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Tuesday, March 30, 2010

चारमीनार के लोग मुझे कहते मधुबाला

आज याद आ रहा हैं साठ के दशक के अंतिम वर्षो की एक फिल्म का गीत, फिल्म का नाम हैं - वतन से दूर

यह बहुत फ्लाप फिल्म हैं, बहुत से शहरों में एक-दो सप्ताह भी नही चली पर यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। रेडियो के लगभग सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था। अब बहुत समय से नही सुना हैं।

इस गीत में बार-बार एक शब्द आता हैं - मा

यह शब्द हैदराबाद में बोलचाल में बहुत बोला जाता है, कुछ इस तरह से -

कैसी हो मा
क्या कर रही हो मा
जाना हैं मा

वैसे यह अर्थहीन शब्द हैं। मुझे इस गीत का केवल मुखड़ा याद हैं जो इस तरह हैं -

कैसा जादू डाला मा बनारसी रूमाल वाला
चारमीनार के लोग मुझे, चारमीनार के
चारमीनार के लोग मुझे कहते मधुबाला मा बनारसी रूमाल वाला
कैसा जादू डाला मा बनारसी रूमाल वाला

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, March 26, 2010

रात के सुकून भरे कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 25-3-10

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

9 बजे का समय होता है ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं के कार्यक्रम गुलदस्ता का। शुक्रवार और बुधवार को यह कार्यक्रम केवल 15 मिनट ही सुनने को मिला।

शुक्रवार को शुरूवात हुई मिताली और भूपेन्द्र सिंह की गाई इस रचना से -

आ गई हैं चमन में बहारे
मन के पंछी चहकने लगे हैं

फिर रूना लैला की आवाज में गूंजा कदम का कलाम।

इसके बाद 9:15 बजे से 9:30 बजे तक क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित हुआ जो हिन्दी में था। सामान्य ज्ञान का यह कार्यक्रम अच्छा रहा।

शनिवार को कुछ एलबमो से रचनाए सुनवाई गई। तलत अजीज की आवाज में अहसास एल्बम, पंकज उदाहास से महक एलबम। इब्राहिम अश्क का कलाम भी सुना जमनादास की आवाज में।

रविवार को केवल राजेन्द्र मेहता और नीना मेहता की गाई रचनाए ही सुनवाई गई -

इधर आओ एक बार फिर प्यार कर ले

कैफी आजमी का कलाम सुनवाते समय खुद शायर की आवाज में भी कलाम सुनवाया गया।

सोमवार को शुरूवात अच्छी हुई -

जिन्दगी कुछ भी नही फिर भी जिए जाते हैं
तुझ पर ऐ वक़्त एहसान किए जाते हैं

इफ्तेकार इमाम सिद्दिकी का कलाम सुनवाया गया चित्रा सिंह की आवाज में, मेहदी हसन को भी सुना।

मंगलवार को बहादुर शाह जफ़र का कलाम रूना लैला की आवाज में सुनना अच्छा लगा -

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऎसी तो न थी
जैसी अब हैं तेरी महफ़िल कभी ऎसी तो न थी

जिगर मुरादाबादी का कलाम सुना, हरिहरन की आवाज में शहरयार का कलाम सुना और सुमन कल्याणपुर की आवाज मैं शादाब का कलाम भी शामिल-ऐ- बज्म रहा।

बुधवार को 9:15 बजे शुरू हुआ यह कार्यक्रम और दो ही गजले सुनवाई गई। चंदनदास की आवाज में और पंकज उदहास से -

दिल धड़कने का सबब याद आया

9:15 बजे तक प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित हुआ जिसमे दृष्टिहीनो के रोजगार के लिए विभिन्न पद और इससे सम्बंधित शिकायत भी दर्ज कराने सम्बन्धी चर्चा हुई। अच्छा जानकारीपूर्ण कार्यक्रम रहा।

गुरूवार को सैय्यद राही का कलाम सुना, गुलोकार थे हरिहरन, सुदर्शन फाकिर और आतिश को सुना जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की आवाजो में, पीनाज मसाणी को भी सुना और चन्दन दास की आवाज में सुनवाया गया -

तनहा न अपने आपको अब पाइए जनाब
मेरी गजल को साथ लिए जाइए जनाब

अक्सर यह कहा जाता रहा कि यह रचना सुनिए और हम इन्तेजार करते रहे कि अब कोई गीत सुनने को मिलेगा पर जो सुनवाया गया वो गीत था या गजल थी यह समझना कठिन हो गया। कार्यक्रम के समापन में कहा जाता रहा - यह था सुनने वालों के लिए विविध भारती का नज़राना - गुलदस्ता। आरंभ और अंत में बजने वाला संगीत अच्छा है।

9:30 बजे रविवार को कार्यक्रम उजाले उनकी यादो के और शेष हर दिन आज के फनकार कार्यक्रम प्रसारित किया गया। आज के फनकार कार्यक्रम में शुरू और अंत में बजने वाला संगीत न तो सुनने में अच्छा है और न ही यह कार्यक्रम संबंधी यानी फनकार का कोई संकेत देता है। वैसे भी लगातार यह कार्यक्रम सुनना अच्छा नही लग रहा है, विविधता होनी चाहिए।

रविवार को उजाले उनकी यादो के कार्यक्रम में अभिनेत्री लीना चंद्रावरकर से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अंतिम कड़ी सुनवाई गई। किशोर कुमार को याद किया। अपने और किशोर कुमार के जीवन के उन अनछुए पहलुओ को बताया जिससे जानकारी मिली उनकी पहली मुलाक़ात और बाद में हुए उनके विवाह के बारे में। खुद के बारे में बताया, गीत लिखने के बारे में, भप्पी लहरी के संगीत में गाए गीतों के बारे में। अच्छी रही यह कड़ी, इसी से अंदाजा लगा कि पूरी श्रृंखला से बहुत जानकारी मिली होगी। किशोर कुमार के गाए चुने हुए गीत सुनवाए गए - सफ़र, पिया का घर, चलते-चलते फिल्मो से। इस कार्यक्रम को तैयार करने में तकनीकी सहयोग दिया डी के कुलकर्णी जी ने, संयोजन किया कमलेश (पाठक) जी ने और प्रस्तुत किया कल्पना (शेट्टी) जी ने।

आज के फनकार कार्यक्रम में जब पिटारा के आज के मेहमान कार्यक्रम और रात में प्रसारित होने वाले इनसे मिलिए कार्यक्रम में की गई बातचीत और कभी-कभार विशेष अवसर पर उन फ़नकारो से हुई टेलीफोन पर बातचीत में से उनके द्वारा कही गई बातो के अंश सुनवा दिए गए साथ ही उदघोषक थोड़ा-बहुत बीच में बोलते रहे और उनके गीत सुनवाते रहे तब यह पद्धति ठीक नही लगी। रात के प्रसारण में ऐसे कार्यक्रम बोझिल से लगे। जरूरी नही कि फनकार के बारे में अधिक जानकारी दे, थोड़ी सी जानकारी भी ठीक हैं और अगर जानकारी न भी दे तो भी कोई हर्ज नही। केवल उनके गीत सुनवा दीजिए, गीतों से उनके काम की जानकारी मिल जाएगी। जब हल्की-फुल्की चर्चा की गई तब अच्छा लगा यह कार्यक्रम। इस तरह से विश्वजीत, हेलन पर कार्यक्रम अच्छे लगे।

शुक्रवार को फ़नकार गीतकार प्रसून जोशी पर कार्यक्रम लेकर आए युनूस (खान) जी। शनिवार को गायिका अलका याज्ञिक का जन्मदिन था, इस अवसर पर उन पर कार्यक्रम लेकर आए अमरकांत जी।

सोमवार का कार्यक्रम अच्छा लगा। अभिनेता विश्वजीत पर कार्यक्रम लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। उनकी फिल्मे और काम की जानकारी दी। प्रमुख गीतों को पूरा सुनवाया और कुछ गीतों की झलकियाँ सुनवाई। एक महत्वपूर्ण फिल्म का नाम छूट गया - हमक़दम। बतौर नायक पारी समाप्त होने के लम्बे अंतराल के बाद अस्सी के दशक में परीक्षित साहनी, राखी अभिनीत फिल्म हमक़दम में राखी के बॉस की महत्वपूर्ण चरित्र भूमिका की थी। फिल्म शायद राजश्री प्रोडक्शन की थी। इस नाम से उनकी अभिनय यात्रा पूरी हो जाती थी। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक (छिब्बर) जी ने पी के ऐ नायर जी के तकनीकी सहयोग से।

मंगलवार को अमरकांत जी ने प्रस्तुत किया अपनी तरह की अकेली फनकारा हेलन को। उनके बारे में हल्की-फुल्की चर्चा करते हुए उनके लोकप्रिय गीत सुनवाए - हेलन के पहले गीत मेरा नाम चुन चुन चूं (फिल्म हावड़ा ब्रिज) के साथ कारवां, तीसरी मंजिल, डान जैसी फिल्मो के गीत शामिल रहे।

बुधवार को युनूस (खान) जी ने प्रस्तुत किया फनकार अक्षय कुमार को।

गुरूवार को ममता (सिंह) जी ले आई फनकार फारूख शेख जिनका उस दिन जन्म दिन था। उनकी हैदराबाद की पृष्ठभूमि पर बनी चर्चित फिल्म बाजार का वो सीन सुनवाया जिसमे उनसे सुप्रिया पाठक चूडिया खरीदती हैं, हैदराबादी जुबान (बोलचाल) में। उनकी लोकप्रिय फिल्मो के गीत भी सुनवाए। हल्का-फुल्का अच्छा चल रहा था कार्यक्रम पर एक इंटरव्यू लगा दिया तो बोझिल हो गया।

10 बजे का समय छाया गीत का होता है। कार्यक्रम शुरू करने से पहले अगले दिन प्रसारित होने वाले कुछ मुख्य कार्यक्रमों के बारे में बताया गया।

शुक्रवार को प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने। इस बार प्रस्तुति में बदलाव रहा। साहित्यिक हिन्दी नही बोली गई, कम बोला गया, सीधी सादी भाषा में जिसमे कुछ उर्दू के लफ्ज भी थे। गानों में सिर्फ एक ही स्वर गूंजा - मोहम्मद रफी

शनिवार को प्रस्तुत किया अशोक जी ने। ख्यालो, सपनों की बात कही और सुनवाए ऐसे ही गीत - शामे गम की क़सम
उदासी का माहौल रहा।

रविवार को प्रस्तुत किया युनूस (खान) जी ने, नई फिल्मो के गीत सुनवाए - रॉक आन, ब्लैक, चमेली। नई आवाजे गूंजी जैसे बाम्बे जयश्री की आवाज।

और समापन का अंदाज हमेशा की तरह बढ़िया रहा जिसमे गानों की झलक के साथ विवरण बताया जाता है।

सोमवार को अमरकान्त जी ले आए बेहद नाजुक विषय - प्यार में तारीफ़ कैसे की जाए, क्या कहा जाए - चाँद सी महबूबा, फूलो की रानी बहारो की मलका जैसे तारीफ़ से लदे-फदे गीत सुनवाए। बढ़िया प्रस्तुति।

मंगलवार को प्रस्तुत किया निम्मी (मिश्रा) जी ने। आलेख और प्रस्तुति अच्छी थी पर गीत इस बार भी पुराने सुस्त रहे, पर हाँ एकाध गीत मस्त रहा -

देखो बिना सावन बरस गई बदरी

बुधवार को प्रस्तुत किया राजेन्द्र (त्रिपाठी) ने। कुछ पुराने अच्छे गीत सुनवाए जैसे -

मेरे प्यार की उम्र हो इतनी सनम
तेरे नाम से शुरू तेरे नाम प ख़तम

गुरूवार को रेणु (बंसल) जी ने प्यार के लोकप्रिय नगमे सुनवाए - वक़्त, पत्थर के सनम और यह गीत -

सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था
आज भी हैं और कल भी रहेगा

10:30 बजे कार्यक्रम प्रसारित हुआ आपकी फ़रमाइश जो प्रायोजित था इसीलिए प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए। इसमें श्रोताओं ने पुराने लोकप्रिय गीत सुनने की फ़रमाइश अधिक की। शुक्रवार को आम्रपाली, ऊँचे लोग, अभिमान, गीत, हम हिन्दुस्तानी और प्यार का मौसम फिल्म का शीर्षक गीत।

शनिवार को मेरा गाँव मेरा देश, बाप रे बाप, आप की परछाइयां, देवता, आशिक और चायना टाउन फिल्म से यह गीत शामिल था

- बार बार देखो

रविवार को जीने की राह फिल्म का गीत तकनीकी खराबी से ठीक से और पूरा नही सुन पाए। जानवर फिल्म का यह गीत सुन कर मजा आ गया - लाल छड़ी मैदान खडी

वो कौन थी और समापन किया इस गीत से - उधर तुम हसीं हो इधर दिल जवां हैं

सोमवार को फूल बने अंगारे, जनम जनम के फेरे, धरती, गैम्बलर फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए।

मंगलवार को अगले दिन श्री रामनवमी का ध्यान रखते हुए श्रोताओं की फरमाइश से सरगम फिल्म के राम जी की निकली सवारी गीत से शुरूवात की। इसके अलावा फिल्म पवन पुत्र हनुमान का गीत भी सुनवाया गया और सरस्वती चन्द्र, हकीक़त फिल्मो के गीत भी शामिल रहे।

बुधवार को दिल्ली का ठग, मेरे मेहबूब और यह गीत भी शामिल था - अंखिया मिला के चले नही जाना

गुरूवार को प्रेम पुजारी, एक सपेरा एक लुटेरा, राजकुमार, इंसान जाग उठा फिल्मो के गीतों के साथ यह पुराना गीत भी सुनवाया गया - प्यार किया तो डरना क्या

बुधवार और गुरूवार को ईमेल से प्राप्त फ़रमाइशें पूरी की जाती है अन्य दिन पत्र देखे जाते है। देश के अलग-अलग भागों से बहुत से पत्रों से गानों की फ़रमाइश भेजी गई और हर पत्र में भी बहुत से नाम रहे जबकि ई-मेल की संख्या कम ही रही।

प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में बताया गया।

11 बजे अगले दिन के मुख्य कार्यक्रमों की जानकारी दी जो केन्द्रीय सेवा से ही दी गई जिससे केन्द्रीय सेवा के उन कार्यक्रमों की भी सूचना मिली जो क्षेत्रीय कार्यक्रमों के कारण यहाँ प्रसारित नही होते। 11:05 पर दिल्ली से प्रसारित 5 मिनट के समाचार बुलेटिन के बाद प्रसारण समाप्त होता रहा।

Wednesday, March 24, 2010

वादक कलाकार और संगीतकार स्व. वी बालसाराजीको पूण्यतिथी पर स्मरणांजलि

आज यानि 24 मार्चके दिन भारतिय फिल्म जगतके सुप्रसिद्ध वादक-कलाकार, जो हारमोनियम, पियानो, पियानो-एकोर्डियन, युनिवोक्स, इलेक्ट्रीक ओर्गन, मेलोडिका, सिन्थेसाईझर और मेन्डोलिन बजाते थे,वैसे स्व. वी. बालसाराजी को उनकी पूण्यतिथी के अवसर पर नीचे उनकी पियानो पर बजाई हुई फिल्म मेरा नाम जोकर के गीत जीना यहाँ, मरना यहाँ की धून प्रस्तूत है, जिसका वाद्यवृंद संचालन, निर्देषन और संयोजन , प्रसिद्ध वायोलिन वादक श्री दिलीप रॉय ने किया है । साथमें वी. बालसाराजी के संगीत वाली फिल्म विद्यापती और मदमस्त (स्व.महेन्द्र कपूर की बतोर पार्श्व गायक प्रथम फिल्म)की भी मैं पाठको को याद दिलाना चाहता हूँ । नीचे जो धून मैंनें रखी है वह जिस म्यूझी केसेट से मूझे मिली है, उसके लिये मैं मेरे दोस्त मूकेश गीतकोष, गुजराती फिल्मी गीत कोष, सयगल गीत कोष (संयूग्त रूपसे हरमंदिरजी के साथ ) तथा गुजराती किताब इन्हें ना भूलाना के संकलनकार सुरत के श्री हरीश रघूवंशी जी का शुक्रगुज़ार हूँ, जो अपनी कलकत्ता यात्रा के दौरान वहाँ के बाझार से खास मूझे याद करके इसे ख़रीद लाये थे, जो पूरी पियानो पर ही है बालसाराजी की ही बजाई हुई । तो सुनिये धून:



पियुष महेता
नानपूरा, सुरत-395001.

