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Friday, January 29, 2010

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 28-1-10

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम की समाप्ति के बाद क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है, फिर हम शाम बाद के प्रसारण के लिए 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

इस सप्ताह एक ख़ास दिन रहा - गणतंत्र दिवस, इस दिन और इसकी पूर्व संध्या पर दोनों ही प्रसारणों में मिलाजुला माहौल रहा। देश भक्ति के साथ अन्य स्वर भी गूंजे।

7 बजे सोमवार को छोड़ कर हर दिन दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का जाना-पहचाना सबसे पुराना कार्यक्रम जयमाला। अंतर केवल इतना है कि पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर गाने की फ़रमाइश करते थे आजकल एस एम एस भेजते है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले धुन बजाई गई ताकि विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्र विज्ञापन प्रसारित कर सकें। फिर जयमाला की ज़ोरदार संकेत (विजय) धुन बजी जो कार्यक्रम की समाप्ति पर भी बजी। संकेत धुन के बाद शुरू हुआ गीतों का सिलसिला।

फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश में से मिले-जुले गीत चुने गए। नए गीत जिनमे आजकल के गीत और कुछ समय पुराने गीत, साथ ही पुराने गीत भी सुनवाए गए। देशभक्ति गीत भी शामिल थे, प्यार के नगमे भी गूंजे और अन्य गीत भी सुनवाए गए। संदेशो में से अच्छा चुनाव।

शुक्रवार को एल ओ सी कारगिल फ़िल्म का देशभक्ति गीत सुनवाया गया। कुछ कुछ होता है, कहो न प्यार है, जब वी मेट, राजा हिन्दुस्तानी के नए गीतों के बीच जानी मेरा नाम फिल्म का यह पुराना गीत भी गूंजा -

पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले

रविवार को रेडियो के गीत से शुरूवात की, अच्छा लगा हिमेश रेशमिया का यह गीत -

मन का रेडियो बजने दे ज़रा

विवाह, फिर हेरा फेरी, राजा हिन्दुस्तानी, अनाडी फ़िल्मों के गीत भी शामिल थे। सोमवार को 7 बजे समाचार बुलेटिन नही सुनवाया गया और 7 बजे से ही गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति महोदया का सन्देश सुनवाया गया - पहले हिन्दी में फिर अंग्रेजी में जो 40 मिनट तक जारी रहा। इसके बाद नई फिल्मो से देशभक्ति गीत सुनवाए गए जो गैर फरमाइशी थे -

ये जो देश है तेरा स्वदेश है मेरा

मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये चमन

वीर जारा का गीत और रोजा का गीत - भारत हमको जान से प्यारा है - पर आगे बहुत देर तक इस गीत के बजाय दिल है छोटा सा गीत की धुन बजती रही। यह गाने 8:15 तक जारी रहे।

मंगलवार को 26 जनवरी थी, देशभक्ति गीत से शुरूवात हुई, बार्डर फ़िल्म से - संदेशे आते है गीत सुनवाया जिसके बाद एक और देश भक्ति गीत गूंजा नई फिल्म का -

सीमाएं बुलाए तुझे चलना है

इसके बाद अन्य भावो के साठ के दशक से शुरू कर हर दशक से एक गीत चुन कर सुनवाए इन फिल्मो से - खानदान, अभिमान, अनुरोध और नई फिल्म छुपा रूस्तम

बुधवार को सभी ऐसे रोमांटिक गीत सुनवाए गए जिनमे विरह, दुःख झलका। शुरूवात हुई निकाह फिल्म के सलमा आगा के गाए इस गीत से -

दिल के अरमां आंसुओ में ढल गए

जिसके बाद मन, राजा हिन्दुस्तानी, सरस्वती चन्द्र और जनता हवलदार फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। गुरूवार को बार्डर और करमा फिल्मो के दो देश भक्ति गीत शुरू में सुनवाए गए जिसके बाद निकाह, लोफर, कारन-अर्जुन फिल्मो से विविध भावो के गीत गूंजे।

