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Thursday, February 24, 2011

महिला और युवा वर्ग के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 24-2-11

महिला और युवा वर्ग के दो कार्यक्रम हैं - सखि-सहेली और जिज्ञासा महिला वर्ग के कार्यक्रम में एक कड़ी युवा सखियों के लिए होती हैं जो युवको के लिए भी उपयोगी हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

इस सप्ताह दोनों ही कार्यक्रमों में परीक्षा के समय को ध्यान में रखते हुए युवा वर्ग को सलाह दी गई।

सप्ताह में पांच दिन एक घंटे के लिए दोपहर 3 बजे से प्रसारित होने वाले महिलाओं के कार्यक्रम सखि-सहेली में शुक्रवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम हैलो सहेली। फोन पर सखियों से बातचीत की ममता (सिंह) जी ने। 10 फोन कॉल थे। लगभग सभी कॉल स्कूल और कॉलेज की छात्राओं के थे। एक छात्रा की बातचीत से पता चला कि उसके गाँव में अधिक सुविधाएं नही हैं इसीलिए वह पढाई छोड़ चुकी हैं। दो-तीन सखियों ने कोई बात ही नही की सिर्फ अपने शहर का नाम बताया और गीत की फरमाइश की। कुछ सखियों ने बताया कि वे घर का कामकाज करती हैं। कुछ से विस्तार से बातचीत हुई, पता चला कि राजस्थान में इस समय बारिश हुई हैं। जबलपुर की सखि ने बताया कि वहां नर्मदा घाट पर पूजा-पाठ बहुत होती हैं फिर भी वहां सफाई बहुत हैं। छात्र सखियों में से अंग्रेजी और हिन्दी साहित्य में एम ए कर रही सखियों ने अपनी पसंदीदा पुस्तकों और लेखको के नाम बताए।

सखियों की पसंद पर नए-पुराने गाने सुनवाए गए। इस बार लोकप्रिय गीतों की फरमाइश कम ही रही, ऐसे गीतों की फरमाइश आई जो बहुत ही कम सुनवाए जाते हैं जैसे यह गीत - माफी देईदो कसूर बालम

विभिन्न क्षेत्रो से शहर, गाँव, जिलो से फोन आए। एक ऎसी सखि ने भी फोन किया जो पत्र बहुत लिखती हैं पर फोन पहली बार किया। सखियों ने विविध भारती के कार्यक्रमों को पसंद करने की बात कही। कार्यक्रम के समापन पर बताया गया कि इस कार्यक्रम के लिए हर बुधवार दिन में 11 बजे से फोन कॉल रिकार्ड किए जाते हैं जिसके लिए फोन नंबर भी बताए - 28692709 मुम्बई का एस टी डी कोड 022

शुरू और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई जिसमे शीर्षक के साथ उपशीर्षक भी कहा जाता हैं - सखियों के दिल की जुबां - हैलो सहेली ! इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया वीणा (राय सिंघानी) जी ने, गणेश (शिंदे) जी के सहयोग से।

अन्य चार दिनों में सखि-सहेली कार्यक्रम में हर दिन दो प्रस्तोता सखियाँ आपस में बतियाते हुए कार्यक्रम को आगे बढाती हैं। हर दिन के लिए एक विषय निर्धारित हैं -सोमवार - रसोई, मंगलवार - करिअर, बुधवार - स्वास्थ्य और सौन्दर्य, गुरूवार - सफल महिलाओं की गाथा।

सोमवार को प्रस्तोता रही ममता (सिंह) जी और निम्मी (मिश्रा) जी। यह दिन रसोई का होता है, सखियों द्वारा भेजे गए पत्रों में से सम्पूर्ण भोजन और पोषण देने वाले भरवां पराठे बनाने की विधि बताई गई और निम्मी जी ने नीम्बू का अचार बनाने की दो विधियां बताई।

सखियों की पसंद पर पुरानी फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए इन फिल्मो से - संजोग, उम्मीद, कन्यादान, मोहब्बत इसको कहते हैं, साक्षी गोपाल, सफ़र और सखियों की फरमाइश पर यह क़व्वाली सुनना अच्छा लगा -

जाते जाते एक नजर भर देख लो

मंगलवार को प्रस्तोता रही ममता (सिंह) जी और उन्नति (वोहरा) जी। यह करिअर का दिन होता है। इस दिन ऐसे करिअर के बारे में जानकारी दी गई जिसे शायद लड़कियां कम ही अपनाती हैं - ऑटोमोबाइल डिजाइनिंग जिसमे दुपहिए और चार पहिए के वाहनों की डिजाइनिंग की जाती हैं। इस तरह यह कड़ी केवल लड़कियां ही नही लड़को के लिए भी उपयोगी रही।

