सबसे नए तीन पन्ने :

Friday, January 28, 2011

जब विविध भारती कहे अपने मन की... कर्म की... साप्ताहिकी 27-1-11

चर्चा उन दो कार्यक्रमों की जिसमे श्रोताओं से रूबरू हैं विविध भारती - छाया गीत और पत्रावली एक कार्यक्रम के अंतर्गत रोज उदघोषक अपने मन की बात कहते और खुद की पसंद के गीत सुनवाते हैं, दूसरे कार्यक्रम के माध्यम से सप्ताह में एक बार विविध भारती विश्लेषण करती हैं अपने कार्यक्रमों का श्रोताओं के पत्रों के माध्यम से और चर्चा करती हैं अपनी कार्य प्रणाली की।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

रात 10 बजे का समय छाया गीत का होता है। शुक्रवार को प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने। प्रस्तुति का नया अंदाज अच्छा लगा। अपनी चिरपरिचित शैली साहित्यिक हिन्दी से दूर मिश्रित भाषा का प्रयोग हुआ, आखिर हास्य गीत जो सुनवाए। इस बार भी चर्चा प्यार की हुई लेकिन भावनाओं में बहने के बजाए सिमकार्ड के एक्टिव होने की बाते बताई। जब हास्य गीत हो तो जाहिर हैं किशोर कुमार, महमूद, जॉनीवाकर की आवाजे सुनने को मिली। शुरूवात की पड़ोसन के चतुरनार गीत से। उसके बाद हॉफ टिकट का गीत सुनवाया जिसे किशोर कुमार ने अकेले ही युगल स्वरों में गाया - गायक और गायिका दोनों स्वरों में - ओ संवरिया ओ गुजरिया, चलती का नाम गाड़ी का गीत भी सुना और यह भी शामिल था - हम तो मोहब्बत करेगा

शनिवार को प्रस्तुत किया अशोक जी ने। उर्दू के अल्फाजो से सजी चिरपरिचित शैली रही। प्यार की यादो की बाते हुई। ज्यादातर ऐसे गीत सुनवाए जो बहुत कम सुनवाए जाते हैं। यह गीत भी शामिल था -

दिल शाम से डूबा जाता हैं रात आएगी तो क्या होगा

हमारी याद आएगी फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। बहुत सुस्त लगा पूरा कार्यक्रम।

रविवार को प्रस्तुत किया युनूस (खान) जी ने। नयापन रहा जो अच्छा लगा। बाते गीत और संगीत की हुई। पहले भाग में ऐसे गीत सुनवाए जिसके संगीत में सिंक्सोफोन वाद्य प्रमुख रहा। इस वाद्य के बारे में बताया कि यह पश्चिमी वाद्य हैं और इसके वादन और वादक कलाकार की हल्की सी चर्चा की। पहला ऐसा गीत चुना जिसकी फिल्म का नाम बहुत कम श्रोता जानते हैं - ब्लैक प्रिंस। गीतकार संगीतकार के नाम भी जाने पहचाने नही हैं। यह गीत भी बहुत कम सुनवाया जाता हैं -
निगाहें न फेरो चले जाएगे हम

फिर शिकार फिल्म का लोकप्रिय गीत सुनवाया - अगर मैं पूंछू जवाब दोगे

जिसके बाद सुहागन फिल्म का गीत सुनवाया। अंतराल के बाद दो ऐसे गीत सुनवाए जिनमे भाव प्रमुख थे। मेरे अरमान मेरे सपने फिल्म के गीत के बोल अच्छे हैं और सूरत और सीरत फिल्म से मुकेश का गाया गीत सुनवाया जिसमे जीवन दर्शन हैं -
बहुत दिया देने वाले ने मुझको आँचल ही न समाए

सभी गीत साठ के दशक के सुनवाए और समापन हमेशा की तरह बढ़िया रहा गीतों की झलकियों के साथ विवरण बताया।

सोमवार को प्रस्तुत किया अमरकान्त जी ने। अच्छा तो लगा पर नया नही लगा। हमेशा की तरह संक्षिप्त आलेख रहा और विषय के अनुसार लोकप्रिय गीत सुनवाए। चर्चा की फूलो की, बहार की, जैसे बगिया में फूल खिलते हैं वैसे ही मन में भी फूल खिलते हैं। शुरूवात की इस गीत से - बागो में फूल खिलते हैं

मोम की गुडिया फिल्म से बागो में बहार आई, जीने की राह फिल्म से आने से उसके आए बहार, ऐसे ही गीत आराधना, तेरे मेरे सपने फिल्म से, आन मिलो सजना फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। मुझे याद आ गया यह गीत - केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले जिसे शायद पंडित भीमसेन जोशी ने गाया हैं... शायद बसंत बहार फिल्म के लिए...

