जा रही हूँ। मन लगे तो खेलियेगा वरना पत्ते फेंक दीजियेगा। कोई शिकायत नहीं होगी।"


तो पेश है शुभ्रा शर्मा की श्रृंखला 'पत्‍ता पत्‍ता बूटा बूटा' की पहली कड़ी...

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सर्दी से ठिठुराये पेड़-पौधे वसंत के आने की भनक पाते ही कैसे नये-नये पत्तों से सज उठते हैं। अभी पिछले अक्टूबर में मैंने एक नारंगी का पौधा खरीदा था। जेब तो ख़ाली कर गया लेकिन मन को ख़ुशी से भर गया। 




बड़ा सा खूबसूरत गमला और उसमें ढेरों हरी पत्तियों के बीच से झाँकती छोटी-छोटी नारंगियाँ इतनी प्यारी लग रही थीं कि क्या बताऊँ !


सर्दी का मौसम आया तो पत्तियाँ पीली पड़ने लगीं। कुछ ही दिनों में सारी पत्तियाँ गिर गयीं और बस
नारंगियाँ ही रह गयीं। दो महीने के खाद-पानी के बावजूद जब पौधे पर एक भी पत्ती के दर्शन नहीं हुए तो आख़िरकार दुखी मन से मैंने नारंगियाँ तोड़कर मीठी चटनी बन डाली। कुछ दिन और बीते। दूसरे-तीसरे दिन पानी दे देती पर सोचने लगी थी कि अब इस गमले में क्या लगाऊँगी। सूनी टहनी पर नयी पत्ती की झलक देखी तो सहसा आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन अब यकीन हो चला है कि मेरे सब्र का खट्टा ही सही फल ज़रूर मिलेगा।


ना-ना ना-ना ना-ना,
मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो कोई काँटा चुभ जायेगा
ऐसे झटके से डाल मत छोड़ो कोई काँटा चुभ जायेगा।
बाबुल ने ये पेड़ लगाया, बीरा ने की रखवाली
मैया ने इसको ऐसे सींचा फूलों को जैसे माली
तुम परदेसी आये कहाँ से, कैसे पकड़ ली डाली
अरे रे मेरी बेरी के  .........


पेड़-पौधों पर मौसम का असर तो जग-ज़ाहिर है। पर क्या वे लोगों को भी पहचानते हैं ? हो सकता है कि ये मेरा वहम हो मगर जब कभी मैं लगातार तीन-चार दिन अपने पेड़-पौधों से नहीं मिल पाती तो सब के सब मुंह लटकाये, शिकायत करते से लगते हैं। और ज़रा दुलार से पानी दे दूँ, पीली पत्तियाँ तोड़ दूँ, आपस में उलझ रही पत्तियों को सुलझा दूँ तो चेहरे खिल उठते हैं सबके। कुछ तो बात है !
मैं जब दिल्ली से ग्रेटर नॉएडा आयी तो वहां से अपने सारे पेड़-पौधे भी लेकर आयी थी। आने-जाने और फिर नयी जगह घर-गृहस्थी जमाने के चक्कर में कई दिनों तक बेचारे बालकनी में अनाथ से खड़े रहे। समय मिलते ही मैंने उन पर ध्यान दिया। लेकिन मूवर्स एंड पैकर्स की कृपा से कुछ टहनियाँ टूट गयी थीं, कुछ गमले फूट गये थे और रेलिंग पर चढ़ी लताओं को तो कंधे से काट दिया गया था। मुझे लगा शायद इस समय कोई माली इनकी देखभाल मुझसे ज़्यादा अच्छी तरह कर सकेगा। मैंने अपनी हाउसिंग सोसाइटी के माली को बुलाकर उसे यह ज़िम्मा सौंपा। उसने कुछ पौधों का प्राथमिक उपचार करके छोड़ दिया और कुछ को 'दवा और दुआ से परे' बताकर उखाड़ फेंका। उनके ख़ाली गमलों को भरने के लिए मैंने उससे कुछ मौसमी पौधे मँगवाये और उसी से लगवाये। जब तक मेरी दिनचर्या सामान्य हुई उसके लगाये पौधे मर चुके थे और उसके सहेजे पौधों पर सफ़ेद लिजलिजे कीड़े लग चुके थे। अब आप ही बताइये कि मैं इस गीत को सच्चा कैसे मानूँ -

बदल जाये अगर माली चमन होता नहीं ख़ाली
बहारें फिर भी आती हैं, बहारें फिर भी आयेंगी।