Friday, March 19, 2010

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 18-3-10

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल ई-मेल और एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। एकाध दिन यहाँ भी क्षेत्रीय विज्ञापन प्रसारित हुए। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला। फरमाइश में से हर दशक से गीत चुने गए। इस तरह नए पुराने सभी समय के गीत सुनने को मिले। साथ ही अलग-अलग भाव के गीत चुने गए। अच्छा चुनाव, बढ़िया संतुलन।

शुक्रवार को - अनुपमा, हम साथ-साथ हैं, तेज़ाब, चितचोर, धड़कन और दो आँखे बारह हाथ फिल्म से यह प्रार्थना -

ऐ मालिक तेरे बन्दे हम

रविवार को शुरूवात की सत्तर के दशक की लोफर फिल्म के गीत से फिर एकदम नई फिल्म 3 इडियट का गीत सुनवाया गया। इसी तरह विवाह, दिल का क्या कसूर, फूल और कांटे, गैंगस्टर के गीतों के साथ क्रान्ति फिल्म का देश भक्ति गीत भी शामिल था।

सोमवार को अजनबी, हम साथ साथ हैं, हिमालय की गोद मैं, एक बार फिर फिल्मो के गीत सुनवाए गए।

मंगलवार को एक ही नई फिल्म शामिल थी - रब ने बना दी जोडी और सभी पुराने गीत सुनवाए गए। इस दिन विविधता भी अच्छी रही - अंखियो के झरोखे से फिल्म का विभिन्न मूड का शीर्षक गीत, कन्यादान का रोमांटिक गीत, हमराज का सन्देश देता गीत -

न मुह छुपा के जियो

उपकार का देश भक्ति गीत।

बुधवार को मेरा गाँव मेरा देश, सफ़र, बेताब, याराना फिल्म का शीर्षक गीत, बार्डर फिल्म से देश भक्ति गीत सुनवाया गया और शामिल रहा यह गीत भी -

मुबारक हो तुमको हज का महीना
न थी मेरी किस्मत देखूं मदीना

गुरूवार को बार्डर, अजब प्रेम की गजब कहानी, पूरब और पश्चिम, राजा हिन्दुस्तानी और जानी दुश्मन फिल्मो के गीत शामिल रहे।

एक बात अखर गई। उगादी, गुडी पडवा के दिन फ़ौजी भाई-बहनों को शुभकामनाएं नही दी गई। यह पर्व पारंपरिक उल्लास से मनाए जाते हैं। फ़ौजी भाई-बहन अपने घर से दूर रहते हैं, उन्हें शुभकामना दी जानी चाहिए।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया ख्यात पार्श्व गायक यसुदास ने। पुरानी रिकार्डिंग थी। बताया गया संग्रहालय से चुन कर सुनवाई जा रही हैं। बढ़िया चुनाव।

यसुदास ने सभी वरिष्ठ गायकों को नमन किया और उनका एक चुना हुआ गीत सुनवाया - लताजी, आशाजी, रफी साहब, किशोर कुमार, तलत महमूद। खुद के गाए गीत भी सुनवाए। बताया कि फिल्मो में सलिल चौधरी ले आए।

7:45 पर शुक्रवार को सुना लोकसंगीत कार्यक्रम। शुरूवात हुई बढ़िया संकेत धुन से। विविध भारती की विभिन्न संकेत धुनों में यह धुन अच्छी हैं और कार्यक्रम की वास्तव में परिचायक धुन हैं। लोकगीतों की शुरूवात की रेहाना मिर्जा के राजस्थानी लोकगीत अंजन की सीटी से जिसके बाद प्रकाश कौर की आवाज में पंजाबी लोकगीत और समापन मनोरमा की आवाज में उत्तर प्रदेश के बिदेसिया गीत से। बढ़िया रहा कार्यक्रम।

शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे रेणु (बंसल) जी और कमल (शर्मा) जी। श्रोताओं ने विभिन्न कार्यक्रमों की तारीफ़ की जिसमे लगभग सभी कार्यक्रम शामिल हो गए। कुछ सुझाव भी थे। ख़ास बात यह रही कि यह सूचना दी गई कि जिज्ञासा कार्यक्रम शुरू हो रहा हैं। पत्र ही थे। ई-मेल नही थे।

मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में गैर फिल्मी कव्वालियाँ सुनवाई गई। शुरूवात हुई सैयानी कव्वाल की इस क़व्वाली से -

तोड़ोगे तो दिल मर गाएगे तुझको ही कहेगे सब कातिल

जिसके बाद सुनवाई गई सिराज कव्वाल की यह क़व्वाली - प्यार किया जिसने वो हुआ हैं फना

समापन हुआ मजीद शोला कव्वाल की इस क़व्वाली से - प्यार की शाम ढली

ठीक ही रही बज्म।

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम मैं फिल्मो के फैशन डिजाइनर और स्टाइलिस्ट शाहिद आमिर से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी की बातचीत प्रसारित हुई। शुरूवात में अपने करिअर की शुरूवात के बारे में बताया। बताया कि पहली फिल्म आशिकी हैं। अपने काम के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। अच्छी जानकारी मिल रही हैं इस क्षेत्र के बारे में। बातचीत जारी हैं, अगले सप्ताह अगला भाग प्रसारित होगा। प्रस्तुति वीणा (राय सिंघानी) जी की रही। तकनीकी सहयोगी रहे निखिल(धामापुरकर) जी।