मंगलवार को प्रस्तुत किया ममता (सिंह) जी ने। प्यार की चर्चा हुई। मेरे हमदम मेरे दोस्त, प्रेम पर्वत, पतिता फिल्मो के गीत सुनवाए। न आलेख में नयापन था न गीतों में विविधता थी। सभी गीत लताजी के सुनवाए, वो भी एकल (सोलो) गीत, केवल अंतिम गीत मुकेश के साथ युगल गीत था। प्यार की भावना पर कभी भी चर्चा हो सकती हैं। अच्छा होता गणतंत्र दिवस की पूर्व निशा पर किसी और भावना पर प्रस्तुति होती।

बुधवार को प्रस्तुत किया राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। शुरूवात की देश भक्ति गीत से - मेरे देश में पवन चले पुरवाई

फिर शुरू हो गई प्यार-मोहब्बत की अन्ताक्षरी जवानी दीवानी फिल्म से और ऐसे रोमांटिक गीत भी सुनवाए - मेरा तू तू ही तू मेरी तू तू ही तू

हाय रे हाय नींद नही आए चैन नही आए

समापन किया देश भक्ति गीत से - अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नही

शुरूवात और समापन, गणतंत्र दिवस पर अच्छा लगा पर बीच के गीत... अगर रोमांटिक गीत ही सुनवाने थे तो कम से कम अच्छे भावप्रवण नगमो का चुनाव करते...

गुरूवार को रेणु (बंसल) जी ने प्रस्तुत किया। चर्चा हुई कि दिल की बात कहे या न कहे, शुरू में ही यूं कह दिया, हम अपने दिल की बात आपसे क्यों बताए... पर कार्यक्रम समाप्त होते-होते हम उनके दिल की बात समझने लगे। हो सकता हैं उनको इसका इल्म ही न हो... खैर... प्रस्तुति में थोड़ा नयापन अच्छा लगा। शुरूवात की इस गीत से - मेरे दिल में हैं एक बात कह दो तो भला क्या हैं

यह गीत भी सुनवाया -जाने क्या तूने कही जाने क्या मैंने सुनी बात कुछ बन ही गई

अनुपमा फिल्म का यह प्यारा नगमा - कुछ ऎसी भी बाते होती हैं कुछ दिल ने कहा, ताजमहल फिल्म का गीत भी शामिल था।

सोमवार को रात 7:45 पर पत्रावली में श्रोताओं के पत्र पढ़े रेणु (बंसल) जी ने और उत्तर दिए कमल (शर्मा) जी ने। विभिन्न राज्यों से गाँव, जिलों, शहरो से पत्र आए। कुछ नियमित श्रोताओं ने पत्र भेजे और कुछ नए श्रोताओं के भी पत्र पढ़े गए। लगभग सभी कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। एक श्रोता ने शिकायत की कि फोन नही लगता हैं, इस पर बताया गया कि लाइने अधिक व्यस्त रहती हैं और कॉल भी उतने ही रिकार्ड किए जाते हैं जितने प्रसारण समय के अनुसार आवश्यक हैं। इसीसे कुछ श्रोताओं को लाइन नही मिल पाती हैं। एक शिकायत यह भी थी कि आज के फनकार कार्यक्रम में कभी अधिक जानकारी नही दी जाती जिसके लिए कहा गया कि हर कार्यक्रम में कलाकार के जन्म से लेकर काम की क्रमिक जानकारी देने से कार्यक्रम में एकरसता आती हैं यानि सभी कार्यक्रम एक जैसे लगेगे, नवीनता लाने के लिए कभी क्रमिक जानकारी न देकर कुछ बाते ही बताई जाती हैं। यहाँ मेरे मन में एक सवाल उठा कि अगर एकरसता से बचने के लिए क्रमिक जानकारी न देकर कुछ बाते बताई जाए तब इस कार्यक्रम में और इससे ठीक पहले प्रसारित होने वाले हिट-सुपरहिट कार्यक्रम में अधिक अंतर नही रह जाएगा और एकरसता बन जाएगी। वैसे भी हर दिन आज के फनकार कार्यक्रम का प्रसारण ही एकरसता हैं। एक और प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि विभिन्न केन्द्रों की रचनाएं विभिन कार्यक्रमों जैसे वन्दनवार आदि में प्रसारित की जाती हैं। खेलो के कार्यक्रम संबंधी शिकायत पर कहा गया कि नियमित कार्यक्रम संभव नही पर खेलो के विशेष आयोजन होने पर उस अवधि में नियमित जानकारी दी जाती हैं। एक बात खली कि अंत में डाक पता और ई-मेल आई डी नहीं बताया गया। शुरू और अंत में उद्घोषणा की युनूस (खान) जी ने।

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें