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Thursday, December 30, 2010

गैर फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 30-12-10

विविध भारती से गैर फिल्मी गीतों के दो कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं - वन्दनवार और गुलदस्ता. एक भक्ति गीतों का दैनिक कार्यक्रम हैं और दूसरा गजलो का कार्यक्रम हैं जो सप्ताह में तीन बार प्रसारित होता हैं।

सुबह 6:00 बजे दिल्ली से प्रसारित होने वाले समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद 6:05 पर हर दिन पहला कार्यक्रम प्रसारित होता हैं - वन्दनवार जो भक्ति संगीत का कार्यक्रम हैं। इसके तीन भाग हैं - शुरूवात में सुनवाया जाता हैं चिंतन जिसके बाद भक्ति गीत सुनवाए जाते हैं। इन गीतों का विवरण नही बताया जाता हैं। पुराने नए सभी गीत सुनवाए जाते हैं। उदघोषक आलेख प्रस्तुति के साथ भक्ति गीत सुनवाते हैं और समापन देश भक्ति गीत से होता हैं। आरम्भ और अंत में बजने वाली संकेत धुन बढ़िया हैं।

शाम बाद के प्रसारण में जयमाला के बाद सप्ताह में तीन बार शुक्रवार, रविवार और मंगलवार को 7:45 पर 15 मिनट के लिए प्रसारित किया जाता हैं कार्यक्रम गुलदस्ता जो गजलों का कार्यक्रम हैं।

इस तरह हम गैर फिल्मी गीतों में भक्ति गीत, देश भक्ति गीत और गजल सुनते हैं। आजकल नए जमाने के गीतों में किस तरह का गीत-संगीत चल रहा हैं, इसका पता विविध भारती से नहीं चल रहा। हमारा अनुरोध हैं कि नए जमाने के गीतों का एक ऐसा कार्यक्रम भी शुरू कीजिए।

कुछ समय पहले तक शाम बाद के प्रसारण में जयमाला के बाद 7:45 पर 15 मिनट के लिए दो साप्ताहिक कार्यक्रम प्रसारित होते थे मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली और शुक्रवार को लोक संगीत का कार्यक्रम हम अनुरोध करते हैं कि हमारी संस्कृति से जुड़े इन दोनों कार्यक्रमों को दुबारा शुरू कीजिए जिससे गैर फिल्मी गीतों के सिमटते समय को विस्तार भी मिलेगा और सबसे बड़ी बात श्रोतागण विशेष कर युवा पीढी संस्कृति से दूर नही होगी।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

शुक्रवार को शुरूवात की गणेश वन्दना से - जय गणेश जय गणपति नायक सब विधि पूजत सब विधि नायक
उसके बाद प्रार्थना सुनवाई - हम जाने प्रभु या तुम जानो हमें तुमसे हैं प्यार कितना

भक्ति गीतों का समापन किया शबरी के इस भक्ति गीत से - राम जी आएँगे लक्ष्मण आएगे शबरी कि कुटिया को स्वर्ग बनाएगे

शनिवार को प्रार्थना और नाम की महिमा बताते भक्ति गीत सुनवाए गए - प्रार्थना श्री भगवान कीजिए जन जन का कल्याण

राम रमैया रटा करो कृष्ण कन्हैया रटा करो
भक्ति से मिल जाए दोनों
नाम उन्ही का लिया करो

रविवार को शुरूवात की रामचरित मानस के अंश से। मुकेश और साथियो के गाए इस अंश से जुड़ा यह भक्ति गीत भी सुनवाया - भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी

अगला भजन भी राम की महिमा का रहा, इसके बाद तुलसी दास द्वारा रचित यह पुराना लोकप्रिय भजन बहुत दिन बाद सुन कर अच्छा लगा - श्री रामचंद्र कृपालु भजमन

सभी रामभक्ति गीत सुनवाए गए जिसमे प्रमुख तुलसी की रचनाएं रही, ध्यान नही आ रहा यह क्या ख़ास दिन रहा।

सोमवार को शुरूवात की भक्ति गीत से -

जब यही हो लगन मन ये गाए मगन
मन पुलकित हुआ आनंदित हुआ
मन में प्रभुजी समाने लगे

जिसके बाद राम और कृष्ण भक्ति के गीत सुने - अवधपुरी ले चलो और माँ यशोदा जब कहे माखन चोर हैं ग्वाला

मंगलवार की शुरूवात अच्छी रही, गणेश स्तुति सुनवाई गई, मुझे याद नही आ रहा.... यह पहले॥ शायद ही मैंने सुनी हो। भक्ति गीत सुना -

गोविन्द के गुण गाइए गोपाल के गुण गाइए
द्वार मन के खोल कहिए आइए प्रभु आइए

बुधवार को शुरूवात हुई इस लोकप्रिय भक्ति गीत से -

सबकी नैय्या पार लगाइय्या कृष्ण कन्हैय्या सांवरे, राम धुन लागी गोपाल धुन लागी

इसके बाद सुनवाई गई कबीर की रचना। समापन कृष्ण भक्ति गीत से किया।

आज का कार्यक्रम ठीक नही रहा। शुरूवात की इस रचना से -

गोविन्द के गुण गाइए गोपाल के गुण गाइए
द्वार मन के खोल कहिए आइए प्रभु आइए

जो मंगलवार को सुनवाई गई थी। इसके बाद अनूप जलोटा का गाया भक्ति गीत सुना, इस सप्ताह अनूप जलोटा के गाए पहले ही दो-तीन भक्ति गीत सुनवाए जा चुके। इसके बाद कबीर की रचना सुनवाई जबकि कबीर की एक रचना कल ही सुनवाई गई थी।
इस तरह एक ही सप्ताह में एक ही रचनाकार के, गायक के भक्ति गीत बार-बार सुनवाए गए, और एक तो वही भजन दुबारा सुनवा दिया गया जबकि कई रचनाकारों और गायक कलाकारों के कई भक्ति गीत ऐसे हैं जो लम्बे समय से नही सुनवाए गए - जैसे रसखान की भक्ति रचनाएं, सूरदास के पद, प्रकाश कौर की आवाज में नानक की वाणी, जुतिका राय के गाए भक्ति गीत, आगे के समय की रचनाओं में वाणी जयराम के गाए मीरा भजन, अनुराधा पौडवाल की गाई स्तुतियाँ। यह अनुरोध हैं कि नए-पुराने सभी भक्ति गीत सुनवाइए। हमें पता हैं कि इतनी रचनाएं विविध भारती के संग्रहालय में हैं कि जल्दी-जल्दी दुबारा प्रसारण की आवश्यकता नही रहती हैं।

हर दिन वन्दनवार का समापन होता रहा देश भक्ति गीतों से, रविवार को नया देशभक्ति गीत सुनना अच्छा लगा -

सपनों से प्यारे देश हमारे मिटने न देगे तेरी शान रे

यह लोकप्रिय गीत सुनवाए गए -

मिल के चलो, चलो भाई मिल के चलो

जय जय जय जन्म भूमि सकल दुःखहारी

यह भूमि हमारी वीरो की हम हिन्दो की संतान हैं

जननि जन्मभूमि प्रिय अपनी

जिन्हें बार-बार सुनवाया जाता हैं। बहुत से देशभक्ति गीत ऐसे हैं जिन्हें लम्बे समय से नही सुना जैसे सतीश भाटिया के स्वरबद्ध किए गीत, लक्ष्मी शंकर और अम्बल कुमार के गाए गीत। खासकर एक विशेष काल अवधि में लिखी गई हिंदी साहित्य की रचनाएं जैसे जयशंकर प्रसाद, सोहनलाल द्विवेदी, सुभद्राकुमारी चौहान की रचनाएं साहित्य की अनमोल धरोहर हैं जिसे संगीत में ढाल कर आकाशवाणी ने संगीत की अमूल्य निधि बना दिया। अगर इन रचनाओं को सुनवाने में तकनीकी असुविधा हैं तो इन रचनाओं को नए कलाकारों से गवाया जा सकता हैं।

इस सप्ताह भी वन्दनवार में फिल्मी भजन और फिल्मो से देश भक्ति गीत सुनवाए गए। हमारा अनुरोध है कृपया फिल्मी भजन और देश भक्ति गीतों का अलग कार्यक्रम रखिए, ऐसे समय जहां क्षेत्रीय कार्यक्रमों का समय न हो ताकि हम इन फिल्मी भक्ति गीतों का अलग से आनंद ले सके।

गुलदस्ता कार्यक्रम में शुक्रवार को रफी साहब के जन्म दिन पर यह कार्यक्रम उन्ही को समर्पित रहा। उनकी गाई विविध गजले सुनवाई गई। शुरूवात की इस मक़बूल गजल से, कलाम अंजान का जिसकी तर्ज बनाई श्याम सरन ने -