गुरूवार और रविवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। रविवार को विभिन्न रागों की झलक लिए यह फ़िल्मी गीत सुनवाए गए -

राग बहार - मन की बीन मतवारी बाजे (फिल्म शबाब)
राग बैरागी भैरव - जय शिव शंकर (संत ज्ञानेश्वर)
राग भैरवी - माता सरस्वती शारदा (आलाप)

गुरूवार को इन रागों पर आधारित यह गीत सुनवाए गए -

राग यमन - हुस्न वाले तेरा जवाब नही
राग भोपाली - बैरन नींद न आए (चाचा जिंदाबाद)
राग गौड़ मल्हार में बहुत ही कम सुना जाने वाला गीत फिल्म हमारी याद आएगी से -
छैल छबीला ----- ओ जी मैं क्या बोलूँ सरकार
राग भैरवी - टूटे न दिल टूटे न (फिल्म अंदाज)

8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। यही धुन अंत में भी सुनवाई जाती है।

शुक्रवार को सुनवाई गई झलकी - घरवाली बाहरवाली जिसके लेखक है डा शरद सिंह और निर्देशक है राकेश ढौढीयाल। पत्नी कहती है वो भी नौकरी करेगी, स्टेनो बन सकती हैं, शादी से पहले टाइपिंग शार्ट हैण्ड सीखा हैं, इन संवादों से लगा झलकी पुरानी हैं, पर आज भी सुनने में अच्छी लगी। पति के कहने पर वो घर में कर्मचारी की तरह काम करती हैं। कर्मचारी बन कर वह नियम क़ानून की बात करती हैं और अधिकारों की भी जबकि घरवाली यानि पत्नी काम को धर्म मानती हैं। यह भोपाल केन्द्र की प्रस्तुति थी।

शनिवार को दिनेश भारती की लिखी नाटिका सुनवाई गई - बजट जिसके निर्देशक है मधुर श्रीवास्तव। इलाहाबाद केन्द्र की इस प्रस्तुति में बताया कि सरकार का आम बजट आने से पहले यह सोच लिया जाता हैं कि किन चीजो के दाम बढ़ेगे और वो चीजे साल भर की जरूरत के लिए खरीद ली जाती हैं, पर बजट में इनके दाम नही बढ़ते। इस तरह बजट संभालने के चक्कर में घर का बजट बिगड़ जाता हैं।

रविवार को प्रमोद वैष्णव की लिखी झलकी सुनी - सरप्राइज। पति अपनी पत्नी को सरप्राइज देना चाहता हैं पर पत्नी उस पर शक करती हैं। एक संवाद में मोबाइल फोन की चर्चा हुई जिससे लगा कि यह झलकी नई हैं, अन्यथा विषय, संवाद सभी दृष्टि से यह झलकी पुरानी ही लग रही थी। जोधपुर केंद्र से यह गोविन्द त्रिवेदी जी की प्रस्तुति रही।

सोमवार को सुनवाई गई झलकी - छोडिए भी जिसके लेखक है डा शरद सिंह और निर्देशक है राकेश ढौढीयाल। इस झलकी से मनोरंजन तो हुआ ही सन्देश भी अच्छा रहा - सिर्फ समाज में स्तर बनाए रखने के लिए पशु नही पालना चाहिए, इससे पशु और इसके मालिक दोनों को कष्ट होता हैं। यह भोपाल केन्द्र की प्रस्तुति थी।

मंगलवार को प्रकाश साथी की लिखी झलकी सुनी - नहले पे दहला जिसके निर्देशक है कमल दत्त। पति को बोनस मिलता हैं, पत्नी के साथ बाहर खाना भी खाना हैं, दोस्त उधार मांगे तो देना हैं, खुद का उधार चुकता करना हैं। ठेठ हवामहल की शैली के अनुरूप झलकी। दिल्ली केंद्र की यह प्रस्तुति रही।

बुधवार को गुडविन मतई (शायद नाम लिखने में गलती हो) की लिखी झलकी सुनी - और दांत उखड गए जिसके निर्देशक है विनोद आनंद। रायपुर केंद्र की यह प्रस्तुति मजेदार रही। बुढऊ मियाँ मजनू हसीनो को निहारने का शौक़ रखते हैं। अंत में एक हसीना ऎसी पिटाई करती हैं कि वो दांत झट से उखड जाते हैं जो उखड नही रहे थे और जिनसे दर्द बहुत था। हवामहल की प्रकृति के अनुसार गुदगुदाने वाली झलकी थी।

गुरूवार को भी गुदगुदाने वाला प्रहसन सुना - कवि और यमदूत। शीर्षक से ही समझा जा सकता हैं कि कवि यमदूत को भी पकड़ कर अपनी रचना सुनाते हैं। यमदूत लेने आया हैं, कवि को लगता हैं कवि सम्मलेन का न्यौता हैं, यमदूत पकड़ कर ले जाता हैं, कवि चिल्लाता हैं, सपना टूटता हैं। इंदौर केंद्र की इस प्रस्तुति के लेखक डा राजेन्द्र शर्मा और निर्देशक संतोष जोशी।
इस तरह हवामहल में अच्छा मनोरंजन हुआ। साथ ही सन्देश भी मिला। लेकिन एक बात अखर गई, एक ही केंद्र से, एक ही लेखक की, एक ही निर्देशक की दो झलकियाँ एक ही सप्ताह में... हालांकि विषय अलग थे, फिर भी...

प्रसारण के दौरान संदेश भी प्रसारित किए गए, कार्यक्रमों के बारे में बताया। एकाध बार क्षेत्रीय विज्ञापन भी प्रसारित हुए। शुक्रवार को जयमाला में यसुदास का गीत सुनवाते हुए बताया शनिवार को यसुदास द्वारा प्रस्तुत विशेष जयमाला सुनवाया जाएगा। लोक संगीत, राग-अनुराग कार्यक्रम की समाप्ति पर बताया अगले दिन सुबह यह दुबारा प्रसारित होगा। अच्छा लगा इस तरह जानकारी देना।

इस प्रसारण को संगीता (श्रीवास्तव) जी, शेफाली (कपूर) जी, अमरकांत जी ने सुनील (भुजबल) जी, प्रदीप (शिन्दे) जी, आर वी दवे जी के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुँचाया और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर करने) के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रही मालती (माने) जी।

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

Tuesday, March 16, 2010

फिल्म संत ज्ञानेश्वर का भक्ति गीत - सुरेश वाडेकर का गाया पहला गीत

आप सबको उगादी, गुडी पडवा, बसंत नवरात्री की शुभकामनाएं !

आप सबके लिए नव वर्ष २०६७ मंगलमय हो !

आज इस अवसर पर फिल्म संत ज्ञानेश्वर का एक भक्ति गीत याद आ रहा हैं। यह फिल्म साठ के दशक की हैं।

इस फिल्म का एक भक्ति गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। रेडियो के हर केंद्र से बहुत सुनवाया जाता था। अब लम्बे समय से नही सुना जिससे अब बोल भी याद नही।

इस गीत के दो संस्करण हैं - एक लता जी ने गाया और एक सुरेश वाडेकर ने जिनका फिल्मो में यह पहला गीत हैं। यह गीत ही कुछ ऐसा हैं कि यह गायक की आवाज में अधिक अच्छा लगा, इसीसे लताजी से अधिक सुरेश वाडेकर का गाया गीत अधिक पसंद किया गया। रेडियो से भी यही संस्करण अधिक बजता। कई बार गायक का नाम भी नही बताया जाता इसीसे गीत तो पसंद किया गया पर सुरेश वाडेकर को पहचान नही मिली।

बाद में सत्तर के दशक में अमोल पालेकर की फिल्मो में गाने से उन्हें कुछ पहचान मिली फिर उत्सव के सांझ ढले गीत और गमन की गजल से उन्हें लोकप्रियता मिली।

आजकल संत ज्ञानेश्वर नाम की एक और नई फिल्म हैं जिसमे भी सुरेश वाडेकर ने गाया हैं, विनोद राठौर ने भी गाया हैं पर गानों में साठ के दशक की बात नही हैं।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Wednesday, March 10, 2010

१० मार्च मेंडोलिन वादक महेन्द्र भावसार को जन्मदिन की बधाई

आदरणिय पाठक गण,
जैसे मैंनें कल की पोस्टमें वादा किया था, आज 10वी मार्च के दिन, एक और पोस्ट लिखनेका, उसको भारतिय फिल्मी दुनियाके एक महान मेन्डोलिन वादक श्री महेन्द्र भावसार का जन्म दिन है तो इस उपलक्षमें रेडियो श्री लंकाने मेरे संदेश के आधार पर मेरे नाम के साथ उनके लिये बधाई संदेश प्रस्तूत करते हुए उनकी बजाई हुई मेन्डोलिन पर फिल्म प्रिन्स (शंकर जयकिसन)के गीत मदहोश हुआ म्लवाली फिज़ा को प्रस्तूत किया । पर इनका नाम गलती से श्रीमती ज्योति परमारने महेन्द्र की जगह महेश्वर एक से अधिक बार बोल दिया । फिर उनकी सराहना इस लिये जरूरी बनी कि मेरे तूर्त ही कहने पर तूर्त ही क्षमा याचना के साथ सुधार संदेश भी प्रस्तूत कर दिया है । इस पुरी रेकोर्डिंग मेरे पास थी पर पूना के मेरे नौजवान पर फ़िर भी पुराने संगीत के शौख़ीन मित्र जो अपनी शादी के बाद अपनी श्रीमतीजी को ले कर श्रीलंका जा कर सजीव प्रसारणमें आमंत्रीत और प्रस्तूत हुए थे, वैसे श्री गिरीश मानकेश्वरजीने ई मेईल से भेजी जो मेरी रेकोर्डिंग से बहेतर होने के कारण गिरीशजी के प्रति घन्यवाद के साथ तथा श्री महेन्द्र भावसारजी को जन्मदिन कीशुभ:कामना और स्वस्थ दिर्धायु की भी कामना के साथ नीचे प्रस्तूत की है ।




पर उसमें वो सुधार शामिल नहीं था, इस लिये मेरी रेकोर्डिंगमें से काट-छाट करके नीचे प्रस्तूत की है जो गुणवत्ता में उत्तम नहीं है पर घ्यान से सुनने पर सुनाई देती है ।



पियुष महेता ।
नानपुरा, सुरत ।
दि. 10 मार्च, 2010.

