सबसे नए तीन पन्ने :

Thursday, September 30, 2010

आकाशवाणी अमदावाद के श्रोताभिमूख़ केन्द्र निर्देषक श्री भगीरथ पंड्या साहब को उनकी निवृत्ती पर आदरांजलि

आज यानि दि. 30 सितम्बर के दिन आकाशवाणी अमदावाद के केन्द्र निर्देषक श्री भगीरथ पंड्या साहब, जिन्होंने दि. 19 सितम्बर के दिन अपनी आयु के 61वे सालमें प्रवेष किया सरकारी नियम के मुताबिक़ सेवा-निवृत हो रहे है । तो इस अवसर पर उनके स्वस्थ निवृत जीवन की रेडियोनामा की और से शुभेच्छा दे रहा हू । वे कई जगह कार्यभार सम्भाल कर 1993 में आकाशवाणी सुरत (जो ख़न्ड समयावधि वाले एल आर एस के दरजे से ) शुरू हुआ था तब से कार्यक्रम अधिकारी के रूपमें सुरत आये और बादमें उसी रूपमें सुरत आकाशवाणी के इन-चार्ज बने और इन-चार्ज रहते हुए ही सुरतमें ही सहायक केन्द्र निर्देषक के रूपमें बढ़ती पाई और करीब 4-5 साल के बाद केन्द्र निर्देषक के रूपमें फ़िर सुरत आये और तब आकाशवाणी सुरत एक स्थानिय एफ़ एम केन्द्र में से विविध भारती के विज्ञापन प्रसारण सेवा के स्थानिय पूर्ण समयी केन्द्र के रूपमें तबदील हो चूका था । उन्होंने इन दोनो समयकालमें सुरत केन्द्र को लोकप्रिय बनानेमें अपनी कल्पनाशीलता से बहूमूल्य योगदान दिया था, जिसका श्रोता के रूपमें मैं साक्षी रहा हूँ । जैसे उन्होंने एक भ्रम को समाप्त किया कि आकाशवाणी स्टूडीयोमें सिर्फ़ और सिर्फ़ नामी साहित्यकारो और कलाकारों जो पहेले से समाचार पत्रो और सामयिकोमें मूक़ाम हासिल कर चूके हो, उनको ही आमंत्रीत किया जाय । पर उन्होंनें कई अनजान पर होनहार कलाकारो और साहित्यकारों और नियमीत टिपणी देने वाले रेडियो श्रोताओं को भी आकाशवाणी स्टूडीयोमें आमंत्रीत किया और उनके साथ कार्यक्रमों के बारेमें कि गई बातचीत को भी प्रसारित किया, जिसका एक उदाहरण मैं ख़ूद हूँ और आकाशवाणी की वे सर्वप्रथम व्यक्ति है, जिनसे मेरा प्रत्यक्ष परिचय हुआ था । उन्होंने स्थानिय (ख़ंड समयी), विज्ञापन प्रसारण सेवा के और प्रायमरी तीनो प्रकारके केन्द्र निर्देषक के रूपमें समय समय पर कार्यभार सम्हाला, जिनके कार्यक्रम निर्माण और प्रसारण के नियम अलग अलग होते है, और उन सभी प्रकारमें उन नियमो के अंदर रह कर भी अपनी कल्पनाशीलता दिख़ायी थी और इस बात को कभी नज़रंदाझ नहीं किया था कि श्रोता है तभी रेडियोकी उपयूक्तता है । एक बार आकाशवाणी वडोदरा और एक बार आकाशवाणी अमदावाद की और से सुरतमें आकाशवाणी संगीत समारोह उनकी राहबरीमें आयोजीत हुए थे । कई कवि सम्मेलन भी सुरतमें किये थे । सुरतमें आयी बहाढ़ के दौरान उनकी निगेहबानीमें आकाशवाणी सुरत के सभी कर्मचारी अधिकारी लोगोने बहूत की उपयोगी सेवा सुरतकी बहाढ़ पिडीत जनता की की थी ।
उनको कला के क्षेत्रमें सक्रिय रहने की और स्वस्थ निवृत जीवन की शुभ: कामना ।
पियुष महेता ।
सुरत ।

Tuesday, September 28, 2010

मेरा पढ़ने में नही लागे दिल

आज लताजी के जन्मदिन पर उनका गाया फिल्म कोरा कागज़ का एक गीत याद आ रहा हैं जिसे जया भादुड़ी (बच्चन) और नाजनीन (महाभारत धारावाहिक की कुंती फेम) पर फिल्माया गया हैं। यह गीत पहले रेडियो के सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था पर अब लम्बे समय से सुना नहीं। इसके कुछ बोल मुझे याद रहे हैं -

मेरा पढ़ने में नही लागे दिल क्यों
दिल पे क्या पढ़ा गई मुश्किल
अरे रात भी सूनी-सूनी लागे
दिन भी सूना-सूना लागे
कोई ये तो बता दे
मुझे वो तो नही हो गया

बैठे-बैठे मन मुस्काए
मैं न जानूं वो क्यों याद आए
किससे बाते करती हूँ मैं
चुपके-चुपके हंसती हूँ
कोई ये तो बता दे
मुझे वो तो नही हो गया

