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Friday, December 3, 2010

शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 2-12-10

मेरी समझ में विविध भारती ही एक ऐसा चैनल हैं जो शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों को न सिर्फ गंभीरता से प्रस्तुत करती हैं बल्कि इसे शिक्षाप्रद बनाए रखती हैं। शास्त्रीय संगीत के आजकल दो कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं संगीत सरिता और राग-अनुराग एक शिक्षाप्रद कार्यक्रम हैं और दूसरे में विभिन्न फिल्मी गीतों के शास्त्रीय आधार का पता चलता हैं। लेकिन खेद हैं कि केवल शास्त्रीय गायन और वादन का आनंद देने वाला हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनि बंद कर दिया गया हैं। अनुरोध हैं कि इस कार्यक्रम का प्रसारण फिर से शुरू कीजिए।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

सुबह 7:30 बजे दैनिक कार्यक्रम संगीत सरिता में श्रृंखला प्रसारित की गई जिसमे हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों का परिचय दिया गया। इसे प्रस्तुत कर रही हैं ख्यात गायिका विदुषी परवीन सुल्ताना। हर दिन एक राग के बारे में बताया गया। इस राग के वादी संवादी स्वर, आरोह अवरोह, राग का चलन और राग की पकड़ बताई गई और उस राग में निबद्ध रचनाएं सुनवाई गई।

शुक्रवार को राग भोपाली का परिचय दिया गया। इस राग में पंडित वसंत राव देशपाण्डेय का गायन सुनवाया गया। उसके बाद इस राग पर आधारित फरीदा खानम की गाई सूफी तबस्सुम की गजल सुनवाई गई।

शनिवार को राग मालकौंस पर चर्चा हुई। इस राग में निखिल बैनर्जी का सितार वादन सुनवाया गया, तबले पर संगत की थी कन्हाई दत्त ने और उसके बाद इस राग पर आधारित फिल्म स्वर्ण सुन्दरी का गीत सुनवाया गया - मुझे न बुला

रविवार को राग बागेश्री का परिचय मिला। इस राग में द्रुत ख्याल में बंदिश भी सुनवाई गई, स्वर जगदीश प्रसाद का रहा, तबले पर संगत की थी निजामुद्दीन खान ने। अंत में इस राग पर आधारित गायत्री महिमा फिल्म से रफी साहब का गाया यह गीत सुनवाया जो मैंने पहली ही बार सुना और जिसे सुन कर बहुत अच्छा लगा -

सांची हो लगन जो मन में, दुःख दर्द मिटे पल छिन में

सोमवार को राग रागेश्री के बारे बताया गया। इस राग में रोनू मजूमदार का बाँसुरी वादन सुनवाया गया जिसमे तबले पर संगत की थी सदानन नायनपल्ली ने। इस राग पर आधारित आज और कल फिल्म का गीत भी सुनवाया - मोहे छेड़ो न कान्हा बजरिया में

मंगलवार को राग मालवी का परिचय मिला। इस राग में उनका खुद का गायन सुनवाया गया।

बुधवार को सुबह के प्रसिद्ध राग भैरवी का परिचय दिया गया। पन्नालाल घोष का शुद्ध भैरवी में बाँसुरी वादन सुनवाया गया जिसके बाद संत ज्ञानेश्वर फिल्म का गीत सुनवाया - जोत से जोत जगाते चलो

सामान्य जानकारी में बताया गया कि गायकी के लिए सबसे पहले आवाज अच्छी होनी चाहिए फिर शास्त्रीय संगीत की शिक्षा होनी चाहिए और उस शिक्षा पर अमल भी किया जाना चाहिए। फिल्मी और गैर फिल्मी रचनाओं का चुनाव भी अच्छा रहा। यह श्रृंखला विविध भारती के संग्रहालय से चुन कर सुनवाई गई, इसका सम्पादन और संयोजन छाया (गांगुली) जी ने किया हैं। अच्छा चुनाव रहा संग्रहालय से। हमारा अनुरोध हैं कि आगे भी निश्चित अवधि से इसका प्रसारण कीजिए ताकि नए श्रोता ख़ास कर नई पीढी को रागों का परिचय मिलेगा।

गुरूवार से एक बढ़िया श्रृंखला शुरू हुई - सिने संगीत ताल के माध्यम से जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित उल्लास बापट। आप से बातचीत कर रही हैं निम्मी (मिश्रा) जी। बातचीत का आधार हैं, एक ही ताल किस-किस रूप में फिल्मी गानों में सुनाई देता हैं। जानकारी दी गई कि ताल एक ही हैं पर हर गाने में इसका ठेका अलग हैं। तीन ताल में बंदिश सुनाई इस जानकारी के साथ कि शिक्षा की शुरूवात ही इस ताल से होती हैं। इसके मूल स्वर भी बताए। इस ताल में तीन फिल्मी गीत चुन कर सुनवाए गए जिनमे पहले दो गीतों में इस ताल का पूरा स्वरूप हैं -

कर नही पाए जिया मोरे पिया

लोकप्रिय गीत - मेरे संग गा गुनगुना

तीसरा गीत ऐसा चुना जो सुगम संगीत के निकट हैं - छलक गई बूंदे मितवा, यह भी पता चला कि इस गीत में पहली बार पंडित उल्लास बापट जी ने संतूर बजाया था।

इस दिन भी गीतों का चुनाव अच्छा रहा, खासकर दो ऐसे गीत सुनवाए जो कम ही सुनवाए जाते हैं।

इस श्रृंखला को रूपाली रूपक जी प्रस्तुत कर रही हैं वीणा (राय सिंघानी) जी के सहयोग से, तकनीकी सहयोग प्रदीप (शिंदे) जी का हैं।

हर दिन कार्यक्रम के शुरू और अंत में संकेत धुन बजती रही जो बढ़िया और समुचित हैं।

गुरूवार को शाम बाद के प्रसारण में 7:45 पर प्रसारित हुआ साप्ताहिक कार्यक्रम राग-अनुराग। इस कार्यक्रम में विभिन्न रागों पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए गए।

शुरूवात की गुमराह फिल्म के गीत से जिसका दूसरा संस्करण सुनवाया गया जो आमतौर पर नही सुनवाया जाता - चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों, जिसके लिए राग का नाम मैंने सुना - नायकी कानडा

दूसरा युगल गीत सुनवाया गया गाइड फिल्म से - गाता रहे मेरा दिल जिसके लिए राग का नाम ठीक से सुनाई नही दिया।

समापन किया राग किरवानी में जुआरी फिल्म के गीत से - न जाने क्या करेगी तेरी झुकी झुकी नजर

इस तरह इस बार गीतों के चुनाव में विविधता नजर आई पर रागों की स्थिति स्पष्ट नही हो पाई।

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