अधिकतर गीत एक ही सन्देश पर सुनवाए गए। कार्यक्रम में अंतराल में गणतंत्र दिवस के अवसर पर मंगल ध्वनी सुनवाई गई जो अच्छी लगी।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया लता मंगेशकर ने। शुरूवात में युनूस (खान) जी ने औपचारिकता निभाते हुए लता जी का परिचय देने का प्रयास किया, शब्द भण्डार खोल दिया पर हम श्रोता तो, एक वाक्य पूरा नही हो पाया तभी समझ गए।

लता जी ने सहगल साहब को याद किया, हिन्दी में गैर फिल्मी गीतों के कम होने पर खेद जताया और आशा जी का मराठी गैर फिल्मी गीत सुनवाया। भारतीय सन्गीत की प्रशंसा की और सुबह और रजिया सुलतान फ़िल्म के गीत सुनवाए। नए गानों की भी तारीफ़ की कि तेज सन्गीत के साथ कही रिदम भी है और यह गीत सुनवाया -

फुटपाथों के हम है साथी

सबसे अच्छा लगा जब विदेशो में दिए गए कार्यक्रमों के अनुभव बताते हुए कहा कि खाड़ी देश में कार्यक्रम करते समय बताया गया था कि वही गीत चुने जिसमे उर्दू के शब्द हो पर वहाँ पंडित नरेंद्र शर्मा जी का लिखा गीत सत्यम शिवम् सुन्दरम बहुत पसंद किया गया। इस तरह हर विषय को उठाते हुए बढ़िया प्रस्तुति दी। वास्तव में विविध भारती ने संग्रहालय से नगीना उठा कर हमारे सामने रख दिया।

7:45 पर शुक्रवार को सुना लोकसंगीत कार्यक्रम। मराठी लोकगीत से शुरूवात हुई जिसे शाहिर सांवले साठे और साथियो ने गाया, बहुत मजेदार गीत रहा। इसके बाद चुनमय चटर्जी की आवाज़ में बांग्ला गीत सुना। इस बार चार गीत सुनवाए गए। सुरिंदर कौर की आवाज में सुना पंजाबी गीत और समापन किया गुजराती गीत से जिसे गाया जीवा भगत ने।

शनिवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और कमल (शर्मा) जी। श्रोताओं ने बहुत सारे कार्यक्रमों की तारीफ़ की। ख़ास बात यह रही कि यह सूचना दी गई कि कार्यक्रमों में परिवर्तन हो रहे है और सोमवार को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या रही और राष्ट्रपति महोदया के संबोधन के बाद देशभक्ति गीतों के कारण पत्रावली का प्रसारण नही हुआ।

मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली भी गणतंत्र दिवस के रंग में रंगी थी। शुरूवात हुई आक्रमण फिल्म की क़व्वाली से -

पंजाबी गाएगे मराठी गाएगे बंगाली गाएगे गुजराती गाएगे
आज चलो हम सब मिल कर क़व्वाली गाएगे

जिसके बाद रंग बदला और सुनवाई गई यह क़व्वाली -

कोई मर जाए किसी पे कहाँ देखा है
छोडिए हमने भी जहां देखा है

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम इस बार बहुत जानकारी पूर्ण रहा। फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा जी से अमरकांत जी की बातचीत सुनवाई गई। यह बातचीत की दूसरी कड़ी थी। फिल्म ट्रेड यानी कारोबार से जुड़े नाहटा जी ने इस विषय पर खुल कर बात की। यहाँ तक की आजकल नायको द्वारा लिए जा रहे पारिश्रमिक पर भी बात की। फिल्म की लागत और छोटे बड़े शहरों में कारोबार, मल्टीप्लेक्स से कारोबार यानी फिल्म से होने वाली आय और पहले दिन फिल्म रिलीज होते ही सभी स्थानों से वहां की स्थिति का जायजा लेना और समीक्षा लिखना कि फिल्म चलेगी या नही। इस पूरे विषय को विस्तार से समेटा।
अचरज हुआ यह जानकर कि ऐसे व्यक्ति को भी पक्का नही पता कि फिल्मे शुक्रवार को ही क्यों रिलीज होती है। सभी की तरह अंदाजा ही लगा कि शनिवार रविवार छुट्टी होने से शुक्रवार को रिलीज होती होगी। बढ़िया बातचीत। प्रस्तुति कल्पना (शेट्टी) जी की रही।

गुरूवार और रविवार को दो दिन प्रसारित हुआ कार्यक्रम राग-अनुराग। रविवार को विभिन्न रागों की झलक लिए यह फ़िल्मी गीत सुनवाए गए -

राग सिन्धु भैरव - प्यार से देखे जो कोई (फिल्म डार्क स्ट्रीट)

राग पहाडी - मोहब्बत बड़े काम की चीज है (फिल्म त्रिशूल)

और यह बहुत ही कम सुना गीत राग देसी में - गले से लगा ले नजर झुक गई

गुरूवार को इन रागों पर आधारित यह गीत सुनवाए गए -

राग बागेश्री - कोई नही मेरा इस दुनिया में आशिया बर्बाद है (फिल्म दाग)

राग धानी - हमारी याद आएगी फिल्म का शीर्षक गीत

राग मालकौंस में बहुतही कम सुना जाने वाला स्वर्ण सुन्दरी फिल्म का नृत्य गीत - तुम तन तुम तन

राग बिलावल - ये दिल न होता बेचारा (ज्वैल थीफ)

एक ही कार्यक्रम दो बार प्रसारित हो रहा है जबकि केन्द्रीय सेवा के कई ऐसे कार्यक्रम है जिन्हें क्षेत्रीय कार्यक्रमों के कारण श्रोता सुन नही पाते है। हमारा अनुरोध है कि एक दिन कोई ऐसा ही कार्यक्रम और एक दिन राग-अनुराग का प्रसारण हो।

8 बजे का समय है हवामहल का जिसकी शुरूवात हुई गुदगुदाती धुन से जो बरसों से सुनते आ रहे है। यही धुन अंत में भी सुनवाई जाती है। शुक्रवार को सुनवाई गई झलकी - प्रश्न तो यही है जिसके लेखक है वृंदा मंजीत और निर्देशक है अजीमुद्दीन। परिवार में बहू चाहती है बुजुर्ग सास-ससुर वृद्धाश्रम चले जाए पर पति ऐसा नही चाहता। अंत में सास-ससुर का स्नेह और बच्चो द्वारा यह कह कर चौकाना कि भविष्य में उन्हें भी आश्रम में भेज देगे, बहू की आँखे खुल जाती है और वह अपने विचार बदल देती है। बहुत मार्मिक प्रस्तुति। यह भोपाल केन्द्र की प्रस्तुति थी।

शनिवार को रामनारायण बिसारिया कि लिखी झलकी सुनवाई गई - मौजीराम की बैठक जिसके निर्देशक है सुलतान सिंह। जयपुर केन्द्र की इस प्रस्तुति में बात चली वर्ग पहेली की। कई बातें होती रही। पहेली भर कर भेजी गई पर वही हुआ जिसका डर था, वर्ग पहेली आफिस के बॉस के पास पहुँच गई। कुछ ख़ास मजा तो नही आया, चलता है...

रविवार को बी एम आनंद की लिखी झलकी सुनी - मोटी मछली। एक स्टोर में सेल्समैन से मालिक कहता है ग्राहक को मछली समझो और फांसो। एक ग्राहक को मोटी मछली समझ कर फंसाने की कोशिश में कुछ भी हाथ नही लगता। इलाहाबाद केंद्र से यह जयदेव शर्मा कमल जी की प्रस्तुति रही। अच्छा मनोरंजन हुआ।

सोमवार को देश भक्ति गीतों के बाद हवामहल में सलाम बिन रज्जाक की लिखी और गंगाप्रसाद माथुर द्वारा निर्देशित नाटिका सुनी नाटक में नाटक। घर में नायिका नायक के साथ अनारकली नाटक की रिहर्सल करती है, सैनिक पिता आकर गुस्से का अबिनय करते है फिर नायक के प्यार के इजहार पर नायिका गुस्से का अभिनय करती है। इस तरह नाटक की रिहर्सल में नाटकीय अंदाज में प्यार हो गया। अच्छा मनोतंजन हुआ।

मंगलवार को राजकुमार दाग की लिखी झलकी सुनी - एक बार फिर जिसके निर्देशक है सुशील बैनर्जी। पति-पत्नी में नोकझोक फिर सपने में प्यार फिर नोकझोक फिर सपना टूटता है फिर शान्ति। दिल्ली केंद्र की यह प्रस्तुति रही।

सोमवार और मंगलवार दोनों ही दिन यानी गणतंत्र दिवस और पूर्व संध्या पर मनोरंजनात्मक झलकियाँ ही प्रसारित हुई। अच्छा होता अगर शुक्रवार को प्रसारित समस्या प्रधान झलकी इन दो में से किसी एक दिन सुनवाई जाती।

बुधवार को शंकर सुल्तानपुरी की लिखी झलकी सुनी - मकान खाली है जिसके निर्देशक है सतीश माथुर। लखनऊ केंद्र की इस प्रस्तुति में मकान खाली कराने की जद्दोजहद की हास्य स्थिति बताई गई।

गुरूवार को विदेशी कहानी का गंगाप्रसाद माथुर द्वारा किया गया रेडियो नाट्य रूपांतर सुनवाया गया - व्यथा जिसका निर्देशन भी उन्ही का रहा। विदेशी परिवेश की इस कहानी में कोचवान की व्यथा है। उसका बेटा मर गया पर उसे कोई हमदर्द नही मिला जिससे वह यह व्यथा सुना सके। अंत में घोड़े के लिए चारा जुटाना भी कठिन हो जाता ही तब घोड़े से ही दुःख बांटता है।

इस तरह हवामहल में विविधता रही। विभिन्न केन्द्रों की झलकियाँ सुनने से उन केन्द्रों की प्रतिभा का परिचय मिला। ज्यादातर कार्यक्रम के अनुरूप गुदगुदाने वाली झलकियाँ थी, समस्या प्रधान भी सुनवाई गई और देश की सीमा लांघ कर विदेशी साहित्य भी सुनने को मिला।

प्रसारण के दौरान संदेश भी प्रसारित किए गए, केन्द्रीय सेवा से दूरदर्शन पर दिखाई जाने वाली फिल्म की सूचना भी मिली और क्षेत्रीय केंद्र से पोलियो दवाई के वितरण की सूचना भी मिली।

इस प्रसारण को अजेन्द्र (जोशी) जी, रेणु (बंसल) जी, सविता (सिंह) जी, कमल (शर्मा) जी, अशोक जी ने शशांक (काटगरे) जी, राजीव (प्रधान) जी, सुभाष (कामले) जी, साइमन (परेरा) जी, विनायक (रेणके) जी के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुँचाया और यह कार्यक्रम श्रोताओं तक ठीक से पहुँच रहा है, यह देखने (मानीटर करने) के लिए ड्यूटी रूम में ड्यूटी अधिकारी रही वसुंधरा (अय्यर) जी।

रात में हवामहल कार्यक्रम के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

2 comments:

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री अन्नपूर्णाजी,
आपकी साप्ताहिक समीक्षा को कभी देरीसे ही पर पढ़ता जरूर हूँ । लगता है की अभी पोटली गीतों की को ढ़ँढना आपने बंद कर दिया है । आपसे बिनती है की आप साप्ताहीकी के दिन उसी पोस्ट के अन्तर्गत इसका अलग विभाग बनायें । हा थोड़ी लम्बाई पोस्ट की बढ़ेगी जरूर पर एक अनजान हो गये गाने की याद तो जरूर आयेंगी ।

annapurna said...

पीयूष जी, धन्यवाद कि आप साप्ताहिकी पढ़ते है। पोटली बंद नही हुई है, अभी कुछ गीत है, पर आजकल कम्प्युटर पर कुछ गड़बड़ हो रही है इसीलिए साप्ताहिकी भी कभी देर से ही निकल रही है. गीत अलग से ही लिखूंगी क्योंकि न सिर्फ़ साप्ताहिकी लम्बी होगी बल्कि विषयांतर भी हो जाएगा।

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