दिल में क्या हैं लिख नही पाऊं
ख़त लिखूं तो उसे कैसे पहुँचाऊँ
पास भी उसके जा न सकूं मैं
दूर भी उससे रह न सकूं
कोई ये तो बता दे
मुझे वो तो नही हो गया

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, September 24, 2010

शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 23-9-10

विविध भारती की शुरूवात से ही जिस श्रेणी के कार्यक्रम शुरू हुए हैं वो आज भी अनवरत चले आ रहे हैं। यह हैं हिन्दुस्तानी शास्त्रीत संगीत के कार्यक्रम। विविध भारती ने अपने फिल्मी स्वरूप से इसे जोड़ कर रखा हैं। अलग रूपों में शास्त्रीय संगीत श्रोताओं तक पहुंचाया जाता रहा हैं। आजकल इसके दो कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं संगीत सरिता और राग-अनुराग

प्रमुख कार्यक्रम हैं संगीत सरिता जिसका प्रसारण हर दिन सुबह की सभा में होता हैं। यह वास्तव में शिक्षाप्रद कार्यक्रम हैं। 15 मिनट के इस कार्यक्रम को नियमित सुनने से हमें घर बैठे ही हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का ज्ञान मिलता हैं। इसके अलावा प्रमुख कलाकारों से बातचीत भी सुनने का अवसर मिलता हैं। अपने फिल्मी स्वरूप को बनाए रखते हुए हर दिन की जाने वाली शास्त्रीय संगीत की चर्चा से सम्बंधित फिल्मी गीत भी सुनवाए जाते हैं। साथ ही शास्त्रीय पद्धति में गायन और वादन भी सुनवाया जाता हैं। इसकी संकेत धुन भी बढ़िया हैं, एकदम कार्यक्रम के अनुरूप। धुन को सुन कर ही समझ में आ जाता ही कि शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम हैं। कार्यक्रम के शुरू और अंत में बजती हैं यह धुन।

राग अनुराग 15 मिनट का साप्ताहिक कार्यक्रम हैं जिसमे विभिन्न रागों पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए जाते हैं।
लेकिन खेद हैं कि शुद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का आनंद देने वाला कार्यक्रम अनुरंजनि बंद कर दिया गया हैं। इस कार्यक्रम में केवल शास्त्रीय गायन और वादन सुनवाया जाता था जिसमे बहुत बड़े कलाकारों को भी सुनने का आनंद मिलता था। अनुरोध हैं कि इस कार्यक्रम का प्रसारण फिर से शुरू कीजिए। वैसे भी शास्त्रीय संगीत का प्रसारण आकाशवाणी के स्थानीय केन्द्रों से होता हैं पर अन्य चैनलों से लगभग नहीं होता हैं ऐसे में अनुरंजनि का बंद होना शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के लिए दुखद हैं, क्योंकि आजकल युवा वर्ग में भी शास्त्रीय संगीत के प्रति रूझान देखा जा रहा हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला प्रसारित की गई - रसवर्षा। इस समय वर्षा ऋतु अपने चरम पर हैं। ऐसे में यह श्रृंखला सुनना अच्छा लगा। आरंभिक उदघोषणा भी अच्छी थी, यहाँ संगीत संयोजन से माहौल भी वर्षा ऋतु का रखा गया। इसमे वर्षा ऋतु की रचनाएं प्रस्तुत की गई। राग मल्हार के अलावा अन्य रागों में भी गायन का आनंद मिला। अतिथि कलाकार थे ख्यात गायक संजीव अभ्यंकर।

शुक्रवार को राग मधुकौंस सुनवाया गया। पहले अभ्यंकर जी ने इस राग का चलन बताया। फिर इस राग में सूरदास का पद प्रस्तुत किया। पहले पूरा पद सुनाया, कृष्ण राधा से सम्बंधित इस पद के भाव बताए। उसके बाद इस पद को मध्यम लय में तीन ताल में सुनाया -

ये ऋत रुसने की नाही
बरसत मेह
बोलत कुंवर कन्हाई

उसके बाद इस राग पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाया गया - इन्तेहा हो गई इन्तेजार की

शनिवार को राग रामदासी मल्हार सुनवाया गया। पहले अभ्यंकर जी ने इस राग का चलन बताया। फिर इस राग में गायन प्रस्तुत किया -

सावन के बदरा आए
कारी फिर घटा छाए
अंधियारी बीच बिजुरी चमके

उसके बाद इस राग पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाया गया जो मीरा की रचना हैं - म्हारा री गिरधर गोपाल दूसरा न कोया

रविवार को अंतिम कड़ी प्रसारित की गई जिसमे राग था गुर्जरी तोडी। इस दिन भी पहले राग का चलन बताया गया। फिर द्रुत एक ताल में बंदिश सुनाई। पहले पूरा पद सुनाया फिर गायन प्रस्तुत किया -

बरसन गुजर गए मेहा
लाल मनावत तू नही मानत

अंत में इस राग पर आधारित अमर प्रेम का गीत सुनवाया - रैना बीती जाए श्याम न आए

इस श्रृंखला को वीणा (राय सिंघानी) जी के तकनीकी सहयोग से रूपाली रूपक जी ने प्रस्तुत किया।