मेरे लिए तो वही पल हैं हसीं बहार के
तुम सामने बैठी रहो मैं गीत गाऊँ प्यार के

इसके बाद कैफी आजमी का कलाम सुना, तर्ज खैय्याम की जिसके बाद यह गजल सुनवाई गई पर इसके शायर का नाम नही बताया -

एक ही बात जमाने की किताबो में नही
जो गमे दोस्त में नशा हैं वो शराबो में नही

महफ़िल एक़तेदाम को पहुंची सबा अफगानी के कलाम से - हाल देखा जो बेकरारो का दिल लरजने लगा सितारों का

रविवार को शुरूवात हुई मोहम्मद हुसैन और अहमद हुसैन की युगल आवाजों में कतिल राजस्थानी के कलाम से -

दिल ने चाहा तो पैदा रास्ता जरूर होगा

जिसके बाद कतिल शिफाई को सुना अशोक खोसला की आवाज में - जब तेरे शहर से गुजरता हूँ तेरी रुसवाइयों से डरता हूँ

मंगलवार का गुलदस्ता बेहतरीन रहा। मशहूर कलाम सुनवाए गए और गुलोकार रहे गजल की दुनिया के सिरमौर। तीन गजले सुनी। मोमिन के कलाम से आगाज हुआ, गुलोकारा रही गजल की दुनिया की मलिका बेगम अख्तर -

वो जो हममे तुममे करार था, तुम्हे याद हो के न याद हो

उसके बाद सुना गजलो के सरताज मेहदी हसन की आवाज में यह मशहूर कलाम - पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने हैं

यहाँ एक बात खटक गई, शायर का नाम नही बताया गया। फिर शायर जानिस्सार अख्तर के कलम से निकली गजल जिसे प्रस्तुत किया लोकप्रिय गायक जोडी राजेन्द्र मेहता और नीना मेहता ने -

जब आँचल रात का गहराए और सारा आलम सो जाए
तुम मुझसे मिलने शमा जला कर ताजमहल में आ जाना

इस सप्ताह नए पुराने शायर, गुलोकार और गायिकी के अंदाज से खूब महका गुलदस्ता। इसकी शुरू और आखिर में बजने वाली संकेत धुन भी अच्छी हैं। सबसे अच्छा लगता हैं कार्यक्रम के अंत में यह कहना - ये था विविध भारती का नजराना - गुलदस्ता !

और ये थी इस साल की आखिरी साप्ताहिकी....

आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

Monday, December 27, 2010

वरिष्ठ रेडियो उदघोषक श्री गोपाल शर्माजी को उनके जनम दिन की शुभ: कामनाओं के साथ दृष्य साक्सातकार

इस पोस्ट को दि. 28 के ही दिन 1 ए.म. पर रख़ा गया था, पर इस पर साईन इन 12 के पहेले होने के कारण ता. 27 ही दिख़ाई देती है । और दूसरी बात की इस रेकोर्डींग को देख़ते सुनते किसी और के बताये बिना ही मेरे ध्यानमें मेरी एक गलती आयी है कि मैनें श्री गोपाल शर्माजी की अत्मकथा के लिये गलती से ओटोबायोग्राफ़ी की जगह बायोग्राफ़ी शब्द इस्तेमाल किया है । पर भले शर्माजीने मूझे उस समय सुधारना ठीक़ नहीं समझा होगा । वैसे उनकी भाषा पर काबू का कोई जवाब नहीं है । और तीसरी बात इस रेकोर्डिंगमें केमेरा मेन यानि विडीयोग्राफर , लाईट मेन , सेट मास्तर और इन्टरव्यूअर और बाद्में सम्पादक की पाँचो भूमीकाएँ मूझसे जैसे बनाया पडा, निभाई है । तो मूल रेकोर्डिं सही होने पर भी सम्पादन के दौरान कहीं विडीयो की गुणवत्ता नीचले हिस्सेमें कहीं कहीं थोड़ी सी ठीक नहीं आयी है । तो इसके लिये क्षमा प्रार्थी हूँ । और इस निर्धारीत समय मर्यादामें काम निपटाने के लिये थकान तो होनी ही थी ।
आज यानि दि. 28-दिसम्बर के दिन रेडियो प्रसारण के एक महत्व पूर्ण पायोनियर श्री गोपाल शर्माजी की जनम तारीख़ है, तो
इस अवसर पर उनको जनम दिन की रेडियोनामा की और से शुभ: कामनाएँ देते हुए मेरी हाल ही की मुम्बई यात्रा के दौरान दि. 19 के दिन उनके बुलावे पर उनक्रे धर की गई उनके केरियर के बारेमें वातचीत को आप सुन ही नहीं पर देख़ भी पायेंगे, जो अवसर आज से तीन साल पहेले वहाँ की लोकल ट्रेईन्स की गरबडीयों के कारण खो दिया था । जो चार भागोमें बाँटना पडा है । शायद दूसरा भाग आप देख़ नहीं पाये तो इसका ऑडियो भी रख़ा जायेगा । यहाँ एक और बात बता दूँ, कि दि. 21 दिसम्बर के दिन श्री अमीन सायानी साहब को सुरत में गैरहाज़री के कारण उनको इस मंच से बधाई नहीं दे पाया पर उनको उसी दिन उनके कार्यालय जा कर बधाई देनेका सुनहरी मोका मिला ।









पियुष महेता ।
सुरत ।

Thursday, December 23, 2010

विविध भारती के मेहमान - साप्ताहिकी 23-12-10

विविध भारती में लगभग हर दिन पधारे मेहमानों से उनके अनुभव और संघर्ष यात्रा को जानने का मौक़ा मिला, साथ ही मिली महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी और साथ-साथ सुनने को मिले उनके पसंदीदा गीत भी। यह कार्यक्रम हैं -

शुक्रवार - सरगम के सितारे
शनिवार - विशेष जयमाला
रविवार - उजाले उनकी यादो के
सोमवार - सेहतनामा
बुधवार - आज के मेहमान और इनसे मिलिए

इनमे से विशेष जयमाला को छोड़ कर सभी भेंटवार्ताएं हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

शाम बाद के प्रसारण में 7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद फ़ौजी भाईयों के जाने-पहचाने सबसे पुराने कार्यक्रम जयमाला में शनिवार को विशेष जयमाला में मेहमान रहे गायक जोडी भूपेन्द्र और मिताली सिंह। कुछ नई जानकारी मिली कि भूपेन्द्र जी की पहली फिल्म हैं - हकीक़त जिसमे उन्होंने एक फ़ौजी की भूमिका की और रफी साहब के साथ गाया यह गीत - होके मजबूर मुझे

और मिताली सिंह की पहली हिन्दी फिल्म हैं सत्यमेव जयते वैसे अन्य भाषाओं की फिल्मो के लिए भी उन्होंने काम किया हैं।

अपने गाए फिल्मी गीत सुनवाए भूपेन्द्र जी ने और गैर फिल्मी गीत सुनवाए मिताली जी ने अपने एलबम - अर्ज किया हैं से - दरवाजा खुला रखना और एक रिकार्ड से गजल सुनवाई। अंत में दोनों ने साथ-साथ बातचीत की और उसी एलबम से एक रचना सुनवाई और साथ-साथ ही समापन किया। एक बात अखर गई दोनों मिल कर बातचीत करते हुए, अपनी संगीत यात्रा की कुछ बाते बताते हुए प्रस्तुति देते तो अच्छा लगता। वैसे अच्छी संगीतमय प्रस्तुति रही, खासकर गजलो से अच्छा समां बंधा।

शरू और अंत में जयमाला की संकेत धुन सुनवाई गई लेकिन कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता का नाम नही बताया गया। यह कार्यक्रम प्रायोजित था। प्रायोजक के विज्ञापन, क्षेत्रीय केंद्र से सन्देश भी प्रसारित हुए।

इसी समय के प्रसारण में बुधवार को जयमाला के बाद 7:45 पर 15 मिनट के इनसे मिलिए कार्यक्रम में बहुत ही दिलचस्प मेहमान तशरीफ लाए - डबिंग कलाकार विनय नाटकर्नी जिन्हें डोनाल डग की आवाज से पहचाना जाता हैं। बातचीत की कांचन (प्रकाश संगीत) जी ने। बताया कि पहले मिमिक्री किया करते थे और अपनी आवाज को तोते की आवाज मानते थे। दर्शक भी यही मानते थे। कुछ कार्यक्रम किए जिसमे संगीतकार कल्याण जी आनंद जी का भी कार्यक्रम था। बाद में डिजनी वाले मुम्बई आए और एक ऎसी आवाज ढूंढ रहे थे डबिंग के लिए तब डोनाल डग के बारे में पता चला। अपनी इस डबिंग के बारे में भी बताया कि लगातार ऎसी आवाज निकालने में ऊर्जा बहुत लगती हैं। अपनी इस मिमिक्री में शोले फिल्म से गब्बर सिंह का लोकप्रिय सीन सुनाया। माई नेम इज एंथोनी गोंजाल्विज गीत अपनी मूल आवाज और इस आवाज में सुनाया। अच्छा रही बातचीत, अगर एक-दो बाते डोनाल डग पर भी बता देते तो उचित रहता क्योंकि विविध भारती के कार्यक्रम दूरदराज के इलाको में भी सुने जाते हैं। इस कार्यक्रम को तेजेश्री (शेट्टे) जी के तकनीकी सहयोग से वीणा (राय सिंघानी) जी ने प्रस्तुत किया।