Tuesday, March 9, 2010

आज 9 मार्च-प्रसिद्ध गिटार और वायोलिन वादक वान शिप्ले को श्रद्धांजलि

आज यानि दि. 9 मार्च के दिन अपनी शैली के मशहुर विद्यूत हवाईन गिटार और वायोलिन वादक स्व. वान शिप्ले की पूण्यतिथी पर उनको श्रद्धांजलि देते हुए एक थोडा अलग रूप से उनकी एक ही गाने 'आईये मेहरबान (फिल्म : हवराह ब्रिज) की दो धूने, जो दोनों इलेक्ट्रीक हवाईन ग़िटार पर ही प्रस्तूत है, पर इन दोनोंमें सप्तक कहीं कहीं अलग है और वाद्यवंद भी अलग है ।

पहली धून जब यह फिल्म कुछ साल पहेले एलपी रेकोर्डमें उन्होंनें बजाई थी जिसमें स्टीरीयो असर है और वाद्यवृंद में विजाणू वाद्य सिंथेसाईझर शामिल है । यह धून विविध भारती के राष्ट्रीय प्रसारणमें कभी प्रस्तूत हुई है और रेडियो श्री लंका से भी बजती है ।



जब की दूसरी धून भी सुनिये, जो उस समय 78 आर पी एम रेकोर्डमें उस जमानेमें बजाई थी, जब की फिल्म हावरा ब्रिज नयी और ताझा थी तो स्वाभावीक है कि यह धून मोनो रेकोर्डिंग में है और उसमें वाद्यवृंद मे6 सिर्फ दो या तीन साज़िंदे थे । यह धून सिर्फ़ रेडियो श्री लंका से ही बजती है ।



तो आशा करता हूँ, कि यह दोनों धूने आपको पसंद आयेगी ।
इन दिब्नों इन वादक कलाकारों की जन्म तारीख या मृत्यू तारीख लगातार आने के कारण मेरी पोस्टॅ करीब रोज़ाना प्रस्तूत हो रही है और आनेवाले कल भी एक पोस्ट लिख़ी जायेगी । उसके बाद मार्च महिनेमें 24 तारीख़ को एक श्रदांजलि पोस्ट प्रस्तूत होगी । कुछ पाठको को भी यह पसंद आती है तो आनंद होता है ।
पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत-395001.

Monday, March 8, 2010

8 मार्च मशहूर सेक्सोफ़ोन वादक श्री मनोहरी सिंह को जन्मदिन की बधाई

आदरनिय पाठकगण,

पिछले साल दि. 9 मार्च के दिन सुरतमें जानेमाने सेक्षोफोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्री श्यामराजजी से सुरतमें हुई मुलाकातका दृष्यांकन रेडियोनामा पर मैंनें उसके कुछ दिन पश्चात प्रस्तूत किया था । उस बातहीत के दौरान श्यामराजजीने दि. 8 मार्च के, उनसे सिनीयर सेक्सोफोन, वेस्टर्न फ्ल्यूट और एक जमानेमें मेन्डोलीन और क्लेरिनेट वादक भी रह चूके (याद किजीये श्री युनूसजी द्वारा विविध भारतीकी केन्द्रीय सेवा के राष्ट्रीय प्रसारण में प्रस्तूत साक्षात्कार-आज के मेहमान अन्तर्गत ) श्री मनोहरी सिंहजी की जन्म तारीख है । तो इस अवसर पर रेडियोनामा की और से उनको बधाई देते हुए और इस फनमें उनके लम्बे अरसे तक़ सक्रियता बनी रहेने की कामना करते हुए नीचे नाझ फिल्म के गीत आंखो में दिल है....तूम कहाँ हो तूम कहाँ (संगीतप-स्व. अनिल विश्वास)को प्रस्तूत किया है । यह धून कुछ साल पहेले नेट से प्राप्त हुई थी, जो लिन्क आज मूझे याद नहीं है और यह 78 RPM मोनो रेकोर्ड था, जिसका जिक्र भी युनूसजी के साथ उसी रेडियो मुलाकातमें मनोहरीदाने किया ही था ।




(यहा कम से कम मेरे लिये नया प्लेयर मिलने पर ता. 5 मार्च की केरशी मिस्त्री (पियानो-सोलोवोक्ष) वाली पोस्ट भी एक धून के साथ संशोधईत की गई है, इतना बता देना उचीत मानता हूँ ।
पियुष महेता ।
(सुरत)
8 मार्च-2010

Friday, March 5, 2010

पियानो और सोलोवोक्ष वादक श्री केरशी मिस्त्री को पूण्य-तिथी पर श्रद्धांजली


आज यानि दि. 5 मार्च के दिन एच एम वी (इन्डिया)के जानेमाने पियानो वादक, सोलोवोक्ष वादक और वाद्यवृंद संयोजक-निर्देषक तथा अपने मंच-कार्यक्रमोमें एकोर्डियन तथा हार्मोनियम पर पेश हुए स्व. केरशी मिस्त्रीजी की पूण्यतिथी पर उनको रेडियोनामा की और से श्रद्धांजली ।
दि. 5 मार्च के दिन मैंनें नीचे लिख़ा था ।
(मूझे खेद है कि आज ई-स्नीप की अडोडाई के कारण उनकी कोई धून और आज रेडियो श्रीलंकासे मेरी भेजी हुई जानकारी के अनुसार उद्दघोषिका श्रीमती ज्योति परमारजीने उनको श्रद्धांजली के रूपमें एक रेर धून (यहाँ रेर गाना मतलब नहीं है ।)सोलोवोक्ष और उनके दोस्त मशहूर एकोर्डियन वादक स्व. गुडी सिरवाई का इलेक्ट्रीक एकोर्डियन पर (यहाँ इलेक्ट्रीक माने एलेक्ट्रोनिक नहीं, श्री चरणजीत सिंह की सबसे पहेली EP रेकोर्डमें ट्रांसीकोर्ड को इलेक्ट्रीक एकोर्डियन कहा गया था । ) फिल्म दो आँखें बाराह हाथ के गीत ए मालिक तेरे बंदे हम प्रस्तूत हुई थी, मेरे नाम के साथ ।विविध भारती को ऐसी बात कहना बेकार साबित होता है । धून तक़निकी सुविधा अनुसार फ़िर कभी प्रस्तूत होगी ।)
पर दि. 8 मार्च, 2009 को श्री सागर भाईने इस प्लेयर की लिन्क भेजी जिससे SLBC के उसी प्रसारण को (शोर्ट वेव रिसेप्सन होने के कारण दिस्टोर्सन के साथ पर फिर भी घ्यान से सुनने पर सुनाई पदनेवाला) नीचे प्रस्तूत करता हूँ ।