सोमवार से श्रृंखला शुरू हुई - ताल। इसे प्रस्तुत कर रहे हैं सुप्रसिद्ध सितार और तबला वादक नयन घोष। शुरूवात में बताया कि तबले में तीन ताल लोकप्रिय हैं। इन कड़ियों में स्वतन्त्र तबला वादन में तीन ताल को ही आधार बना कर चर्चा की गई। इसमे सोलह मात्राएँ हैं जिसे बजाकर बताया। जानकारी दी कि इसी ठेके को आधार बना कर संगीत संयोजन किया जाता हैं। इसकी उठान बताई और समझाया कि पेशगार विभिन्न घरानों के अलग-अलग होते हैं। दिल्ली घराने का पेशगार बजा कर बताया। इसके लिए हारमोनियम पर साथ दिया गुरूदत्त जी ने और सारंगी पर साथ दिया दिलशाद खाँ ने। इए कड़ी का समापन भी बढ़िया रहा - तीन ताल में निबद्ध बैजू बावरा फिल्म से रफी साहब की गाई यह भक्ति रचना सुनवाई -

हरी ॐ मन तडपत हरी दर्शन को आज

मंगलवार को तबला वादन में कायदा की जानकारी दी। बताया कि कायदा एक तरह की बंदिश हैं जिसमे बोल बंधे होते हैं जो बुजुर्गो ने बनाए हैं। इस कायदे को आगे बढाया जाता हैं और यह आगे बढाने या बढ़त करने का सिलसिला महत्वपूर्ण हैं। दिल्ली घराने का दो ऊंगलियों का बाज सुनाया जो किनार की आवाज हैं। इसके बाद लखनऊ घराने का कायदा भी बजा कर सुनाया। दोनों बार सुनाने से पहले तबले के बोल बताए फिर दोनों घराने के बारीक अंतर को भी स्पष्ट किया। तबले का आनंद लेने के बाद रफी साहब की आवाज में कोहिनूर फिल्म का गीत सुना - मधुबन में राधिका नाचे रे

बुधवार को तबले का रेला और रौ पर चर्चा हुई। बहुत अच्छी तरह से समझाया कि ये बोलो की बंदिशों की प्रस्तुति हैं। कायदे में बोल दिखते हैं पर रेले में बोल महीन हैं। इन बोलो को धीरे-धीरे आगे बढाया जाता हैं जिस तरह से पानी का रेला आगे बढ़ता हैं। जब इन बोलो का सिर्फ ढांचा बजाया जाए तो इसे रौ कहते हैं। दिल्ली और लखनऊ घराने की शैली में रौ और रेला बजा कर सुनाया। उस्ताद अमीर हुसैन खाँ की शैली में भी प्रस्तुत किया। इस दिन फिल्मी गीत नही सुनवाया गया, समय नही था।

गुरूवार को तबले की लड़ी और रौ पर चर्चा हुई। बताया कि जब बोल एक के बाद एक गुंथे जाते हैं तब उसे लड़ी कहते हैं। बनारस घराने के अनोखे लाल जी की शैली में लड़ी प्रस्तुत की और बताया कि इससे लड़ी को लोकप्रियता मिली। गुरूदेव ज्ञानदेव प्रकाश जी की शैली भी प्रस्तुत की। रौ भी प्रस्तुत किया जिसके बारे में जानकारी दी कि इसकी शुरूवात लखनऊ घराने से हुई जिसका आधार मुहर्रम में बजने वाला वाद्य हैं।

अंत में कल्पना फिल्म का गीत सुनवाया - तू हैं मेरा प्रेम देवता

इस श्रृंखला को भी रूपाली रूपक जी ने प्रस्तुत किया वीणा (राय सिंघानी) जी के सहयोग से, तकनीकी सहयोग दिनेश (तापोलकर) जी का रहा। शुक्रवार को छोड़ कर हर दिन फिल्मी गीतों का चुनाव अच्छा रहा।

गुरूवार को शाम बाद के प्रसारण में 7:45 पर प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। इस कार्यक्रम में विभिन्न रागों पर आधारित गीत सुनवाए गए। ऐसे गीत चुने गए जो शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम के लिए उचित रहे।

शुरूवात की राग खमाज से - बहारों की महफ़िल सुहानी रहेगी (पुरानी फिल्म बेनजीर - आवाज लता जी की) यह गीत बहुत ही कम सुनवाया जाता हैं।
राग मधुमाग सारंग - यारा सिली सिली (नई फिल्म लेकिन - आवाज लता जी की)
राग दरबारी - राधिके तूने बंसुरी चुराई (पुरानी फिल्म बेटी-बेटे - आवाज रफी साहब की)
राग रागेश्वरी - अब के न सावन बरसे (बीच के समय की फिल्म किनारा - आवाज लता जी की)

इस तरह गाने नए पुराने चुने गए पर चारों एकल (सोलो) गीत रहे और तीन गीत लता जी के रहे। चुनाव में विविधता होती तो कार्यक्रम अधिक अच्छा लगता।

Tuesday, September 21, 2010

शिमला रोड फिल्म का कॉमेडी गीत

1969 के आसपास रिलीज हुई थी फिल्म - शिमला रोड

फिल्म पूरी तरह से पिट गई थी, लेकिन यह गीत रेडियो के सभी केन्द्रों से बहुत दिनों तक सुनवाया जाता रहा। बाद में बंद हो गया. इस कॉमेडी गीत को शायद रफी साहब ने गाया हैं. शमशाद बेगम की भी आवाज हैं, और गायक कलाकारों के नाम याद नही आ रहे.

इस फिल्म के किसी भी कलाकार के बारे में पता नही पर शायद टुनटुन इसमे हैं. यह गीत लड़कियों के कपड़ो के फैशन पर हैं. इसके कुछ बोल याद आ रहे हैं -

पजामा तंग है कुर्ता ढीला
ग़ज़ब है उसपे दुपट्टा नीला
ओ रेशमा आ ओ नीला आ

ये तेरी नौ गज़ की शलवार
---------------------

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, September 16, 2010

सदविचारों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 16-9-10

विविध भारती के कार्यक्रमों की विविध श्रेणियां हैं। कुछ श्रेणियों के कार्यक्रम पारंपरिक हैं तो कुछ आधुनिकता लिए हुए। कुछ कार्यक्रम अपूर्व हैं, कार्यक्रमों का ऐसा स्वरूप अन्य चैनलों पर नजर नहीं आता हैं। ऐसे ही हैं सदविचारों के कार्यक्रम। इस श्रेणी में दो कार्यक्रम आते हैं चिंतन और त्रिवेणी। दोनों ही दैनिक कार्यक्रम हैं और सुबह की सभा में प्रसारित होते हैं।

सुबह-सवेरे जब कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू होता हैं तब पहला ही कार्यक्रम होता हैं चिंतन। यह वास्तव में भक्ति संगीत के कार्यक्रम वन्दनवार का एक भाग हैं पर चिंतन से पहले और बाद में हल्की सी संकेत धुन इसके अलग अस्तित्व का आभास कराती हैं।

इसमे उदघोषक एक सदविचार बताते हैं जो किसी महापुरूष का कथन होता हैं या जीवन दर्शन की कोई नीति हैं या देश के महान नेताओं के उपदेश या क्रांतिकारियों, साहित्यकारों के विचारों को बताया जाता हैं। यह एक ऐसा विचार होता हैं जो महापुरूषों के अनुभव, चिंतन, मनन से प्राप्त जीवन दर्शन को बताता हैं। इस तरह जीवन को एक प्रेरणादायी सन्देश मिलता हैं। लेकिन दैनिक जीवन में सिर्फ आदर्श ही नहीं व्यावहारिकता भी जरूरी हैं इसी बात की पूर्ति करता हैं त्रिवेणी कार्यक्रम।

त्रिवेणी में दैनिक जीवन की व्यवहारकुशलता पर चर्चा होती हैं। इसमे मानव जीवन से लेकर प्रकृति के संतुलन तक की व्यावहारिकता हैं। यहाँ जीवन की छोटी-छोटी बातों पर भी महत्वपूर्ण चर्चा होती हैं। इसमे उदघोषक किसी एक विचार या विषय पर चर्चा करते हैं जिससे एक सकारात्मक सोच का विकास होता हैं। चूंकि कार्यक्रम 10-12 मिनट का हैं इसीसे बीच-बीच में विषय से सम्बंधित 3 गीत सुनवाए जाते हैं। महत्त्व चर्चा का हैं इसीसे गीत पूरे नहीं सुनवाए जाते। जितना बढ़िया यह कार्यक्रम हैं उतनी हैं आकर्षक हैं इसकी संकेत धुन जो आरम्भ और अंत में बजती हैं। पता नही यह धुन मूल रूप से तैयार की गई हैं या विभिन्न धुनों का मिश्रण, पर धुन हैं अच्छी। इस तरह सुबह के प्रसारण में इन दोनों ही कार्यक्रमों से दिन की शुरूवात अच्छी होती हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

इस सप्ताह तीन विशेष अवसर रहे - ईद, गणेश चतुर्थी और हिन्दी दिवस

6:05 पर सुनाया गया चिंतन। शुक्रवार को ईद को ध्यान में रखते हुए मोहम्मद साहब का कथन बताया - जो दूसरो का भला करता हैं उसका भला खुदा आप करता हैं। भलाई को बुराई से दूर रखो।

शनिवार को सोमदेव का कथन बताया गया - यशस्वी मनुष्य अपयश नही सह सकता। अच्छा होता इस दिन बुद्धि, चातुर्य से सम्बंधित कोई कथन बताया जाता। इस दिन गणेश चतुर्थी थी, गणेश जी गणनायक, प्रथम देवता, सदबुद्धि देने वाले माने जाते हैं। कोई ऐसा ही कथन ज्यादा उपयुक्त रहता।

रविवार को एलबर्ट आइन्स्टाइन का कथन बताया गया - किसी सफ़र में जाने से पहले उसकी कठिनाइयों के बारे में सोचा जाए तो हम सफ़र पूरा नही कर पाएंगे। जीवन के सफ़र में भी कठिनाइयां हैं।

सोमवार को जवाहर लाल नेहरू का कथन बताया गया - प्रेम और सदभावना ही एक ऐसा अस्त्र हैं जिससे समाज में शान्ति स्थापित की जा सकती हैं इसीलिए प्रेम और सदभावना को समाज के हर वर्ग में फैलाना हैं।

मंगलवार को हिन्दी दिवस था। इस दिन भाषा पर नही, गुरू की महिमा का बखान हुआ। इस दिन आचार्य रजनीश का कथन बताया गया - गुरू की महिमा ईश्वर से बढ़ कर हैं। गुरू हमेशा ईश्वर का साक्षात्कार कराता हैं। अच्छा होता इस दिन हिन्दी से सम्बंधित कोई कथन बताया जाता। गांधीजी सहित कई नेताओं के कथन इस सम्बन्ध में हैं।

बुधवार को स्टर्लिंन का कथन बताया गया - अपनी वर्त्तमान खुशियों को इस तरह भोगो कि भविष्य की खुशियों को हानि न हो। जो कर्तव्य का पालन करते हैं वही भावी खुशी भोगते हैं।

आज सुबह समाचार शुरू होते ही खरखराहट रही। बाद में साफ़ सुनाई दिया। जैसे ही चिंतन शुरू हुआ कुछ भी सुनाई नही दिया जब सुनाई देने लगा तब ही चिंतन समाप्त हुआ और भक्ति गीत शुरू हुए। इस तरह हम चिंतन सुन नही पाए। बाद में प्रसारण साफ़ सुनाई दिया। शायद कुछ समय के लिए तकनीकी समस्या रही। वैसे उस समय बारिश बहुत जोर से हो रही थी।

7:45 को त्रिवेणी कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। यह कार्यक्रम प्रायोजित होने से शुरू और अंत में प्रायोजक के विज्ञापन प्रसारित हुए।

शुक्रवार को सुन कर लगा कि नेहरू जी के जन्मदिवस के लिए तैयार किए गए कार्यक्रम को इस दिन फिर से प्रसारित किया गया। वैसे कार्यक्रम अच्छा था पर 14 नवम्बर न होने की वजह से इस रूप में सुनना अटपटा सा लगा। थोड़ा सा फेरबदल करने से यह कार्यक्रम सामान्य दिन के लिए भी अच्छा हो जाता था। शुरूवात आजाद भारत में नेहरू के योगदान से की। पंचशील और पंचवर्षीय योजना की चर्चा की। कर्म में आस्था रखने वाले नेहरू का नारा बताते हुए वह गीत भी सुनवाया -

आराम हैं हराम

फिर बच्चो की चर्चा की कि उनकी परवरिश अच्छी होनी चाहिए क्योंकि ये ही कल के नागरिक और देश का भविष्य हैं और गीत सुनवाया -

बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दुस्तान की

उसके बाद चर्चा हुई कि देश की प्रतिभाओं ने विश्व में स्थान पाया हैं, उन्हें नफ़रत से दूर रखना और अच्छा माहौल देना चाहिए। यहाँ गीत अंतरे से सुनवाया क्योंकि विषय के अनुसार यही से सुनना उचित हैं -

मेरी दुनिया में न पूरब हैं न पश्चिम

यह गीत हैं - मेरी आवाज सुनो। जैसा कि मैंने पहले बताया इस कार्यक्रम की खासियत विषय हैं जिस पर उचित नए-पुराने गीत सुनवाए जाते हैं। इसीलिए गीत कम भी सुनवाए जाते हैं और जहां से अधिक उचित हो वही से सुनवाया जाता हैं जिससे कार्यक्रम सार्थक हो जाता हैं। अच्छी हैं यह शैली।

शनिवार का दिन बहुत विशेष था। इस दिन दो ख़ास अवसर थे - ईद और गणेश चतुर्थी। लेकिन न ईद की मुबारकबाद दी गई और न गणेश उत्सव का उत्साह नजर आया। मेरी समझ में सुबह के प्रसारण में सभी कार्यक्रमों में ख़ास दिन का उल्लेख होना चाहिए। ऐसे अवसर बहुत ही कम मिलते हैं जब ईद और त्यौहार साथ हो। त्रिवेणी कार्यक्रम के स्वरूप के अनुसार यह बहुत ही विशेष दिन था। इस दिन संस्कृति की बात की जा सकती थी पर इस ओर ध्यान ही नही रहा और विज्ञान और तकनीकी की बात की, देश की हर क्षेत्र में हो रही प्रगति की बात की। सुनवाया यह गीत -

आओ तुम्हे चाँद पे ले जाए

बताया कि देश के नेताओं ने वैज्ञानिकों के साथ मिल कर तकनीकी उन्नति की नींव बहुत पहले ही रख दी थी। विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति, फिर यह गीत -

जागेगा इंसान ज़माना देखेगा

यह भी बताया कि कभी-कभार कुछ दुःख दायी घटनाएं भी हो जाती हैं, लेकिन प्रेरणा दायी प्रसंग भी हैं जिससे देश की अखण्डता बनी हैं , गीत रहा -

छोडो कल की बाते

अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - जख्मी, आदमी और इंसान और हम हिन्दुस्तानी। इस तरह कार्यक्रम अच्छा होने पर भी इस दिन के लिए ठीक नही रहा।

रविवार को बताया गया कि हमारा सामाजिक ढांचा इतना गहरा हैं कि हम अपने जीवन का कोई निर्णय लेते समय इस बात पर अधिक ध्यान देते हैं कि लोग क्या कहेंगे। सामाजिक मर्यादा का ध्यान रखे पर इन बातों की परवाह न करे। समाज में कुछ लोगो का काम ही यही हैं, दूसरो के बारे में अच्छी-बुरी बाते बनाना। यहाँ एक मुहावरे का भी अच्छा प्रयोग किया कि लोग सूरज पर भी कीचड़ उछालते हैं पर कीचड़ सूरज तक पहुंचता नहीं हैं। हमें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए -

दीवाना मुझको लोग कहे, मैं समझूं जग हैं दीवाना

लोग जल गए जाने क्या बात हुई

कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम हैं कहना

अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - दीवाना, रास्ते प्यार के और अमर प्रेम। अच्छी रहा विषय और गीत भी।

सोमवार को चर्चा हुई कि नफ़रत की भावना होनी ही नही चाहिए पर हर तरफ नफ़रत नजर आती हैं। प्यार और अपनेपन की चंद बूंदों से नफ़रत की ये आग बुझ सकती हैं। ईश्वर ने हमें प्रेम और भाईचारे से रहने के लिए भेजा हैं लेकिन हमने अपने चारो ओर नफ़रत की दीवार खडी कर ली हैं। चर्चा के दौरान उपयुक्त तीन गीत सुनवाए गए -

नफ़रत की दुनिया को छोड़ कर प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार

नफ़रत की लाठी तोड़ो -----------मेरे देश प्रेमियों आपस में प्रेम करो

और समापन किया इस गीत से - नफ़रत करने वालो के सीने में प्यार भर दूं

फिल्मो के नाम नही बताए गए। गीत इतने लोकप्रिय सुनवाए गए कि नाम बताने की जरूरत ही नही थी।

मंगलवार को इस दूसरे कार्यक्रम में भी हिन्दी दिवस का ध्यान नही रखा गया। हमारे इस बहुभाषी देश पर अच्छा कार्यक्रम तैयार किया जा सकता था। इस तरह के अच्छे गीत भी हैं पर हिन्दी भाषा का उल्लेख तक नही हुआ। इस दिन नाम की चर्चा हुई। बताया कि नाम से ही पहचान हैं। नाम के लिए लोग क्या-क्या करते हैं। नाम की खातिर खतरों से भी जूझते हैं। हम भी चाहते हैं कि हमारे देश का नाम हो। कई हस्तियों के नाम रोशन हैं। लोग बच्चो का नाम भगवान के नाम पर रखते हैं ताकि इस बहाने भगवान का नाम ले सके। चर्चा के दौरान यह गीत सुनवाए गए जो आलेख के साथ कुछ जमे नही -

मेरा नाम अब्दुल रहमान रिक्शा वाला मैं हूँ पठान

मेरा नाम राजू घराना अनाम

समापन इस गीत से किया जो ठीक रहा - जब तक दुनिया हैं रहेगा तेरा नाम मेरा नाम

संदेशप्रद दोनों ही कार्यक्रमों में हिन्दी की चर्चा तक नही हुई जबकि विविध भारती पूरी तरह से हिन्दी चैनल हैं। इस बात से इन्कार नही किया जा सकता कि सिर्फ अपने देश में ही नही बल्कि विदेशों में भी हिन्दी की लोकप्रियता में हिन्दी फिल्मो का महत्वपूर्ण योगदान हैं। विविध भारती हिन्दी फिल्मी गीतों का गढ़ हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में वर्षो से विविध भारती का योगदान रहा हैं फिर हिन्दी दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिन की इन दो कार्यक्रमों में चर्चा तक नही की गई जबकि दिन के शुरूवाती प्रसारण के ये महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं।

बुधवार को अच्छी प्रस्तुति रही। चर्चा रही कि जीवन में सफलता सभी चाहते हैं पर सभी कामयाब नही होते। इसके कई कारण हैं। कोई खिलाड़ी होता हैं तो कोई अनाडी होता हैं। इन दोनों के बीच की भावना हैं चतुराई जिसमे छिपी हैं प्रेम की भावना जो हम भारतीयों में रची-बसी हैं। यही हमें संघर्ष में संयम देती हैं और सहज हो कर हम असफलता के कारण ढूंढ सकते हैं। चर्चा के दैरान गीत भी उपयुक्त चुन कर सुनवाए गए -

जिन्दगी हैं खेल कोई पास कोई फेल

प्रेम के पुजारी हम हैं

और समापन किया इस गीत से - रूक जाना नही तू कहीं हार के

आज की त्रिवेणी भी अच्छी रही। असामाजिक कार्यों पर चर्चा हुई। बताया कि कोई भी कर्म अपने आप में पाप या पुण्य नही होता। हालात के अनुसार ऐसे काम करने पड़ते हैं जिसे समाज मान्यता नही देता। वैसे जो कमजोर होते हैं वही इस राह पर चलते हैं। कुछ लोग काँटों पर चलना पसंद करते हैं पर ऐसे काम नही। कुछ लोग इन बुरे कामो को चतुराई मानते हैं और ऐसे ही कामो से उम्र गुजार देते हैं। चर्चा के दौरान सुनवाए ये गीत -

चोरी मेरा काम फिल्म का शीर्षक गीत

बनारसी बाबू फिल्म का शीर्षक गीत - बुरे भी हम भले भी हम

अंत में कहा, कहीं ऐसे लोग आपके आसपास भी तो नही और सुनवाया बंटी और बबली फिल्म का गीत - दुनिया को ठेंगा दिखाई के

Wednesday, September 15, 2010

अभिनेता निर्देषक श्री क्रिष्नकान्तजी को जनम दिन की बधाई

आदरणिय पाठकगण
आज यानि 15 सितम्बर को सुरतमें स्थायी हुए एक जमानेके मशहूर अभिनेता और फिल्म छोटा आदमी तथा तीसरा किनाराके निर्देषक, जिन्होंने साऊन्ड अभियंता के रूपमें फिल्मी दुनियामें प्रवेष किया था उनकी जनम तारीख है । तो उनको रेडियोनामा की और से बधाई देते हुए रेडियो श्री लंका तथा विविध भारती की विज्ञापन प्रसारण सेवा के सुरत केन्द्र द्वारा प्रस्तूत की गई बधाई नीचे क्रमश: प्रस्तूत है ।



pluginspage="http://www.macromedia.com/go/getflashplayer">

पियुष महेता ।
सुरत ।

Tuesday, September 14, 2010

ब्लैक मेल फिल्म का भावुक गीत

1974 के आसपास रिलीज हुई थी फिल्म - ब्लैक मेल जिसमे धर्मेन्द्र, राखी और शत्रुघ्न सिन्हा की प्रमुख भूमिकाएं हैं.

इसमे राखी पर फिल्माया गया एक बहुत ही भावुक गीत हैं जिसे लता जी ने गाया हैं. पहले यह रेडियो के सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था पर आजकल बहुत समय से नहीं सुना.

इसके कुछ बोल मुझे याद आ रहे हैं -

नैना मेरे रंग भरे सपने तो सजाने लगे
क्या पता प्यार की शमा जले न जले

आएगे वो आएगे मैं सोच सोच शरमाऊँ
क्या होगा क्या न होगा मैं मन ही मन घबराऊँ
आज मिलन हो जाए तो समझूं दिन बदले मेरे
नैना .......

जानूं न मैं तो जानूं न रूठे-रूठे पिया को मनाना
बिंदिया मेरी बिंदिया मुझे प्रीत की रीत सिखाना
मैं तो सजन की हो ही चुकी वो क्यूं न हुए मेरे
नैना .......


कजरा मेरा कजरा मेरी अंखियों का बह गया पानी
टूटा दिल टूटा मेरी तड़प किसी ने न जानी
प्यार में ...................

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Tuesday, September 7, 2010

इन्दौर के मालवा हाउस के माइक्रोफ़ोन से दूर चला गया वह संतोष-स्वर


सर्व-विदित है कि आकाशवाणी के सुनहरे दौर को रचने के लिये तकनीक से ज़्यादा उन लोगों का अवदान है जो इसे अपना घर समझ कर कार्यरत रहे और अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा को इस आदरणीय प्रतिष्ठान के लिये झोंकते रहे . आज फ़िज़ाँ और कार्य-संस्कृति बदल चुकी है लेकिन किसी ज़माने में आकाशवाणी में चुन कर आने वाले अधिकारी और कलाकार निसंदेह अभिनय,आवाज़,साहित्य,कविता,रंगमंच,संगीत जैसी बहुविध कलाओं से जीवंत तादात्म रखते थे. मालवा हाउस से भी तैतीस बरस की सुदीर्घ पारी खेल कर एक ऐसी ही शख़्सियत ने 6 अगस्त को विदा ले ली . संतोष जोशी शायद आकाशवाणी इन्दौर की लगभग अंतिम चिर-परिचित और ईमानदार आवाज़ है जिसने इस जानी-मानी प्रसारण संस्था के लिये अपना सर्वस्व दे डाला.

संतोष जोशी ने इस मुलाक़ात में बताया कि आकाशवाणी और अग्रणी समाचार पत्र नईदुनिया मालवा-निमाड़ के ऐसे दो महाविद्यालय थे जिनसे मेरी और मेरे पहले की पीढ़ी ने शब्द और स्वर का सलीक़ा सीखा. संतोष जोशी ने बताया कि वे सन 1961 से बाल-सभा में भाग लेने पहली बार मालवा-हाउस आए थे जिसमें एक प्रस्तुति के लिये उन्हें १० रू. बतौर पारिश्रमिक मिले थे.1970 में उन्होंने मुम्बई जाने का मन बना लिया. वहाँ कुछ स्टेज शोज़ आदि मिलते रहे. वहीं एक कार्यक्रम में अभिनेता विनोद खन्ना ने उन्हें देखा और अपनी फ़िल्म इम्तेहान(निर्देशक:मदन सिन्हा) के लिये मिलने को कहा और फ़िल्म में एक अच्छा ख़ासा रोल दे डाला. इस फ़िल्म के डायलॉग बाबूराम इशारा ने लिखे थे. इशारा ने संतोष में छुपे अभिनेता को पहचाना और अपनी आगामी फ़िल्म बाज़ार बंद करो(प्रमुख भूमिका:अंजना मुमताज़) में मौक़ा दिया.फ़िल्म कुछ ख़ास नहीं कर पाई.