शेष कार्यक्रम शाम 4 से 5 बजे तक पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसारित किए जाते हैं। पिटारा कार्यक्रम की अपनी परिचय धुन है जो शुरू और अंत में सुनवाई जाती हैं और सेहतनामा को छोड़कर अन्य दोनों कार्यक्रमों की अलग परिचय धुन है जिसमे आज के मेहमान कार्यक्रम में संकेत धुन के स्थान पर श्लोक का गायन हैं।

शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सरगम के सितारे। जैसा कि शीर्षक से ही समझा जा सकता हैं इस कार्यक्रम के मेहमान संगीत के क्षेत्र से होते हैं। इस सप्ताह पार्श्व गायिका और अभिनेत्री विजेता पंडित से कमल (शर्मा) जी की बातचीत सुनवाई गई। शुरूवाती बातचीत से एक ख़ास बात सामने आई कि मंगेशकर परिवार के बाद इन्ही के परिवार के अधिकाँश सदस्य फिल्मी संगीत से जुड़े हैं। अपने बार में विजेता ने बताया कि संगीत उन्हें विरासत में मिला हैं। पिता पंडित रामनारायण से बचपन से ही संगीत सीखा। माँ द्वारा गाए जाने वाले भक्ति गीत को गुनगुनाया - हे गोविन्द मुरारी
अपने पहले गीत के बारे में बताया कि एस डी बर्मन के निर्देशन में गाया, गीत सुनवाया गया जिसे मैंने पहली ही बार सुना और फिल्म का नाम भी जाना-पहचाना नही लगा - एक राजा था एक बेटा था

इसके बाद जिनी और जानी फिल्म के लिए किशोर कुमार के साथ गाए गीतों के अनुभव बताए। उन्ही के साथ गाए वफ़ा फिल्म के लिए होली गीत की रिकार्डिंग से सम्बंधित चर्चा की। अपने भाइयो जतिन-ललित के निर्देशन में रफी साहब के साथ पहली बार गाए रोमांटिक गीत के अनुभव बताए। रफी साहब से इस दौरान गाने संबंधी मिले निर्देशों की भी चर्चा की। अपनी बहन सुलक्षणा पंडित पर फिल्माए गए फिल्म दिल ही दिल में के इस गीत के बनने के भी अनुभव बताए और इसे गुनगुनाया -

गीत वफ़ा के दिल से जुबां पे आने लगे हैं

यह जानकारी भी दी जो शायद बहुत कम श्रोता जानते हैं कि बच्चो के सभी लोकप्रिय गीतों में अपनी आवाज दी जैसे मिली का गीत मैंने कहा फूलो से, परिचय का सारे के सारे। अपने उस एलबम की भी चर्चा की जिसे खुद ही संवारा हैं जिसमे हरिहरन और कुमार सानू के साथ गाया। अन्य भाषाओं में गाए अपने लोकप्रिय गीतों की भी जानकारी दी। अंत में यह दर्द छलक ही आया कि मौक़ा नही मिला पर अब भी कोशिश कर रही हैं स्थापित गायिका बनने के लिए।

विविध भारती को देश की शान बताया और जयमाला, छायागीत कार्यक्रम सुनने और पुराने गीत पसंद करने की बात बताई। अच्छी रही बातचीत, कई नई जानकारियाँ सामने आई। बातचीत अगले सप्ताह भी जारी रहेगी। इस कार्यक्रम को गणेश (शिन्दे) जी के तकनीकी सहयोग से कल्पना (शेट्टे) जी ने प्रस्तुत किया। सम्पादन खुद कमल जी ने किया। शुरू और अंत में इस कार्यक्रम की संकेत धुन सुनवाई गई जो लोकप्रिय गीतों के संगीत के अंशो से तैयार की गई हैं।

रविवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम उजाले उनकी यादो के। मेहमान रहे लोकप्रिय गीतकार गुलशन बावरा जिनसे बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। बातचीत की शुरूवात बहुत बढ़िया रही। जब वरिष्ठ गीतकार के रूप में परिचय दिया गया तब ही मेहमान गीतकार ने कह दिया कि मन से वो युवा ही हैं। फिर बातचीत शुरू हुई उनके बचपन से जो पाकिस्तान में बीता। आरंभिक शिक्षा भी वहीं उर्दू में हुई। तब रेडियो नही था, ग्रामोफोन सुना करते थे। रतन फिल्म का गीत - सावन के बादलो जैसे गीत, यही गीत सुनवाया भी गया। माँ के साथ भजन मंडली में जाया करते थे और वही एकाध पंक्ति लिखने भी लगे थे। बाद में नए रिकार्ड भी सुने जैसे - आ जा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे

यह गीत सुनवाया गया। लाहौर में ही पहली फिल्म देखी - मीरा। बंटवारे में परिवार बिखर गया और बहन के पास जयपुर चले आए। अंदाज फिल्म का गीत सुना करते थे - झूम झूम के नाचो आज जिससे गानों को समझने लगे थे। 11 साल की उम्र में पड़ोसन से एकतरफा प्यार रहा, उसकी शादी से कुछ-कुछ लिखने लगे। यहाँ एक बात अच्छी बताई कि लिखने में गंभीरता थी आजकल के गानों की तरह नही कि प्यार, जुल्फे जैसे शब्द डाल देने से ही समझते हैं कि गीत अच्छा बन गया। फिर दिल्ली में शिक्षा ली, हिन्दी सीखी। फिर बंबई आए और रेलवे में बतौर क्लर्क नौकरी की। इतनी बातचीत से समय समाप्त होने लगा। यहाँ बताया कि जंजीर फिल्म का गीत उन्होंने ही लिखा और उन्ही पर फिल्माया गया -

दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए, मोहब्बत भरी एक नजर चाहिए

अगर यह लम्बी बातचीत का पहला भाग होता जैसा कि आमतौर पर इस कार्यक्रम में होता हैं, तो बहुत बढ़िया कड़ी रही क्योंकि इस पहली कड़ी में ही उनके गीतकार बनने की शुरूवात बचपन से ही नजर आई। लेकिन समापन पर कमल जी ने धन्यवाद दिया और बातचीत समाप्त की। उद्घोषणा से भी लगा यह पूरी बातचीत थी, ऐसे में यह कार्यक्रम बिलकुल भी ठीक नही रहा। उनकी फिल्मी यात्रा पर बात ही नही हुई। केवल इतना पता चला कि जंजीर फिल्म का गीत लिखा, पर कुल कितने गीत लिखे, किस-किस के साथ, किस तरह से काम किया। पहला गीत, बढ़िया गीत, कोई पुरस्कार आदि किसी भी बात की चर्चा नही। इस कार्यक्रम को कल्पना (शेट्टे) जी ने प्रस्तुत किया।

सोमवार को प्रस्तुत किया गया कार्यक्रम सेहतनामा। इसमे रेटीना से जुड़ी बीमारियों पर बातचीत की गई। मेहमान रहे रेटीना विशेषज्ञ डाक्टर विक्रम मेहता जिनसे रेणु (बंसल) जी की बातचीत सुनवाई गई। बहुत विस्तार से जानकारी दी। आधुनिक शोध तकनीक पर आधारित रेटीना सम्बंधित जानकारी भी दी, इससे सम्बंधित रोग और उनके इलाज पर चर्चा की और सावधानी बरतने के लिए सलाह भी दी। रेटीना की विशेषताएं और कार्य बताते हुए यह बताया कि आजकल मधुमेह (डायबिटीज), रक्त चाप, किडनी के रोग से भी इसके अधिक रोगी देखे जा रहे हैं। उम्र के साथ भी आँखों के परदे पर धब्बे दिखाई देते हैं। रेटीना पर प्रतिबिम्ब गिरता हैं, यह परदा हिलने से नजर में फर्क आता हैं। कम दिखने के लिए विस्तार से बताया कि वेस्ट प्रोडक्ट यानि बेकार की चीजे शरीर में रह जाने से फोटो रिसेप्टर मृत हो जाते हैं। चश्मा किसी भी उम्र में आ सकता हैं। इलाज में कार्निया के टिशू को ठीक किया जाता हैं जिससे नंबर कम हो सकता हैं। इलाज के लिए खर्च की भी जानकारी दी कि मशीनों के महंगे होने से खर्च बढ़ा हैं, दोनों आँखों के ऑपरेशन में 25-30 हजार तक खर्च होगा। सलाह दी कि यह जांच करवाते रहे कि कही परदा सरक तो नही रहा हैं। बार-बार आँख में उंगली न डाले, कंप्यूटर पर काम करते हुए बीच-बीच में इधर-उधर देखते रहे।

