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Friday, January 28, 2011

जब विविध भारती कहे अपने मन की... कर्म की... साप्ताहिकी 27-1-11

चर्चा उन दो कार्यक्रमों की जिसमे श्रोताओं से रूबरू हैं विविध भारती - छाया गीत और पत्रावली एक कार्यक्रम के अंतर्गत रोज उदघोषक अपने मन की बात कहते और खुद की पसंद के गीत सुनवाते हैं, दूसरे कार्यक्रम के माध्यम से सप्ताह में एक बार विविध भारती विश्लेषण करती हैं अपने कार्यक्रमों का श्रोताओं के पत्रों के माध्यम से और चर्चा करती हैं अपनी कार्य प्रणाली की।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

रात 10 बजे का समय छाया गीत का होता है। शुक्रवार को प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने। प्रस्तुति का नया अंदाज अच्छा लगा। अपनी चिरपरिचित शैली साहित्यिक हिन्दी से दूर मिश्रित भाषा का प्रयोग हुआ, आखिर हास्य गीत जो सुनवाए। इस बार भी चर्चा प्यार की हुई लेकिन भावनाओं में बहने के बजाए सिमकार्ड के एक्टिव होने की बाते बताई। जब हास्य गीत हो तो जाहिर हैं किशोर कुमार, महमूद, जॉनीवाकर की आवाजे सुनने को मिली। शुरूवात की पड़ोसन के चतुरनार गीत से। उसके बाद हॉफ टिकट का गीत सुनवाया जिसे किशोर कुमार ने अकेले ही युगल स्वरों में गाया - गायक और गायिका दोनों स्वरों में - ओ संवरिया ओ गुजरिया, चलती का नाम गाड़ी का गीत भी सुना और यह भी शामिल था - हम तो मोहब्बत करेगा

शनिवार को प्रस्तुत किया अशोक जी ने। उर्दू के अल्फाजो से सजी चिरपरिचित शैली रही। प्यार की यादो की बाते हुई। ज्यादातर ऐसे गीत सुनवाए जो बहुत कम सुनवाए जाते हैं। यह गीत भी शामिल था -

दिल शाम से डूबा जाता हैं रात आएगी तो क्या होगा

हमारी याद आएगी फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। बहुत सुस्त लगा पूरा कार्यक्रम।

रविवार को प्रस्तुत किया युनूस (खान) जी ने। नयापन रहा जो अच्छा लगा। बाते गीत और संगीत की हुई। पहले भाग में ऐसे गीत सुनवाए जिसके संगीत में सिंक्सोफोन वाद्य प्रमुख रहा। इस वाद्य के बारे में बताया कि यह पश्चिमी वाद्य हैं और इसके वादन और वादक कलाकार की हल्की सी चर्चा की। पहला ऐसा गीत चुना जिसकी फिल्म का नाम बहुत कम श्रोता जानते हैं - ब्लैक प्रिंस। गीतकार संगीतकार के नाम भी जाने पहचाने नही हैं। यह गीत भी बहुत कम सुनवाया जाता हैं -
निगाहें न फेरो चले जाएगे हम

फिर शिकार फिल्म का लोकप्रिय गीत सुनवाया - अगर मैं पूंछू जवाब दोगे

जिसके बाद सुहागन फिल्म का गीत सुनवाया। अंतराल के बाद दो ऐसे गीत सुनवाए जिनमे भाव प्रमुख थे। मेरे अरमान मेरे सपने फिल्म के गीत के बोल अच्छे हैं और सूरत और सीरत फिल्म से मुकेश का गाया गीत सुनवाया जिसमे जीवन दर्शन हैं -
बहुत दिया देने वाले ने मुझको आँचल ही न समाए

सभी गीत साठ के दशक के सुनवाए और समापन हमेशा की तरह बढ़िया रहा गीतों की झलकियों के साथ विवरण बताया।

सोमवार को प्रस्तुत किया अमरकान्त जी ने। अच्छा तो लगा पर नया नही लगा। हमेशा की तरह संक्षिप्त आलेख रहा और विषय के अनुसार लोकप्रिय गीत सुनवाए। चर्चा की फूलो की, बहार की, जैसे बगिया में फूल खिलते हैं वैसे ही मन में भी फूल खिलते हैं। शुरूवात की इस गीत से - बागो में फूल खिलते हैं

मोम की गुडिया फिल्म से बागो में बहार आई, जीने की राह फिल्म से आने से उसके आए बहार, ऐसे ही गीत आराधना, तेरे मेरे सपने फिल्म से, आन मिलो सजना फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। मुझे याद आ गया यह गीत - केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले जिसे शायद पंडित भीमसेन जोशी ने गाया हैं... शायद बसंत बहार फिल्म के लिए...

मंगलवार को प्रस्तुत किया ममता (सिंह) जी ने। प्यार की चर्चा हुई। मेरे हमदम मेरे दोस्त, प्रेम पर्वत, पतिता फिल्मो के गीत सुनवाए। न आलेख में नयापन था न गीतों में विविधता थी। सभी गीत लताजी के सुनवाए, वो भी एकल (सोलो) गीत, केवल अंतिम गीत मुकेश के साथ युगल गीत था। प्यार की भावना पर कभी भी चर्चा हो सकती हैं। अच्छा होता गणतंत्र दिवस की पूर्व निशा पर किसी और भावना पर प्रस्तुति होती।

बुधवार को प्रस्तुत किया राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। शुरूवात की देश भक्ति गीत से - मेरे देश में पवन चले पुरवाई

फिर शुरू हो गई प्यार-मोहब्बत की अन्ताक्षरी जवानी दीवानी फिल्म से और ऐसे रोमांटिक गीत भी सुनवाए - मेरा तू तू ही तू मेरी तू तू ही तू

हाय रे हाय नींद नही आए चैन नही आए

समापन किया देश भक्ति गीत से - अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नही

शुरूवात और समापन, गणतंत्र दिवस पर अच्छा लगा पर बीच के गीत... अगर रोमांटिक गीत ही सुनवाने थे तो कम से कम अच्छे भावप्रवण नगमो का चुनाव करते...

गुरूवार को रेणु (बंसल) जी ने प्रस्तुत किया। चर्चा हुई कि दिल की बात कहे या न कहे, शुरू में ही यूं कह दिया, हम अपने दिल की बात आपसे क्यों बताए... पर कार्यक्रम समाप्त होते-होते हम उनके दिल की बात समझने लगे। हो सकता हैं उनको इसका इल्म ही न हो... खैर... प्रस्तुति में थोड़ा नयापन अच्छा लगा। शुरूवात की इस गीत से - मेरे दिल में हैं एक बात कह दो तो भला क्या हैं

यह गीत भी सुनवाया -जाने क्या तूने कही जाने क्या मैंने सुनी बात कुछ बन ही गई

अनुपमा फिल्म का यह प्यारा नगमा - कुछ ऎसी भी बाते होती हैं कुछ दिल ने कहा, ताजमहल फिल्म का गीत भी शामिल था।

सोमवार को रात 7:45 पर पत्रावली में श्रोताओं के पत्र पढ़े रेणु (बंसल) जी ने और उत्तर दिए कमल (शर्मा) जी ने। विभिन्न राज्यों से गाँव, जिलों, शहरो से पत्र आए। कुछ नियमित श्रोताओं ने पत्र भेजे और कुछ नए श्रोताओं के भी पत्र पढ़े गए। लगभग सभी कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। एक श्रोता ने शिकायत की कि फोन नही लगता हैं, इस पर बताया गया कि लाइने अधिक व्यस्त रहती हैं और कॉल भी उतने ही रिकार्ड किए जाते हैं जितने प्रसारण समय के अनुसार आवश्यक हैं। इसीसे कुछ श्रोताओं को लाइन नही मिल पाती हैं। एक शिकायत यह भी थी कि आज के फनकार कार्यक्रम में कभी अधिक जानकारी नही दी जाती जिसके लिए कहा गया कि हर कार्यक्रम में कलाकार के जन्म से लेकर काम की क्रमिक जानकारी देने से कार्यक्रम में एकरसता आती हैं यानि सभी कार्यक्रम एक जैसे लगेगे, नवीनता लाने के लिए कभी क्रमिक जानकारी न देकर कुछ बाते ही बताई जाती हैं। यहाँ मेरे मन में एक सवाल उठा कि अगर एकरसता से बचने के लिए क्रमिक जानकारी न देकर कुछ बाते बताई जाए तब इस कार्यक्रम में और इससे ठीक पहले प्रसारित होने वाले हिट-सुपरहिट कार्यक्रम में अधिक अंतर नही रह जाएगा और एकरसता बन जाएगी। वैसे भी हर दिन आज के फनकार कार्यक्रम का प्रसारण ही एकरसता हैं। एक और प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि विभिन्न केन्द्रों की रचनाएं विभिन कार्यक्रमों जैसे वन्दनवार आदि में प्रसारित की जाती हैं। खेलो के कार्यक्रम संबंधी शिकायत पर कहा गया कि नियमित कार्यक्रम संभव नही पर खेलो के विशेष आयोजन होने पर उस अवधि में नियमित जानकारी दी जाती हैं। एक बात खली कि अंत में डाक पता और ई-मेल आई डी नहीं बताया गया। शुरू और अंत में उद्घोषणा की युनूस (खान) जी ने।

