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Thursday, May 6, 2010

सुबह के पंचरंगी प्रसारण की साप्ताहिकी 6-5-10

इस सप्ताह एक विशेष दिन रहा - मई दिवस यानि श्रमिक दिवस जिसकी झलक तक नही मिली सुबह के प्रसारण में। हालांकि चिंतन में श्रम संबंधी कथन बताया जा सकता था। त्रिवेणी कार्यक्रम भी श्रमिको को समर्पित किया जा सकता था।

सोमवार को छोड़ कर सप्ताह के हर दिन परम्परा के अनुसार शुरूवात संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि सुनवाई गई। यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुआ। इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ जिसकी शुरूवात में कभी-कभार कार्यक्रमों के प्रायोजकों के विज्ञापन प्रसारित हुए जिसके बाद पहले कार्यक्रम वन्दनवार की शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, फिर सुनाया गया चिंतन।

चिंतन में इस बार शामिल रहे कथन - आचार्य चाणक्य के दो कथन बताए गए - शिक्षा संबंधी कथन - विद्वानों में अनपढ़ तिरस्कृत होते हैं जैसे हंसो में बगुला। दूसरा कथन - वही सुभार्या हैं जो पवित्र हैं, सतचरित्र हैं, जो सत्य बोले और जिस पर पति की प्रीति हो। जयशंकर प्रसाद का कथन - प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नही करता। गांधी जी के दो कथन बताए गए - सच्चा मनुष्य कभी विचलित नही होता क्योंकि सत्य की शक्ति उसे संबल देती हैं। दूसरा कथन - शक्ति संकल्प से उत्पन्न होती हैं, हमारी शक्ति सत्य और अहिंसा हैं, सत्याग्रह हमारा हथियार हैं, मनुष्य का आनंद इसी में हैं। स्वामी स्वरूपानंद का कथन - भक्ति की शक्ति असीम हैं। गेटे का कथन - किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए कला, विज्ञान के साथ धैर्य की भी आवश्यकता होती हैं।

वन्दनवार कार्यक्रम में इस बार भी फिल्मी घुसपैठ जारी रही। विनम्र अनुरोध है कृपया फिल्मी भक्ति गीतों और देश भक्ति गीतों का अलग कार्यक्रम रखिए ऐसे समय जहां क्षेत्रीय कार्यक्रमों का समय न हो ताकि हम इन फिल्मी भक्ति गीतों और देश भक्ति गीतों का आनंद ले सके। वन्दनवार में इन गीतों से कार्यक्रम की गरिमा को धक्का लगता हैं।

सप्ताह भर विविध भक्ति गीत सुने -

ज्ञान और कर्म योग विषयक गीत - कर्म करो ऐसे भाई तुम पड़े न फिर पछताना

साकार रूप के भक्ति गीत - लीला तुम्हारी श्याम रूप भी तुम्हारा

निराकार रूप के भक्ति गीत शामिल रहे - पोथी पढी-पढी जग मुआ पंडित भया न कोय

पुराने लोकप्रिय भजन सुनवाए गए -

राम जी के नाम में तो
जो न जपे राम वो हैं किस्मत के मारे

शास्त्रीय पद्धति में ढला भक्ति गीत भी शामिल रहा - दर्शन देना प्राण प्यारे

भक्तों के भक्ति गीत - मने चाकर राखो जी गिरिधारी

एकाध ऐसा भक्ति गीत भी शामिल रहा जो कम सुनवाया जाता हैं - राधा कहे कृष्ण कृष्ण सीता कहे राम राम

कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा, प्रसिद्ध साहित्यकार सुभदा कुमारी चौहान का गीत सुनवाया - वीरो का कैसा हो वसंत

लोकप्रिय देशभक्ति गीत सुनवाए गए जैसे -

हम अपने सतकर्मो से मिले जुले धर्मो से
तेरी उतारे आरती
जय जननि जय भारती

चलो देश पर मर मिट जाए
इसकी इज्जत और बढाए
जो सोया हैं उसे जगाए
मिल कर भारत नया बनाए

जग से प्यारा देश हमारा प्यारा हिन्दुस्तान

यह गीत सप्ताह में दो बार सुनना अच्छा नही लगा -

सुनहला देश हमारा हैं
रूपहला देश हमारा हैं

सोमवार को क्षेत्रीय केंद्र में शायद कोई तकनीकी समस्या रही। संकेत धुन के बाद समाचार शुरू हो गए और 8 बजे तक लगातार हमने केन्द्रीय प्रसारण ही सुना। इस तरह 6:30 बजे युगल गीतों का कार्यक्रम तेरे सुर और मेरे गीत सुनने का भी अवसर मिला। शुरूवात हुई ममता फिल्म के गीत से - इन बहारो में अकेले न फिरो

और समापन किया हम दोनों फिल्म के गीत से - अभी न जाओ छोड़ कर

जिसके साथ एक मुसाफिर एक हसीना, सूरज, आधी रात के बाद फिल्मो के बढ़िया युगल गीत सुनवाए गए, यह प्यारा सा गीत भी शामिल था -

