सबसे नए तीन पन्ने :

Friday, April 22, 2011

शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 21-4-11

विविध भारती से शास्त्रीय संगीत के दो कार्यक्रमों का प्रसारण होता हैं संगीत सरिता और राग-अनुराग एक कार्यक्रम के माध्यम से रोज हमें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की कई जानकारियाँ मिलती हैं और दूसरे में विभिन्न फिल्मी गीतों के शास्त्रीय आधार का पता चलता हैं। आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

सुबह 7:30 बजे 15 मिनट के लिए प्रसारित होने वाले संगीत सरिता कार्यक्रम में इस सप्ताह दो श्रृंखलाएं प्रसारित हुई। पांच कड़ियों की श्रृंखला प्रसारित की गई - ख्याल गायकी में बंदिश की परम्परा। इसे प्रस्तुत किया ख्यात शास्त्रीय गायक पंडित सी आर व्यास जी ने। शुक्रवार को इसकी पहली कड़ी प्रसारित हुई। बंदिश गायकी में पुराने समय की शास्त्रीय संगीत की शिक्षा की चर्चा की। बताया कि उस समय बंदिशे याद रखी जाती थी। शुरूवात राग यमन से किया, ख्याल गा कर सुनाया - ऐ री लाल मिले, राग यमन कल्याण की भी चर्चा हुई और इसमे भी ख्याल गा कर सुनाया। शनिवार को राग छायानट की चर्चा की। बताया कि इसमे मध्यम प्रभावी होता हैं। दो बंदिशे सुनाई जिसमे से एक के बोल हैं - तन बदन सब तुम पर वारो, खुद की बनाई बंदिश भी सुनाई - माने न जिया मोरा उन बिना, रविवार को राग भैरव की चर्चा करते हुए बंदिश भी सुनाई, द्रुत बंदिश में तराना भी सुनाया। राग गौड़ मल्हार में भी द्रुत बंदिश सुनाई। यह भी बताया कि हर पारंपरिक बंदिश में कोई न कोई महत्वपूर्ण बात होती हैं। सोमवार को राग गौड़ सारंग के बारे बताया गया। गौड़ के प्रकार भी बताए, संगति सुनाई और बताया कि यह संगति जहां हो वहां राग गौड़ होता हैं और यह संगति बार-बार दोहराना चाहिए जिससे राग अच्छा लगता हैं। इस तरह इस राग में यह संगति ही महत्वपूर्ण हैं। यह जानकारी भी मिली कि इस राग में धईवत भी लाया गया जो पहले नही था और असंभव सा लगता था। पारंपरिक बंदिशे भी सुनाई - कजरारे तोरे नैन, और रब ध्यान लावे, मंगलवार को समापन किया राग पूर्वी से। बताया कि यह पुराना राग हैं, इससे बहुत से राग निकले हैं जैसे राग बसंत, ललित आदि। राग पूर्या धनाश्री की भी चर्चा हुई। जानकारी दी कि इसमे पंचम पमुख हैं और राग पूर्वी में गंधार प्रमुख हैं। इसे समझाते हुए इन दोनों में बंदिशे भी सुनाई - नीलिमा लालिमा, और कारी कारी कामरिया, सामान्य जानकारी में बताया कि किसी राग में बहुत सी बंदिशे तैयार कर प्रस्तुत करने से राग अच्छा लगता हैं जिससे सामान्य जनता भी शास्त्रीय संगीत की ओर आकर्षित होती हैं। हर बंदिश को व्यास जी ने गा कर सुनाया जिसके लिए हारमोनियम पर संगत की पुरूषोत्तम मालावलकर जी ने और तबले पर मुकुंद राजदेव जी ने।

एक ख़ास बात हुई, इस श्रृंखला में एक भी दिन फिल्मी गीत नही सुनवाया गया। बिना फिल्मी रचनाओं के संगीत सरिता अधूरी लगी। वास्तव में इस कार्यक्रम में शास्त्रीय संगीत के किसी अंग की चर्चा करते हुए शास्त्रीय गायन या वादन सुनवा कर फिल्मी गीतों में इसका प्रयोग भी बताते हुए फिल्मी गीत सुनवाने से कार्यक्रम पूर्ण लगता हैं।

बुधवार से दूसरी श्रृंखला शुरू हुई - घुँघरू की तरह। लगा कि शायद संगीत में घुँघरू की आवाज पर, वाद्य पर चर्चा होगी। पर शीर्षक, संगीत के कार्यक्रम के अनुरूप नही लगा। बताया गया कि गीतकार, संगीतकार और गायक रविन्द्र जैन से बातचीत की जाएगी। फिर आगे बताया कि बातचीत करेंगे लेखक और गीतकार राजेश जौहरी। जब बातचीत शुरू हुई तो लगा कि संगीत सरिता नही सरगम के सितारे कार्यक्रम सुन रहे हैं। शुरूवात की कि बचपन में घर का माहौल साहित्यिक होने से इस दिशा में रुचि हुई। अलीगढ़ के रहने वाले हैं इसीसे हिन्दी, उर्दू और ब्रज भाषा के जानकार हैं। गायक बनना चाहते थे पर आकाशवाणी सुन कर लगा गायक बनना आसान नही। फिर संगीत संयोजन की ओर ध्यान दिया। अपने पहले गीत की चर्चा की जिसे रफी साहब ने गाया सिलसिला हैं प्यार का फिल्म के लिए पर यह फिल्म शायद बनी नही और यह गीत किसी भी फिल्म में नही आ पाया। गीत के बोल बताए जो संगीत सरिता के मिजाज के नही लगे - माना के तेरे होंठ मेरा प्यार नही हैं, यह भी बताया कि गीत तैयार करने के लिए फिल्म से सम्बंधित विस्तृत जानकारी लेते हैं। आगे उनके लोकप्रिय गीत पर चर्चा हुई - घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं, बताया कि यह गीत गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की रचना से प्रभावित हैं और वह रचना भी सुनाई। यह गीत तो सुनवाया ही गया।