बातचीत के साथ डाक्टर साहब की पसंद के गीत सुनवाए गए। आधुनिक डाक्टर साहब की पसंद के गीत भी आधुनिक हैं। नए फिल्मी गीत सुनवाए गए - माई नेम इज खान फिल्म से तेरे नैना तेरे नैना, ओंकारा फिल्म से नैना ठग लेंगे। इस कार्यक्रम को विनायक (तलवलकर) जी के तकनीकी सहयोग से कमलेश (पाठक) जी ने प्रस्तुत किया।

बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम मे मेहमान रहे जाने-माने चरित्र अभिनेता, लेखक और निर्देशक सौरभ शुक्ला जिनसे बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। बताया कि बचपन से ही फिल्मे देखने का शौक रहा और फिल्म बनाना चाहते थे। कॉलेज में आने पर दोस्तों की सलाह से फिल्म न बना कर नाटको में काम करना शुरू किया। अपने नाटको के अनुभव भी बताए। टेलीविजन धारावाहिक भी किए। इसी दौरान शेखर कपूर ने उन्हें फिल्म बैंडिट क्वीन के लिए एक भूमिका का सृजन कर काम दिया। मुझे लगा यह बड़ी बात हैं पर इस फिल्म पर अधिक चर्चा नही की गई। अधिक चर्चा हुई सत्या फिल्म पर जो बतौर लेखक पहली फिल्म हैं जिसमे अनुराग कश्यप के साथ सहलेखन किया। लेखन कार्य के अनुभव बताए और इस काम को कठिन बताया। एक चरित्र अभिनेता, लेखक और निर्देशक से बहुत ही उचित प्रश्न था कमल जी का कि क्या फिल्मो में विषय के मामले में अकाल हैं... इस प्रश्न में नक़ल की बात पर भी चर्चा हो सकती थी कि कई फिल्मे विदेशी और देसी फिल्मो की नक़ल होती हैं। लेकिन जवाब स्पष्ट नही दिया। फिल्मो में ठहराव की बात की और अनावश्यक रूप से टेलीविजन धारावाहिकों से तुलना कर दी। सत्या फिल्म के साथ उनकी पसंद के पुराने गीत भी सुनवाए। बातचीत अगले सप्ताह जारी रहेगी। इस कार्यक्रम को कमलेश (पाठक) जी ने प्रस्तुत किया।

शुरू में इस कार्यक्रम की संकेत धुन के स्थान पर इस श्लोक का गायन सुना -

अथ स्वागतम शुभ स्वागतम
आनंद मंगल मंगलम
इत प्रियम भारत भारतम

इस सप्ताह विविध क्षेत्रो के मेहमान आने से माहौल अच्छा रहा। डाक्टर साहब से उपयोगी जानकारी मिली। फिल्मी क्षेत्र से अलग-अलग समय की बातो को जाना।

Tuesday, December 21, 2010

आ बता दे के तुझे कैसे जिया जाता हैं

1974 के आसपास रिलीज उस समय की लोकप्रिय फिल्म हैं - दोस्त जिसमे नायक नायिका हैं धर्मेन्द्र हेमामालिनी और शत्रुघ्न सिन्हा की भी महत्वपूर्ण भूमिका हैं।

पहले इसके गीत बहुत सुनवाए जाते थे। फिर लम्बे समय से सुना नही पर पिछले लगभग एक-दो महीने से गाड़ी बुला रही हैं गीत दो-चार बार सुना तो इसका एक और लोकप्रिय गीत याद आ गया जिसे नही सुने बहुत समय हो गया।

इस गीत को रफी साहब ने गाया हैं। बीच-बीच में शत्रुघ्न सिन्हा की आवाज में शेरो-शायरी हैं। एक अंतरा शायद लताजी ने भी गाया हैं। इसके जो बोल याद आ रहे हैं वो इस तरह हैं -

दिल पे सह कर सितम के तीर भी पहन कर पाँव में जंजीर भी

रश्क किया जाता हैं आ बता दे के तुझे कैसे जिया जाता हैं

(लता) चैन महलों में नही रंगरलियो में नही दे दो थोड़ी सी जगह अपनी गलियों में मुझे

झूम कर नाचने दो अपनी मस्ती में ज़रा

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, December 16, 2010

महिला और युवा वर्ग के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 16-12-10

महिला और युवा वर्ग की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए निर्धारित दो कार्यक्रम - सखि-सहेली और जिज्ञासा लगता हैं विविध भारती के दूर-दराज के इलाको तक फैले नेटवर्क को ध्यान में रख कर तैयार किए जाते हैं। इनकी विषय-वस्तु में परिवर्तन की अब भी गुंजाइश हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

सप्ताह में पांच दिन एक घंटे के लिए दोपहर 3 बजे से प्रसारित होने वाले महिलाओं के कार्यक्रम सखि-सहेली में शुक्रवार को प्रसारित हुआ कार्यक्रम हैलो सहेली। फोन पर सखियों से बातचीत की रेणु (बंसल) जी ने। 8-10 फोन काल थे जिनमे से लोकल कॉल भी थे। घरेलु महिलाओं, छात्राओं ने बात की। एक छात्रा की बातचीत से पता चला कि उसके गाँव में अधिक सुविधाए नही हैं, वह प्राइवेट पढाई करती हैं, अब हिन्दी साहित्य में एम ए की पढाई कर रही हैं। परीक्षा के लिए गाँव से बाहर जाती हैं। अच्छा लगा कि गाँव के परिवार शिक्षा के प्रति जागरूक हो रहे हैं। घरेलु महिलाओं ने बताया कि घर का कामकाज करती हैं, सिलाई का काम करती हैं। विभिन्न क्षेत्रो से आए कॉलों से पता चला कि महाराष्ट्र में ठण्ड शुरू हो गई हैं, कश्मीर में गुलमर्ग में बर्फ पड़नी शुरू हो गई हैं पर अन्य स्थानों पर मौसम सुहावना हैं, हल्की धूप हैं। एक सखि ने बताया कि उसे डांस, गाना और खाना बनाने का बहुत शौक हैं। इस तरह सभी से बातचीत सुन कर लगा कि अब महिलाओं के प्रति सोच में गाँव, जिलो, कस्बो में भी शहरों की तरह विचारधारा बन रही हैं। वैसे अब भी कई महिलाए घरेलु कामो में ही रुचि ले रही हैं।

सखियों की पसंद पर नए-पुराने और बीच के समय के गाने सुनवाए गए जैसे पुरानी फिल्म नागिन का गीत, कुछ पुरानी फिल्म कटी पतंग और नई फिल्म व्हाट इज योर राशि फिल्म के गीत। इसके अलावा एक सखि ने शेरा डाकू फिल्म से एक गीत सुनवाने का अनुरोध किया जो बहुत ही कम सुनवाया जाता हैं -

इन्तेजार का आलम,तन्हाई और गम

रतनपुर, बरेली, छिंदवाड़ा से भी फोन आए, गाँव, जिलो से फोन आए। एक-दो नई सखियों ने फोन किया यानि पहली ही बार विविध भारती से संपर्क किया। एकाध कॉल ऎसी सखियों का था जो अक्सर फोन करती रहती हैं।

सखियों ने विविध भारती के कार्यक्रमों को पसंद करने की बात कही। कार्यक्रम के समापन पर बताया गया कि इस कार्यक्रम के लिए हर बुधवार दिन में 11 बजे से फोन कॉल रिकार्ड किए जाते हैं जिसके लिए फोन नंबर भी बताए - 28692709 28692710 मुम्बई का एस टी डी कोड 022 और कुछ अनिवार्य बाते भी बताई जैसे फोन करते समय यह देख ले कि आसपास बहुत शोर न हो रहा हो जिससे रिकार्डिंग साफ़ नही होगी, नेटवर्क भी ठीक होना चाहिए, यह भी पहले से तय कर ले कि किस गीत की फरमाइश करनी हैं।

शुरू और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई जिसमे शीर्षक के साथ उपशीर्षक भी कहा जाता हैं - सखियों के दिल की जुबां - हैलो सहेली ! पूरे कार्यक्रम के दौरान रेणु जी ने सौम्य वातावरण बनाए रखा। इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया वीणा (राय सिंघानी) जी ने, रमेश (गोखले) जी के सहयोग से, तकनीकी सहयोग विनायक (तलवलकर) जी का रहा।

अन्य चार दिनों में सखि-सहेली कार्यक्रम में हर दिन दो प्रस्तोता सखियाँ आपस में बतियाते हुए कार्यक्रम को आगे बढाती हैं। हर दिन के लिए एक विषय निर्धारित हैं -सोमवार - रसोई, मंगलवार - करिअर, बुधवार - स्वास्थ्य और सौन्दर्य, गुरूवार - सफल महिलाओं की गाथा।