यह दिन युवा सखियों के लिए हैं इसीलिए इस दिन सखियों की पसंद पर नए गाने ही सुनवाए गए। दबंग, माई नेम इज खान, अजब प्रेम की गजब कहानी, वीर फिल्मो के गीत सुनवाए और यह गीत भी शामिल था -

पल भर में चोरी किया रे मोरा जिया

बुधवार को प्रस्तोता रही ममता (सिंह) जी और निम्मी (मिश्रा) जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। सखियों के भेजे गए पत्रों से पपीते के उपयोग की सलाह दी, योगा कर रोग प्रतिरोधी क्षमता बढाने की बात कही। इसके अलावा कुछ और जाने-पहचाने घरेलु नुस्के बताए गए। कोई नई जानकारी नही थी।

सखियों की फरमाइश पर सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए, अनुराग, लैला मजनूं, आपकी क़सम, आज का अर्जुन फिल्मो से और दुल्हन वही जो पिया मन भाए फिल्म से यह गीत भी शामिल था -


ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में
प्यार की छाँव में बिठाए रखना, सजना

पड़ोसन फिल्म के हास्य गीत चतुरनार से समापन किया।

आज गुरूवार हैं, आज प्रस्तोता रही रेणु (बंसल) जी और निम्मी (मिश्रा) जी। इस दिन सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस दिन सखियों के पत्रों से बंग दंपत्ति के बारे में जानकारी दी जिन्होंने गांधीजी के आह्वान पर नशाबंदी और साथ ही महिलाओं से सम्बन्धी समाज सुधार के कार्य किए।

सखियों के अनुरोध पर कुछ ही पहले के समय की फिल्मो के गीत सुनवाए - हम साथ-साथ हैं, इश्क, बंटी और बबली, क़यामत से क़यामत तक, हम आपके हैं कौन फिल्मो के गीत सुनवाए और तुम बिन फिल्म से शैलजा की आवाज में यह गीत भी सुनवाया जो कम ही सुनवाया जाता हैं -

मेरी दुनिया में आके मत जा कही मत जा

हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। कुछ ऎसी सखियों के पत्र थे जो अक्सर पत्र भेजती हैं, कुछ सखियों ने पहली बार पत्र भेजा। एक सखि ने बताया कि विवाह के समय उसे यह विवाह उतना पसंद नही आ रहा था पर बाद में ठीक लगने लगा। एक सखि ने पेड़ लगाने की सलाह दी और यह भी बताया कि उससे बहुत ऑक्सीजन मिलती हैं। कुछ पत्रों में बसत ऋतु और बसंत पंचमी के अवसर पर की जाने वाली सरस्वती पूजन की चर्चा की। एक सखि ने पत्र में कोल्हापुर शहर के बारे में जानकारी भेजी। एक पत्र से पता चला की सूर्य की पहली किरण पड़ने से जोधपुर शहर को सूर्य नगरी कहते हैं। छत्तीसगढ़ में दीवारों पर की जाने वाली पारंपरिक लोक चित्रकारी की जानकारी मिली। युवा कलाकारों को प्रोत्साहन देता एक रोचक किस्सा भी एक सखि ने लिख कर भेजा। एक सखि ने बेटियों के लिए एक कविता भी लिख कर भेजी।

प्रस्तोता सखियों ने भी आपस में बतियाते हुए बहुत सी बाते बताई जैसे बेटे बेटियों में भेद भाव न करे, जीवन में तनाव न ले, क्रोध न करे, प्यार में खिलवाड़ न करे। युवा वर्ग को सलाह दी कि परीक्षा में समय सारणी बना कर पढाई करे। फिर भी लगता हैं पूरे प्रसारण समय का सदुपयोग नही हो पा रहा। विविध भारती ने सप्ताह में 5 घंटे महिलाओं को दिए हैं। सप्ताह में 5 घंटे का प्रसारण समय सामान्य बात नही हैं। हैलो सहेली में की जाने वाली सीधी बातचीत ठीक हैं। हमारा अनुरोध हैं अन्य चार दिनों में से किसी एक दिन पत्रों के माध्यम से विभिन्न विषयो की चर्चा ठीक रहेगी, शेष दिन प्रस्तुति का अंदाज बदल दीजिए। हर दिन का विषय जैसे रसोई, करिअर आदि जारी रखते हुए, फरमाइशी गीत सुनवाते हुए, एक या दो दिन साहित्य की चुनी हुई रचनाओं का पठन किया जा सकता हैं। साहित्य में महिलाओं के लिए कई प्रेरणादायी रचनाएं हैं।

कार्यक्रम के शुरू और अंत में सखि-सहेली की संकेत धुन सुनवाई गई। चारो दिन इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कमलेश (पाठक) जी ने।

