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Friday, January 1, 2010

रात के सुकून भरे कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 31-12-09

आप सबको नया साल मुबारक !

इस सप्ताह दो नई बातें हुई। आज के फ़नकार कार्यक्रम फिर से शुरू किया गया और साल को अलविदा कहा गया।

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

9 बजे का समय होता है ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं के कार्यक्रम गुलदस्ता का। शुक्रवार को सुनवाई गई अहमद फराज की गजल मिताली मुखर्जी की आवाज में -

मुझे माफ़ कर मेरे हमसफ़र
तुझे चाहना मेरी भूल थी

कृष्ण बिहारी नूर की रचना छाया गांगुली की आवाज में -

पलकों की छाँव में छुपा ले गया मुझे

बेहद लोकप्रिय कलाम नासिर काजमी का पंकज उधास की आवाज में - दिल धड़कने का सबब याद आया

इसरार अंसारी के बोल -

वो मेरी मोहब्बत का गुजरा ज़माना
नही मेरे बस में उसे भूल पाना

रूप कुमार राठौर और सोनाली राठौर की आवाजो में और जगजीत सिंह की आवाज में फैय्याज जैदी का कलाम भी शामिल था। शनिवार को लोकप्रिय रचनाएँ शामिल रही। नक्षलायल पुरी की रचना आशा भोंसले और गुलाम अली की आवाजों में -

नैना तोसे लागे सारी रैन जागे

रविवार को सुदर्शन फ़ाकिर की रचनाएँ गूँजी। पंकज उदहास की आवाज़ में -

कैसे लिखोगे मोहब्बत की किताब
तुम तो करने लगे पल-पल का हिसाब

जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की आवाज़ों में बहुत लोकप्रिय रचना - काग़ज़ की किश्ती बारिश का पानी

सुधा मल्होत्रा की आवाज़ भी सुनी पर आनन्द आया बेगम अख़्तर को सुनकर -

ज़िन्दगी कुछ भी नहीं फिर भी जिए जाते है
तुझपे ऐ वक़्त ऐहसान किए जाते है

सोमवार को अच्छा लगा जगजीत सिंह की आवाज़ में -

कल चौदहवीं की रात शब भर रहा चर्चा तेरा
किसी ने कहा चाँद किसी ने कहा चेहरा तेरा

पंकज उदहास, रीता गांगुली, पार्वती ख़ान की आवाज़ों में कैफ़ी आज़मी, राही मासूम रज़ा के कलाम गूँजे। मंगलवार को विभिन्न एलबमों से रचनाएँ सुनवाई गई। नईम कादरी का कलाम -

जब तक मैं न आऊँ शमा जलाए रखना

जगजीत सिंह की आवाज़ में वाजिदा साजिद का कलाम, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का कलाम आबिदा परवीन की आवाज़ में सुना पर सबसे अच्छा लगी शास्त्रीय संगीत में ढली रचना अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की आवाज़ों में।

बुधवार को लोकप्रिय ग़ज़ल सुनवाई गई -

दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जाएगें ऐसा लगता है

हरिहरन की आवाज़ में सुनवाया गया -

कोई पत्ता तो गिरे हवा तो चले
कौन अपना है पता तो चले

इसके अलावा फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का कलाम फ़रीदा ख़ानम की आवाज़ में और चन्दन दास की आवाज़ में इब्राहिम अश्क का कलाम भी शामिल-ए-बज्म रहा। गुरूवार को साल के अंतिम दिन की प्रस्तुति फीकी रही। मिताली सिंह की आवाज़ में सुना -

ख़त बार लिखूँ इल्तेजा करूँ
फिर भी न आए तो ख़ुदा से दुआ करो

साथ ही नक्शलायल पुरी की आवाज़ में जगजीत सिंह को सुना, ग़ुलाम अली से भी ग़ज़ल सुनवाई गई। अन्य दिनों से भी इस दिन का चयन कमज़ोर रहा।

सप्ताह में ग़ज़लों का ही बोलबाला रहा जबकि कहा जाता रहा यह ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं का कार्यक्रम है। क्या समूह गीत, गीत, भजन, लोरी फ़िल्मों में ही होते है ? अगर ग़ैर फ़िल्मी भी होते है तो इस कार्यक्रम में ग़ज़ले ही क्यों सुनने को मिलती है।

कार्यक्रम के समापन में कहा जाता रहा - यह था सुनने वालों के लिए विविध भारती का नज़राना - गुलदस्ता ( जो एक ही तरह के फूलों से बना है)। आरंभ और अंत में बजने वाला संगीत अच्छा है।

9:30 बजे चार विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित हुए। एक दिन उजाले उनकी यादो के, दो दिन आज के फनकार, तीन दिन एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम और अंतिम दिन, साल के अंतिम दिन का अंतिम प्रसारण होने से एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया गया।

रविवार को उजाले उनकी यादो के कार्यक्रम में संगीतकार जोडी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के प्यारेलाल जी से कमल (शर्मा) जी की बातचीत सुनवाई गई। उनकी पहली फ़िल्म पारसमणी की चर्चा हुई और पहला गीत बताया -

हँसता हुआ नूरानी चेहरा

साथ में यह जानकारी भी दी कि वास्तव में उनकी पहली फ़िल्म चंद्रसेना है जिसमे वो कल्याण जी आनंद जी के सहायक रहे। किशोर कुमार और आनंद बक्षी के साथ अनुभव बताए। दोस्ती फ़िल्म के लिए मिले फिल्मफेयर अवार्ड की भी जानकारी दी। इस तरह इस कड़ी में काफी जानकारी समेटी गई। इस कार्यक्रम को तैयार करने में तकनीकी सहयोग दिया स्वाती भंडारकर और जे के महाजन ने।

आज के फनकार कार्यक्रम संगीतकार नौशाद और अभिनेता राजेश खन्ना पर प्रसारित किया गया। शुक्रवार को संगीतकार नौशाद का जन्मदिन था इसीलिए इस दिन के फ़नकार थे नौशाद। प्रमुख बातें बताई गई जैसे दादा साहेब फ़ालके पुरस्कार मिला, 3 फ़िल्मों की डायमन्ड जुबिली हुई। ख़ास बात यह बताई कि सभी गीत किसी न किसी शास्त्रीय राग पर आधारित रहे। कुछ बातें युनूस जी बताते रहे और कुछ बातें नौशाद साहब ने खुद ही बताई, अच्छा लगा उनकी आवाज़ सुनना। बताया कि पहली बार आर्केस्ट्रा की जगह गायक, गायिका की आवाज़ का प्रयोग किया इस गीत में -

मोरे सैय्या जी उतरेंगे पार नदिया धीरे बहो

अच्छा जानकारीपूर्ण कार्यक्रम रहा।

मंगलवार को अभिनेता राजेश खन्ना का जन्मदिन था इसीलिए इस दिन के फ़नकार थे राजेश खन्ना। पर कार्यक्रम अधूरा लगा। बहुत सी महत्वपूर्ण बातें नहीं बताई गई। असली नाम जतिन खन्ना है जो नहीं बताया गया। पहली फ़िल्म जब जब फूल खिले में इतनी छोटी भूमिका थी कि दर्शक नोटिस ही नही कर पाए जिसकी चर्चा नही हुई। यह बताया कि वह स्टार रहे पर यह नही बताया कि स्टार शब्द का प्रयोग पहली बार राजेश खन्ना के लिए ही हुआ उनसे पहले हुए बड़े कलाकारों जैसे दिलीप कुमार, देव आनंद के लिए भी इस शब्द का प्रयोग नही हुआ क्योकि राजेश खन्ना को अपार लोकप्रियता मिली। राजेश खन्ना को रोमांटिक हीरो तो बताया गया पर यह नही बताया कि परदे पर प्यार की जो खुली अभिव्यक्ति राजेश खन्ना ने दी वह पहले देखने को नही मिली। हालांकि रोशन जैसे संगीतकारों ने रफी साहब से प्यार के बेहतरीन तराने गवाए पर परदे पर अभिव्यक्ति दबी दबी ही रही। अमर प्रेम फ़िल्म की चर्चा तक नही हुई जिसमें राजेश खन्ना ने प्यार की एक नई परिभाषा दी। फ़ैशन जगत में भी राजेश खन्ना का योगदान रहा जिसके बारे में भी कार्यक्रम ख़ामोश ही रहा। इस नायक ने युवकों को बालों की दो विशिष्ट शैलियाँ दी - गर्दन पर झूलते लम्बे बाल जो उस समय लगभग सभी युवकों कि हुआ करते थे और एक ओर छोटी सी मांग निकाल कर बाल संवारना जो वास्तव में लड़कियों की शैली है। पर उनकी बेहतरीन फ़िल्म आनंद के संवाद सुनवाए और उनकी कुछ फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुनवाए।

एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में नई पुरानी और बहुत पुरानी फिल्मे शामिल रही। शनिवार को संतोष जी ले आई सत्तर के दशक की फ़िल्म कर्ज के गीत। मुख्य गीत अंत में सुनवाया जो समय की कमी से पूरा नही बजा। इस गीत के शुरू होते ही ऋषि कपूर के बारे में थोड़ी सी जानकारी दी, उनकी पहली फ़िल्म और बाल कलाकार के रूप में की गई फ़िल्म के नाम बताए। यही कुल जानकारी रही। इस फ़िल्म में महत्वपूर्ण भूमिका में है सिम्मी ग्रेवाल जिनका नाम तक नही लिया गया। यह भी नहीं बताया कि इस फ़िल्म को इसी नाम से दुबारा बनाया गया और कुछ ही समय पहले रिलीज की गई यह रिमेक फिल्म।