Tuesday, January 25, 2011

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश भक्ति गीत

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश भक्ति गीत याद आ रहा हैं। साठ के दशक के अंत में रिलीज हुई थी फिल्म - शतरंज

इसके मुख्य कलाकार हैं राजेन्द्र कुमार और वहीदा रहमान। इस फिल्म के गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे। यह शीर्षक गीत शायद मुकेश का गाया हुआ हैं जिसमे देश भक्ति की भावना हैं। इसकी सिर्फ एक ही लाइन मुझे याद आ रही हैं -

शतरंज की चाल हमारी

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

आप सबको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

Friday, January 21, 2011

फिल्मी कलाकारों के रूपक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 20-1-11

विविध भारती से फिल्मी कलाकारों के रूपक कार्यक्रम दो हैं - हिट सुपरहिट और आज के फनकार जो दैनिक हैं। कई बार ये दोनों कार्यक्रम ऐसे नए-पुराने कलाकारों पर केन्द्रित होते हैं जिनका उस दिन जन्म दिन या पुण्य तिथि होती हैं। दोनों ही कार्यक्रमों की अवधि आधा घंटा हैं। हिट सुपरहिट कार्यक्रम हर दिन दो बार प्रसारित होता हैं।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

दोपहर 1:00 बजे और रात 9 बजे प्रसारित हुआ हिट-सुपरहिट कार्यक्रम।

शुक्रवार को यह कार्यक्रम गीतकार और शायर कैफी आजमी पर केन्द्रित रहा। अनोखी रात, आखिरी ख़त फिल्मो से लोकप्रिय गीत सुनवाए। यह बात अच्छी लगी कि पुरानी फिल्म कागज़ के फूल का लोकप्रिय नगमा सुनवाया गीता राय (दत्त) की आवाज में -

वक़्त ने किया क्या हसीं सितम

और नई फिल्म फिर तेरी कहानी याद आई से कुमार सानू की आवाज में एक नगमा सुना -

यादो के सब जुगनू जंगल में रहते हैं

समय के लम्बे अंतराल में नई-पुरानी आवाज में दोनों नगमे सुनना अच्छा अनुभव रहा। इन गीतों के अलावा दोपहर में फिल्म हंसते जख्म से यह नगमा सुनवाया - तुम जो मिल गए हो, यह चुनाव ठीक ऩही लगा क्योंकि इसमे संगीत पक्ष हावी हैं। इस नगमे का आकर्षण ही इसके अलग ढंग का संगीत संयोजन हैं। अच्छा होता अगर इस फिल्म से लताजी की गाई गजल सुनवा देते। वैसे रात में यह ऩही सुनवाया, इसकी जगह हकीक़त फिल्म का नगमा सुनवाया - होके मजबूर मुझे, बहरहाल इस कार्यक्रम में एक लोकप्रिय गजल की कमी महसूस हुई।

शनिवार को प्रस्तुत हुआ - सैटरडे स्पेशल। इस दिन सेना दिवस था। फ़ौजी भाइयो को समर्पित गीत सुनवाए गए। शुरूवात की
आक्रमण फिल्म के गीत से - देखो वीर जवानो अपने खून पे ये इल्जाम न आए

इसके बाद हकीक़त फिल्म से - अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

जिसके बाद नई फिल्म लक्ष्य से सुनवाया - कंधो से मिलते हैं कंधे

फिल्म बार्डर के संदेशे आते हैं गीत से समापन किया। इस तरह नए पुराने गीतों से अच्छी प्रस्तुति रही, पर रात में प्रस्तुति ज्यादा अच्छी रही। रात में यह भी बताया कि यह 63 वां सेना दिवस हैं और साथ ही फ़ौजी भाइयो के सम्मान में दो-चार वाक्य कहे कि कठिन परिस्थितियों में वे हमारी सुरक्षा करते हैं, सेना के तीनो अंगो में कडा अनुशासन बना रहता हैं। शुरूवात में सुनवाया गीत - हिन्दुस्तान की क़सम

और चायना गेट फिल्म से यह नया गीत भी सुनवाया - हमको तो रहना हैं एक दूजे के साथ

आक्रमण और लक्ष्य फिल्मो के गीत दोपहर की तरह ही रहे।

रविवार को आयोजन रहा - फेवरेट फाइव। इसमे कोई एक कलाकार आमंत्रित होते हैं, अपने पसंदीदा पांच गीत बताते हैं और यह भी बताते हैं कि यह गीत उन्हें क्यों पसंद हैं। साथ में कुछ और बातचीत भी हो जाती हैं। इस बार आमंत्रित रहे ख्यात पार्श्व गायक सुदेश भोंसले जो गीतों के साथ अपनी एक ख़ास कला के लिए अधिक प्रसिद्ध हैं, वो कई कलाकारों की आवाजे निकालते हैं। अपनी इस कला को उन्होंने ईश्वर की देन माना हैं। बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। बताया कि बचपन से फिल्मी गीत अधिक पसंद रहे। सुनवाया यह पहला गीत -

रंग और नूर की बारात किसे पेश करूं

रफी साहब ने गजल फिल्म के लिए गाया हैं। बताया कि यह गीत बचपन से उन्हें पसंद हैं। दूसरा गीत सुनवाया आंधी फिल्म से - तेरे बिना जिन्दगी से कोई शिकवा तो नही

यह गीत वह अक्सर स्टेज शोज में लताजी के साथ गाते हैं। लताजी के साथ स्टेज कार्यक्रमों के अनुभव भी बताए। लताजी की आवाज भी निकाली। तीसरा गीत सुनवाया सिलसिला फिल्म से जो वाकई उनके लिए ख़ास हैं - ये कहाँ आ गए हम
इसमे अमिताभ बच्चन की आवाज में काव्य पंक्तियाँ हैं, अमिताभ की आवाज निकालना सुदेश जी की खासियत हैं। यहाँ भी पंक्तियाँ सुनाई।

चौथा गीत सुनवाया मेरे अपने फिल्म से जो किशोर कुमार का अलग अंदाज का गीत हैं - कोई होता जिसको अपना, हम अपना कह लेते

बताया कि किशोर कुमार के वह बचपन से प्रशंसक रहे हैं। मिली फिल्म से एक ऐसा ही गीत सुनवाकर कार्यक्रम का समापन किया - आए तुम याद मुझे, इस गीत को पहले गुनगुना कर भी सुनाया।

शुरू और अंत में परिचय दिया और समापन किया रेणु (बंसल) जी ने। अच्छा रहा यह कार्यक्रम। इस कार्यक्रम को विनय (तलवलकर) जी के तकनीकी सहयोग से प्रस्तुत किया कल्पना (शेट्टी) जी ने।

सोमवार को गीतकार जावेद अख्तर के गीत सुनवाए गए। हिट-सुपरहिट ये गीत सुनवाए - जाने क्यों लोग प्यार करते हैं

लगान, जोधा अकबर, स्वदेश फिल्मो के गीत सुनवाए। ऐसे गीत भी सुनवाए जो हिट नही लगे, लक्ष्य फिल्म का यह गीत हैं - अगर मैं कहूं मुझे तुमसे मोहब्बत हैं, ऐसा ही कम प्रचलित लक बाई चांस फिल्म का गीत भी सुनवाया।

मंगलवार को अभिनेत्री राखी पर फिल्माए गए गीत सुनवाए गए। शर्मिली, आँखों आँखों में, जीवन मृत्यु फिल्म के रोमांटिक युगल गीत, बेमिसाल और ब्लैक मेल फिल्म से यह गीत सुनवाया - पल पल दिल के पास तुम रहती हो

इनमे से रात में केवल आँखों आँखों में फिल्म का गीत सुनवाया जिससे कार्यक्रम की शुरूवात की। इसके बाद कभी-कभी फिल्म का शीर्षक गीत (नज्म), जुर्माना, शक्ति, बसेरा और मुकद्दर का सिकंदर फिल्मो के गीत सुनवाए। हल्की-फुल्की जानकारी दी कि राखी ने फिल्मी करिअर बंगला फिल्मो से शुरू किया। पहली हिन्दी फिल्म हैं जीवन-मृत्यु। पर कभी-कभी और जुर्माना फिल्मो के गीतों के बाद शक्ति फिल्म का गीत सुनवाते हुए यह महत्वपूर्ण बात नही बताई कि इन दोनों फिल्मो में वह अमिताभ बच्चन की नायिका हैं जबकि शक्ति फिल्म में उन्होंने अमिताभ की माँ की भूमिका की और इसी फिल्म के आसपास रिलीज फिल्म बेमिसाल में फिर से वह अमिताभ की नायिका बन कर आई, जुर्माना की तरह यहाँ भी प्रेम त्रिकोण हैं जिसमे विनोद मेहरा की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। जुर्माना फिल्म का गीत -

सावन के झूले पड़े तुम चले आओ

और बसेरा फिल्म का शीर्षक गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा।