कार्यक्रम के दौरान एक सूचना भी दी कि हर महीने के अंतिम सोमवार के लिए एक विषय निर्धारित किया जाता हैं और उस पर सखियों के विचार आमंत्रित किए जाते हैं। सखियों के पत्रों को पढ़ कर सुनाया जाता हैं और साथ ही उनकी फरमाइश के गीत भी सुनवाए जाते हैं। इस बार का विषय हैं - प्यार

अपने विचार 28 तारीख तक भेजने के लिए पता भी बताया जो इस तरह हैं -

सखि-सहेली
विविध भारती सेवा
पोस्ट बॉक्स नंबर 19705
मुम्बई 400091

शनिवार को रात 7:45 पर सुना सामान्य ज्ञान का साप्ताहिक कार्यक्रम जिज्ञासा। 15 मिनट के इस कार्यक्रम के विभिन्न खंड हैं। हर खंड के बाद जानकारी से सम्बंधित फिल्मी गीत की झलक सुनवाई जाती हैं। पहला खंड हैं - समय यात्री - टाइम मशीन जिसके अंतर्गत भोजपुरी सिनेमा के 50 वर्ष पूरे होने की जानकारी दी गई। भोजपुरी सिनेमा के शुरूवात की बात भी बताई कि एक समारोह के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति से नजीर हुसैन की हुई बातचीत से भोजपुरी सिनेमा बनाने का ख्याल आया। पहली फिल्म 5.2.1962 को रिलीज हुई - गंगा मैय्या तोहे पिहरे चढैऊ। इस फिल्म का शीर्षक गीत और दो-तीन गीतों की झलकियाँ सुनवाई। इनमे से शीर्षक गीत और रफी साहब का गाया एक गीत पहले विविध भारती से बहुत सुनवाया जाता था पर शेष गीत पहली बार सुने। इसके बाद वेलेंटाइन डे पर निकली यह खबर बताई कि अमेरिका की टाइम पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से पता चला कि विश्व की बेहतरीन पांच रोमांटिक फिल्मो में से एक हैं गुरूदत्त की फिल्म प्यासा। इस फिल्म का गीत भी सुनवाया। इसके बाद का खण्ड हैं - स्पोर्टस पैवेलियन जिसमे जाहिर हैं इस बार वर्ल्ड कप 2011 की चर्चा हुई। यह जानकारी भी मिली कि पहले इनामी राशि कम थी, अब बढ़ा दी गई। यहाँ यह नया गीत सुनना अच्छा लगा -

इस खेल में क्या बात हैं, हैं वर्ल्ड कप हमारा

एक खण्ड में परीक्षा के समय का ध्यान रखते हुए परीक्षा के तनाव से मुक्ति पाने के मनोवैज्ञानिको द्वारा बताए गए उपाय भी बताए। इस पूरे कार्यक्रम की सभी बाते समाचार पत्रों और इंटरनेट से आसानी से शहरियों को मिल जाती हैं। कुछ और स्तम्भ जोड़ कर शहरी युवाओं के लिए भी इसे अधिक उपयोगी बनाया जा सकता हैं। शोध, आलेख और स्वर युनूस (खान) जी का रहा। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने, सम्पादन पी के ए नायर जी ने किया।

इन दोनों कार्यक्रमों को सुनकर ऐसा लगता हैं जब विविध भारती महिला और युवा वर्ग के लिए अलग कार्यक्रम तैयार कर ही रही हैं तब बच्चो के लिए भी कोई कार्यक्रम तैयार किया जा सकता हैं। बाल श्रोताओं के लिए भी विविध भारती में जगह होनी चाहिए।

Tuesday, February 22, 2011

फिल्म धड़कन के गीत

सत्तर के दशक के आरंभिक वर्षो में एक फिल्म रिलीज हुई थी - धड़कन

इस फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में हैं संजय और मुमताज़। रमेश देव की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं डेविड और हेलन। इस फिल्म में हेलन सिर्फ डांसर ही नही हैं बल्कि उनकी अच्छी भूमिका हैं।

यह पुनर्जन्म की कहानी हैं और एक अपराध कथा हैं। इस फिल्म के गाने बहुत ही लोकप्रिय हुए थे खासकर संजय और मुमताज़ पर फिल्माए गए युगल गीत जिसे शायद रफी साहब ने आशा जी के साथ गाया हैं। पहले रेडियो से बहुत सुना करते थे पर अब किसी भी गीत का एक भी बोल मुझे याद नही आ रहा हैं।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, February 18, 2011

विविध भारती के नाटक - साप्ताहिकी 17-2-11

हर दिन नाटक के प्रसारण की शुरूवात विविध भारती ने की। शरू से ही 15 मिनट का कार्यक्रम रहा हवामहल जिसमे हर दिन विभिन्न रूपों के रेडियो नाटक सुनने को मिल रहे हैं - झलकी, नाटिका, प्रहसन। यह सिलसिला आज तक चला आ रहा हैं। नाटकों के दो कार्यक्रम हैं हवामहल और नाट्य तरंग हवामहल रात के प्रसारण का दैनिक कार्यक्रम हैं और नाट्य तरंग सप्ताहांत यानि शनिवार और रविवार को दोपहर बाद प्रसारित होता हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