एक अन्य धून स्व. केरशी मिस्त्री की पियानो पर फिल्म महेबुबा से नीचे सुनिये ।



पियुष महेता
सुरत ।

Thursday, March 4, 2010

वि. भा के उद‍घोषकों से हुई गलतियां

पिछले दिनों अलग अलग उद्‍घोषकों ने कई गलतियां की। संगीत सरिता कार्यक्रम में जिन दिनों राजस्थानी लोक संगीत पर शास्त्रीय संगीत का असर वाला कार्यक्रम आ रहा था तब महेन्द्र जी ने अनुवाद में कई गलतियां की जिससे की कई बार बड़ी गड़बड़ी हुई दिखी।
लगभग सारे गीतों को उन्होने विरह पर आधारित बताया, जबकि ऐसा नहीं था। एक गाने के बोल थे बाबोसा री ओळू आवे.... महेन्द्रजी ने बताया की नायिका कह रही है कि सखा तुम्हारी याद आ रही है। जबकि असल में बाबोसा का अर्थ राजस्थानी में होता है पिता या दादाजी...अब बताईये भला विवाहित नायिका को अपने दादाजी की याद आ रही है और वह कह रही है बाबोसा री ओळू (याद) आवे... और कहां महेन्द्रजी के अर्थ के अनुसार वह अपने सखा/प्रियतम को याद कर रही है।
इस तरह की और भी कई गलतियां हुई जिन्हें मैने एक पेपर पर लिखा था पर दुर्भाग्य से पिछले दिनों राजस्थान यात्रा के दौरान वह पेपर मुझसे कहीं खो गया।

पिछले हफ्ते ही भूले बिसरे गीत के पंकज मल्लिक स्पेशल में एक गीत जिसे उमा शशि ने गाया था; को बार नहीं दो बार नहीं पूरे तीन से चार बार उमादेवी का गाया बताया। अशोक हमराही जी जो इतना शोध करते हैं(?) गीत किस बैनर के तले बनी है, किस साल में बनी है... आदि बताते हैं, वे ऐसी गलती कैसे कर गये? क्या उन्हें उमाशशि और उमादेवी (टुनटुन) में फरक नहीं पता?

Tuesday, March 2, 2010

पायल की झंकार फिल्म के गीत

पिछले सप्ताह सपना बाबुल का - बिदाई धारावाहिक के नृत्य महोत्सव के एपीसोड देखकर बहुत निराशा हुई। जिस नृत्य संगीत की उम्मीद की जा रही थी वैसा कुछ देखने को नही मिला। इतने फीके एपीसोड देखते हुए याद आई राजश्री प्रोडकशंस की एक फिल्म - पायल की झंकार

यह फिल्म 1982 में रिलीज हुई थी। भारतीय शास्त्रीय नृत्य पर बनी इस फिल्म को दर्शको ने भी बहुत पसंद किया और समीक्षकों की भी सराहना मिली। अपने विषय के कारण रिलीज होने के कुछ समय बाद ही सरकार ने देश भर के सिनेमा घरो में इसे मनोरंजन कर से मुक्त कर दिया जिसके बाद तो सिनेमाघरों में भीड़ उमड़ पड़ी।

इस फिल्म का नायक हैं अलंकार और नायिका कोमल - पूरा नाम शायद कोमल महुआकर। इन दोनों की बतौर नायक नायिका यह पहली फिल्म हैं इससे पहले दोनों ने बाल कलाकार के रूप में काम किया था। खासकर मास्टर अलंकार के रूप में इस बाल कलाकार को हम कई हिट फिल्मो में देख चुके हैं।

इस फिल्म में नृत्य गुरू की भूमिका में ख्यात हास्य कवि शैल चतुर्वेदी हैं। कुशल नृत्यांगना की भूमिका में जो अभिनेत्री हैं शायद उनका नाम रश्मि वाजपेयी हैं और उनका सम्बन्ध भी शायद किसी कवि परिवार से हैं।

इस फिल्म में नृत्य और संगीत दोनों बढ़िया हैं। गाने रेडियो से बहुत सुनवाए जाते थे पर बाद में बजाना बंद हो गए। अब मुझे भी याद नही आ रहे केवल एकाध पंक्ति याद आ रही हैं। नायिका और कुशल नृत्यांगना की प्रतिस्पर्धा का गीत जिसके बोल कुछ ऐसे हैं -

सुर बिन तान नही (शायद कुछ ऐसा ही)
--- बिन प्राण नही

इसके उत्तर में पंक्ति हैं - गुरू बिन ज्ञान नहीं

यह एक ही पंक्ति अच्छी तरह याद हैं।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

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