मंगलवार को नन्द किशोर (पाण्डेय) जी लेकर आए नई फ़िल्म कहो न प्यार है। फ़िल्म निर्माण से जुड़े सभी नाम बताए और सामान्य जानकारी भी दी कि इसे 8 एवार्ड मिले, गीत और संगीत की भी चर्चा की। बुधवार को संगीतकार एन दत्ता की पुण्य तिथि पर उनकी लोकप्रिय फ़िल्म धूल का फूल के गीत सुनवाए गए। प्रस्तुति राजुल (अशोक) जी की रही। बढिया जानकारी देने का अच्छा प्रयास किया। पूरा नाम बताया - नारायण दत्ता। एस डी बर्मन के सहायक के रूप में काम की शुरूवात की। इस फ़िल्म के निर्माण से जुड़े सभी नाम बताए और सामन्य बातें भी बताई।

गुरूवार को वर्ष के अंतिम प्रसारण में विशेष आयोजन किया गया - इस बरस के चर्चित फ़नकार जिसे लेकर आई निम्मी (मिश्रा) जी और पी के ए नायर जी के तकनीकी सहयोग से इसे प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने। पूरे वर्ष की सिनेमा के चर्चित नाम और काम बताए गए। निर्देशक अनुराग कश्यप, इम्तियाज़ अली के सफल प्रयास की चर्चा हुई, बताया गया कि रणधीर कपूर सबके चहेते अभिनेता बने रहे (मुझे तो ऐसा नहीं लगा), शाहिद कपूर की भी चर्चा की। वास्तव में चर्चा योग्य यह तीन ही रहे - ए आर रहमान, संगीतकार विशाल भारद्वाज और दिल्ली 6 के गाने पर इन तीनों की विस्तृत चर्चा नहीं की गई, उतनी ही चर्चा हुई जितनी अन्यों की हुई जो अन्याय सा लगा। आलेख जिन्होने लिखा उनका नाम मैं नोट नहीं कर पाई।

10 बजे का समय छाया गीत का होता है। शुक्रवार को प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने। हमेशा की तरह साहित्यिक हिन्दी में काव्यात्मक प्रस्तुति। अकेलेपन की, यादो की बातें हुई। गीत भी ऐसे ही सुनवाए गए -

हम तेरे बिन जी न सकेगे सनम

कही एक मासूम नाजुक सी लड़की

शनिवार को प्रस्तुत किया अशोक जी ने। हमेशा की तरह उर्दू लफ्ज बहुत बोले। ख्यालो से होते हुए मोहब्बत के परवान चढ़ने की बात कही। गानों का चुनाव अच्छा रहा जिससे आलेख उठता रहा -

मै तो तेरे हसीं ख्यालो में खो गया

मेरा छोटा सा घर-बार मेरे अंगना में

रविवार को प्रस्तुत किया युनूस खान जी ने। नयापन रहा। यादो की बातें अक्सर होती है पर इस रात अलग बातें हुई इसीलिए अच्छी लगी। बचपन का माहौल याद किया जब रिक्शा से स्कूल जाते थे, उन दिनों घर पर आकर आवाज लगाते थे - बर्तन पर कलई लगवा लो। ऐसा ही गीत भी सुनवा दिया। वाकई पुराना माहौल याद आ गया। कुंवारा बाप का गीत भी सुनवाया -

मैं हूँ घोड़ा ये है गाड़ी मेरी रिक्शा सबसे निराली

पर एक बात खटकी, कहा गया बाईस्कोप के बारे में फिर खेलो की बात लाकर आशीर्वाद का बच्चो का रेलगाड़ी गाना सुनवा दिया जबकि बाईस्कोप का एक बढ़िया गाना है, राजेश खन्ना, मुमताज अभिनीत फ़िल्म दुश्मन का जिसे लता जी ने गाया है -

देखो देखो देखो बाईस्कोप देखो
दिल्ली का कुतुबमीनार देखो, बंबई शहर की बहार देखो
ये आगे रखा है ताजमहल, घर बैठे सारा संसार देखो
पैसा फेको तमाशा देखो

इस गाने की कमी बहुत खली। सोमवार को अमरकान्त जी एक आदि प्रश्न लेकर आए - जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते है, और आधे घण्टे तक मंथन करते रहे। ये रास्ते है प्यार के, दिल ही तो है फ़िल्मों के शीर्षक गीतों के साथ त्रिशूल फ़िल्म का गीत और यह गीत भी शामिल रहा -

बाबूजी धीरे चलना प्यार में ज़रा सँभलना

मंगलवार को रेणु (बंसल) जी ने यादो की बातें की और बहुत शांत, गंभीर गीत चुन कर सुनवाए -

वो तेरे प्यार का गम

फिर तेरी कहानी याद आई

चाँद फिर निकला मगर तुम न आए

बुधवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी नए गीत लेकर आए जिसमें परिणीता का पिउ बोले गीत भी शामिल था। गुरूवार को साल का अंतिम छाया गीत लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। बहुत जोश से प्रस्तुत किया। बातें हुई धूम-धड़ाके की पर इन नए गानों में धूम-धड़ाका भी शोर सा लगा। संगीत में ही जान नहीं है, कार्यक्रम कैसे सरस बन पाएगा।

10:30 बजे कार्यक्रम प्रसारित हुआ आपकी फ़रमाइश जो प्रायोजित था इसीलिए प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए। इसमें श्रोताओं ने पुराने लोकप्रिय गीत सुनने की फ़रमाइश अधिक की। शुक्रवार को क्रिसमस और संगीतकार नौशाद के जन्मदिन को ध्यान में रखकर श्रोताओं की फ़रमाइश में से गीत छाँट कर सुनवाए गए। शुरूवात की भीगी पलकों के ओ मदर मेरी गीत से जिसके बाद लीडर, राम और श्याम, दिल दिया दर्द लिया, बैजू बावरा के गीत सुनवाए गए। शनिवार को कश्मीर की कलि, तुम सा नहीं देखा, भाभी, जानी मेरा नाम, सरस्वती चन्द्र फ़िल्मों से लोकप्रिय गीत सुनवाए गए। रविवार को सुनवाया गया -

नैन तुम्हारे मज़ेदार ओ जनाबे आली

साथ ही राजहट, धर्मवीर फ़िल्मों के गीत भी शामिल रहे। सोमवार को शर्मिली, धरती, नीलकमल, गूँज उठी शहनाई और सती सावित्री फ़िल्म का यह गीत -

तुम गगन के चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ

मंगलवार को राजेश खन्ना के जन्मदिन को ध्यान में रखकर श्रोताओं की फरमाइश में से उन्ही की फिल्मो के गीत चुन कर सुनवाए गए। सच्चा झूठा, आराधना, कटी पतंग, महबूब की मेहंदी, प्रेम कहानी फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए। बुधवार को पुष्पांजलि, हिमालय की गोद में और हीर रांझा फ़िल्म का यह गीत -

ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं

गुरूवार को सेहरा, आराधना, घर, कन्यादान फ़िल्मों के गीतों के साथ यह गीत भी शामिल रहा -

आ चल के तुझे मैं लेके चलूँ एक ऐसे गगन के तले

बुधवार और गुरूवार को ईमेल से प्राप्त फ़रमाइशें पूरी की जाती है अन्य दिन पत्र देखे जाते है। देश के अलग-अलग भागों से बहुत से पत्रों से गानों की फ़रमाइश भेजी गई और हर पत्र में भी बहुत से नाम रहे जबकि ई-मेल की संख्या कम ही रही।

प्रसारण के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें यह बताया गया कि फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में अपनी पसन्द का गाना सुनने के लिए ई-मेल और एस एम एस कैसे करें। हैलो सहेली कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बुधवार को फोन-इन-कार्यक्रम की रिकार्डिंग की सूचना दी गई जिससे पता चला कि कार्यक्रम का अवतार कुछ बदल सा गया है - बातचीत का विषय बताया गया - भारतीय समाज में नारी का स्थान। इसके अलावा नए साल से दोपहर 1 बजे से शुरू होने वाले नए कार्यक्रम हिट-सुपरहिट की भी सूचना दी।

कुल मिलाकर सप्ताह के अंतिम दिन के कार्यक्रम फीके ही रहे, हालांकि जान डालने की कोशिश की गई, गुलदस्ता और आपकी फ़रमाइश कार्यक्रम के बीच में चर्चित कलाकारों ने नए साल की शुभकामना देते हुए विविध भारती से अपने संबंध बताए और एक गीत की चंद पंक्तियों से शुभकामना दी। इला अरूण ने वक़्त फ़िल्म के गीत - ए मेरी ज़ोहरा ज़बीं गुनगुनाया।

इस प्रसारण को विनायक तलवलकर जी, नि्खिल धामापुरकर जी, फ़र्नाडिज़ जी, विनायक जी, मंगेश सांगले जी के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुँचाया गया और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर) करने के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रहे मीरा नायक, मालती माने।

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