देखो रूठा न करो बात नजरो की सुनो
हम न बोलेगे कभी तुम सताया न करो

शेष हर दिन 6:30 बजे से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई।

7 बजे का समय रहा भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम का जो प्रायोजित रहा। शुक्रवार को अच्छे गीत सुनवाए गए, शास्त्रीय पद्धति में ढला परिवार फिल्म का गीत, परदेसी, जलपरी फिल्मो के गीत और यह लोकप्रिय गीत -

याद रखना प्यार की निशानी गोरी याद रखना

शनिवार को ख्यात पार्श्व गायक मन्नाडे का जन्मदिन था। इस अवसर पर उनका बढ़िया गीत सुनवाया गया फरेब फिल्म से, वैसे यह गीत कम ही सुनवाया जाता हैं -

मेरी महबूबा आज मेरे घर आई
एक परी आसमान से उतर आई

इसके अलावा अन्य गायक कलाकारों के गीत भी शामिल रहे, चारमीनार जैसी पुरानी भूली बिसरी फिल्मो के गीत भी शामिल थे। इस दिन इस अवसर पर प्रसारित होने वाले अन्य कार्यक्रमों की भी जानकारी दी गई जैसे सदाबहार नगमे, एक ही फनकार और मन्नाडे द्वारा प्रस्तुत विशेष जयमाला।

रविवार को यह कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा। आरम्भ किया कुंदनलाल सहगल के जिन्दगी फिल्म के गीत से - मैं क्या जानूं जादू हैं और समापन किया क़व्वाली की रात फिल्म की क़व्वाली से। बीच में बच्चो का एक बढ़िया गीत सुनवाया हम पंछी एक डाल के फिल्म से जिसमे जंगल की कहानियां थी, जानवरों की आवाजे थी, वैसे यह गीत कम ही सुनवाया जाता हैं।

सोमवार को यह कार्यक्रम मूल स्वरूप में नजर आया। लगभग सभी गीत भूले बिसरे थे। घर की लाज, राजसिंहासन, हीर फिल्मो के गीत और हुस्न का चोर फिल्म से संध्या मुखर्जी का गाया गीत - संग दिल जमाने

मंगलवार को एक अरमान मेरा भी, दो दोस्त, रंगीला राजा फिल्मो के गीतों के साथ यह लोकप्रिय गीत भी सुनवाया गया मुकेश और उषा खन्ना की आवाजो में -

तेरा मेरा प्यार कोई आजकल की तो बात नही
हमेशा से हैं और हमेशा रहेगा

बुधवार को हनीमून और शाहजहाँ फिल्म का सहगल साहब का गाया अक्सर सुना जाने वाला गीत शामिल था। इनके साथ ऐसे गीत भी सुने जो गीत तो क्या, फिल्मो के नाम भी भूले बिसरे हैं - खुफिया महल और फिल्म फौलादी मुक्का का यह गीत -

समझेगे न ये इन्हें समझाना पडेगा

आज शुरूवात और समापन बहुत ही भूली बिसरी फिल्मो के भूले बिसरे गीत से हुआ - गृह लक्ष्मी फिल्म के गीत से शुरूवात और जंगल किंग फिल्म के गीत से समापन हुआ। एकाध लोकप्रिय गीत भी शामिल रहा।

इस कार्यक्रम में भूली बिसरी आवाजे गूंजी - गीता दत्त, हेमंत कुमार, मीना कपूर, शमशाद बेगम, सुधा मल्होत्रा, मुबारक बेगम की। हर दिन कम सुनवाए जाने वाले गीत अधिक सुनवाए गए और लोकप्रिय गीत भी शामिल रहे। फिल्मो और फिल्मी गीतों के बारे में सामान्य जानकारी भी कभी-कभार दी गई जैसे रिलीज होने का वर्ष, बैनर आदि।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला प्रसारित हुई - चित्रपट संगीत में शास्त्रीय संगीत का प्रयोग जिसे प्रस्तुत किया प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खाँ ने। राग यमन और यमन कल्याण की चर्चा हुई। दोनों में अंतर बताया। फिल्म मुगले आजम के गीत की धुन बजा कर सुनाई गई। राग जिला काफी में सरोद और सितार की जुगलबंदी भी सुनवाई गई। ऐसे रागों की भी चर्चा हुई जिनमे ऎसी रचनाए हैं जिनसे खुशी छलकती हैं। यह गीत सुनवाया -

जाइए आप कहाँ जाएगे

राग हेमावती में सितार भी सुनवाया। ऐसे गीतों की चर्चा हुई जिसमे राग बिलावल और खमाज की छाया हैं, गीत सुनवाए गए -

सीने में सुलगते हैं अरमां

जमाने का दस्तूर हैं ये पुराना

दिलरूबा और गिटार पर राग खमाज बिलावल भी सुनवाया गया। श्रृंखला का समापन किया गया राग भैरवी से। चर्चा का गीत रहा -

तू प्यार करे या ठुकराए

कड़ी समाप्त हुई उस्ताद बिस्मिला खाँ और साथियो से शहनाई पर राग भैरवी में ठुमरी से।

एक और श्रृंखला आरम्भ हुई - इटावा घराने का सितार वादन जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध सितार वादक अरविंद पारिख। शुरूवाती कड़ी में सितार की शुरूवात की बाते बताई गई - सितार लगभग 250 साल पुराना हैं, इसकी शुरूवात के बारे में मतभेद हैं कोई इसे अमीर खुसरो की देन मानता हैं तो कोई गरीब खुसरो की। सितार की बनावट की जानकारी दी - पहले 2-3तार ही थे। अब 7 तार हैं। इन तारो को मिलाने की भी चर्चा हुई। यह भी बताया कि सितार वादन की दो शैलियाँ लोकप्रिय हैं -पंडित रविशंकर जी की शैली और उस्ताद विलायत खाँ साहब की शैली। खाँ साहब की शैली 6 तारो की हैं, तान लेने के लिए जोडी के तारो को मिलाकर एक तार कम कर देते हैं। यह जानकरी भी मिली कि आज मुख्य वाद्य बना सितार पहले क़व्वाली में फिलर की तरह प्रयोग में आता था। इस तरह बढ़िया जानकारी मिल रही हैं।

दोनों ही श्रृंखलाओं को तैयार किया था छाया (गांगुली) जी ने।

7:45 को त्रिवेणी में शुक्रवार को बताया कि जीवन में हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए। शिक्षा फिल्म का यह गीत सुनवाया -

तेरी छोटी सी एक भूल ने सारा गुलशन जला दिया

ऐसे विषय पर फिल्म मेरा नाम जोकर का ऐ भाई ज़रा देख के चलो गीत तो शामिल रहेगा ही साथ ही चलती का नाम गाड़ी का गीत बाबू समझो इशारे भी सुनवाया गया। आलेख में हर तरह की सावधानी की चर्चा हुई।

शनिवार का अंक भी बढ़िया रहा लेकिन इसका प्रसारण किसी और दिन होता तो ज्यादा आनंद आता। गर्मियों के मौसम की चर्चा हुई। हरे-भरे वृक्षों की ठंडी छाँव याद आई, गीत सुनवाया गाइड फिल्म का -

वहां कौन हैं तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ

चर्चा आगे बढी और मुसाफिर के ठंडी छाँव में बैठने से शाम में मिलजुल कर बैठने तक चली। जीवन शैली की इस चर्चा में गीत सुनवाया प्रदीप का - सुख दुःख दोनों रहते जिसमे जीवन हैं वो गाँव

समापन और भी बढ़िया रहा, परिणय के गीत से -

जैसे सूरज की गरमी से जलते हुए तन को मिल जाए तरूवर की छाया

अंत में गीतों के लिए फिल्मो के नाम बताए। हमारा अनुरोध हैं मौसम ख़त्म होने से पहले इसका दुबारा प्रसारण कीजिए। पर इस दिन श्रमिक दिवस पर न सुनना बहुत बुरा लगा।

रविवार का विषय था - दुनिया में रंगों का महत्त्व। नए गीत भी सुनवाए गए और पुरानी फिल्म भंवर का अपने समय का यह लोकप्रिय गीत -

रंग ले आएगे रूप ले आएगे कागज़ के फूल
खुशबू कहाँ से लाएगे

अच्छा रहा आलेख भी और प्रस्तुति भी।

सोमवार को रास्तो की बात हुई। जिन्दगी में मंजिल तक पहुँचने के रास्तो की चर्चा हुई। गीत शामिल रहे -

एक रास्ता हैं जिन्दगी

और तपस्या फिल्म का गीत भी शामिल था - जो राह चुनी तूने

मंगलवार को स्वस्थ मनोरंजन की बात हुई। घूमने फिरने की भी चर्चा हुई। सुनवाए गए गीतों में मेहनत से मिले फल पर खुशी में गाए जाना वाला गीत पराया धन फिल्म से - आओ झूमे गाए

और खुशी के गीत शामिल रहे - अबके ये बहार कोई गुल नया खिलाएगी

मतवाले पिया डोले जिया

आलेख गीत कुछ आपस में जमते नही लगे।

बुधवार को पुराने अंक का प्रसारण दुबारा किया गया जिसमे बताया गया कि जिन्दगी को देखने का सबका अपना नजरिया हैं। गीत भी उपयुक्त चुने गए -

जिन्दगी हैं खेल कोई पास कोई फेल

कभी तो मिलेगी बहारो की मंजिल

और आज चर्चा की गई अकेलेपन की लेकिन ख़ास बात रही कि नकारात्मक चर्चा नही हुई। बताया कि कुछ लोगो को अकेलापन पसंद होता, अकेलेपन से सृजनशीलता बनती हैं। गीत सुनवाए गए -

अकेला हूँ मैं

चल अकेला चल अकेला चल अकेला
तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला

सवेरे के त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

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