बुधवार को 1:00 बजे से 1:15 तक क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। केन्द्रीय सेवा से जुड़ने पर आज मैं ऊपर आसमाँ नीचे गीत शुरू हो चुका था। फिर देवदास फिल्म से डोला रे डोला गीत सुना और कार्यक्रम समाप्त हो गया। रात में पता चला कि यह कार्यक्रम निर्माता संजय लीला भंसाली पर केन्द्रित था। हल्की सी जानकारी भी दी कि उनकी पहली फिल्म खामोशी - द म्यूजिकल हैं। हम दिल दे चुके सनम का शीर्षक गीत सुनवाया, सांवरिया फिल्म से दो गीत सुनवाए जिनमे से एक यह लोकप्रिय गीत सुना -

जब से तेरे नैना मेरे नैनो से लागे

गुजारिश फिल्म से एक गीत सुनवाया जो लोकप्रिय नही लगा। ब्लैक फिल्म की चर्चा की। उन्हें मिले पुरस्कारी की भी चर्चा हुई।

गुरूवार को पार्श्व गायक कैलाश खेर के गाए गीत सुनवाए गए। इस दिन एक बात अच्छी रही कि रोमांटिक गीत अधिक नही सुनवाए गए। कुछ अलग भाव के गीत सुनना अच्छा लगा - मेरे मौला कर्म हो कर्म

स्वदेश फिल्म से - यूंही चला चल रे कितनी हसीं हैं ये दुनिया

यह रहस्यवादी गीत भी सुना, वैसे आजकल ऐसे गीत कम लिखे जा रहे हैं - पिया के रंग रंग देनी ओढ़नी

दिल्ली 6 से क़व्वाली भी सुनवाई गई। फना फिल्म का गीत भी सुना - सुहान अल्लाह जिसे पिछले दो सप्ताह से सुनते-सुनते मैं थक गई। दिन हो या रात, फरमाइशी कार्यक्रम हो या गैर फरमाइशी कार्यक्रम, यह गाना लगातार बज रहा हैं। वैसे रात में रोमांटिक गीत अधिक बजे। सलाम-ए-इश्क फिल्म से प्यार हैं या सजा और कारपोरेट फिल्म से ओ सिकंदर भी सुनवाया गया। रात में हल्की जानकारी भी दी कि कैलाश खैर की आवाज सूफियाना हैं। बचपन से ही संगीत का शौक़ रहा।

रात 9:30 बजे आज के फनकार कार्यक्रम प्रसारित किया गया। इस सप्ताह कुछ कार्यक्रमों में कोई सृजनशीलता नजर नही आई बल्कि लगा कार्यक्रम तैयार ही नही किए गए। ऐसे लग रहा था उजाले उनकी यादो के और आज के मेहमान जैसे कार्यक्रमों का दुबारा प्रसारण सुन रहे हैं। इन कार्यक्रमों की बातचीत की रिकार्डिंग को यहाँ सुनवा दिया गया, बीच-बीच में गाने सुनवा दिए। यहाँ तक कि बातचीत ठीक से संपादित भी नही रही। लेकिन मंगलवार को रिकार्डिंग का अच्छा उपयोग किया गया।

शुक्रवार को यह कार्यक्रम संगीतकार चित्रगुप्त पर केन्द्रित था। इस दिन उनकी पुण्यतिथि थी। कोई विशेष बाते ऩही बताई गई। केवल तीन ही जानकारियाँ मिली। पहली बात - उन्होंने गीत के बोलो में मीटर पर ध्यान दिया, उनका मानना था कि बोल मीटर में होने से संगीत अच्छा होगा। दूसरी बात उन्होंने लोकगीतों पर आधारित धुनें भी बनाई, ऐसा ही एक लोकगीत सुनवाया जो मैंने पहली बार सुना पर खेद हैं फिल्म का नाम ऩही बताया गया -

अब हम कैसे चले डगरिया लोगवा नजर लगावेगा

तीसरी बात महत्वपूर्ण रही कि आज के दौर के संगीत की शुरूवात में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, यहाँ जो गीत सुनवाया उसे सुन कर प्रमाण मिल गया, बाद के समय खासकर सत्तर के दशक से ऐसे ही रोमांटिक युगल गीत बनने शुरू हुए -

बस अब तडपाना छोडो .......... जो दिल में प्यार का तूफ़ान हैं हम जान गए हैं

उनके कुछ गीतों को पूरा सुनवाया और अंत में बहुत से लोकप्रिय गीतों के अंश सुनवाए। अन्य महत्वपूर्ण बाते ऩही बताई जैसे उनकी पहली फिल्म, उनकी लगभग कुल फिल्मे, उनके योगदान के लिए सम्मान, पुरस्कार आदि।

शनिवार को यह कार्यक्रम केन्द्रित रहा फिल्मकार अनिल शर्मा पर। बताया कि उनकी पहली फिल्म राखी अभिनीत श्रृद्धांजलि हैं। इस फिल्म के बारे में उन्ही की रिकार्डिंग सुनवाई गई। उनकी निर्देशित ग़दर फिल्म की चर्चा हुई। उनकी रिकार्डिंग के दूसरे अंश में उन्होंने धर्मेन्द्र के बारे में बताया जिनके साथ उन्होंने अधिक फिल्मे की जिनमे अपने फिल्म भी शामिल हैं। उनकी रिकार्डिंग का तीसरा अंश भी सुनवाया जिसमे उन्होंने अमिताभ बच्चन की तारीफ़ की जिनके साथ उन्होंने एक ही फिल्म की। तीन अंश रिकार्डिंग के अधिक लगे। अगर किसी और की रिकार्डिंग सुनवाई जाती जिसमे अनिल शर्मा के बारे में किसी ने कहा हो तो अधिक उचित रहता। चर्चा में आई फिल्मो के गीत सुनवाए। शुरूवात में प्रस्तुति की शैली अच्छी रही जिसमे उनके गीतों और काम को मिलाकर लयात्मक प्रस्तुति देने का प्रयास किया गया और जैसा कि स्वाभाविक हैं ऎसी शैली इस तरह के पूरे कार्यक्रम में बनाए रखना कठिन हैं। शोध, आलेख और स्वर युनूस (खान) जी का रहा, सम्पादन पी के ए नायर जी का रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया।

रविवार को यह कार्यक्रम कमल (शर्मा) जी ने संगीतकार ओ पी नय्यर पर प्रस्तुत किया। इस दिन उनका जन्मदिन था। शायद उजाले उनकी यादो के कार्यक्रम में उनसे की गई बातचीत का लगता हैं पहला भाग सुनवा दिया। बीच-बीच में उनके स्वरबद्ध किए रफी साहब के गाए गाने सुनवा दिए। नय्यर साहब की ही रिकार्डिंग से सिर्फ शुरूवाती जानकारी मिल पाई जैसे बचपन में लाहौर रेडियो से कार्यक्रम किए, उनका संघर्ष, पहली फिल्म कनीज वर्ष 1948 में जिसमे पार्श्व संगीत दिया, बतौर संगीतकार पहली फिल्म 1951 में आसमान जो असफल रही, पहला लोकप्रिय गीत आर पार फिल्म से शमशाद बेगम का गाया हुआ -

कभी आर कभी पार लागा तीरे नजर

बहुत सी महत्वपूर्ण बातो की चर्चा तक नही हुई जैसे उनके साथ लताजी ने नही गाया। लोकसंगीत से उन्हें ख़ास लगाव रहा और ऐसे गीतों के लिए उन्हें आशा भोंसले की आवाज अधिक उचित लगी। बल्कि आशाजी का नाम ही ओ पी नय्यर के संगीत से जुडा हैं। नय्यर साहब, आशाजी और एस एच बिहारी की टीम ने बढ़िया गीत दिए। नय्यर साहब की गीतकार कमर जलालाबादी के साथ भी जोडी खूब जमी। पर इन दोनों गीतकारो का नाम तक नही लिया। आशाजी का एक ही गीत सुनवाया -

आँखों से जो उतरी हैं दिल में तस्वीर हैं एक अनजाने की

और कमल बारोट के साथ एक गीत सुनवाया - हुजुर-ए-वाला जो हो इजाजत

रफी के गीतों की अनावश्यक रूप से भरमार रही।

सोमवार को यह कार्यक्रम गीतकार शायर जावेद अख्तर पर लेकर आए युनूस (खान) जी। इस दिन उनका जन्मदिन था। लगातार दो कार्यक्रम जावेद अख्तर पर सुनना ठीक नही लगा। खटकने वाली बड़ी बात यह रही कि इस कार्यक्रम को उनके गीतकार और शायर रूप पर ही केन्द्रित रखा। स्पष्ट रूप से यह बात कही गई कि उनके पटकथा लेखक के रूप जिसमे वो सलीम-जावेद की जोडी से विख्यात रहे, पर चर्चा नही होगी, सिर्फ गीत और वो भी नए फिल्मी गानों पर चर्चा होगी। जबकि कायदे से इस कार्यक्रम में किसी फनकार के समूचे फन पर चर्चा होनी चाहिए। शायद आज के मेहमान कार्यक्रम के लिए उनसे की गई बातचीत सुनवा दी, बीच-बीच में गीतों के साथ। एक और बात अजीब लगी कि एक अच्छे गीतकार में क्या खूबियाँ होनी चाहिए इस बारे में उन्होंने जो भी कहा उस अंश को सुनवा दिया गया, इससे बेहतर होता युनूस जी खुद उनके गीतों की खूबियाँ बताते। इस कार्यक्रम को विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया पी के ए नायर जी के सहयोग से।