सोमवार को प्रस्तोता रही रेणु (बंसल) जी और ममता (सिंह) जी। यह दिन रसोई का होता है, सर्दियों के मौसम को ध्यान में रख कर सखियों द्वारा भेजे गए पत्रों में से व्यंजन चुन कर बताए गए। सरसों का साग पारम्परिक विधि से बनाना बताया गया, मिठाई में खीर सेप रबड़ी और सब्जियों में खट्टी भिंडी बनाना बताया गया। दोनों प्रस्तोता सखियों की बातचीत से यह भी पता चला कि इस तरह की भिंडी मध्य प्रदेश का व्यंजन हैं।

सखियों की पसंद पर पुरानी फिल्मो के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए इन फिल्मो से - मदारी, प्यार की राहे, गूँज उठी शहनाई, गुमराह, नया रास्ता और दिल एक मंदिर फिल्म का शीर्षक गीत और नूरजहाँ फिल्म से यह गीत भी सुनवाया गया जो कम ही सुनवाया जाता हैं -

वो मुहब्बत वो वफाए किस तरह हम भूल जाए

मंगलवार को प्रस्तोता रही रेणु (बंसल) जी और निम्मी (मिश्रा) जी। यह करिअर का दिन होता है। इस दिन ऐसे करिअर के बारे में जानकारी दी गई जिसे मैंने पहली बार सुना - मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन। डाक्टर जब रोगी के बारे में कहते हैं तब उन बातो को लिख कर रिपोर्ट रूप में तैयार करना। इस तरह यह कड़ी केवल लड़कियां ही नही लड़को के लिए भी उपयोगी रही।

यह दिन युवा सखियों के लिए हैं इसीलिए इस दिन नए गाने ही सुनवाए गए। वांटेड, वंस अपॉन ए टाइम इन मुम्बई, जब वी मेट फिल्मो के गीत सुनवाए और दिल्ली 6 फिल्म से सखियों की फरमाइश पर यह क़व्वाली सुनना अच्छा लगा क्योंकि विविध भारती से आजकल कव्वालियाँ कम ही सुनने को मिल रही हैं - मौला मेरे मौला

बुधवार को प्रस्तोता रही निम्मी (मिश्रा) जी और ममता (सिंह) जी। इस दिन स्वास्थ्य और सौन्दर्य संबंधी सलाह दी जाती है्। सखियों के भेजे गए पत्रों से शहद, अंजीर, पुदीना, सरसों के तेल के उपयोग की सलाह दी, बताया कि पीने का पानी साफ़ पारदर्शी होना चाहिए और उबले पानी का उपयोग 24 घंटे बाद न करे।। इसके अलावा कुछ और जाने-पहचाने घरेलु नुस्के बताए गए। कोई नई जानकारी नही थी।

सखियों की फरमाइश पर सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय रोमांटिक फिल्मो के लोकप्रिय रोमांटिक युगल गीत सुनवाए गए, चितचोर, एक दूजे के लिए, जूली, लव स्टोरी, नागिन फिल्मो से और वारिस फिल्म से यह सदाबहार गीत भी शामिल था -

मेरे प्यार की उम्र हो इतनी सनम
तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पे ख़त्म

आज गुरूवार हैं, आज प्रस्तोता रही रेणु (बंसल) जी और ममता (सिंह) जी। इस दिन सफल महिलाओं के बारे में बताया जाता है। इस दिन सखियों के पत्रों से एक ऎसी सखि का पत्र पढ़ कर सुनाया गया जिसमे संघर्षो से जूझते हुए मंजिल पाने की गाथा थी।

सखियों के अनुरोध पर कुछ ही पहले के समय की फिल्मो के गीत सुनवाए - मैं हूँ न, लगे रहो मुन्ना भाई , दूरियां फिल्मो से, बंटी और बबली से कजरारे और जोधा अकबर फिल्म से यह गीत भी शामिल था -

कहने को जश्ने बहारां हैं

हर दिन श्रोता सखियों के पत्र पढे गए। एक पत्र में कवि पन्त जी के बारे में संक्षिप्त जानकारी थी। एक पत्र में सिकंदर और अरस्तु की लघु बोध कथा सुनवाई गई। कुछ पत्रों में लिखा था संघर्ष करते हुए मंजिल की ओर बढ़ना हैं, प्लास्टिक का उपयोग कम करे, ऎसी ही जीवन में अमल करने योग्य बाते। पत्र पढ़ते हुए चर्चा भी होती हैं जिसमे जीवन संबंधी बाते बताई गई जैसे गुस्सा नही करना। विविध भारती के कार्यक्रमों संबंधी पत्र जब पढ़े जाते हैं तब ऐसा लगता हैं जैसे पत्रावली कार्यक्रम सुन रहे हैं। हमारा अनुरोध हैं कि हैलो सहेली में की जाने वाली सीधी बातचीत ठीक हैं। इन चारों दिन पत्रों का सिलसिला बंद कर साहित्य की चुनी हुई रचनाओं का पठन किया जा सकता हैं। साहित्य में महिलाओं के लिए कई प्रेरणादायी रचनाए हैं। कभी एक काव्य रचना पढी जा सकती हैं तो कुछ कहानियों और उपन्यासों का हर दिन कुछ अंश पढ़ते हुए सिलसिलेवार पठन किया जा सकता हैं। साहित्य के साथ हर दिन का विषय जैसे रसोई, करिअर आदि जारी रखते हुए फरमाइशी गीत सुनवाना उचित रहेगा।

कार्यक्रम के शुरू और अंत में सखि-सहेली की संकेत धुन सुनवाई गई। चारो दिन इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया कमलेश (पाठक) जी ने।

शनिवार को रात 7:45 पर सुना सामान्य ज्ञान का साप्ताहिक कार्यक्रम जिज्ञासा। समय यात्री टाइम मशीन के अंतर्गत मदर टेरेसा के जन्म शती पर उनके जीवन चरित की झांकी प्रस्तुत करती विशेष रेल की जानकारी दी गई जो मुबई सहित कुछ शहरों में आ चुकी हैं और कुछ शहरों में आने वाली हैं। इसके तुरंत बाद सुनवाया गया यह पुराना गीत बहुत अच्छा लगा - आइए बहार को हम बाँट ले - अच्छा चुनाव। 41 वे अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव और उसमे दिए गए एवार्डो की जानकारी दी। खेल जगत से इस निर्णय की जानकारी दी कि विश्व कप फुटबौल की मेजबानी 2018 के लिए रूस और 2022 के लिए क़तर करेगे, यहाँ नया गीत चुन कर सुनवाया गया। खोजी रिपोर्टर ने बताया कि दूरदर्शन ने श्याम बेनेगल के चर्चित धारावाहिक भारत एक खोज का वीडियो जारी किया जिसका शीर्ष संगीत सुनवाया गया जिसे सुन कर उन दिनों की याद आ गई। इंटरनेट कनेक्शन में वायरल हैकिंग में वाई हाई के प्रयोग की जानकारी दी साथ ही यह सलाह भी दी कि बिल अधिक आने पर पूछताछ करे। बताया गया कि खोजी रिपोर्टर का विशेष कार्यक्रम तैयार किया जाएगा, अगर आप के पास कोई सवाल हैं तो इस पते पर भेजे - gys@gmail.com

इस पूरे कार्यक्रम में श्याम बेनेगल की जानकारी को छोड़ कर सभी बाते समाचार पत्रों और इंटरनेट से आसानी से शहरियों को मिल जाती हैं। कुछ और स्तम्भ जोड़ कर शहरी युवाओं के लिए भी इसे अधिक उपयोगी बनाया जा सकता हैं। शोध, आलेख और स्वर युनूस (खान) जी का रहा। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने, तकनीकी सहयोग पी के ए नायर जी का रहा।

इन दोनों कार्यक्रमों को सुनकर ऐसा लगता हैं जब विविध भारती महिला और युवा वर्ग के लिए अलग कार्यक्रम तैयार कर ही रही हैं तब बच्चो के लिए भी कोई कार्यक्रम तैयार किया जा सकता हैं। बाल श्रोताओं के लिए भी विविध भारती में जगह होनी चाहिए।

इस सप्ताह ख़ास बात रही कि इस साल की बिदाई की तैयारियां शुरू हो गई। 31 दिसंबर को फोन-इन मन चाहे गीत कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा हैं। इसके लिए श्रोताओं से इस साल का अपना मन चाहा गीत सुनने के लिए 21 दिसंबर को फोन करने की सूचना दी गई। रिकार्डिंग 11 बजे से होगी। इसके लिए फोन नंबर वही हैं जो हमने ऊपर हैलो सहेली कार्यक्रम के लिए बताए हैं।