हवामहल में रात 8 बजे शुक्रवार को लखनऊ केंद्र की प्रस्तुति सुनी - हुजूर की सोहबत। दो बार प्रसारण में व्यवधान आया जिससे मुख्य सीन सुन नही पाए जिससे कुछ ठीक से समझ में नही आया। गैस ख़त्म होने पर पत्नी मिट्टी का तेल लाने के लिए पति से कहती हैं। वो साइकिल लेकर जाता हैं। वहां लम्बी कतार हैं। साइकिल चोरी हो जाती हैं। वहां दोस्त मिलता हैं जो जान-पहचान के हवालदार के पास ले जाता हैं। फिर नाश्ते के लिए दोनों साथ जाते हैं। बिना तेल लिए घर पहुंचता हैं पता चलता हैं साइकिल और तेल घर पहुँच चुके हैं। दोस्त की चिट्ठी मिलती हैं, जाने क्या मजाक था, क्या बात हुई, न सुनने से समझ नही पाए। लेखक राजेश भदौरिया और निर्देशक हैं तस्वीर आबिदी।

शनिवार को नाटिका सुनी - बंजर और हरियाली। शुरूवात हुई विवाहेत्तर सम्बन्ध से। दूसरी महिला तलाकशुदा हैं जिसे पहले पति ने बाँझ होने का आरोप लगा कर तलाक़ दिया। जबकि कमी पति में ही थी। तलाक़ के बाद वह साबित करना चाहती थी कि समाज ने उस पर लगे बेबुनियाद आरोप को सहमती दी हैं। इसीसे अपने कार्यालय में विवाहित व्यक्ति के प्रति अपने आकर्षण को जान-बूझ कर वह बढ़ावा देती रही। इस तरह एक आरोप से मुक्ति पाने के लिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ी। यह उसकी गलती हैं जिसे बाद में उसने स्वीकार भी किया। जब वह गर्भवती हुई और प्रेमी ने जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया तब उसने संतान को जन्म देने का निर्णय लिया। लेकिन साथ ही उसकी जिन्दगी से जाने और पत्नी होने का दावा न करने का भी फैसला सुना गई। उधर पत्नी ने भी अपने पति के दोस्तों से मिली इस जानकरी को पूरी परिपक्वता से सुलझाने का प्रयास किया। पुरूष की कमजोरी को दोनों ने ही माना और समाज की स्थिति को भी और अपने ही बलबूते पर समाज में सही दिशा में बढ़ने का निर्णय लिया। नाटिका क्या थी, समाज की सच्चाई थी। अच्छा तो लगा पर हवामहल एक गुदगुदाने वाला कार्यक्रम माना जाता हैं, वैसे समस्या प्रधान रचनाएं भी शामिल होती हैं लेकिन पारिवारिक कार्यक्रम में इस तरह की परिपक्व नाटिका के प्रसारण से शायद परिवार के साथ बैठ कर सुनने में उलझन हो। अभिलाष की लिखी इस नाटिका के निर्देशक हैं गंगाप्रसाद माथुर। कलाकारों के नाम भी बताए गए।

रविवार को पटना केंद्र की मजेदार प्रस्तुति रही - टेलीफोन का चक्कर। सुन कर लगा बहुत पुराना आलेख हैं क्योंकि इसमे टेलीफोन लगाने का उत्साह भी था और नंबर भी तीन अंको के थे। नए लगे टेलीफोन से कईयों का नंबर घुमा कर कई तरह की बाते करती हैं, कही पार्टी के लिए आर्डर दे रही हैं तो कही कुछ। अंत में पता चलता हैं लाइन फंस गई थी और हर बार एक ही से बात हो रही थी। वह भी आवाज बदल कर बात कर रहा था। आखिर उसी के ऑफिस का था जिसे वह नापसंद करती थी। पर इस तरह फोन लाइन मिली रहने से उनके सम्बन्ध चर्चा में आ गए। लेखक हैं श्याम मोहन अस्थाना और निर्देशक हैं सत्येन्द्र प्रताप सिंह।