मंगलवार को सुविख्यात पार्श्व गायक कुंदनलाल (के एल) सहगल की पावन स्मृति में बेहतरीन प्रस्तुति रही। इस दिन सहगल साहब की पुण्य तिथि थी। जानकारी दी कि सहगल साहब का जन्म 1904 में हुआ। संगीत की शिक्षा सूफी पीर से ली। बचपन में रामलीला में सीता की भूमिका करते रहे। टाइपराइटर के सेल्समैन का काम किया करते थे। पी एल सरकार उन्हें फिल्मो में ले आए। 1931 में न्यू थियेटर से जुड़े। सिनेमा जगत के पहले लोकप्रिय अभिनेता और गायक बने। उनकी फिल्म देवदास अविस्मरणीय हैं। बंगला की देवदास में उन्हें छोटी सी भूमिका दी गई थी ताकि वह हिन्दी में मुख्य भूमिका कर सके। आर सी (राय चंद) बोराल और पंकज मलिक के संगीत निर्देशन में उन्होंने गाया। 42 साल की अल्प आयु में ही उनका निधन हो गया।
उनके गाए लोकप्रिय गीत सुनवाए। शुरूवात की इस बेहद लोकप्रिय गीत से - एक बंगला बने न्यारा

ये गीत सुनवाए - बालम आए बसों मोरे मन में, काहे गुमान करे गोरी, करूं क्या आस निरास भई, क्यों मुझसे खफा हैं क्या मैंने किया हैं, नुख्ताचीं हैं गमे दिल

यह भी बताया कि उन्होंने बच्चो के लिए गीत और लोरी भी गई। बच्चो की कहानी कहता गीत भी सुनवाया। संगीतकार नौशाद की रिकार्डिंग सुनवाई जिसके पहले अंश में उन्होंने काव्यात्मक अंदाज में सहगल साहब को याद किया और दूसरे अंश में शाहजहाँ फिल्म के इस लोकप्रिय गीत की रिकार्डिंग के अनुभव बताए - जब दिल ही टूट गया

इस कार्यक्रम को विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया पी के ए नायर जी के सहयोग से।

बुधवार को रेणु (बंसल) जी ले आई चरित्र अभिनेता परेश रावल पर कार्यक्रम। जानकारी दी कि उन्होंने गुजराती थियेटर से शुरूवात की। खलनायक की भूमिकाएं भी की और अब हास्य भूमिकाएं कर रहे हैं। उनकी विशिष्ट भूमिकाओं का उल्लेख किया - ऐतिहासिक भूमिका सरदार फिल्म में सरदार पटेल की, महेश भट्ट की फिल्म तमन्ना में किन्नर की भूमिका। हंगामा फिल्म का सीन भी सुनवाया। चर्चा में आए फिल्मो के गीत भी सुनवाए, उन पर फिल्माया गीत - ओ मेरे डैडी सुनवाया इस जानकारी के साथ कि चरित्र अभिनेता पर गाने आम तौर पर नही फिल्माए जाते पर इन पर फिल्माए गए कुछ गीत हैं। उन्हें मिले पुरस्कारों की भी जानकारी दी।

गुरूवार को कमल (शर्मा) जी लाए ख्यात अभिनेता भारत भूषण पर कार्यक्रम। इस दिन उनकी पुण्य तिथि थी। बताया कि पचास साठ के दशक में संगीत प्रधान फिल्मो में संवेदनशील भूमिकाएं की। फिल्मो के नाम बताते हुए एक के बाद एक गीत (से कुछ भाग) सुनवाते गए, कवि कालिदास फिल्म से ओ आषाढ़ के पहले बादल गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा। चित्रलेखा में छोटी भूमिका की उसके बाद बीस वर्ष के बाद मध्यम दर्जे की फिल्मो में काम किया पर लोकप्रियता नही मिली। विजय भट्ट ने उन्हें बैजू बावरा के लिए चुना जिससे वो स्टार बने। 1953 में चैतन्य महाप्रभु के लिए एवार्ड मिला। 1954 में मिर्जा ग़ालिब फिल्म को सराहना मिली। फिर रानी रूपमती, घूंघट जैसी लोकप्रिय फिल्मे दी। 1964 में जहांआरा और दूज का चाँद फिल्मे सफल नही हुई। 1966 में रिलीज तक़दीर से भी उनका करिअर आगे नही बढ़ा। फिर उन्होंने चरित्र भूमिकाओं की शुरूवात की प्यार का मौसम फिल्म से। अच्छी सिलसिलेवार जानकारी दी।

गुरूवार का यह कार्यक्रम और शुक्रवार को संगीतकार चित्रगुप्त पर, जन्म दिन के अवसर पर रविवार को संगीत कार ओ पी नय्यर और सोमवार को जावेद अख्तर पर सुन कर लगा कि इन चारो पर एक ही रूपक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा सकता था। वैसे भी हर दिन एक ही फनकार कार्यक्रम सुनना अच्छा नही लगता।

हिट सुपरहिट कार्यक्रम भी दोपहर में 1 बजे से 1:30 बजे तक प्रसारित होता हैं फिर यही कार्यक्रम रात में 9 बजे से 9:30 बजे तक प्रसारित होता हैं। दो समय प्रसारण के बजाय एक समय अन्य कार्यक्रम प्रसारित किए जा सकते हैं।

इस तरह रात के एक घंटे के और दोपहर के आधे घंटे के प्रसारण समय में अन्य कार्यक्रम सुनवाए जा सकते हैं। बंद हो चुके कार्यक्रमों को दुबारा शुरू किया जा सकता हैं जैसे - बज्म-ए-क़व्वाली, लोकसंगीत, अनुरंजनि, एक ही फिल्म से, फिल्मी और गैर फिल्मी नए गीत इनके अलावा कुछ नए कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं जैसे फिल्मी भक्ति, देश भक्ति और हास्य गीतों के कार्यक्रम तथा बच्चो के कार्यक्रम कुछ पुराने लोकप्रिय कार्यक्रमों को दुबारा शुरू किया जा सकता हैं जैसे - एक और अनेक, साज और आवाज कार्यक्रम। कार्यक्रमों में विविधता आने से रोचकता बढ़ेगी।

दोनों ही कार्यक्रमों की अपनी-अपनी संकेत धुन हैं। हिट-सुपरहिट की धुन में लोकप्रिय गीतों के संगीत के अंश हैं, यहाँ एक बढ़िया उपशीर्षक भी हैं - शानदार गानों का सुरीला सिलसिला। आज के फनकार की संकेत धुन सामान्य सी हैं। संकेत धुनें कार्यक्रमों के आरम्भ और अंत में सुनवाई गई। हिट सुपरहिट कार्यक्रम के दौरान और रात में दोनों कार्यक्रमों के बीच के अंतराल में अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजको के विज्ञापन भी प्रसारित हुए।

Tuesday, January 18, 2011

फिल्म उस पार का गीत

सत्तर के दशक की फिल्म हैं - उस पार

फिल्म अच्छी हैं लेकिन फ्लाप रही। इसके गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे और रेडियो से भी बहुत सुनवाए जाते थे पर अब बहुत दिन से यह गीत नही सुना।

मौसमी चटर्जी और विनोद मेहरा पर फिल्माया गया यह गीत लताजी ने या आशा जी ने गाया हैं। मुझे सिर्फ मुखड़ा याद आ रहा हैं -

ये जब से हुई जिया की चोरी

पतंग सा उड़े ये मन मेरा तेरे हाथो में डोरी

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, January 14, 2011

फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 13-1-11

विविध भारती से फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रम हैं - एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने, मन चाहे गीत, हैलो फरमाइश, जयमाला, आपकी फरमाइश इन गीतों के लिए फरमाइश भेजने वाले श्रोताओं की जितनी संख्या हैं उससे कई गुना ज्यादा संख्या ये गाने सुनने वालो की हैं।

ये दो-तीन सप्ताह का समय ऐसा होता हैं जब दोपहर के कार्यक्रमों के श्रोताओं की संख्या बढ़ जाती हैं। इन दिनों स्कूलों में छमाही परीक्षाएं हो चुकी हैं और बच्चो की छुट्टियां हैं पर अध्यापक स्कूल आते हैं पेपर जांचने और परिणाम तैयार करने। ऐसा काम वो रेडियो सुनते हुए करते हैं। साल में दो-तीन बार ऎसी स्थिति आती हैं जब स्कूल और कॉलेज में छात्रो की छुट्टी होती हैं पर शिक्षण गण को कुछ दिन और काम करना होता हैं तब अक्सर ये काम रेडियो सुनते हुए ही निबटाए जाते हैं क्योंकि छात्रो के न रहने से कडा अनुशासन भी नही रहता। वैसे भी स्टाफ रूम में रेडियो की आवाज नई बात नही हैं। पहले छोटे ट्रांसिस्टर थे आजकल सेल फोन हैं।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