गुरूवार को भी शुरू में बातचीत का अंदाज ऐसा ही रहा फिर जब चर्चा शुरू हुई उनके फिल्मी संगीत में लोकधुनो के प्रयोग पर तब से लगा कि हम संगीत सरिता सुन रहे हैं। एक लोक गीत भी सुनाया - मैं ब्रज को वासी, मन कान्हा का दास, आत्मा राधा की दासी। फिल्म सौदागर के संगीत की चर्चा की। बताया कि लोकधुने पारंपरिक हैं और उनका वैसा ही प्रयोग किया। अच्छा लगा कि दो लोकप्रिय गीतों के मुखड़े गाकर सुनाए और साथ ही जोड़ कर फिल्मी गीत सुनाए - नीर भरन का कर के बहाना, मेरे लिए ज़रा बोझ उठाना, राधा रे राधा जमुना किनारे आना रे और दूसरा गीत - दूर हैं किनारा। अब लग रहा हैं कि श्रंखला अच्छी चल रही हैं। यदि शीर्षक उचित होता और बातचीत का स्वरूप शुरू में कुछ बदल देते तो श्रंखला शुरू से ही अच्छी लगती थी।

दोनों श्रृंखलाएं रूपाली (कुलकर्णी) जी द्वारा तैयार की गई हैं। हर दिन कार्यक्रम के शुरू और अंत में संकेत धुन बजती रही जो बढ़िया और समुचित हैं। यहाँ हम एक बात कहना चाहते हैं। यह कार्यक्रम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का हैं। इसमे चर्चा के दौरान कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की भी कुछ जानकारी मिल जाती हैं जैसे कुछ राग एक पद्धति से दूसरी पद्धति में आए हैं, दोनों पद्धतियों के कुछ रागों की समानता, विषमता और खासकर दोनों पद्धतियों में वाद्यों का प्रयोग। लेकिन एक तीसरी पद्धति हैं - रविन्द्र संगीत जिसको शायद इस कार्यक्रम में कभी छुआ तक नही गया। कुछ बहुत पुराने हिन्दी फिल्मी गीतों में और एस डी बर्मन और मन्ना दा (डे) के गाए हिन्दी फिल्मी गीतों में बंगाल के संगीत का जादू हैं, हो सकता हैं इसमे रविन्द्र संगीत भी समाया हो। चूंकि विविध भारती के अलावा अन्य किसी केंद्र से शास्त्रीय संगीत पर इतनी विस्तृत जानकारी नही दी जाती, इसीलिए हमारा अनुरोध हैं कि इस वर्ष जब सिर्फ हमारे देश में ही नही बल्कि समूचे उप महाद्वीप में गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर की 125 वीं जयंति मनाई जा रही हैं, इस अवसर पर रविन्द्र संगीत पर आधारित कुछ कार्यक्रम प्रस्तुत कीजिए।

गुरूवार को शाम बाद के प्रसारण में 7:45 पर प्रसारित हुआ साप्ताहिक कार्यक्रम राग-अनुराग। 15 मिनट के इस कार्यक्रम में विभिन्न रागों पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं। इस बार दो गीत अलग-अलग रागों पर आधारित थे पर तीसरी रचना शास्त्रीय पद्धति में ढली थी। पहला गीत राग झिंझोटी पर आधारित था। तीन देवियाँ फिल्म के इस गीत को पूरा सुनवाया गया जिससे शुरू की धीमी गति अच्छी लगी - ख़्वाब हो तुम या कोई हकीक़त कौन हो तुम बतलाओ। दूसरा गीत राग भैरवी पर आधारित था सोहनी महिवाल फिल्म से - चाँद छुपा और तारे डूबे रात गजब की आई और समापन किया उस्ताद अमीर खां की आवाज में शास्त्रीय पद्धति में ढले झनक झनक पायल बाजे फिल्म के शीर्षक गीत से। तीनो रचनाएं अलग अलग मूड की थी। प्रस्तुति बढ़िया रही। और भी अच्छी लगती प्रस्तुति अगर थोड़ा और ध्यान देते और तीनों में से एक रचना गायिका के स्वर में या युगल गीत होता क्योंकि तीनो गीत गायकों की आवाज में ही थे - किशोर कुमार, महेंद्र कपूर और उस्ताद अमीर खां।

इस तरह, इस सप्ताह भी शास्त्रीय संगीत की जानकारी मिली जिसके अनुसार गायन सुना, शास्त्रीय आधार बताते हुए कुछ फिल्मी गीत भी सुनवाए गए परन्तु केवल शास्त्रीय गायन और वादन का आनंद नही मिला और इस तरह के कार्यक्रम अनुरंजनि की कमी महसूस हुई।

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें