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Friday, August 20, 2010

रात के सुकून भरे कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 19-8-10 और साप्ताहिकी के दो साल

आज साप्ताहिकी लिखते हुए दो साल पूरे हो गए हैं। मैंने कोशिश की कि हर दिन प्रसारित होने वाले सभी कार्यक्रमों की जानकारी दे सकूं पर संभव नही हो पाया। निजी कारणों से दो-चार सप्ताह नही भी लिख पाई। विविध भारती के कार्यक्रम मैं बचपन से सुनती आई हूँ। कई आवाजे सुनती रही हूँ। कार्यक्रमों से ही बेहद लगाव होने से मैं इतना लिख पाती हूँ, वरना मेरा सम्बन्ध तो सबसे कुछ इस तरह हैं - ना काऊ से दोस्ती ना काऊ से बैर। साथ ही मुझे हिन्दी फिल्मो और फिल्मी गीतों में गहरी रुचि हैं। इसीसे कुछ जानकारी भी हैं। अक्सर कार्यक्रमों के बारे में लिखते समय मैं अपनी जानकारी से कुछ लिखती रही। इनमे से कितना सही रहा और कितना गलत यह तो उन मुद्दों पर विश्वस्त सूत्रों से जानकारी प्राप्त कर ही बताया जा सकता हैं। अच्छा होगा अगर कोई इस तरह से जानकारी प्राप्त कर पोस्ट लिखे जिससे सही जानकारी सबको मिल जाएगी और साथ ही मैं भी यह चाहती हूँ कि मेरी अपनी जानकारी में कितनी गलतियाँ हैं, इसका पता मुझे भी चले। चलिए, एक नजर डालते हैं इस सप्ताह के रात के प्रसारण पर...

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 बजे से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।
9 बजे प्रसारित हुआ हिट-सुपरहिट कार्यक्रम। रविवार को विशेष आयोजन रहा और शेष हर दिन किसी एक कलाकार को केन्द्रित कर गीत सुनवाए गए। वैसे सप्ताह भर यह कार्यक्रम अच्छा रहा पर इस समय इस कार्यक्रम का दुबारा प्रसारण होता हैं। मूल रूप से यह कार्यक्रम दोपहर 1:00 बजे प्रसारित होता हैं। दो बार प्रसारण के बजाय एक बार कोई और कार्यक्रम प्रसारित किया जा सकता हैं।

शुक्रवार को अभिनेत्री श्रीदेवी के जन्मदिन पर यह कार्यक्रम उन्ही पर केन्द्रित था। उन पर फिल्माए गए लोकप्रिय गीत सुनवाए गए, उन पर हल्की सी जानकारी देते हुए। गीतों का चुनाव अच्छा रहा जिससे उनकी कला के विविध रूप उभर आए। चांदनी के गीत नौ नौ चूड़ियाँ से उनकी नृत्य कला, सदमा फिल्म के गीत से उनके अभिनय की गहराई, मिस्टर इंडिया, खुदा गवाह फिल्मो के गीत और यह शोखी भरा गीत चालबाज फिल्म से -

किसी के हाथ न आएगी यह लड़की

यह भी बताया कि उनकी शुरूवाती फिल्मे असफल रही और हिम्मतवाला फिल्म से लोकप्रियता मिली पर शुरूवाती फिल्मो के बारे में नही बताया। उनकी पहली हिन्दी फिल्म हैं जूली जिसमे उन्होंने जूली (लक्ष्मी) की छोटी बहन की भूमिका की थी। फिल्म की सारी लोकप्रियता लक्ष्मी की झोली में गई और श्रीदेवी अनदेखी रह गई। उसके बाद बतौर नायिका उनकी पहली फिल्म आई सोलहवां सावन जो बुरी तरह पिट गई थी।

शनिवार को पार्श्व गायिका सुनिधि चौहान के गाए लोकप्रिय गीत सुनवाए गए टशन, रब ने बना दी जोडी, कृष फिल्मो से और धूम 2 से क्रेजी किया रे और यह गीत भी शामिल था - सात समुन्दर डोल गया

रविवार को विशेष रहा आयोजन - फेवरेट फाइव। इसमे आमंत्रित थे पार्श्व गायक कैलाश खेर। बातचीत की युनूस (खान) जी ने। विभिन्न प्रेरणादायी विषय लेते हुए अपने पसंदीदा गीत सुनवाए। प्रकृति पर बात की और प्रेम पुजारी का शीर्षक गीत सुनवाया एस डी बर्मन की आवाज में - प्रेम के पुजारी हम हैं

पर्यावरण की, बढ़ते तापमान की, वृक्षारोपण की बात की और अपने एलबम से गीत सुनवाया - प्रीत की लत मोहे ऎसी लागी होगी मैं बावरी

प्रेम की चर्चा करते हुए नया गीत सुनवाया - जिया जले जां जले

संगीत की चर्चा में कुछ वाद्यों जैसे करताल, एक तारा आदि के कम प्रयोग में आने की बात की। यह चर्चा अच्छी लगी और गीत भी अच्छा चुना पाकीजा फिल्म से जिसमे घुंघुरूओ की स्पष्ट आवाज हैं - चलते चलते यूंही कोई मिल गया था

15 अगस्त पर शुभकामना देते हुए स्वदेश फिल्म का यह गीत सुनवाया - ये जो देश हैं मेरा

शुरू और अंत में उनके गाए गीतों की झलकियों से परिचय दिया और समापन किया निम्मी (मिश्रा) जी ने। इस कार्यक्रम को गणेश (शिंदे) जी के तकनीकी सहयोग से प्रस्तुत किया कल्पना (शेट्टी) जी ने। बढ़िया प्रस्तुति।

सोमवार को अभिनेता सैफ अली खां पर फिल्माए गीत सुनवाए गए। इस दिन उनका जन्मदिन था। क्या कहना और सलाम नमस्ते फिल्मो से शीर्षक गीत, दिल चाहता हैं, कल हो न हो, हम तुम फिल्मो के गीत सुनवाए, ओंकारा फिल्म से बीडी जलईले गीत भी शामिल था।

मंगलवार को अभिनेता कमल हसन पर फिल्माए गए लोकप्रिय गीत सुनवाए गए। सदमा, एक दूजे के लिए, हिन्दुस्तानी फिल्मो के गीत सुनवाए गए। सागर फिल्म से ओ मारिया भी शामिल था। सनम तेरी क़सम का शीर्षक गीत भी सुनवाया गया।

बुधवार को अरूणा ईरानी अभिनीत फिल्मो के गीत सुनवाए। इस दिन उनका जन्म दिन था। नृत्य के साथ-साथ उनके अभिनय के विभिन्न रूप दर्शाते गीत सुनवाए, बॉबी फिल्म का गीत - ऐ फंसा, नया ज़माना फिल्म से भावुक गीत, औलाद फिल्म से शोख गीत -

जोडी हमारी जमेगा कैसे जानी

खेल खेल में, अनोखी रात, कारवां फिल्मो के गीत सुनवाए।

गुरूवार का कार्यक्रम मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत पसंद आया। देव आनंद पर फिल्माए गए गीत सुनवाए गए। शुरूवात की उनकी बेहतरीन फिल्म गाइड के बढ़िया रोमांटिक गीत से जिसे रफी साहब ने वाकई दिल से गाया -

तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं

उसके बाद उनकी सत्तर के दशक की युवाओं में बढ़ती नशे की लत पर बनी लोकप्रिय फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का रोमांटिक युगल गीत -

कांची रे कांची रे प्रीत मेरी सांची

उनकी बनाई बेहद रोमांचित कर देने वाली सस्पेंस और थ्रिल से भरपूर फिल्म ज्वैल थीफ का युगल गीत -

आसमाँ के नीचे हम आज अपने पीछे
प्यार का जहां बसा के चले

हीरा पन्ना का यह रोमांटिक लोकप्रिय युगल गीत भी सुनवाया गया जो अपने समय में बहुत लोकप्रिय रहा हालांकि अच्छी होने के बावजूद भी फिल्म बुरी तरह पिट गई थी -

पन्ना की तमन्ना हैं के हीरा मुझे मिल जाए

फिल्म देस परदेस का यह गीत - जैसा देश वैसा भेष फिर क्या डरना

गैम्बलर फिल्म से यह गीत भी शामिल था - दिल आज शायर हैं गम आज नगमा हैं

इस तरह से साठ से अस्सी के दशक तक तक आते-आते रिलीज फिल्मो से रफी साहब और किशोर दा, दोनों की आवाजों में उनके हिट रोमांटिक गीत सुनना अच्छा लगा। धन्यवाद !

9:30 बजे आज के फनकार कार्यक्रम प्रसारित किया गया। शुक्रवार को यह कार्यक्रम वैजन्तिमाला पर केन्द्रित था। अच्छी जानकारी मिली कि उनका जन्म चेन्ने में हुआ, बचपन से भरतनाट्यम सीखा। पहला कार्यक्रम चार साल की उम्र में दिया। पहली फिल्म तमिल में की वही फिल्म बहार नाम से हिन्दी में बनी। नागिन फिल्म से स्टार बनी। देवदास, नया दौर, साधना, मधुमती, संगम और ऐतिहासिक फिल्म आम्रपाली की भी चर्चा हुई। इस सभी फिल्मो के गीतों की झलक भी सुनवाई गई। उन्हें मिले पुरस्कारों की भी जानकारी दी। यह भी बताया कि उनके व्यक्तिगत बिगड़े रिश्तो का फिल्मो में काम पर असर नही पडा।

शनिवार को युनूस (खान) जी ने प्रस्तुत किया ख्यात हास्य कलाकार जॉनी लीवर को। शुरूवात में नयापन रहा, उनकी हँसी सुनवाई और असली नाम बताया ताकि श्रोता पहचान सके। बताया कि उनका जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ। अभावो में बचपन बीता। उनके जीवन के संघर्ष की जानकारी मिली, यह भी कि वो जहां काम करते थे वहीं का नाम उनके नाम के साथ जुडा। स्टेज शो करने लगे। फिर पहली फिल्म मिली सुनील दत्त की दर्द का रिश्ता। उनके लोकप्रिय चरित्रों की भी चर्चा हुई जैसे असलम भाई। उनकी और जावेद सिद्दीकी की रिकार्डिंग सुनवाई गई। पुरस्कारों की भी चर्चा हुई। अच्छा तैयार किया गया कार्यक्रम जिसके लिए शोध, आलेख और स्वर युनूस (खान) जी का रहा, सम्पादन और तकनीकी सहयोग पी के ऐ नायर जी का, इस कार्यक्रम को विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया।

रविवार को यह कार्यक्रम किसी एक कलाकार पर केन्द्रित नहीं था। विभिन्न गीतकारों के लिखे गए देशभक्ति गीत सुनवाए गए। हर गीतकार के कविकर्म पर दो-चार बाते बताई गई। यह गीत सुनवाए गए -

आओ बच्चो तुम्हे दिखाए झांकी हिन्दुस्तान की - फिल्म जागृति - गीतकार - प्रदीप
मत रो माता लाल तेरे - बंदिनी - शैलेन्द्र
जननि जन्मभूमि जन्म से महान हैं - भरत व्यास
ऐ माँ तेरे बच्चे कई करोड़ - राजेन्द्र कृष्ण
ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम - शहीद - प्रेमधवन
मेरे देश की धरती - उपकार - गुलशन बावरा
वतन पे जो फ़िदा होगा - फूल बने अंगारे - आनंद बक्षी
हैं प्रीत जहां की रीत सदा - पूरब और पश्चिम - इंदिवर
हम अपनी आजादी को हरगिज मिटा सकते नही - लीडर - शकील बदांयूनी
अब कोई गुलशन न उजड़े - साहिर लुधियानवी

15 अगस्त के इस विशेष कार्यक्रम के लिए आलेख और स्वर कमल (शर्मा) जी का रहा, तकनीकी सहयोग पी के ऐ नायर जी का और प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने। बढ़िया प्रस्तुति। पूरी टीम को बधाई !

सोमवार को यह कार्यक्रम समर्पित किया गया निर्देशक और सम्पादक डेविड धवन को, इस दिन उनका जन्मदिन था। प्रस्तुत किया ममता (सिंह) जी ने। बताया कि सम्पादन से करिअर शुरू किया। शुरू में वृत्त चित्रों का सम्पादन किया। पहली फिल्म मिली सावन कुमार की साजन बिना सुहागन फिर सनम बेवफा तक उनकी सभी फिल्मो का सम्पादन किया। इसके साथ अन्य फिल्मे जैसे लव स्टोरी का सम्पादन किया और लव स्टोरी फिल्म का गीत सुनवाया, अच्छा होता अगर यहाँ सावन कुमार की किसी फिल्म का गीत सुनवाते खासकर साजन बिना सुहागन का जिसका यह गीत अक्सर विविध भारती पर सुनवाया जाता हैं - मधुबन खुशबू देता हैं

बताया कि बाद में निर्देशन शुरू किया, पहली फिल्म शोला और शबनम। शुरूवाती फिल्मे कुछ जमी नही, आँखे से सफलता मिली। कॉमेडी को उनकी फिल्मो का प्रबल पक्ष बताया पर यह नही बताया कि उनकी फिल्मो की खासियत रही कि अधिकतर उनके नायक गोविंदा रहे जबकि दूसरी खासियत के बारे में बताया कि फिल्मो के नाम के साथ नंबर 1 जुडा होता हैं। उनके कुछ लोकप्रिय गीतों की झलक भी सुनवाई।

मंगलवार को युनूस (खान) जी ले आए अभिनेता सचिन पर कार्यक्रम। इस दिन उनका जन्मदिन था। बाल कलाकार के रूप में अभिनीत सचिन की फिल्मो की चर्चा की, ब्रह्मचारी, मंझली दीदी, चन्दा और बिजली। बतौर नायक पहली फिल्म गीत गाता चल। उनकी सभी लोकप्रिय फिल्मो के नाम बताए और गीतों की झलक सुनवाई - नदिया के पार, बालिका वधु, श्याम तेरे कितने नाम, अंखियो के झरोको से। उनके अभिनय के एक पक्ष पर चर्चा ही नही हुई। मल्टीस्टार फिल्मो में सचिन ने छोटी महत्वपूर्ण भूमिकाएं की। फिल्म शोले, त्रिशूल में उन पर एक गीत भी फिल्माया गया जो बहुत लोकप्रिय हैं जो नही सुनवाया - बाबूजी बाबूजी गम गम। अवतार फिल्म में भूमिका कुछ बड़ी थी और बहुत संवेदनशील थी। शबाना आजमी और राजेश खन्ना के सामने उनका सशक्त अभिनय रहा, कम से कम इस फिल्म की चर्चा अवश्य की जानी चाहिए थी। सचिन की रिकार्डिंग भी सुनवाई। यह भी बताया कि बाद में उन्होंने फिल्मे बनाना और निर्देशन शुरू किया पर एक भी हिन्दी फिल्म का नाम नही बताया शायद कोई ऎसी हिन्दी फिल्म नही हैं और मराठी फिल्मे ही बनाते और निर्देशित करते हैं।

बुधवार को कमल (शर्मा) जी फिल्मकार गुलज़ार पर कार्यक्रम ले आए उनके जन्मदिन के अवसर पर। शुरू में गुलज़ार का शायराना अंदाज सुना फिर उससे जुडा कमल जी का साहित्यिक अंदाज जिससे कार्यक्रम ऊँचाई पर पहुँच गया। गुलज़ार के रचना कर्म के विविध पहलुओं पर चर्चा हुई। उनका रचना काल हैं भी लंबा, बताया बंदिनी फिल्म के लिए पहला गीत लिखा -

मोरा गोरा अंग लेईले मोहे श्याम रंग देईदे

और आज विश्व स्तर पर श्रोता सुन रहे हैं उनका नवीनतम गीत स्लम डॉग करोड़पति से - जय हो

उनके काम के विविध रंगों की चर्चा हुई, शायराना अंदाज के गीत - दिल ढूँढता हैं - मौसम फिल्म से

भावो की गहराई में उतरते गीत -
हमने देखी हैं उन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तो का इल्जाम न दो
सिर्फ अहसास हैं ये दूर से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो

खामोशी फिल्म के इस गीत में प्यार की बेहतरीन परिभाषा हैं। गाँवों कस्बो की भाषा के गीत - चल छैंया छैंया और कजरारे जैसे गीत के बोल, नए अर्थ देने वाले शब्दों के गीत, उनके बच्चो के लिए किए जाने वाले लेखन की भी चर्चा की गई। इस तरह उनके काम के हर पक्ष को उभारा कमल जी ने। विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया पी के ऐ नायर जी के सहयोग से। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए पूरी टीम का धन्यवाद !

गुरूवार को युनूस (खान) जी ले आए चरित्र अभिनेता उत्पल दत्त पर यह कार्यक्रम। बताया कि शुरूवात बंगला रंगमंच से की। उनकी आरंभिक बंगला फिल्मो के बारे में बताया। हिन्दी फिल्मो में प्रवेश कला फिल्म भुवन शोम से बताया। आरंभिक फिल्मे गुड्डी, सात हिन्दुस्तानी बताई। चर्चित फिल्म गोलमाल की चर्चा की और सीन भी सुनवाए। अन्य लोकप्रिय हिन्दी फिल्मो शौकीन, नरम गरम, स्वामी की चर्चा की और गीत भी सुनवाए। बंगला फिल्मो की भी चर्चा की। यह भी बताया कि उन्हें आरम्भ में ठीक से हिन्दी नही आती थी पर यहाँ एक फिल्म की चर्चा होनी चाहिए थी पर नाम तक नही बताया - दो अनजाने जिसमे अमिताभ और रेखा ने पहली बार साथ काम किया था, इसमे एक ऐसे बंगला भाषी फिल्म निर्माता की भूमिका उत्पल दत्त ने की थी जिसे हिन्दी कम आती थी। उनके संवाद भी ऐसे ही थे, हिन्दी मुहावरे टांग अडाना को टांग उड़ाना कहते रहे और पीने की चीज को खाऊँगा कहकर हास्य बनाए रखा था। यही से हिन्दी सिने दर्शको ने उन्हें पहचाना था। इसके बाद एक फिल्म आई थी - कितने पास कितने दूर जो प्रयोगात्मक फिल्म थी। दर्शको ने इसे बहुत सराहा था। इसकी चंद्राणी मुखर्जी की आवाज में एक गजल बहुत लोकप्रिय हुई थी जो उत्पल दत्त पर फिल्माई गई थी। यह गजल विविध भारती पर भी बहुत सुनवाई जाती थी जिसे मैंने अपनी पोटली गीतों की श्रृंखला में याद भी किया था -

मेरे महबूब शायद आज कुछ नाराज हैं मुझसे
मैं कितने पास हूँ फिर भी वो कितने दूर हैं मुझसे

अगर गीतों के फिल्मांकन की बात करे तो उनके करिअर में शायद यह एक ही महत्वपूर्ण गीत हैं। यह गजल सुनवाना चाहिए था पर इस फिल्म का नाम तक नही बताया। स्वामी फिल्म के साथ अपने पराए फिल्म का नाम भी नही लिया, यह भी बंगला उपन्यास पर बनी चर्चित फिल्म हैं जिसके गाए यसुदास के गीत भी बहुत लोकप्रिय हैं। उनकी सशक्त भूमिका हैं इस फिल्म में। इन महत्वपूर्ण हिन्दी फिल्मो का नाम तक नहीं बताना और बंगला फिल्मो की चर्चा करना ठीक नही लगा क्योंकि हम विविध भारती के श्रोता हिन्दी सिने दर्शक हैं।

अक्सर सत्तर अस्सी के दशक के कलाकारों पर जानकारी देने में गडबडियाँ देखी गई हैं। वैसे भी हर दिन यह कार्यक्रम सुनना अच्छा नही लग रहा है, विविधता होनी चाहिए।

10 बजे का समय छाया गीत का होता है। कार्यक्रम शुरू करने से पहले कभी-कभार अगले दिन प्रसारित होने वाले कुछ मुख्य कार्यक्रमों के बारे में बताया गया।

शुक्रवार को प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने। सभी गीतों में खूबसूरती की तारीफ़ थी -

चन्दन सा बदन चंचल चितवन

अब क्या मिसाल दूं मैं तुम्हारे शबाब की

चौदहवी का चाँद और सब ऐसे ही गीत। अच्छे गीतों का चुनाव, बढ़िया आलेख और प्रस्तुति।

शनिवार को प्रस्तुत किया अशोक जी ने। मोहब्बत के, इन्तेजार के नगमे सुनवाए। कुछ कम सुने गीत शामिल थे। बहुत दिन बाद सुना यह गीत -

सारंगा तेरी याद में नैन हुए बैचेन

पतिता फिल्म का गीत भी शामिल था।

रविवार को प्रस्तुत किया युनूस (खान) जी ने। आजादी के ऐसे नगमे चुन कर सुनवाए जो कम ही सुनवाए जाते हैं। शुरूवात की 77 की फिल्म आन्दोलन से जिससे राम प्रसाद बिस्मिल की यह रचना सुनवाई -

खुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं

यह रचना तो मालूम हैं पर यह फिल्म में भी हैं और इस फिल्म का नाम पहली बार सुना। इसके बाद 49 की फिल्म बाजार से यह गीत सुनवाया रफी साहब की आवाज में -

शहीदों तुमको मेरा सलाम

यह भी मैंने पहली बार ही सुना। इसके बाद कुंदन फिल्म का गीत सुना जो बचपन में कभी सुना जैसा लगा -

नौजवानों भारत की तक़दीर बना दो

इसके बाद 66 की फिल्म नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का गीत सुनवाया -

सुनो रे सुनो देश के हिन्दु मुसलमान

यह गीत भी सुनवाया - दिल्ली हैं दिल हिन्दुस्तान का यह तो तीरथ हैं सारे जहां का

यह दोनों गीत कभी-कभार सुनवाए जाते हैं। बढ़िया चुनाव। धन्यवाद युनूस जी !

सोमवार को प्रस्तुत किया अमरकान्त जी ने। बढ़िया लोकप्रिय गीत सुनवाए। चर्चा रही दिल चुराने की -

एक हसीं शाम को दिल मेरा खो गया

कश्मीर की कलि फिल्म का गीत और मैं प्यार का राही हूँ गीत भी शामिल था।

मंगलवार को प्रस्तुत किया निम्मी (मिश्रा) जी ने। दिल की बाते दिल से की। दिल अपना और प्रीत पराई फिल्म के गीत से शुरूवात की और सुनवाए ऐसे ही नगमे -

माना मेरे हसीं सनम तू हैं तो माहताब हैं
तू हैं लाजवाब तो मेरा कहाँ जवाब हैं

बुधवार को प्रस्तुत किया राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। अच्छे नए गीत सुनवाए, कहो न प्यार हैं, कुछ कुछ होता हैं फिल्मो के शीर्षक गीत भी शामिल थे। प्रस्तुति का काव्यात्मक अंदाज अच्छा रहा।

गुरूवार को रेणु (बंसल) जी ने ऐसे अजनबी चेहरे की चर्चा की जो सदियों से जाना पहचाना लगता हैं। अच्छे गीत सुनवाए -

अजनबी कौन हो तुम जब से तुम्हे देखा हैं

एक लड़की भीगी भागी सी

और सबसे बढ़िया रहा यह गीत - चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों

10:30 बजे प्रसारित हुआ आपकी फ़रमाइश कार्यक्रम जो प्रायोजित था इसीलिए प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए। इसमें श्रोताओं ने पुराने लोकप्रिय गीत सुनने की फ़रमाइश अधिक की। शुक्रवार को मुगले आजम, हातिमताई, भरोसा, मदारी फिल्मो के गीतों के साथ कोरा कागज़ फिल्म से रूठे रूठे पिया और यह गीत भी शामिल था -

बहारो थाम लो अब दिल मेरा महबूब आता हैं

शनिवार को शुरूवात बढ़िया गीत से हुई - छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा

इश्क पर जोर नहीं, गाइड, सरस्वती चन्द्र, वक़्त फिल्मो के गीत भी शामिल थे।

रविवार को मेरे सनम, हावड़ा ब्रिज, कारवां फिल्मो के गीत सुनवाए गए और पहचान फिल्म का गीत -

आया न हमको प्यार जताना प्यार तभी से तुझे करते हैं

इस दिन बीच-बीच में विभिन्न हस्तियों जैसे सुदेश भोंसले ने स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना दी।

सोमवार को सच्चा झूठा, वक़्त, फकीरा फिल्मो के गीतों के साथ दो ऐसे गीत सुनवाए गए जिनके लिए बहुत दिन बाद फरमाइश आई -

जुआरी फिल्म से तीन गायिकाओ का गाया टेलीफोनिक गीत - नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले

शालीमार फिल्म से - हम बेवफा हरगिज न थे

मंगलवार को तेरे घर के सामने, नौ दो ग्यारह, शबनम, नागिन फिल्मो के गीतों के साथ जब जब फूल खिले फिल्म से परदेसियो से न अँखियाँ मिलाना और जीवन मृत्यु फिल्म का यह गीत भी शामिल था -

झिलमिल सितारों का आंगन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा
ऐसा सुन्दर सपना अपना जीवन होगा

बुधवार को बेटा फिल्म का कूहू कूहू गीत सुना और नई फिल्मो के गीत भी ई-मेल पर सुनवाए गए - कल हो न हो, काईट्स फिल्मो से।

गुरूवार को श्रोताओं के ईमेल के अनुसार खानदान, सेहरा, दिल एक मंदिर फिल्मो के गीतों के साथ पलको की छाँव में फिल्म का डाकिया डाक लाया गीत भी सुनवाया, इस गीत में किशोर कुमार के साथ आशा भोसले की आवाज बताया गया जबकि जहां तक मेरी जानकारी हैं यह आवाज आशा जी की नहीं वन्दना शास्त्री की हैं।

बुधवार और गुरूवार को ईमेल से प्राप्त फ़रमाइशें पूरी की जाती है अन्य दिन पत्र देखे जाते है। देश के अलग-अलग भागों से बहुत से पत्रों से गानों की फ़रमाइश भेजी गई और हर पत्र में भी बहुत से नाम रहे जबकि ई-मेल की संख्या कम ही रही।

प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में बताया गया।

11 बजे अगले दिन के मुख्य कार्यक्रमों की जानकारी दी जो केन्द्रीय सेवा से ही दी गई जिससे केन्द्रीय सेवा के उन कार्यक्रमों की भी सूचना मिली जो क्षेत्रीय कार्यक्रमों के कारण यहाँ प्रसारित नही होते। 11:05 पर दिल्ली से प्रसारित 5 मिनट के समाचार बुलेटिन के बाद प्रसारण समाप्त होता रहा।

11 comments:

ASHOK BAJAJ said...

कृपया इसे भी देंखे http://ashokbajaj99.blogspot.com/2010/08/blog-post_20.html#links

ASHOK BAJAJ said...

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ASHOK BAJAJ said...

राष्ट्रीय रेडियो श्रोता सम्मेलन

જીવન ના િવિવધ રંગો said...

Annapurna Ji Congrats Hope Aap Aane Wale Kai Varsho Tak Likhti Rahegi Mein Pichhle 1-2 Mahine SE Ye Blog Follow Kar Raha Hu Achha Lagta Hai Aapke Dware Di Gayi Jankari Padhke

Atul

જીવન ના િવિવધ રંગો said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

About Me
मैं हैद्राबाद से हूं। नाम है अन्नपूर्णा। हिन्दी साहित्य, गीत और संगीत, घूमना-फिरना पसन्द है। बस यही है मेरा परिचय।
पहले भी आपकी बातो को पढ़ा था, आज फिर पढ़ा, न सिर्फ पढ़ा बल्कि सुना भी, क्यूंकि कई कारणों से इधर मै रेडियो विविध भारती नहीं सुन पा रहा हूँ...मै भी आपकी तरह इस लेख को लिख सकता था ऐसा मुझे अहसास हो रहा हैं क्यूंकि मै भी इसे इतने दिल से चाहता हूँ की मैंने अपना करियर भी सी में बनने की सोच ली हैं, और इस कदर इससे प्रेरित हूँ, मैंने अपने फेसबुक पर लिखा हैं..रेडियो के प्रति बेहद दिलचस्पी और जिज्ञासा ने पत्रकारिता के दुनिया में आने को विवश किया...अभी इस पुरे एक सप्ताह की साप्ताहिकी पढने के बाद लगा की आपसे बात करनी चाही पर अफसोस, आपका कोई संपर्क सूत्र नहीं दिखा, आपने जरूर बहुत सोच समझ के अपना अबाउट मी लिख होगा पर, मै एक मास मीडिया और कम्युनिकेसन के छात्र होने के नाते कहना चाहूँगा की इतना तो स्वतंत्र होनी ही चिहिये कम्युनिकेसन के लिए...की...