फरमाइशी गीतों के कार्यक्रम दोपहर से शुरू होते हैं। पहला कार्यक्रम दोपहर 12 बजे प्रसारित होता हैं - एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने। यह अति आधुनिक कार्यक्रम हैं। यह सजीव प्रसारण हैं। रोज एक घंटे का सजीव प्रसारण सामान्य बात नहीं हैं।

कार्यक्रम की शुरूवात में 10 फ़िल्मों के नाम बता दिए गए फिर बताया गया एस एम एस करने का तरीका जो इस तरह हैं -
मोबाइल के मैसेज बॉक्स में जाकर टाइप करना हैं - वीबीएस - जगह छोड़े यानि स्पेस दे - फिल्म का नाम - स्पेस दे - गाने के बोल - स्पेस - अपना नाम और शहर का नाम और भेज दे इस नंबर पर - 5676744

और इन संदेशों को 12:50 तक भेजने के लिए कहा गया ताकि शामिल किया जा सकें। पहला गीत उदघोषक की खुद की पसन्द का सुनवाया गया ताकि तब तक संदेश आ सके। फिर शुरू हुआ संदेशों का सिलसिला। सबसे अधिक सन्देश जिन गीतों के लिए मिले वही गीत सुनवाए गए।

शुक्रवार को प्रस्तोता रही ममता (सिंह) जी। अच्छा लगा कि इन फिल्मो में से अधिकाँश ऐसे गीत सुनने के लिए श्रोताओं ने सन्देश भेजे जो ज़रा कम ही बजते हैं। एक-दो ऐसे गीत भी शामिल रहे जो बहुत ज्यादा सुनवाए जाते हैं - कारपोरेट फिल्म से ओ सिकंदर, विवाह फिल्म से मिलन अभी आधा-अधूरा हैं। डोर, कभी अलविदा न कहना, भागम भाग, बाबुल, 36 चाइना टाउन, अक्सर फिल्मो के गीत सुनवाए गए।

शनिवार को प्रस्तोता रही राजुल (अशोक) जी। गरम मसाला, काल, आशिक बनाया आपने, मैंने प्यार क्यों किया, सलाम नमस्ते फिल्मो के गीत, दस और नो एंट्री फिल्मो के शीर्षक गीत और बंटी और बबली फिल्म से नच बलिए गीत भी सुनवाया।

रविवार को क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रमों के कारण पूरा कार्यक्रम रिले नही हुआ। अंत में सुना कहो न प्यार हैं फिल्म का शीर्षक गीत।

सोमवार को प्रस्तोता रहे अशोक हमराही जी। फिल्मे रही - बेवफा, ब्लफ मास्टर, वीर जारा, खाकी, मर्डर, हमतुम। इन फिल्मो के गीतों के साथ धूम और मुझसे शादी करोगी फिल्मो के शीर्षक गीत भी सुनवाए गए।

मंगलवार को प्रस्तोता रही राजुल (अशोक) जी। जूली, ऐतेबार (दोनों नई फिल्मे), फिजा, मस्ती, चमेली, गर्व, दिल मांगे मोर फिल्मो के गीत सुनवाए। कृष्णा कॉटेज फिल्म का गीत सूना सूना इस सप्ताह दूसरी बार सुनना अच्छा नही लगा।

बुधवार को प्रस्तोता रही मनीषा (भटनागर) जी। क़यामत, बागबान, अंदाज, चलते-चलते, मुन्ना भाई एम बी बी एस फिल्मो के गीत और कल हो न हो फिल्म का शीर्षक गीत सुनवाया।

गुरूवार को प्रस्तोता रहे अमरकांत जी। शुरूवात की चोरी चोरी चुपके चुपके फिल्म के शीर्षक गीत से। पिंजर, हंगामा, हासिल, जिस्म, इश्क विश्क फिल्मो के गीत सुनवाए। दम फिल्म से बाबूजी ज़रा धीरे चलो गीत भी शामिल था।

आधा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर से बची हुई फ़िल्मों के नाम बताए गए और फिर से बताया गया एस एम एस करने का तरीका। कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की 10 फ़िल्मों के नाम बताए गए। हर दिन 10 फिल्मो के नाम बताए गए पर 10 से कम फिल्मो के ही गीत सुनवाए गए क्योंकि संदेशो की संख्या अधिक रही। देश के विभिन्न भागो से संदेश आए। आरम्भ, बीच में और अंत में बजने वाली संकेत धुन ठीक ही हैं। कभी-कभी इस कार्यक्रम को प्रस्तोता ने शो कहा, मैं समझ नही पा रही हूँ क्या रेडियो के कार्यक्रम को शो कहा जा सकता हैं...

इस सप्ताह यह कार्यक्रम अच्छा लगा क्योंकि नए दौर के संगीत का आनंद मिला। इस कार्यक्रम को मंगेश (सांगले) जी, गणेश (शिन्दे) जी, निखिल (धामापुरकर) जी, राजीव (प्रधान) जी, तेजेश्री (शेट्टे) जी के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुंचाया गया और हम तक यह प्रसारण ठीक से पहुँच रहा हैं या नही, यह देखने (मॉनीटर) करने के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रही मालती (माने) जी। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक (छिब्बर) जी ने।

दोपहर 1:30 बजे का समय रहा मन चाहे गीत कार्यक्रम का जिसकी प्रस्तुति पारंपरिक और आधुनिक दोनों ढंग से हैं। यानि दो दिन ई-मेल से भेजी गई फरमाइश से गीत सुनवाए जाते हैं और शेष दिन पुराने तरीके से पत्रों से प्राप्त फरमाइश के अनुसार गीत सुनवाए जाते हैं। नए-पुराने गीतों के लिए श्रोताओं ने फरमाइश भेजी।

शुक्रवार को शुरूवात की कश्मीर की कलि फिल्म के मस्त गीत से - तारीफ़ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हे बनाया
मेरा गाँव मेरा देश, मेरा साया, आदमी, विवाह, कुदरत, धूम फिल्म का शीर्षक गीत, फना फिल्म का सुहान अल्लाह गीत भी सुनवाया। नजरो से कह दो प्यार में मिलने का मौसम आ गया जैसे बीच के समय के गीत भी सुनवाए गए। भूले-बिसरे गीत टाइप का गाना भी शामिल था - तुम रूठ के मत जाना

शनिवार को भी नए पुराने गाने सुनवाए। कामचोर, आप तो ऐसे न थे, कुदरत (अस्सी के दशक की फिल्म) फिल्मो के गीत सुनवाए गए। 1942 अ लव स्टोरी फिल्म से लड़की को देखा तो ऐसा लगा गीत भी शामिल था। उमराव जान, मोहरा और मासूम फिल्म की गजल - हुजूर इस क़दर भी न इतरा के चलिए और बाजार फिल्म की यह गजल भी सुनवाई - फिर छेड़ी रात बात फूलो की। इस तरह इस दिन श्रोताओं की गजलो की फरमाइश ज्यादा पूरी हुई पर क्रम व्यवस्थित नही रहा। एक के बाद एक गजले सुनवाई, अगर गीत और गजल मिलाकर सुनवाते तो अच्छा लगता। प्रस्तोता रही मंजू (द्विवेदी)) जी।

रविवार को गैम्बलर, मिलन, सरस्वती चन्द्र, लैला मजनू, धूल का फूल, चोर मचाए शोर, नया दौर, फिल्मो के गीत सुनवाए। रोमांटिक गीतों के अलावा अलग भावो के गीत भी थे, शोर फिल्म से - जीवन चलने का नाम, दोस्ती फिल्म से - गुडिया हम से रूठी रहोगी कब तक न हंसोगी

बेताब फिल्म से शब्बीर कुमार का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा - तुमने दी आवाज लो मैं आ गया
इस दिन साठ-सत्तर के दशक के गीत अधिक सुनवाए गए। प्रस्तोता रही मंजू (द्विवेदी) जी।

सोमवार को एक नई बात हुई जो अच्छी लगी। शुरू में ही सभी फिल्मो के नाम बता दिए गए। अच्छा हैं, शुरू में ही श्रोताओं को पता चल जाएगा कि उनकी फरमाइश पूरी होने वाली हैं या अगले दिन के लिए प्रतीक्षा करनी हैं। शुरूवात हुई आक्रमण फिल्म के गीत से। सिलसिला, गोरा और काला, फर्ज, जीवन मृत्यु, खाकी, विजयपथ, कल हो न हो फिल्मो के रोमांटिक गीत सुनवाए। मझधार फिल्म से यह गीत अलग रहा जो मैंने शायद पहली ही बार सुना -

ऐ मेरे दोस्त दोस्ती की क़सम

प्रस्तोता रही रेणु (बंसल) जी।

मंगलवार को भी प्रस्तोता रही रेणु (बंसल) जी। शुरूवात की मेरा साया फिल्म के शीर्षक गीत से। पत्थर के सनम, पेइंग गेस्ट, कोहिनूर, आशीर्वाद, फिल्मो के रोमांटिक गीत सुनवाए गए। पालकी फिल्म का यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

