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Thursday, January 7, 2010

सुबह के पंचरंगी प्रसारण की साप्ताहिकी 7-1-10

सप्ताह का पहला दिन, सुबह का प्रसारण, साल का पहला प्रसारण था। नई शुरूवात भी रही और रोचक भी रहा।

सप्ताह के हर दिन परम्परा के अनुसार शुरूवात संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि सुनवाई गई। यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुआ। इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ जिसकी शुरूवात में सुबह के कार्यक्रमों के प्रायोजकों के विज्ञापन प्रसारित हुए जिसके बाद पहले कार्यक्रम वन्दनवार की शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, फिर सुनाया गया चिंतन।

चिंतन में इस बार शामिल रहे कथन - साल के पहले ही दिन हज़रत मोहम्मद साहब का कथन बताया गया - बुराई को भलाई से दूर रखो। संत ज्ञानेश्वर का कथन - उचित कार्य हेतु रहित करो। महात्मा गांधी के कथन - जीवन को सरल बनाने से समस्या नही होगी, दूसरा कथन - सच्चा मनुष्य कभी विचलित नहीं होता क्योकि सच की शक्ति से बल मिलता है। शेक्सपियर का कथन - सबके चेहरे सस्ते होते है चाहे हाथ कैसे भी हो, दूसरा कथन - मेरा मुकुट मेरे मन में है जिसे कोई देख नही सकता और न ही इसमे हीरे जड़े है, यह मुकुट है - संतोष। स्वामी विवेकानंद का कथन - जाग्रत रह कर अधिकार और दायित्व के बारे में जान सकते है।

बढिया प्रस्तुति।

वन्दनवार में भक्ति गीतों में इस बार भी विविधता रही। शुक्रवार, साल का पहला दिन था, नई शुरूवात हुई, शिव स्तुति सुनवाई गई जो संस्कृत में है -

भक्ताः प्रभो स्वीकरमः श्री महादेव शम्भों

वाकई आनन्द आ गया। इसके अलावा सप्ताह में एकाध और भी नए भजन सुनवाए गए -

जय राधे राधे राधे जय जय श्री राधे
जय कृष्णा कृष्णा कृष्णा

साकार रूप के भक्ति गीत - लीला तुम्हारी श्याम रूप भी तुम्हारा

और पुराने लोकप्रिय भजन सुनवाए गए -

जप ले हरी का नाम जप ले

मोह माया के जाल में मन को क्यों भरमाए

निराकार रूप के भक्ति गीत शामिल रहे - मोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे मैं तो तेरे पास मैं

भक्तों के भक्ति गीत जैसे -

शेरां पहाडा वाली माँ
तेरा जयकारा पुकारे
मैनु बडा चंगा लगता

कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा, लोकप्रिय देशभक्ति गीत सुनवाए गए जैसे -

ज़िन्दगी को बन्दगी समझ के तू काम कर
इस देश का रहनुमा है तू नाम कर

छोड़ मत पतवार न बिसरे रे
न बिसरे

मिल के चलोचलो भई मिल के चलो

चलो देश पर मर मिट जाए
मिल कर नया भारत बनाए

अपने वतन को स्वर्ग बनाए
आओ कदम हम मिल के बढाए

मन हो निर्भय जहा
सपनों के भारत को जा निर्मित करो

नया, एकाध बार सुनवाया गया देश गान भी शामिल रहा -

भारत एक दिया है हम सब इस दिये की बातियाँ

गीतों के लिए विवरण न बताने की आदत बीते साल के साथ नहीं गई।

6:30 बजे से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के दूसरे भाग से हम जुड़े। यह भाग प्रायोजित रहा। शुक्रवार, साल का पहला दिन होने से ज़ोरदार रहा। बड़े हँसी-ख़ुशी के गीत सुनवाए गए -

मस्ती में छेड़ के तराना कोई दिल का
आज लुटाएगा ख़ज़ाना कोई दिल का

हँसता हुआ नूरानी चेहरा

बार बार देखो हज़ार बार देखो
ताली हो…

और यह गीत सुन कर बहुत मज़ा आया -

नाच रे मन बतकम्मा ठुमक ठुमक बतकम्मा
मैं भी नाचूँ तू भी नाचे हर कोई नाचे बतकम्मा

बतकम्मा, तेलंगाना की लोक संस्कृति है और आजकल तेलंगाना का गाना देश में गाया जा रहा है।

शनिवार को सुनवाए गए, नया दौर, दिल ही तो है, दूर की आवाज़ और यह गीत -

तेरे सुर और मेरे गीत

रविवार को शिकारी, बीस साल बाद, अनपढ़, तुम सा नही देखा फिल्मो के लोकप्रिय गीतों के साथ यह गीत भी सुनवाया गया -

लाखो है यहाँ दिलवाले पर प्यार नही मिलता

सोमवार को निरूपा राय और प्रदीप कुमार को याद करते हुए सुनवाए गए यह गाने -

आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते है

दुपट्टा मेरा मलमल का

इसके अलावा गूँज उठी शहनाई, अनामोल घड़ी के गीत भी शामिल थे।

मंगलवार को काजल, संगम, ग़बन, ये रास्ते है प्यार के, नमस्तेजी फ़िल्मों के हमेशा सुने जाने वाले गीत और कश्मीर की कलि फ़िल्म यह गीत -

बलमा खुली हवा में

बुधवार को लीडर, जाल, हमारी याद आएगी का शीर्षक गीत और यह गीत सुनवाया गया -

मुझे तुम से कुछ भी न चाहिए

गुरूवार को शोला और शबनम, रंगोली, काजल और यह गीत भी शामिल था -

ऐसे तो न देखो के बहक जाए कही हम

एकाध ऐसा गीत भी शामिल रहा जो कम सुनवाया जाता है -

मेरा दिल है तेरा, तेरा दिल है मेरा

इस तरह साठ के दशक के ऐसे गीत छाए रहे जो उस समय बहुत लोकप्रिय थे। उससे पहले के समय की भूली-बिसरी आवाज़ों में से सिर्फ़ एक फ़िल्म अनमोल घड़ी का सुरैया का गाया यह गीत शामिल था -

मन लेता है अँगड़ाई

और हर दिन कार्यक्रम के समापन पर सुनवाए जाने वाले कुंदनलाल सहगल के गीत के अलावा एकाध गीत ही पचास के दशक और उससे पहले की फ़िल्मों से सुनवाए गए। सुरैया और सहगल साहब के अलावा उस दौर की कोई और आवाज़ नहीं सुनवाई गई। समय की गति के साथ-साथ इस कर्यक्रम में सुनवाए जाने वाले गीत भी आगे के समय के हो गए है पर पीछे छूट गई सुमधुर आवाज़े, उस दौर का संगीत और गीतों के बोल सुनवाने के लिए कोई और व्यवस्था करने के लिए विविध भारती से हमारा अनुरोध है।

इस कार्यक्रम में कुछ सामान्य जानकारी भी दी गई जैसे कुछ फ़िल्मों के बारे में बताया गया कि इसके सभी गाने लोकप्रिय है। कुछ फिल्मों के रिलीज का वर्ष और बैनर बताया गया। कलाकारों के नाम और फिल्म का विषय भी बताया गया।

7:30 बजे संगीत सरिता श्रृंखला चल रही है - पार्श्व गायन के रंगीन ताने-बाने जिसे प्रस्तुत कर रहे है प्रख़्यात संतूर वादक शिवकुमार शर्मा। बताया गया उप शास्त्रीय संगीत से किस तरह फ़िल्मी संगीत तैयार किया गया। गीतों के संगीत पक्ष की पूरी जानकारी देते हुए गीत सुनवाए। दो- दो गीत सुनवाते हुए यह बताया कि आधार एक होते हुए भी संयोजन अलग है -