अपने प्रसारण कार्यक्रमों से जुड़ी ख़ास याद को रेडियोनामा के साथ बाँटते हुए संतोष जोशी ने बताया कि वह सुबह बहुत दु;खद थी जब सहज में ही अपने केन्द्र पहुँचा और गेट पर ही सिक्योरिटी ने बताया कि राजीव गाँधी का निधन हो गया है.ये ख़बर मेरे लिये बहुत शॉकिंग थी.मैंने अपने कार्यक्रम का टोन ताबड़तोब बदला और उसे एक गंभीर अंदाज़ में एनाउंस किया. इसी तरह अभिनेता अशोककुमार का इंटरव्यू यादगार था जिसमें उन्होंने बताया था कि एक फ़िल्म के सीन में देविका रानी को मंगल सूत्र पहनाना था.चूँकि देविका रानी उस ज़माने की एक बड़ी सेलिब्रिटी थीं सो मेरे हाथ काँप रहे थे और मैंने मंगलसूत्र उनके बालों में उलझा दिया.

सन 1977 में स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण संतोष जोशी इंदौर लौट आए और आकाशवाणी में बतौर प्रॉडक्शन असिस्टेंट जुड़ गये. अस्सी के दशक के मध्य तक मालवा हाउस की दीवारों से उसकी प्रतिष्ठा के पोपड़े झरने लगे थे लेकिन तब तक संतोष जोशी को रणजीत सतीश,स्वतंत्रकुमार ओझा,नरेन्द्र पण्डित ,वीरेन मुंशी,अविनाश सरमण्डल,कृष्णकांत दुबे, बी.एन.बोस जैसे समर्थ वरिष्ठ साथियों का अनुभव मिल चुका था. प्रशासकीय काम के रूटीन से दूर रहने उद्देश्य संतोष 1986 में उदघोषक बन गये. इस बीच उन्हें दक्षिण भारत के जाने माने निर्देशक के.एस.सेतुमाधवन के निर्देशन में बन रही फ़िल्म “ज़िन्दगी जीने के लिये” में अवसर मिला और वे जा पहुँचे चैन्नई.फ़िल्म में राकेश रोशन,राखी और टीना मुनीम की प्रमुख भूमिका था. संगीत राजेश रोशन ने रचा था. लेकिन मुम्बईया निर्माता ने तयशुदा शर्त के मुताबिक सेतुमाधवन को पैसा देने से इनकार कर दिया और फ़िल्म क़ानूनी विवादों में फ़ँस कर रिलीज़ ही नहीं हो पाई. संतोष जोशी मानते हैं कि ये फ़िल्म उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट हो सकती थी.मुम्बई के प्रवास के दौरान संतोष जोशी मनहर,पंकज और निर्मल उधास के स्टेज शो एंकर किया करते रहे. पंकज उधास उनके पुराने दिनों के साथी हैं और आज भी जब वे इन्दौर किसी ग़ज़ल कंसर्ट के लिये आते हैं तो संतोष जोशी को ज़रूर याद करते हैं.संतोष जोशी बताते हैं कि पंकज उधास के स्टेज शो में ही उन्होंने कविता कृष्णमूर्ति को प्रस्तुत किया था जो दिल्ली से क़िस्मत आज़माने फ़िल्म नगरी आईं थीं. इस पहले कार्यक्रम के लिये कविता को सौ रूपये दिये गये थे.

संतोष जोशी ने आकाशवाणी के नाटकों में बहुत उम्दा भागीदारी की.एक नाटक में तो उन्होंने एक बुढ़िया का स्वराभिनय कर श्रोताओं को चौंका ही दिया था. ई.एम.आर.सी. द्वारा निर्मित पुरस्कृत वृत्त-चित्र बाग की छपाई में संतोष का ही वॉइस ओवर था. संदीप श्रोत्रिय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुए नाटक में भी आवाज़ के इस उम्दा कलाकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.बढिया गिटार वादक रहे संतोष जोशी एक बेहतरीन अदाकार है और हास्य उनका बहुत दमदार इलाक़ा . आकाशवाणी इन्दौर से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ठिठोली में उनके स्वर-अभिनय से सुनाए गये लतीफ़े आज भी गुदगुदाते हैं. संतोष जोशी ऐसे गुणी और समर्पित सेवी रहे हैं जिसने युव-वाणी,महिलाओं के कार्यक्रम,वार्ताओं से लेकर नाटकों के निर्देशन तक की कमान बखूबी सम्हाली. आकाशवाणी को उनके जैसा एक बहु-आयामी कलाकार ज़रूर मिला लेकिन अभिनय की दुनिया ने निश्चित रूप से एक बेजोड़ कलाकार गँवाया है. वे यदि इन्दौर वापस न आते तो मुम्बई में उनकी जगह आज सतीश शाह,जॉनी लीवर या राजपाल यादव से तो किसी हाल में कम न होती. बहरहाल संतोष जोशी एक “संतोषी मालवी आत्मा” हैं और जो कुछ मालवा-हाउस के लिये कर पाए उससे प्रसन्न. उम्मीद करें कि अब हिन्दी रंगकर्म और आवाज़ की दुनिया के नये खिलाड़ी उनके इल्म का फ़ायदा ले सकेंगे.

अपनी राय दें