Tuesday, December 14, 2010

सांच को आंच नही फिल्म के गीत

वर्ष 1977 के आसपास राज्यश्री प्रोडक्शंस के बैनर तले एक फिल्म रिलीज हुई थी - सांच को आंच नही

राज्यश्री की अन्य फिल्मो की तरह यह फिल्म भी पारिवारिक हैं और मनोरंजक होने के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी हैं। इस फिल्म के गीत उन दिनों बहुत लोकप्रिय हुए थे, शायद एक शीर्षक गीत भी हैं। रेडियो से गाने बहुत सुनवाए जाते थे। अब बहुत दिनों से यह गीत नही सुने। अब तो एक बोल भी याद नही आ रहा।

न गीतों से सम्बंधित कोई नाम याद आ रहे हैं और न ही किसी कलाकार के नाम। शायद इसमे रामायण फेम अरूण गोविल हैं।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Sunday, December 12, 2010

विविध भारती के नाटक - साप्ताहिकी 9-12-10

रेडियो नाटको के विभिन्न रूपों को सुनने के लिए एक मात्र चैनल हैं - विविध भारती। नाटकों के दो कार्यक्रम हैं हवामहल और नाट्य तरंग हवामहल रात के प्रसारण का दैनिक कार्यक्रम हैं और नाट्य तरंग सप्ताहांत यानि शनिवार और रविवार को दोपहर बाद प्रसारित होता हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

हवामहल में रात 8 बजे शुक्रवार को हास्य व्यंग्य झलकी सुनवाई गई - काश ऐसा होता जिसमे उन पर व्यंग्य हैं जो समाज में अपना स्तर बनाए रखने के लिए उस भाषा को अधिकार से बोलते हैं जिसकी ठीक से जानकारी नही हैं। चाचा को उर्दू सीखने का शौक हुआ। कुछ उर्दू के शब्द बता दिए जैसे स्थानान्तरण को तबादला और इंतकाल भी कहते हैं। चाचा ने पत्नी को उसके भाई के तबादले की खबर देते हुए कहा इंतकाल हो गया। जाहिर हैं नाराजगी झेली फिर अंग्रेजी सीखने का शौक हुआ। यस नो सीख कर गाँव में ब्याह में झगड़ा मोल लिया। भाषा सिखाने वाले भतीजे ने प्रयोग कर बताया भाषा के प्रयोग कॉमन सेन्स होनी चाहिए। उन्होंने घर में पत्नी को प्रयोग कर बताया, पत्नी प्रयोग तो नही समझ पाई पर कह दिया, ये क्या किया, कॉमन सेन्स होनी चाहिए। अच्छी रही झलकी जिसके लेखक हैं कमर इरशाद राही और लखनउ केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं जयदेव शर्मा कमल।

शनिवार को नाटिका सुनी - अलाउद्दीन का चिराग। कबाड़ की दुकान से एक पुराना चिराग खरीद लाता हैं, यह सोच कर कि सफाई के बाद शायद सोने का निकल आए। चिराग को साफ़ करते समय उसमे से जिन निकल आता हैं। इस बार जिन गुलाम न होकर मालिक बन कर उससे काम करवाता हैं। कहता हैं कि अब तक उसे बहुत बेवकूफ़ बनाया गया, अब उसने दुनिया की सभी भाषाए भी सीख ली हैं और अब वह मालिक बन दूसरो से काम कराएगा। गुलामी की बात सुन वह घबरा जाता हैं, यह उसका सपना होता हैं। इस तरह हवामहल की पारंपरिक शैली की यह हास्य प्रस्तुति रही। दिल्ली केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं दीनानाथ और लेखक हैं अमृत कश्यप।

रविवार को इतिहास से विषय लिया गया। राममूर्ति चतुर्वेदी की लिखी नाटिका सुनी - आम्र मंजरी। वैशाली के लिच्छवी समाज और वहां के शासन और सामजिक प्रथा का पता चला। इतिहास का जाना-पहचाना चरित्र हैं नर्तकी आम्रपाली। जब वह देश में आए संकट में सहायता करना चाहती हैं तो शासन की ओर से इन्कार कर दिया जाता हैं क्योंकि उसे केवल भोग-विलास की वस्तु माना जाता हैं। एक भेंट में सेनापति पद्मनाभन के कहने पर वह अपने बालो से आम्र मंजरी निकाल कर देती हैं जिसकी कीमत वह समय आने पर लेना चाहती हैं। इसी संकट में वह सेनापति को कीमत के रूप में रोक लेना चाहती हैं और वचन के अनुसार सेनापति बिना उसकी अनुमति कहीं जा नही सकता। नगर सेठ और आम्रपाली के संवाद अच्छे हैं जिसमे नारी को केवल ऐश्वर्य के लिए अपनाने और उसके गुणों पर ध्यान नही दे कर उसे अपमानित करते समाज की झलक हैं। अच्छी प्रस्तुति, निर्देशिका हैं रमा बावा।

सोमवार की प्रस्तुति में नारी का दूसरा पहलू देखने को मिला। हरी आत्मा की लिखी नाटिका काली चादर की नारी महत्वाकांक्षी हैं। वह रंगमंच की उम्दा अभिनेत्री हैं और आगे बढ़ कर यश कमाना चाहती हैं। इसके लिए वह माँ भी नही बनना चाहती। बहुत प्यार करने वाले पति को छोड़ कर सहकलाकार से विवाह कर लेती हैं। दो वर्ष तक उसका शोषण करने के बाद वह उसे छोड़ देता हैं। तब वह पहले पति के पास लौटती हैं पर वह अपनाने से इन्कार कर देता हैं। दोनों में हुई बहस से वह आत्महत्या को प्रेरित होती हैं। इसे निर्देशित किया गंगा प्रसाद माथुर ने। बढ़िया प्रस्तुति रही विविध भारती की।

मंगलवार को बहुत दिन बाद नए विषय पर झलकी सुनना अच्छा लगा - तू तू मैं मैं वाली एकता। क्रिकेट जगत पर रही झलकी। सभी जानते हैं आजकल खेल के अलावा उस दुनिया में क्या-क्या हो रहा हैं। खिलाड़ी खेल से ज्यादा मॉडलिंग पर ध्यान दे रहे हैं, मैच फिक्स हो रहे हैं। खिलाड़ियों में एकता नही हैं। कोच से बनती नही हैं। मैच हारने पर खुश होते हैं कि सिरदर्दी ख़त्म हुई। इन्ही सब बातो की प्रस्तुति थी। मूल लेखक हैं डा ज्ञानचन्द्र द्विवेदी जिसका रेडियो नाट्य रूपांतर किया गया। कलाकरों के नाम भी इस बार बताए गए। प्रस्तुति भोपाल केंद्र की रही।

बुधवार को विदेशी साहित्य से हास्य नाटिका सुनवाई गई - सफ़ेद हाथी की चोरी जिसका हिन्दी नाट्य रूपांतर सुरेन्द्र गुलाटी ने किया। महाराजा के सफ़ेद हाथी को कुछ समय के लिए बाहर लाया जाता हैं और वह गुम हो जाता हैं। जासूस से संपर्क किया जाता हैं। बड़े पैमाने पर ढूंढा जा रहा हैं। शहर भर में खोज हो रही हैं जिसमे हजारो का खर्च हो गया। इनाम की रकम बढ़ा कर एक लाख हो गई। चार दिन की खोज के बाद हाथी मिलता हैं पटाखों की दुकान पर जहां उसके टुकडे हो गए। जासूस सभी टुकड़ो को सुरक्षित भेजने का वादा करता हैं और दावत के आयोजन की भी बात करता हैं, क्योंकि टुकड़ो में ही सही हाथी को ढूंढा तो हैं। इनाम की रकम और ढूँढने का खर्च भी देने को कहता हैं। कुछ संवाद ऐसे भी रहे जिनमे बताया कि बड़ो से किस तरह धन उगाही की जाती हैं जैसे चोरो से सांठ-गाँठ कर इनाम की रकम बाँट लेना। समुद्र के किनारे से जासूस का तार भेजना जहां तार घर ही नही हैं। विविध भारती की इस प्रस्तुति के निर्देशक सत्येन्द्र शरद हैं।

गुरूवार को झलकी सुनी - बुरे फंसे बदली करवा कर। अपने कुछ कारणों से नौकरी का शिमला में तबादला करवा लेते हैं, यह सोच कर कि अब शान्ति से रह सकेगे। पर शिमला घूमने के लिए रिश्तेदार एक के बाद एक आने शुरू हो जाते हैं, घर भी छोटा पड़ जाता हैं और खर्च भी बढ़ जाते हैं। अच्छी यथार्थवादी रचना रही जिसे लिखा आरती शर्मा ने। गुरमीत रमण के निर्देशन में यह शिमला केंद्र की प्रस्तुति रही।