Anonymous said...

About Me
मैं हैद्राबाद से हूं। नाम है अन्नपूर्णा। हिन्दी साहित्य, गीत और संगीत, घूमना-फिरना पसन्द है। बस यही है मेरा परिचय।
पहले भी आपकी बातो को पढ़ा था, आज फिर पढ़ा, न सिर्फ पढ़ा बल्कि सुना भी, क्यूंकि कई कारणों से इधर मै रेडियो विविध भारती नहीं सुन पा रहा हूँ...मै भी आपकी तरह इस लेख को लिख सकता था ऐसा मुझे अहसास हो रहा हैं क्यूंकि मै भी इसे इतने दिल से चाहता हूँ की मैंने अपना करियर भी इसी में बनाने की सोच ली हैं, और इस कदर इससे प्रेरित हूँ, मैंने अपने फेसबुक पर लिखा हैं..रेडियो के प्रति बेहद दिलचस्पी और जिज्ञासा ने पत्रकारिता के दुनिया में आने को विवश किया...अभी इस पुरे एक सप्ताह की साप्ताहिकी पढने के बाद लगा की आपसे बात करनी चाही पर अफसोस, आपका कोई संपर्क सूत्र नहीं दिखा, आपने जरूर बहुत सोच समझ के अपना अबाउट मी लिख होगा पर, मै एक मास मीडिया और कम्युनिकेसन के छात्र होने के नाते कहना चाहूँगा की इतना तो स्वतंत्र होनी ही चाहिए कम्युनिकेसन के लिए...की...

annapurna said...

शुक्रिया अशोक बजाज जी, अतुल जी !

अनाम जी, आप नाम से टिप्पणी करते तो अच्छा लगता.

Abhishek Anand said...

"अनाम जी, आप नाम से टिप्पणी करते तो अच्छा लगता"
जी अन्नपूर्णा जी, मैंने जब यह लिखा तो मेरी कोई इच्छा नहीं थी कि मैं अनाम रूप से इसे पब्लिश करू, लेकिन प्रोफाइल सेलेक्ट करते समय अनाम विकल्प सामने आया तो मैंने सोचा कि इस प्रतिक्रिया को अनाम रूप में लिखना ज्यादा बेहतर होगा..क्यूंकि तब आपका मन शायद इस अनामित व्यक्ति का नाम जानने को उत्सुक होगा...खैर मेरा नाम अभिषेक आनन्द हैं, पटना से पत्रकारिता कि पढ़ाई कर रहा हूँ...बहुत बाते हैं रेडियो और मेरे बारे में, शेयर करना चाहता हूँ..इस ब्लॉग का सदस्य भी बनना चाहता हूँ..या कुछ आलेख देना चाहता हूँ, आपसे भी गुजारिश करता हूँ इस बात के लिए और पियूष जी से भी करूँगा..और ऊपर दो बार टिप्पणी करने का अर्थ यह हैं कि पहले में कुछ गलतियाँ थी..लेकिन मै डिलीट नहीं कर सकता था..और उसका जवाब कि अब मुझे इन्तजार रहेगा..abhishek.letters@gmail.com

annapurna said...

abhishek jii, aap plz. radionama ko mail kijie.

Abhishek Anand said...

अन्नपूर्णा जी क्या आप अपना सम्पर्क सूत्र देना पसंद नहीं करेंगी, इस बेहद ही जिज्ञासु मीडिया के छात्र को! जो अधिक से अधिक आप जैसे अच्छे लोगो से बात करना चाहता है, न सिर्फ बात बल्कि कई मुद्दों पर गंभीर डिस्कसन भी चाहता है, यह मेरा स्टाइल भी हैं और शायद पत्रकारिता का भी...
सादर प्रणाम, अभिषेक, abhishek.letters@gmail.com

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