सोमवार को झलकी सुनी - गुणी उस्ताद। गुणी और गुणिआनी की नोक-झोक अच्छी लगी। गुणिआनी ने शिकायत की (रसोई) गैस की, गुणी उस्ताद ने समझा पेट की गैस और डाक्टर को बुला लिया। साथ-साथ समझदारी की बाते भी हुई। मोहल्ले की कमेटी के अध्यक्ष हैं गुणी उस्ताद और कमेटी चाहती हैं कि दहेज़, घरेलु हिंसा के मामले आपसी बातचीत से सुलझ जाए। गुणिआनी भी पुरानी बात अब बताती हैं कि पति के दूर रहने पर सास-ससुर ने उसे तंग किया था और वह आत्मनिर्भर हो अपना खर्च चलाती रही पर पति से शिकायत नही की ताकि सम्बन्ध बने रहे। मनोरंजन भी हुआ और सलाह भी मिली। लेखक हैं जय सिंह राठौर। निर्देशक हैं एस एस कपूर। यह जयपुर केंद्र की प्रस्तुति रही।

मंगलवार को क्षमा शर्मा का लिखा प्रहसन सुना - पब्लिसिटी। परचून की दूकान चलाने वाला प्रसिद्ध होना चाहता हैं। कुछ लोगो ने यह व्यापार चला रखा हैं कि पैसे लेकर कोई हथकंडे अपना कर लोकप्रियता दिला देते हैं। इन्ही बातो के सहारे वह बतौर कवि लोकप्रिय होना चाहता हैं। लोकप्रियता तो उसे मिलती हैं पर उसकी पहचान परचून के दूकान वाले की ही रहती हैं। और लोकप्रियता के लिए योजना बनाई जाती हैं कि गुंडे पैसे लेकर उसकी पिटाई करे, पैसे तो वह दे देता हैं पर पैसे लेकर सब भाग खड़े होते हैं। अच्छा व्यंग्यात्मक रहा। दिल्ली की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं कमल दत्त।

बुधवार को संतोष श्रीवास्तव की लिखी झलकी सुनी - छुट्टी। नई लगी यह झलकी, इसमे मैं निकला गड्डी लेके और छैंया छैंया जैसे नए गाने गुनगुनाए गए। कार्यालय का माहौल बताया जहां कर्मचारी देर से आते, छुट्टियां लेते, झूठे बहाने बनाते। एक कर्मचारी ने छुट्टी ली अपने दादाजी के निधन का कारण बता कर और बाद में दादाजी उससे मिलने कार्यालय आ गए। कुछ ज्यादा अच्छी नही लगी यह झलकी। भोपाल केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं असीमुद्दीन।

गुरूवार को संजय श्रीवास्तव की लिखी झलकी सुनी - दरबारी राग। फिल्मो में संगीत देना चाहता हैं। अपने आप को बढ़िया कलाकार मानता हैं। कमरे का किराया नही दे पा रहा। जब मकान मालकिन ने किराया वसूली के लिए गाने की शौकीन अपनी लड़की को गाना सीखने उसके पास भेजा तो वह छेड़छाड़ करने लगा। आलेख उतना अच्छा नही लगा पर कलाकारों की संवाद अदायगी से झलकी ठीक-ठाक रही।

इस तरह इस सप्ताह हवामहल में हास्य के साथ व्यंग्य भी रहा जिससे मनोरंजन भी हुआ। सामाजिक समस्या भी बताई, सलाह भी मिली। प्रस्तुति में भी विविधता नजर आई जैसे झलकी, नाटिका और प्रहसन सुनवाए गए और अलग-अलग राज्यो की प्रस्तुतियो से वहां की प्रतिभाओ से परिचित हुए।

3:30 बजे नाट्य तरंग कार्यक्रम में शनिवार को अंग्रेजी साहित्य के लोकप्रिय चरित्र शरलक होम्स से एक कथांनक का अरूण मारवाहा द्वारा किया गया रेडियो नाट्य रूपांतर सुनवाया गया - किस्सा एक बतख का। केवल टोपी के सहारे व्यक्ति की तलाश और बतख में से निकले हीरे की चोरी का पता लगाया गया। जासूसी कथानक का रोमांच बना रहा। दिल्ली केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं विजय दीपक छिब्बर।

रविवार को मूल कन्नड़ रचना का एस एच रामचंद्र राव द्वारा किया गया रेडियो नाट्य रूपांतर सुनवाया गया - कल आना कल। कार्यालयों की कार्यशैली की झलक मिली, साहब देर से आए, जल्दी आए, साहब का मूड अच्छा हैं, खराब हैं। एक वृद्धजन आए जिनका आजादी के संघर्ष में योगदान रहा, उन्हें इसका प्रमाण पत्र निकलवाना हैं, उनसे पूछा जा रहा हैं आप किसी दलाल के पास क्यों नही गए, यहाँ सीधे क्यों आए, दलाल आपको तो क्या आपके बेटे को भी प्रमाण पत्र दिलवा देता। कड़वी सच्चाई दिखाता नाटक। निर्देशिका हैं निर्मला अग्रवाल।