इस तरह इस सप्ताह हवामहल में विषयो को लेकर अच्छी विविधता रही। हास्य के साथ व्यंग्य भी रहा जिससे मनोरंजन भी हुआ। नारी के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूप गंभीरता से प्रस्तुत किए गए। इतिहास से विषय भी लिया और सामायिक विषय भी जैसे आज के दौर का क्रिकेट और विदेशी साहित्य की भी झलक मिली। सामाजिक समस्या भी बताई और दुनियादारी निभाने में आने वाली उलझनों का भी चित्रण हुआ। प्रस्तुति में भी विविधता नजर आई जैसे मूल रचनाओं का रेडियो नाट्य रूपांतर हुआ, झलकी, नाटिका सुनवाई गई।

3:30 बजे नाट्य तरंग कार्यक्रम में शनिवार को असद जैदी का लिखा नाटक सुना - वायलन वादक। अकेलेपन के द्वन्द पर आधारित इस नाटक में युवा वायलन वादक के पिता नही हैं। माँ ने उसका पालन किया, वह अध्यापिका हैं। अपने अकेलेपन की चर्चा वह बेटे से नही कर सकती। अपने सहयोगी बत्रा के साथ विवाह करना चाहती हैं जो खुद भी बरसों से अकेला हैं। वह अपने बेटे को बत्रा के नाटको में काम करने के लिए कहती हैं। रिहर्सल पर माँ का आना युवक को पसंद नही। माँ अपने विवाह की बात कहती हैं पर युवक को बत्रा के साथ उसका सम्बन्ध पसंद नही। माँ विवाह कर लेती हैं। बेटा नए घर में सहज नही हो पाता और पुराने घर में जाकर रहने लगता हैं। उदास और अकेलेपन में दो साल गुजार देता हैं। वायलन बजाता हैं और उसकी पड़ोसन लड़की हमेशा की तरह सुनती हैं। एक बार तनाव में दूर निकल जाता हैं और लगातार वायलन बजाता रहता हैं, लड़की भी वहां आकर सुनती हैं। समाचार बन जाता हैं कि वह विश्व रिकार्ड बनाने के लिए लगातार बजा रहा हैं। बारह- चौदह घंटे तक बजाता जाता हैं। समाचार सुन कर पुलिस की सहायता से उसको ढूंढ रही माँ वहा आती हैं। पता चलता हैं युवक ने आत्म हत्या कर ली। इस नाटक पर ख्यात हिन्दी लेखिका मन्नू भंडारी के चर्चित उपन्यास आपका बंटी की छाप नजर आई। नाटक का निर्देशन अच्छा लगा, खासकर युवक के मन में चल रही बातो की प्रस्तुति अच्छी की। जयपुर केंद्र की इस प्रस्तुति के निर्देशक हैं मदन शर्मा।

रविवार को सिद्धनाथ कुमार का लिखा नाटक प्रसारित किया गया - यात्रा का अंत। इसमे कुछ वर्ष पहले के मध्यमवर्गीय परिवार का यथार्थवादी चित्रण हैं, जब लड़कियां खुद अपने आप को समाज में बोझ समझने लगती थी। बेटी का विवाह न कर पाने से निराश पिता घर छोड़ देते हैं और रेल में उद्देश्यहीन यात्रा कर रहे। पति के कही चले जाने से दुखी माँ अपने बेटे से कहती हैं कि बच्चो को अच्छी शिक्षा दी, अच्छा पालन किया फिर भी पिता इतने हताश हैं। बेटा कहता हैं उसने कोई दुःख नही दिया, फिर भी ऐसा हुआ। बेटी को लगता हैं उसका विवाह न कर पाने से पिता ने घर छोड़ा हैं। माँ कहती हैं अगर वो वापस नही आए तो वह भी घर छोड़ देगी, बेटी कहती हैं माँ-पिता के जाने के बाद वह भी घर में नही रहेगी। बेटा अलग घर में रहने वाले अपने भाई से बात करता हैं। चर्चा होती हैं कि पिता को अपनी बेटी के ब्याह के लिए चालीस हजार रूपए चाहिए। दोनों बेटो में से कोई भी पूरे पैसे नही दे सकते। एक बेटा आधे दे सकता हैं पर दूसरा कुछ भी नही क्योंकि दोनों को अपने घर बनवाने हैं। स्थिति देख कर दोनों शादी की व्यवस्था के लिए तैयार हो जाते हैं पर तभी पता चलता हैं कि बहन ने आत्महत्या कर ली हैं और चिट्ठी में लिखा हैं कि वह एक बोझ हैं और भाइयो का उसके लिए त्याग करना उसे पसंद नही। रेल में पिता को अखबार में बेटे द्वारा छपवाए गए पत्र से यह समाचार मिलता हैं जिसमे घर आने का अनुरोध होता हैं। आज के दौर में यह सब ठीक नही लगता पर उस समय के अनुसार बहुत मार्मिक रहा यह नाटक। निर्देशक हैं एम एस बेग। रांची केंद्र की अच्छी प्रस्तुति रही। इस केंद्र की कम ही रचनाए सुनने को मिलती हैं।

इस तरह इस सप्ताह नाट्य तरंग के दोनों नाटको में नारी के दोनों रूप प्रस्तुत हुए - आधुनिक और पारंपरिक, और दोनों ही रूपों में नारी संघर्ष करती नजर आई।

सप्ताह के सभी नाटको से विविध भारती के साथ विभिन्न केन्द्रों की प्रतिभाओं का परिचय मिला। लेकिन खेद हैं कि एक दिन को छोड़ कर किसी भी दिन कलाकारों के नाम नही बताए गए। प्रतिभाओं को नाम से पहचानना अच्छा रहेगा।

Friday, December 10, 2010

श्री अमीन सायानी साहब को हर हप्ते सुनिये 'संगीत के सितारों की महेफ़ील'में तथा एकोर्डियन वादक श्री सुमित मित्राजी को फ़िर से याद

आदरणिय पाठक गण,

दो दिन पहेले श्री अमीन सायानी साहब से दूर भाषी बात-चीत के दौरान तथा कल उनके बेटे श्री राजील सायानीजी से मिले फ़ोन के आधार पर यहाँ बात यहाँ आप सभी को बताना चाहता हूँ, कि एक बार भारत के सिर्फ़ तीन शहरोमें रेड एफ एम 93.5 पर और बाद में करीब दो साल पहेले आकाशवाणी के उत्तर और मध्य भारतीय गीने-चूने प्रायमरी और विविध भारती केन्द्रो से प्रसारित संगीत के सितारों की महेफ़ील को अब निज़ी चेनल रेडियो सिटी 91.1 के Ahmedabad, Ahmednagar, Akola, Delhi, Hyderabad, Jaipur, Jalgaon, Lucknow, Mumbai, Nagpur, Nanded, Pune, Sangli, Solapur, Surat and Vadodra (Baroda). से प्रसारित किया जायेगा हर रविवार दो पहर 12 बजे और पुन: प्रसारण रात्री 9 बजे से एक घंटे तक । शहरो की पूरी उनकी तरफ़ से मिले मेईल के बाद वहाँ से कोपी पेस्ट करके यहाँ दी है । तो पूराने अलभ्य गायको गीतकारो और संगीत कारो (जिनमें कई आज हयात नहीं है) एक बार फ़िर सुनिये अमीन सायानी साहब के अनमोल संग्रहालय से और चूकीये मत । श्री अन्नपूर्णाजी की साप्ताहीकी का आज दिन है तो क्या वे दो दिन यानि रविवार सुबह तक ठहर सकती है ?दि.26, नवम्बर, 2010 की मेरी इसी विषय की पोस्ट जो श्री सागर भाईने इस ब्लोग के सम्पादक की हेसीयत से हंगामी रूप से हटा कर रख़ी थी, जो मैनें फ़िर से जारि तो की पर एक जाया टिपणी चिदाम्बर जी के अलावा किसी से नहीं मिली और मिले भी कैसे ? पिछले पन्ने पर कितने लोग जायेंगे ? तो उसे उस कलाकार को जनम दिनकी बधाई के रूपमें इतने दिनों के बाद प्रस्तूत करना तो कोई रूपसे सही तो कैसे लगेगा पर उस कलाकार के बारेमें थोड़ी सी पहचान देने के लिये और जो उन्हें और उनके भारतीय फिल्म संगीत में उनके योददान को जानते है उनको ताझा करने के लिये उनकी जानकारीयोँ में से बहोत कम नीचे इन संजोग के आधीन जरूरी सुधार के साथ प्रस्तूत कर रहा हूँ ।