हमसफ़र साथ अपना छोड़ चले

ऐसे तो न देखो

बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ की गायकी भी सुनवाई - याद पिया की आए

राग भैरवी में उप शास्त्रीय सन्गीत के लिए दो गीत -

जा जा रे जा बालमा

सांवरे सांवरे (फ़िल्म अनुराधा)

और अरेबियन संगीत भैरवी के लिए दो गीतों के अलग संयोजन को समझाया गया -

घर आया मेरा परदेसी

सुनो छोटी सी गुडिया की लम्बी कहानी

ठुमरी का अंदाज भी बताया - कैसी आऊं जमुना के तीर

राग भैरवी का अलग-अलग मूड में संगीतकार शंकर-जयकिशन द्वारा दो गीतों में प्रयोग भी बताया -
दर्द का मूड जिसमें दादरा ताल - मिट्टी से खेलते हो बार-बार किसलिए और ख़ुशी का मूड जिसमें कहरवा ताल - किसी ने अपना बना के मुझको

मदन मोहन के गीतों के भी विविध संयोजन बताए इन गीतों से -

बरसात में हमसे मिले तुम सजन तुम से मिले हम

कदर जाने न मोरा बालम

भैरवी पर आधारित फिल्मी गीतों में वाद्यों का प्रयोग भी समझाया इन गीतों से -

जीत ही लेगे बाजी हम तुम

मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज न दो

और गीतों के सुरों को बजा कर भी बताया। इस श्रृंखला की प्रस्तुति छाया (गांगुली) जी की है।

7:45 को त्रिवेणी का प्रसारण हुआ जो प्रायोजित था . शुक्रवार को साल के पहले ही दिन अच्छा पाठ पढाया, बताया गया विचार था - जीवन का हर दिन चुनौती भरा होता है इसीलिए सकारात्मक सोच होनी चाहिए। सुनवाए गए गीत रहे -

ये तो ज़िन्दगी है कभी ख़ुशी कभी ग़म

शनिवार को भी बढिया विचार रहा - प्रकृति ने केवल मनुष्य को ही मुस्कुराने की कला दी है इसीलिए खुद भी मुस्कुराओ और दूसरों को भी मुस्कुराने का अवसर दो, इस तरह मुस्काने के सभी पक्ष बताए इन गीतों से -

कहता है जोकर

तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो

रविवार का विषय था - आज के दौर में अच्छा श्रोता बनाना जरूरी है। आलेख और गीत अच्छे थे। उमर क़ैद फ़िल्म का यह गीत पहली बार सुना, शायद कम सुनवाया जाता है -

सुनो जी एक बात तुम हमारा दिल हुआ गुम

सोमवार का विचार था - मन में नएपन का एहसास होने से मन में उत्साह आता है।आलेख भी अच्छा था और गाने भी अच्छे चुने गए -

मैं वही दर्पण वही न जाने ये क्या हो गया
के सब कुछ लागे नया-नया

और यह नया गीत - रूकी रूकी सी जिन्दगी

मंगलवार का विचार था - वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी उन्नति। बात टेलीफोन की हुई, पुराने से नए तक, गाने भी वैसे ही रहे -

मेरे पिया गए रंगून किया है वहाँ से टेलीफून

मुन्ना मोबाइल पप्पू पेजर

बुधवार का विचार - परोपकारी अपने आपको प्रताड़ित महसूस करते है, ऐसे ही गीतों से आलेख सजाया गया -आदमी हूँ आदमी से प्यार करता

और आज का विचार था - मन में ठान ले तो आसमान भी झुक जाता ही। साथ् में सभी नए गीत सुनवाए गए - ये जिन्दगी क्या क्या दिखलाती ही

इस प्रसारण को निम्मी (मिश्रा) जी, अशोक (हमराही) जी, नन्द किशोर (पाण्डेय) जी ने विनायक तलवलकर जी, विनायक रणवे जी, विन्की फ़र्नाडिज़ जी के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुँचाया गया और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर) करने के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रही कमला कुन्दर जी.

सवेरे के त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

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