यहाँ एक बात अखर गई। दोनों ही दिन दूसरी भाषा से किए गए नाट्य रूपांतर सुनवाए गए - एक भारतीय भाषा कन्नड़ और दूसरी विदेशी भाषा अंग्रेजी। एक दिन मूल हिन्दी नाटक सुनवाया जाता तो अच्छा होता। सप्ताह में दो ही नाटक प्रसारित होते हैं जिनमे एक मूल हिन्दी और एक किसी देसी या विदेशी भाषा से रूपांतर होने से अच्छा संतुलन रहेगा।

Tuesday, February 15, 2011

प्रसार माघ्यम के बहुआयामी व्यक्तीत्व के मालिक श्री हरीष भीमाणी साहब को आज जनम दिन की शुभ: कामना के उनसे साथ साक्षात्कार

आज जानेमाने रेडियो और टीवी प्रसारक, समाचार वाचक, वॉईस ओवर के कलाकार, अदाकार, धारावाहीक लेख़क, निर्माता, निर्देषक और अभिनेता और बी आर टी वी के महाभारत के सुत्रघार 'समय' श्री हरीष भीमाणीजी का जनम दिन है और करीब दो साल पहेले इसी मंच पर मैनें उन पर एक लेख़ प्रकाशित किया था । और तब से इक ख़्वाहीश मनमें बनी थी, और उनसे नेट चेट के समय सैद्धांतीक रूप से सहमती भी पायी थी, कि जब भी हमारा दोनों को आमने सामने रूबरू होने का मोका मिले, एक बातचीत द्रष्यांकित करनी है । और इस दिसम्बर, 2010 की 20 तारीख़ को भगवानने मेरी सुनाओ ली और हमारी प्रथम सदेह भेट हुई उनके कार्यालय कम स्टूडियोमें साम को । तो आज उनको जनम दिन की और सिर्फ़ लम्बी ही नहीं पर बड़ी जिन्दगी की शुभ: कामनाएँ देते हुए नीचे उनसे की गई बातचीत चार भागोमें प्रस्तूत कर रहा हूँ और इस पोस्ट की पाँचवी विडीयो में आप उनको समय के रूपमें फ़िरसे सुनाओ पायेंगे ।

ख़ंड: 1

ख़ंड: 2


ख़ंड: 3

ख़ंड: 4



समय:

पियुष महेता ।
सुरत ।

Saturday, February 12, 2011

श्री रिपूसूदन कूमार ऐलावादीजी के जनम दिन पर शुभ: कामना

आज यानि 12 फरवरी के दिन रेडियो श्रीलंका-हिन्दी सेवा के भूतपूर्व (1976-1981) उद्दघोषक श्री रिपूसूदन कूमार ऐलावादीजी के जनम दिन पर करीब तीन साल पहेले की गई और इसी मंच पर यू-ट्यूब के बजाय गूगल विडीयो के माध्यम से दो भागोमें प्रसारित बातचीत को इक ही भागमें समाविष्ट बात चीत के रूपमें फ़िरसे सुनिये और देख़ीये ।( उस समय यू-ट्यूब ने स्वीकार किया था पर अब लम्बी बात (विडीयो) स्वीकार होती है ।)



आज रेडियो श्री लंकाकी श्रीमती ज्योति परमारजीने मेरे भेज़े हुए मोबाईल संदेश पर इनको जनम दिन की बधाई देते हुए सुजाता का गाना तूम जियो हज़ारो साल प्रसारित किया था करीब 7.26 सुबह ।

पियुष महेता
सुरत-395001.

Friday, February 11, 2011

शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 10-2-11

विविध भारती से शास्त्रीय संगीत के दो कार्यक्रमों का प्रसारण होता हैं संगीत सरिता और राग-अनुराग एक कार्यक्रम के माध्यम से रोज हमें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की कई जानकारियाँ मिलती हैं और दूसरे में विभिन्न फिल्मी गीतों के शास्त्रीय आधार का पता चलता हैं। लेकिन खेद हैं कि केवल शास्त्रीय गायन और वादन का आनंद देने वाला हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनि बंद कर दिया गया हैं। अनुरोध हैं कि इस कार्यक्रम का प्रसारण फिर से शुरू कीजिए।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

सुबह 7:30 बजे संगीत सरिता कार्यक्रम में श्रृंखला प्रसारित की गई - थाट और उसके प्रकार जिसमे हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विभिन्न थाट और उनके रागों का परिचय दिया गया। लोकप्रिय और कम प्रचलित दोनों ही तरह के रागों को शामिल किया गया। इसे प्रस्तुत कर रहे हैं ख्यात शास्त्रीय गायक पंडित प्रभाकर कालेकर जी। हर राग के लिए राग के आरोह अवरोह, राग का चलन बताया। हर राग में उन्होंने अपना गायन भी सुनाया और राग पर आधारित फिल्मी गीत भी सुनवाया।