दिले बेताब को सीने से लगाना होगा आज परदा हैं तो कल सामने आना होगा

इस क़व्वाली की फरमाइश भी श्रोताओं ने बहुत दिन बाद की - यह मस्जिद हैं वो बुतखाना चाहे ये मानो चाहे वो मानो
धूम, विवाह, वीरजारा, हम तुम फिल्मो के गीत भी सुनवाए, इन फिल्मो का इस सप्ताह दुबारा-तिबारा शामिल होना अच्छा नही लगा।

बुधवार को अमरकांत जी ने सुनवाए ई-मेल से प्राप्त फ़रमाइशो के अनुसार गीत। ताजमहल, प्रोफ़ेसर, आरजू फिल्मो के गीत, चौदहवी का चाँद फिल्म का शीर्षक गीत, कैदी नंबर 11 फिल्म का लताजी और डेजी ईरानी का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -

मीठी-मीठी बातो से बचना ज़रा

रूस्तम-ए-हिंद फिल्म के इस गीत के लिए भी श्रोताओं ने ई-मेल भेजा जिसकी फरमाइश श्रोता कम ही करते हैं - मेरे पहलू में आके बैठो खुदा के वास्ते

नई फिल्मे मैंने दिल तुझको दिया, रब ने बना दी जोडी, वीरजारा, ताल, परिंदा के गीत भी शामिल थे।

गुरूवार को ममता (सिंह) जी ने सुनवाए ई-मेल से प्राप्त फ़रमाइशो के अनुसार गीत। पाकीजा, कयामत से क़यामत तक, मुकद्दर का सिकंदर, विश्वात्मा, लम्हे फिल्मो के गीत, नई फिल्म स्लम डॉग मिलियनियर, अंखियो के झरोखों से और आवारा फिल्म का शीर्षक गीत भी शामिल था। एक थी लड़की फिल्म से पुराना लोकप्रिय गीत लारालप्पा सुन कर मजा आ गया। मिस्टर एक्स इन बॉम्बे का मेरे महबूब क़यामत होगी गीत सुनना बहुत खराब लगा क्योंकि पिछली रात को आपकी फरमाइश कार्यक्रम में ही सुना था।

शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को शाम 4 बजे पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसारित हुआ आधुनिक तकनीक से सजा फरमाइशी कार्यक्रम - हैलो फरमाइश। इसमे विविध भारती के प्रस्तोता श्रोताओं से सीधे फोन पर बात करते हैं। अपनी पसंद का गीत बताने के साथ-साथ कुछ इधर-उधर की भी बाते होती हैं जिससे कई तरह की जानकारियाँ भी मिल जाती हैं। पिटारा की संकेत धुन के बाद इस कार्यक्रम की संकेत धुन सुनवाई गई।

मंगलवार को फोन पर श्रोताओं से बातचीत की युनूस (खान) जी ने। विभिन्न श्रोताओं ने अपने काम के बारे में बताया जैसे मोटर वायरिंग का काम, एक श्रोता ने बताया वह प्राइवेट फर्म में काम करता हैं। कश्मीर के श्रोता ने वहां के सर्द मौसम और बर्फबारी के बारे में बताया। राजस्थान के श्रोता ने कहा आजकल वहां ठण्ड बहुत हैं। कुछ श्रोताओं ने नव वर्ष की शुभकामनाएं दी। नए पुराने गीत अनुरोध पर सुनवाए गए। लताजी का गाया बरसात फिल्म का पुराना गीत -

हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का

नई फिल्म तेरे नाम का गीत ओढ़नी ओढ़ के नाचूं

और अनोखी अदा फिल्म का यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

हाल क्या हैं दिलो का न पूछो सनम आपका मुस्कुराना गजब ढा गया

एक श्रोता ने अपने एक मित्र को समर्पित करने के लिए देशप्रेमी फिल्म के शीर्षक गीत की भी फरमाइश की।

गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की अमरकांत जी ने। इस दिन अधिकतर छात्रो ने बात की। एक छात्र ने बताया कि वह फ़ौज में जाना चाहता हैं। नई फिल्मो के गीत भी सुनवाए जैसे कल हो न हो फिल्म से और पुरानी फिल्मो के गीत भी शामिल थे जैसे नदिया के पार फिल्म का गीत -

कौन दिशा में लेके चला रे

तीनो ही कार्यक्रमों में श्रोताओं ने विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों को पसंद करने की बात बताई।

रिकार्डिंग के लिए फोन नंबर बताया गया - 28692709 मुम्बई का एस टी डी कोड 022 यह भी बताया कि हर सोमवार, मंगलवार और शुक्रवार को फोन कॉल रिकार्ड किए जाते हैं। कुछ सामान्य निर्देश भी दिए जैसे फोन करते समय यह ध्यान रखे कि आसपास बहुत शोर न हो रहा हो, पहले से तय कर ले कि किस गीत की फरमाइश करनी हैं और एक बार फोन कॉल शामिल होने के दो महीने बाद दुबारा फोन करे।

कार्यक्रम माधुरी (केलकर) जी के सहयोग से वीणा (राय सिंहानी) जी ने प्रस्तुत किया। तकनीकी सहयोग स्वाति (भंडारकर) जी, सुधाकर (मटकर) जी का रहा।

शाम बाद 7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम जयमाला। इसमे फरमाइशी गीत सुनने के लिए फ़ौजी भाई एस एम एस या ई-मेल भेजते हैं। कार्यक्रम के शुरू और समाप्ति पर बजने वाली संकेत धुन अच्छी हैं, एकदम कार्यक्रम की परिचायक हैं।

शुक्रवार को प्रस्तोता रही संगीता (श्रीवास्तव) जी। नए-पुराने रोमांटिक गीत सुनवाए गए - महबूबा, कुछ कुछ होता हैं, प्रेम रोग, मैंने प्यार किया, जुर्म और यह अलग भाव का गीत भी शामिल था -

आज गा लो मुस्कुरा लो महफिले सजा लो जीवन की डोर बड़ी कमजोर

रविवार को कुछ ही समय पहले की फिल्मो के रोमांटिक गीत सुनवाए गए - नाजायज, कृष्णा कॉटेज, विश्वात्मा फिल्मो से और ये गीत भी शामिल थे -

तू जब जब मुझको पुकारे मैं दौड़ी आऊँ नदिया किनारे

हमको हमीं से चुरा लो

सोमवार को प्यार और शादी-ब्याह के गीत अधिक सुनवाए गए। वीर, विवाह, प्रेमरोग फिल्मो के गीत, क्योंकि फिल्म का शीर्षक गीत और अच्छा लगा कि इतिहास फिल्म के इस गीत के लिए भी फ़ौजी भाइयों ने फरमाइश भेजी जिसे बहुत ही कम सुनवाया जाता हैं - ये इश्क बड़ा बेदर्दी हैं

प्रस्तोता रही मंजू (द्विवेदी) जी।

मंगलवार को प्रस्तोता रही संगीता (श्रीवास्तव) जी। शुरूवात हुई दिलवाले दुल्हनिया ले जाएगे फिल्म के लोकप्रिय गीत मेहंदी लगा के रखना से जिसके बाद बॉबी, महबूबा, कुर्बान, मैंने प्यार किया फिल्म के गीतों के साथ आज के समय का लोकप्रिय गीत दबंग फिल्म से सुनवाया -

तेरे मस्त मस्त दो नैन

और इस सप्ताह दुबारा सुना फना फिल्म का गीत सुहान अल्लाह

बुधवार को प्रस्तोता रही मंजू (द्विवेदी) जी। सभी कम लोकप्रिय गीत सुनवाए गए - घातक, गर्व, तवायफ, मझधार फिल्मो से पर समापन किया पुरानी लोकप्रिय फिल्म नीलकमल के इस लोकप्रिय गीत से - तुझको पुकारे मेरा प्यार

गुरूवार को चाहत, राजा हिन्दुस्तानी, अंदाज, होगी प्यार की जीत फिल्मो के गीत और पुरानी फिल्म हीर रांझा से मिलो न तुम तो हम घबराए और निकाह फिल्म का सलमा आगा का यह गीत बहुत दिन बाद सुनवाया - दिल के अरमाँ आसुंओं में बह गए
फ़ौजी भाइयों को एस एम एस करने का तरीका भी बताया गया जो इस तरह हैं -

मोबाइल के मैसेज बॉक्स में जाकर टाइप करना हैं - वीजेएम - जगह छोड़े यानि स्पेस दे - फिल्म का नाम - स्पेस दे - गाने के बोल - स्पेस - अपना नाम और रैंक जरूर लिखे और भेज दे इस नंबर पर - 5676744

10:30 बजे प्रसारित हुआ आपकी फ़रमाइश कार्यक्रम। यहाँ भी मन चाहे गीत की तरह ई-मेल और पत्रों से भेजी गई फरमाइश पर गीत सुनवाए गए। इसमें श्रोताओं की फ़रमाइश पर कुछ समय पुरानी फिल्मो के गीत अधिक सुनवाए गए।

शुक्रवार को आर पार, राजकुमार, मेरे सनम, मेरे महबूब, हरियाली और रास्ता फिल्मो के गीतों के साथ आरती फिल्म का यह गीत भी सुनवाया -