दिन-ब-दिन मेरा विश्वास पक्का होता जा रहा है कि लोगों की तरह पेड़-पौधे भी अपनों को, उनके हाथ को, उनकी ख़ुशबू को पहचानते हैं। हम जब उदास होते हैं तो वो भी उदास हो जाते हैं और हम खुश हों तो वो भी पत्तियाँ हिला-हिला कर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर कर देते हैं।

मिला है किसी का झुमका
ठन्डे-ठन्डे हरे-हरे नीम तले, सच्चे मोती वाला झुमका
ठन्डे-ठन्डे हरे-हरे नीम तले, सुनो क्या कहता है झुमका।

इस गीत में नायिका जिसे सच्चे मोती वाला झुमका बता रही हैं वो दरअसल कोई गहना नहीं, गुड़हल का फूल है। कानों में पहना जाये तो सचमुच झुमके जैसा लगेगा। कुछ वैसा ही जैसा राजा रवि वर्मा की शकुंतला के कान में है।



कालिदास के नाटक अभिज्ञानशाकुन्तलम की नायिका शकुन्तला। महर्षि कण्व के आश्रम में आये राजा दुष्यंत उनकी पालिता पुत्री शकुन्तला से गांधर्व विवाह कर लेते हैं। गर्भ के लक्षण प्रकट होते ही उसे पति के पास भेजने की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। महर्षि आश्रम के पेड़-पौधों से कहते हैं -

पातुं न प्रथमं व्यवस्यति जलं युष्मास्वपीतेषु या
नादत्ते प्रियमण्डनापि भवतां स्नेहन या पल्लवम्
आद्ये वः कुसुमप्रसूतिसमये यस्याः भवत्युत्सवम्
सेयं याति शकुन्तला पतिगृहम् सर्वैरनुज्ञायताम्।।

यह शकुन्तला
, जो आप सबको पानी दिये बिना कभी पानी नहीं पीती थी, जिसे गहने प्रिय थे पर आपके स्नेह के कारण फूल-पत्ते नहीं तोड़ती थी, पहली बार आपके फूलने पर जो आश्रम में उत्सव मनाती थी, वही शकुन्तला आज अपने पति के घर जा रही है, आप इसे विदा होने की अनुमति दीजिये। और पेड़-पौधे अपनी इस लाड़ली बेटी को तरह-तरह के आभूषणों से सजाकर विदा करते हैं।
जाओ लाडली पति के घर तुम सुखी रहो।
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शुभ्रा जी की ये श्रृंखला आपको पढ़ने मिलेगी हर सोमवार को।
हर बुधवार जाने माने ब्रॉडकास्‍टर और विविध भारती के हमारे पुराने साथी लोकेंद्र शर्मा की श्रृंखला आयेगी --'ताने माने- लोकेंद्र शर्मा की जिंदगी के'।
और हर शनिवार महेंद्र मोदी आपसे मुखातिब होते रहेंगे अपनी श्रृंखला 'कैक्‍टस के मोह में बिंधा एक मन के ज़रिए'

तो रेडियोनामा पर अपनी हाजिरी भी लगाइये और अपनी बात भी कहते रहिए।

7 comments:

aparna said...

Great start... mwaaah

Unknown said...

प्रत्येक क्षण प्रकृती को महसूस करने के लिए पौधे से बेहतर मित्र नही है बेहद संवेदनशील मगर अपनत्व से भरे मासूम लेकिन जानदार..

Unknown said...

प्रत्येक क्षण प्रकृती को महसूस करने के लिए पौधे से बेहतर मित्र नही है बेहद संवेदनशील मगर अपनत्व से भरे मासूम लेकिन जानदार..

Unknown said...

प्रकृति से दोस्ती ..यानी सारी कायनात आपकी दोस्त...काश हम सब ये समझ पाते, तो कितना अटूट रिश्ता होता आपस में हमारा ..और कितना सुंदर होता ये जहाँ ... तब शायद मन मयूर ये गा उठता ... किसने बनाई ये दुनिया '' ये कौन चित्रकार है .. ये कौन चित्रकार...

Sujoy Chatterjee said...

ye paudhe ye patte ye phool ye hawaaein
dil ko churaayen mujhko lubhayen
haaye
man kahe main jhoomun jhoomun main gaaun

Shubhra Sharma said...

धन्यवाद, दोस्तो।

सागर नाहर said...

अद्भुत.. सोचा नहीं था कि इस तरह की पोस्ट भी लिखी जा सकती है।
शायद हर संगीत प्रेमी को पेड़ पौधों से जुड़ाव होता है.. मुझे भी बहुत है।
सारी कड़ियाँ पढ़ रहा हूँ।

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