खमाज थाट की चर्चा में शुक्रवार को राग कलावती के बारे में बताया गया। यह जानकारी दी कि इसकी बंदिश एक ताल में होती हैं। सुभाष काले जी ने एक ताल की जानकारी दी। इस राग में निबद्ध बंदिश सुनाई जिसके बाद इस राग पर आधारित चित्रलेखा फिल्म का गीत सुनवाया - काहे तरसाए जियरा

शनिवार से बिलावल थाट की चर्चा आरम्भ हुई। सबसे पहले शंकरा राग की चर्चा की। जानकारी मिली कि यह बहुत सुरीला राग हैं। प्राचीन समय में महफ़िलो की शुरूवात इसी राग से की जाती थी। इस राग में बंदिश सुनाई -

अजब जोगी आए मोरे घर

फिल्मी गीत सुनवाया - झनन झन झना के अपनी पायल चली मैं आज मत पूछो कहाँ

रविवार को राग बिहाग का परिचय मिला। बताया कि यह पुराना मधुर राग हैं। इस राग में गाना कठिन हैं। इस राग में मध्यम लय की तीन ताल में बंदिश भी सुनाई - ले जा रे जा पथिकवा

इस राग पर आधारित ख़ूबसूरत फिल्म से यह गीत सुनवाया - पिया बावरी सोमवार को राग हंसध्वनि के बारे बताया गया कि यह लोकप्रिय राग हैं और दक्षिण भारतीय संगीत से उत्तर भारतीय संगीत में आया हैं। इस राग में तीन ताल में बंदिश भी सुनाई - कल न पड़े रे माही तड़पत बीत घड़ी पल छिन

इस राग पर आधारित परिवार फिल्म का गीत भी सुनवाया - जा तोसे नही बोलूँ कन्हैय्या

मंगलवार से आसावरी थाट की चर्चा शुरू हुई। राग देसी पर चर्चा हुई। बताया कि यह दोपहर के समय गाया जाने वाला लोकप्रिय राग हैं और अक्सर इसमे दो धईवत का प्रयोग होता हैं जिसे गाकर बताया। इस राग में तीन ताल में बंदिश भी सुनाई - आई रे आई तोरे मिलन को

जिसके बाद फिल्म बैजू बावरा से उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ और बी डी पलोसकर की गाई यह रचना भी सुनवाई - आज गावत मन मेरो झूम के

बुधवार को बहुत ही कम प्रचलित राग देवगंधार के बारे में बताया कि इसमे शुद्ध गंधार का प्रयोग होता हैं। मध्य लय में तीन ताल में बंदिश सुनाई -

बरजोरी न करो ऐ कन्हाई

इसके बाद फिल्मी गीत सुनवाया - इत नन्दनन आगे नाचूंगी

गुरूवार को राग अडाना के बारे में बताया गया। यह राग उतरांग से गाया जाता हैं पर यह राग दरबारी से समानता रखता हैं। दोनों रागों का चलन बताया।

बंदिश सुनाई - रंग रंग मुख पर मत फेकों बनवारी

इस राग पर आधारित कैसे कहूं फिल्म का गीत सुनवाया - मनमोहन मन में हो तुमीं

सामान्य जानकारी में बताया गया कि फिल्मी गीत एक राग पर आधारित होते हैं और अन्य रागों की भी इसमे झलक होती हैं।
फिल्मी रचनाओं का चुनाव अच्छा रहा। इस श्रृंखला को रूपाली रूपक जी ने प्रस्तुत किया, वीणा (राय सिंघानी) जी के सहयोग से, तकनीकी सहयोग विनीता (ढोलकिया) जी का हैं। हर दिन कार्यक्रम के शुरू और अंत में संकेत धुन बजती रही जो बढ़िया और समुचित हैं।

गुरूवार को शाम बाद के प्रसारण में 7:45 पर प्रसारित हुआ साप्ताहिक कार्यक्रम राग-अनुराग। 15 मिनट के इस कार्यक्रम में विभिन्न रागों पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए गए। सबसे पहले राग भटियार पर आधारित रूस्तम सोहराब फिल्म का गीत सुनवाया गया - ऐ दिलरूबा

यह राग बहुत अधिक चर्चा में नही आता हैं। इसके बाद साज और आवाज फिल्म का गीत सुनवाया - साज हो तुम आवाज हूँ मैं

जिसके लिए राग का नाम मैंने सुना पतगी, लगता हैं बहुत ही कम प्रचलित राग हैं। इसके बाद ऊंचे लोग फिल्म का गीत सुनवाया - आ जा रे मेरे प्यार के राही

इसके राग का नाम मैंने सुना जन सम्मोहिनी, बहुत कम सुना यह नाम। समापन किया लोकप्रिय राग कलावती पर आधारित दिल दिया दर्द लिया फिल्म के गीत से। इस तरह कम प्रचलित रागों में लोकप्रिय गीत सुनना अच्छा लगा।

यहाँ हम एक बात कहना चाहते हैं। राग अनुराग में फिल्मी गीत सुनवा कर केवल यह बता दिया जाता हैं कि यह गीत किस राग पर आधारित हैं या इस गीत में किस राग की केवल झलक हैं। इस कार्यक्रम में यह जानकारी समुचित हैं। लेकिन संगीत सरिता कार्यक्रम सुनते समय कभी-कभार एक बात खलती हैं। इसमे शास्त्रीय संगीत के विभिन्न अंगो पर चर्चा होती हैं और उसे समझाने के लिए शास्त्रीय गायन और वादन के साथ फिल्मी गीतों में उसका प्रयोग बताने के लिए फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं। पुरानी फिल्मो से लेकर नई फिल्मो तक, कुछ फिल्मो में आवश्यकता के अनुसार ख्यात शास्त्रीय गायकों ने भी गाया हैं। मंगलवार को फिल्म बैजू बावरा की ऎसी ही रचना सुनवाई गई। ऎसी कुछ और भी फिल्मी रचनाएं हैं - एक-दो फिल्मो के लिए उस्ताद आमीर खाँ ने गाया हैं, फिल्म बसंत बहार में पंडित भीमसेन जोशी ने गाया हैं, गीत गाया पत्थरो ने फिल्म में किशोरी अमोलकर ने शीर्षक गीत शास्त्रीय पद्धति में गाया हैं।

फिल्म स्वामी में सुमित्रा लाहिड़ी ने ठुमरी गाई - का करूं सजनी आए न बालम

मैं तुलसी तेरे आँगन की फिल्म में शोभा गुर्टू ने ठुमरी गाई - सैंय्या रूठ गए मैं मनाती रही

फिल्म कुदरत में परवीन सुल्ताना ने गाया - हमें तुम से प्यार कितना ये हम नही जानते

यह रचना शायद लड़की सहयाद्रि की फिल्म से हैं - वन्दना करो अर्चना करो

पंडित जसराज ने पुरानी फिल्म में और एक नई फिल्म में भी गाया। नई फिल्मो में से सरदारी बेगम फिल्म में आरती अंगलीकर ने गाया, ऎसी और भी रचनाएं हैं। इन रचनाओं को शायद ही कभी संगीत सरिता में चर्चा के दौरान सुनवाया गया, यहाँ तक कि ख्याल और ठुमरी की चर्चाओं में तो ये रचनाएं ही अधिक उपयुक्त हैं फिर भी शायद ही कभी सुनवाई गई। यह अनुरोध हैं कि कृपया इन रचनाओं को शामिल कीजिए।

Monday, February 7, 2011

बिन फेरे हम तेरे......



बहुत दिनों से एक गाने को सुनने की तमन्ना थी दिल में. सोचा कि रेडियो पर इस गाने को क्यों न फरमाइश कर दिया जाए. याद आ गयी कि हमारे इस ब्लॉग की महत्वपूर्ण रचनाकार ' श्रीमती अन्नपूर्णा जी' ने बहुत दिनों पहले इसी गाने की बात की थी . तो.... मैंने भी एक मेल भेज दिया अपनी प्यारी विविध भारती को. पर शायद अभी तक वो फरमाइश पूरी नहीं हो पायी है. चलिए... इन्तजार और सही.

Thursday, February 3, 2011

सदविचारों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 3-2-11

विविध भारती के दो कार्यक्रम ऐसे हैं जिनके माध्यम से सदविचार बता कर श्रोताओं को प्रेरित किया जाता हैं, ये दो कार्यक्रम हैं चिंतन और त्रिवेणी दोनों ही दैनिक कार्यक्रम हैं और सुबह की सभा में प्रसारित होते हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

इस सप्ताह रविवार का दिन विशेष था। 30 जनवरी के इस दिन दोनों ही कार्यक्रमों में गांधी जी को पूरी श्रद्धा और निष्ठा से याद किया गया।

6:05 पर चिंतन में उनका यह कथन बताया - स्वर्ग और पृथ्वी दोनों हमारे भीतर हैं, पृथ्वी से हम परिचित हैं लेकिन अपने भीतर के स्वर्ग से बिलकुल अपरिचित हैं।

Tuesday, February 1, 2011

मुकेश का गाया एक दर्द भरा शीर्षक गीत

साठ के दशक के अंतिम दौर में एक फिल्म रिलीज हुई थी - गुनाहों का देवता

इस फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में हैं जितेन्द्र, राजश्री और टुनटुन। इस फिल्म के गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे और रेडियो से बहुत सुनवाए जाते थे। बहुत दिन हुए ये गीत नही सुने। आज मुकेश के गाए शीर्षक गीत के कुछ बोल याद आ रहे हैं -

चाहा था बनूंगा ------------- का देवता
मुझको बना दिया हैं गुनाहों का देवता

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

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