आपने याद दिलाया तो मुझे याद आया

प्रस्तोता रही संगीता (श्रीवास्तव) जी।

शनिवार को एक मुसाफिर एक हसीना, गीत, जीवन मृत्यु फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुने। लीडर फिल्म का यह गीत भी सुनवाया जो बहुत ही कम सुनवाया जाता हैं -

क्या कहूं हमें आपसे प्यार हैं

एक फूल दो माली फिल्म का यह गीत भी बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा - सैंय्या ले गई जिया तेरी पहली नजर

रविवार को सूरज, नाईट इन लन्दन, बसंत बहार, सरस्वती चन्द्र, लव इन टोकियो फिल्मो के गीतों के साथ वह कौन थी फिल्म का यह गीत भी सुनवाया -

शोख नजर की बिजलियाँ हमें पे यूहीं गिराए जा

सोमवार को प्रस्तोता रही मंजू (द्विवेदी) जी। शुरूवात बच्चो के गीत से हुई, अब दिल्ली दूर नही फिल्म से - चुन चुन करती आई चिड़िया

सच्चा झूठा, अदालत, जिस देश में गंगा बहती हैं, टॉवर हाउज फिल्मो के गीत और मेरा साया फिल्म से झुमका गिरा रे भी शामिल था।

मंगलवार को प्रस्तोता रही संगीता (श्रीवास्तव) जी। पुरानी फिल्म पवित्र पापी के साथ बहुत पुरानी फिल्मो के गीत सुनवाए गए - ससुराल, जेलर, पोस्ट बॉक्स नंबर 999, तक़दीर फिल्मो से और कण कण में भगवान फिल्म का यह गीत भी सुनवाया - अपने पिया की मै तो बनी रे जोगनिया

बुधवार को प्रस्तोता रही मंजू (द्विवेदी) जी। मिस्टर नटवरलाल के अलावा पुरानी फिल्मो - मिस्टर एक्स इन बॉम्बे, फूल बने अंगारे, मेरे महबूब, अदालत के गीत सुनवाए गए, दिल और मोहब्बत फिल्म का यह गीत भी सुना जो आजकल कम ही सुनवाया जाता हैं -

हाथ आया हैं जबसे तेरा हाथ में, आ गया हैं नया रंग जज्बात में

गुरूवार को श्रोताओं के ईमेल आधारित फरमाइशी गीतों में शुरूवात की दो कलियाँ फिल्म के गीत से - तुम्हारी नजर क्यों खफा हो गई

कश्मीर की कलि, दो रास्ते, बीस साल बाद और लावारिस फिल्मो के गीत सुनवाए।

बुधवार और गुरूवार को मन चाहे गीत और आपकी फ़रमाइश कार्यक्रम में ईमेल से प्राप्त फ़रमाइशें पूरी की जाती है अन्य दिन पत्र देखे जाते है। देश के अलग-अलग भागों से बहुत से पत्रों से गानों की फ़रमाइश भेजी गई और हर पत्र में भी बहुत से नाम रहे जबकि ई-मेल की संख्या कम ही रही। अधिकाँश गीत एक ही मेल पर सुनवाए गए। गाने नए पुराने दोनों ही शामिल थे।

जयमाला और आपकी फरमाइश कार्यक्रम प्रायोजित रहे। इन दोनों कार्यक्रमों में और मन चाहे गीत कार्यक्रम में अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए। पूरे सप्ताह देश के विभिन्न भागों, शहरों, गाँवों, जिलो, कस्बों से श्रोताओं की फरमाइश पर नए पुराने सभी समय के गीत विभिन्न कार्यक्रमों में सुनने को मिले। 12 बजे के कार्यक्रम में आजकल की फिल्मो के गीत सुनवाए गए और उसके बाद 1:30 बजे के कार्यक्रम में पुरानी फिल्मो के गीत अधिक सुनवाए। शाम बाद के कार्यक्रम में नई-पुरानी फिल्मो के गीत मिलाकर सुनवाए और रात के कार्यक्रम में पुरानी फिल्मो के गीत अधिक बजे।

एक बात बहुत अखर गई। एक ही फिल्म के गीत दो-तीन बार सुनवाए गए। कभी एक ही गीत दुबारा सुनवाया कभी अलग-अलग गीत सुनवाए। एक ही फिल्म को दुबारा शामिल करने के लिए कम से कम एक महीने का अंतर होने से ठीक रहेगा। श्रोताओं की फरमाइश एक महीने बाद भी पूरी की जा सकती हैं।

आप सबको मकर संक्रांति, पोंगल और लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं !

Tuesday, January 11, 2011

दो कलियाँ फिल्म का युगल गीत

साठ के दशक के अंतिम वर्षो की फिल्म हैं - दो कलियाँ जिसके नायक नायिका विश्वजीत और माला सिन्हा हैं। यह फिल्म बाल कलाकार के रूप में नीतू सिंह की पहली फिल्म हैं जिसमे उनकी दुहरी भूमिका हैं माला सिन्हा और विश्वजीत की बेटियों के रूप में।

यह फिल्म तेलुगु में भी बनी हैं जो नीतू सिंह की तरह श्रीदेवी की पहली फिल्म हैं।

इस फिल्म का नीतू सिंह पर फिल्माया गया बच्चो का गीत अक्सर सुनवाया जाता हैं पर यह युगल गीत नही सुने बहुत दिन हो गए। इसे महेंद्र कपूर और लताजी ने गाया हैं। इसके कुछ बोल मुझे याद आ रहे हैं -

तुम्हारी नजर क्यों खफा हो गई खता बक्श दो गर खता हो गई

हमारा इरादा तो कुछ भी न था तुम्हारी खता खुद सजा हो गई

सजा ही सही आज कुछ तो मिला हैं सजा में भी एक प्यार का सिलसिला हैं

मोहब्बत का अब कुछ भी अंजाम हो मुलाक़ात की इफतेदा हो गई

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, January 6, 2011

गैर फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 6-1-11

इस समय विविध भारती से गैर फरमाइशी फिल्मी गीतों के तीन कार्यक्रम हैदराबाद में सुने जाते हैं भूले-बिसरे गीत, गाने सुहाने और सदाबहार नगमें जिनमे से भूले-बिसरे गीत सुबह के पहले प्रसारण का और गाने सुहाने शाम में प्रसारित होने वाला दैनिक कार्यक्रम हैं तथा सदाबहार नगमें सप्ताहांत यानि शनिवार और रविवार को दोपहर बाद में प्रसारित होने वाला कार्यक्रम हैं।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन तीनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

सुबह 7 बजे से 7:30 बजे तक प्रसारित भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में शुक्रवार को ऐसे गीत सुनवाए गए जो अपने समय में तो बहुत लोकप्रिय थे और आज भी लोकप्रिय हैं पर समय के साथ भुला दिए गए और जैसे ही सुनाई देते हैं हमें याद आ जाते हैं और हम गुनगुना उठते हैं। शुरूवात हुई इस गीत से -

जवां हैं मोहब्बत हसीं हैं समां

जिसके बाद सुनवाया - ख्यालो में किसी के इस तरह आया नही करते

मुकेश के गाए गीत सुनवाए गए जिसमे से एक दूल्हा-दुल्हन फिल्म का गीत था। दुश्मन फिल्म से सहगल साहब का गाया गीत सुना - करूं क्या आस निरास भई

आह फिल्म का गीत भी सुनवाया। समापन किया कठपुतली फिल्म के लताजी के गाए शीर्षक गीत से। प्रस्तोता रहे अशोक हमराही जी।

शनिवार को नए साल का पहला फिल्मी गीतों का कार्यक्रम अच्छा रहा। शुरूवात की एक राज फिल्म के इस नगमे से -

अगर सुन ले तो एक नगमा हुजुर-ए-यार लाया हूँ

उसके बाद का भी चुनाव बढ़िया रहा, अलबेला फिल्म से - शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के जिसके बाद सुनवाई गई क़व्वाली -

मेरी तस्वीर लेकर क्या करोगे

बारात, हम सब उस्ताद हैं फिल्मो के गीत भी सुनवाए। अच्छी विविधता रही चुनाव में।

रविवार को शमशाद बेगम, सुमन कल्याणपुर, सुधा मल्होत्रा के गीत सुनना अच्छा लगा। एक सपेरा एक लुटेरा, श्रीमती 420, रिंगारो, सपेरा, तस्वीर फिल्मो के गीत सुनवाए। कम सुने जाने गीत भी शामिल थे -

प्यार का नजराना लिए आई हूँ दूर से
दिल न जलाओ दूर दूर से

अक्सर सुने जाने वाले गीत भी शामिल थे - ये शहर बड़ा अलबेला .... सिंगापुर

सोमवार को संयोजन अच्छा रहा। शुरूवात की इस गीत से जो अक्सर सुनवाया जाता हैं -

बेचेन नजर बेताब जिगर ये दिल हैं किसी का दीवाना

ऐसे ही नमस्तेजी फिल्म के गीत से समापन किया। बीच में ऐसे गीत सुनवाए जो बहुत ही कम सुनवाए जाते हैं यानि वाकई भुला-बिसरे दिए गीत -

सिंहल द्वीप की सुन्दरी फिल्म से - खामोश हुई मेरी रागिनी

मुलजिम फिल्म से - संग संग रहेगे तुम्हारे जी हुजूर, चन्दा से चकोर भला रहे कैसे दूर

मैंने जीना सीख लिया फिल्म का गीत भी शामिल था। प्रस्तोता रहे नन्द किशोर पाण्डेय जी।

मंगलवार को भी अच्छा चुनाव रहा, कुछ गीत ऐसे रहे जो बहुत सुनवाए जाते हैं और कुछ गीत ऐसे रहे जो बहुत ही कम सुनवाए जाते हैं। चाँद मेरे आ जा, बहार, आन फिल्मो के गीत - सैंय्या दिल में आना रे आके फिर न जाना रे

नाचो हमारे साथ रे छम छम

अमरदीप, देवदास और चार दिल चार राहे फिल्म का यह गीत जो कम सुनवाया जाता हैं -

कोई माने या न माने मगर जानेमन कुछ तुम्हे चाहिए कुछ हमें चाहिए

पुरानी आवाजों में तलत महमूद और शमशाद बेगम को सुना।

बुधवार को भी मिले-जुले गीत सुनवाए गए यानि जो अक्सर सुनवाए जाते हैं जैसे माय सिस्टर फिल्म से कुंदनलाल सहगल का गाया गीत, अपने हुए पराए फिल्म का शीर्षक गीत, एक फूल चार कांटे और फरार फिल्मो के गीत। कम सुनवाए जाने वाले गीत भी सुनने को मिले जैसे आवारा बादल फिल्म से यह गीत - मोहे कुछ न हुआ

पुरानी आवाज में कमल बारोट को सुना।

आज शुरूवात की इस गीत से जिसे मैंने शायद पहली ही बार सुना हैं, बालयोगी फिल्म का यह गीत हैं -

दुनिया के अन्यायियों अन्याय की होती खैर नही

अन्य गीत भी ऐसे ही रहे - दिल्लगी, देवकन्या, फैसला फिल्मो से। चंगेज खान फिल्म का गीत भी शामिल था, यह गीत बहुत सुना-सुनाया रहा -

किसी ने जादू किया मैं करूं क्या मेरा मन मोह लिया

इस कार्यक्रम में एक बात दुविधाजनक लगती हैं, इस आधे घंटे के कार्यक्रम में, एक ही समय में हम हिन्दी सिने जगत में सत्तर के दशक से आई आवाजो को छोड़ कर सभी गायक कलाकारों को सुनते हैं यानि एक ही साथ कुंदनलाल सहगल साहब, नूरजहाँ और आशा भोंसले की आवाजे हम सुनते हैं। यही स्थिति गीतकारो और संगीतकारों की भी हैं। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ ए आर खुरैशी जैसे पुराने संगीतकारों को भी सुनवाया जाता हैं। सहगल साहब, नूरजहाँ, और ए आर खुरैशी के साथ एक युग जुडा हैं जबकि आशाजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के गीत कुछ समय पहले तक की फिल्मो में भी रहे। समय के साथ-साथ इस कार्यक्रम में साठ के दशक में देरी से आए गीत भी शामिल हो रहे हैं तब इनके साथ पचास के दशक के शुरूवाती गीतों को सुनना कुछ अजीब सा लगता हैं। क्या यह संभव नही कि बहुत पुराने गीतों का कार्यक्रम ही अलग हो जिसमे पचास के दशक के पहले के गीत भी शामिल हो सके और जिससे उस पूरे युग के संगीत का हम आनंद ले सके।

शाम 5 बजे दिल्ली से प्रसारित होने वाले समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद 5:05 बजे से 5:30 तक प्रसारित हुआ कार्यक्रम गाने सुहाने जिसमे अस्सी के दशक और उसके बाद के लगभग सभी ऐसे गीत सुनवाए गए जो लोकप्रिय हैं। इसमे एक अलग युग के सिने संगीत का आनंद मिल रहा हैं जिसमे अभिजीत, अलका याज्ञिक, जतिन-ललित, इरशाद कामिल जैसे नाम शामिल हैं।

शुक्रवार को शुरूवात की इस गीत से - शाम हैं धुँआ धुँआ जिसके बाद बागबान का गीत सुना - चली इश्क की हवा चली। यह गीत भी शामिल था -

कह दो न कह दो न यूं आर माई सोनियो

शनिवार को शुरूवात की आपके साथ फिल्म के नए साल के स्वागत गीत से। कुछ तो हैं फिल्म का गीत और यह गीत भी -

मेरी यह मखनी ... बिंदास

और धूम फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। नए साल की पहली शाम के लिए अच्छा चुनाव रहा।

रविवार को रोमांटिक युगल गीत सुनवाए गए। शुरूवात की आशिकी फिल्म के गीत से जिसके बाद नरसिम्हा, कुछ कुछ होता हैं फिल्मो के गीत सुनवाए गए। यह गीत भी सुना -

हमें जब से मोहब्बत हो गई हैं ये दुनिया ख़ूबसूरत हो गई हैं

प्रस्तोता रही राजुल अशोक जी।

सोमवार को सुनवाए ये गीत - चलो चले मितवा

ऐसा गीत भी सुनवाया जो बहुत लोकप्रिय नही हैं - देखा तुझपे हो गई दीवानी मारूं तुझे तो मर न जाऊं कहीं

मंगलवार को करीब, दिलजले फिल्मो के गीतों के साथ ये गीत भी सुनवाए -

मैं कोई ऐसा गीत गाऊँ आरजू जगाऊँ अगर तुम मिलो

इश्क हुआ कैसे हुआ

बुधवार को खिलाड़ी, ये तेरा घर ये मेरा घर फिल्मो के गीतों के साथ दिल मांगे मोर फिल्म का यह गीत भी शामिल था -

ऐसा दीवाना हुआ हैं यह दिल आपके प्यार में

आज क़यामत से क़यामत तक, दिलवाले फिल्मो के गीत और यह गीत सुनवाया गया -

जादू सा छाने लगा --- ये दिल क्या करे

और समापन किया चोरी चोरी चुपके चुपके फिल्म के शीर्षक गीत से।

शुरू और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई, जो विभिन्न फिल्मी गीतों के संगीत के अंशो को जोड़ कर तैयार की गई हैं जिसके साथ कार्यक्रम का शीर्षक, उपशीर्षक के साथ बताया गया - दिलकश धुनों से सजे दिलकश तराने - गाने सुहाने। शीर्षक और उप शीर्षक दोनों अच्छे हैं।

शनिवार और रविवार को आधे घंटे के लिए दोपहर 3 बजे से 3:30 तक प्रसारित होता हैं कार्यक्रम सदाबहार नगमे जिसमे पचास-साठ के दशक के लोकप्रिय फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं।

शनिवार को जब हम केन्द्रीय सेवा से जुड़े तब आप आए बहार आई फिल्म का शीर्षक गीत चल रहा था। इसके बाद अलग-अलग मूड के गाने सुनवाए गए - संगम, हमराज, लव इन टोकियो फिल्मो से रोमांटिक गीत।

आबेहयात फिल्म से यह गीत - मैं गरीबो का दिल हूँ वतन की जुबां

वक़्त फिल्म का शीर्षक गीत भी सुनवाया। इस तरह महेंद्र कपूर, हेमंत कुमार, मुकेश, रफी साहब, लताजी और आशाजी की आवाजों में सुने इन गीतों में अच्छी विविधता नजर आई। प्रस्तोता रही ममता (सिंह) जी।

रविवार को क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम के कारण यह कार्यक्रम रिले नही हुआ।

तीनो कार्यक्रमों के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजको के विज्ञापन भी प्रसारित हुए। नए साल के स्वागत में पहली जनवरी को शाम के प्रसारण में पिटारा के अंतर्गत प्रसारित होने वाले सुदेश भोंसले द्वारा प्रस्तुत कौन बनेगा रोडपति कार्यक्रम की भी सूचना दी गई।

Tuesday, January 4, 2011

खुशियाँ ही खुशियाँ हो दामन में जिसके

1977 के आसपास राजश्री प्रो की एक फिल्म रिलीज हुई थी जिसका कथानक अलग तरह का था और इसी फिल्म से अभिनेत्री रामेश्वरी ने हिन्दी फिल्मो में क़दम रखा था। फिल्म हैं - दुल्हन वही जो पिया मन भाए

इस फिल्म के दो गीत फिल्म की ही तरह बहुत लोकप्रिय हुए थे और रेडियो के सभी केन्द्रों से सुनवाए जाते थे जिनमे से एक गीत अब भी अक्सर सुनवाया जाता हैं पर यह दूसरा गीत नही सुने बहुत दिन हुए।

इस गीत को यसुदास, बंसरी सेनगुप्ता और हेमलता ने गाया हैं। बंसरी सेनगुप्ता का शायद यह एक ही हिन्दी फिल्मी गीत हैं। गीत का मुखड़ा मुझे याद आ रहा हैं -

खुशियाँ ही खुशियाँ हो दामन में जिसके

क्यों न खुशी से वो दीवाना हो जाए

ऐसे मुबारक मौके पे साथी इश्क वालो का नजराना हो जाए

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

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