दि. 26 नवम्बर के दिन मुम्बई स्थित भारतीय फिल्म संगीत में अपने एकोर्डियन वादन द्वारा योगदान प्रदान करने वाले
श्री सुमित मित्राजीने अपना जन्मदिन मनाया था । मैं ख़ुश-किस्मत हूँ कि 21 (शायद?), फरवरी, 2010 के दिन बिल्लीमोरा के मेरे मित्र और वहाँ की गुन्जन ललित कला संस्थाके कर्ताहर्ता श्री नरेश मिस्त्रीजी (खूद भी एकोर्डियन वादक) द्वारा आयोजित एक फिल्म वाद्य संगीत के शो में उनके द्वारा आमंत्रित हो कर मैं मेरे मित्र सुरत के जी. रझाक बेन्ड के श्री फारूक भाई और अन्य मित्र श्री शिरीष भाई के साथ गया था और उस कार्यक्रम में सुमितजी और सेक्सोफोन, क्लेरीनेट और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्री सुरेश यादव को बहूत आनंद से सुना और देख़ा था ।

उनकी फिल्मी धुनों की आज तक सिर्फ एक रेकोर्ड उस समय की पोलिडोर नाम धारी रेकोर्ड कम्पनी ने निकाला था जिसमें फिल्म बॉबी के चार गीत उन्होंने एकोर्डियन पर नहीं पर इलेक्ट्रिक ऑर्गन पर बजाई थी, जिसमें उनकी मेरे साथ हुई बात के अनुसार एकोर्डियन पर धीरज कुमार ने साथ दिया था । जब की मूल गानेमें सुमितजीने ही एकोर्डियन बजाया है और बाद में उस इ पी रेकोर्ड को स्व. अरूण पौडवाल की बजाई एकोर्डियन पर फिल्म मेरा नाम जोकर के तीन गानो के ई पी रेकोर्ड की धून के साथ मिली जुली एल पी रेकोर्ड प्रस्तुत हुई थी । उस समय मुझे उनके साथ तसवीर खिंचवाने का मौका मिला था जो फारूक भाई और सुमितजी के सौजन्य से नीचे प्रस्तुत की है ।


नीचे देख़ीये और सुनिये उसी कार्यक्रम में उनके द्वारा बजाई गई फिल्म झुक गया आसमान के शीर्षक गीत की एकोर्डियन पर धुन जिसमें सिन्थेसाईझर पर बडोदरा के श्री दिलीप रावल है और पर्क्यूसन (इस शब्दमें कोई गलती हो तो सुधार बताईए) पर मुम्बईमें फिल्म उद्योग में सालों काम करने वाले श्री नरेन्द्र वकील है ।



नीचे आज रेडियो श्रीलंका पर मेरे द्वारा भेजी गई सूचना के आधार पर सुबह 7.34 पर वहाँ की उद्दघोषिका श्रीमती ज्योति परमारजी ने प्रस्तुत किया हुआ बधाई संदेश सुनिये ।



रेडियोनामा के इस मंच से भी श्री सुमितजी को जनम दिन की ढेर सारी शुभ: कामनाएँ ।
(सामान्य रूप से मेरी यह नीति नहीं रही है कि अन्य पोस्ट लेख़क की पोस्ट पर तूर्त (तुरंत) ही मेरी पोस्ट लिख़ दूँ । पर जनम दिन के बारेमें पोस्ट उसी दिन प्रकाशित करनी होती है, इस लिये संजयजी और अन्नपूर्णाजी क्षमा करें और नये जूडने वाले पाठको से अनुरोध है कि वे पोस्ट भी पढे, हालाकि युनूसजी जैसे तो पढ चूके (चुके) है संजय जी की पोस्ट)
पियुष महेता ।
सुरत ।

Friday, December 3, 2010

शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 2-12-10

मेरी समझ में विविध भारती ही एक ऐसा चैनल हैं जो शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों को न सिर्फ गंभीरता से प्रस्तुत करती हैं बल्कि इसे शिक्षाप्रद बनाए रखती हैं। शास्त्रीय संगीत के आजकल दो कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं संगीत सरिता और राग-अनुराग एक शिक्षाप्रद कार्यक्रम हैं और दूसरे में विभिन्न फिल्मी गीतों के शास्त्रीय आधार का पता चलता हैं। लेकिन खेद हैं कि केवल शास्त्रीय गायन और वादन का आनंद देने वाला हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम अनुरंजनि बंद कर दिया गया हैं। अनुरोध हैं कि इस कार्यक्रम का प्रसारण फिर से शुरू कीजिए।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

सुबह 7:30 बजे दैनिक कार्यक्रम संगीत सरिता में श्रृंखला प्रसारित की गई जिसमे हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों का परिचय दिया गया। इसे प्रस्तुत कर रही हैं ख्यात गायिका विदुषी परवीन सुल्ताना। हर दिन एक राग के बारे में बताया गया। इस राग के वादी संवादी स्वर, आरोह अवरोह, राग का चलन और राग की पकड़ बताई गई और उस राग में निबद्ध रचनाएं सुनवाई गई।

शुक्रवार को राग भोपाली का परिचय दिया गया। इस राग में पंडित वसंत राव देशपाण्डेय का गायन सुनवाया गया। उसके बाद इस राग पर आधारित फरीदा खानम की गाई सूफी तबस्सुम की गजल सुनवाई गई।

शनिवार को राग मालकौंस पर चर्चा हुई। इस राग में निखिल बैनर्जी का सितार वादन सुनवाया गया, तबले पर संगत की थी कन्हाई दत्त ने और उसके बाद इस राग पर आधारित फिल्म स्वर्ण सुन्दरी का गीत सुनवाया गया - मुझे न बुला

रविवार को राग बागेश्री का परिचय मिला। इस राग में द्रुत ख्याल में बंदिश भी सुनवाई गई, स्वर जगदीश प्रसाद का रहा, तबले पर संगत की थी निजामुद्दीन खान ने। अंत में इस राग पर आधारित गायत्री महिमा फिल्म से रफी साहब का गाया यह गीत सुनवाया जो मैंने पहली ही बार सुना और जिसे सुन कर बहुत अच्छा लगा -

सांची हो लगन जो मन में, दुःख दर्द मिटे पल छिन में

सोमवार को राग रागेश्री के बारे बताया गया। इस राग में रोनू मजूमदार का बाँसुरी वादन सुनवाया गया जिसमे तबले पर संगत की थी सदानन नायनपल्ली ने। इस राग पर आधारित आज और कल फिल्म का गीत भी सुनवाया - मोहे छेड़ो न कान्हा बजरिया में

मंगलवार को राग मालवी का परिचय मिला। इस राग में उनका खुद का गायन सुनवाया गया।

बुधवार को सुबह के प्रसिद्ध राग भैरवी का परिचय दिया गया। पन्नालाल घोष का शुद्ध भैरवी में बाँसुरी वादन सुनवाया गया जिसके बाद संत ज्ञानेश्वर फिल्म का गीत सुनवाया - जोत से जोत जगाते चलो

सामान्य जानकारी में बताया गया कि गायकी के लिए सबसे पहले आवाज अच्छी होनी चाहिए फिर शास्त्रीय संगीत की शिक्षा होनी चाहिए और उस शिक्षा पर अमल भी किया जाना चाहिए। फिल्मी और गैर फिल्मी रचनाओं का चुनाव भी अच्छा रहा। यह श्रृंखला विविध भारती के संग्रहालय से चुन कर सुनवाई गई, इसका सम्पादन और संयोजन छाया (गांगुली) जी ने किया हैं। अच्छा चुनाव रहा संग्रहालय से। हमारा अनुरोध हैं कि आगे भी निश्चित अवधि से इसका प्रसारण कीजिए ताकि नए श्रोता ख़ास कर नई पीढी को रागों का परिचय मिलेगा।

गुरूवार से एक बढ़िया श्रृंखला शुरू हुई - सिने संगीत ताल के माध्यम से जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित उल्लास बापट। आप से बातचीत कर रही हैं निम्मी (मिश्रा) जी। बातचीत का आधार हैं, एक ही ताल किस-किस रूप में फिल्मी गानों में सुनाई देता हैं। जानकारी दी गई कि ताल एक ही हैं पर हर गाने में इसका ठेका अलग हैं। तीन ताल में बंदिश सुनाई इस जानकारी के साथ कि शिक्षा की शुरूवात ही इस ताल से होती हैं। इसके मूल स्वर भी बताए। इस ताल में तीन फिल्मी गीत चुन कर सुनवाए गए जिनमे पहले दो गीतों में इस ताल का पूरा स्वरूप हैं -

कर नही पाए जिया मोरे पिया

लोकप्रिय गीत - मेरे संग गा गुनगुना

तीसरा गीत ऐसा चुना जो सुगम संगीत के निकट हैं - छलक गई बूंदे मितवा, यह भी पता चला कि इस गीत में पहली बार पंडित उल्लास बापट जी ने संतूर बजाया था।

इस दिन भी गीतों का चुनाव अच्छा रहा, खासकर दो ऐसे गीत सुनवाए जो कम ही सुनवाए जाते हैं।

इस श्रृंखला को रूपाली रूपक जी प्रस्तुत कर रही हैं वीणा (राय सिंघानी) जी के सहयोग से, तकनीकी सहयोग प्रदीप (शिंदे) जी का हैं।

हर दिन कार्यक्रम के शुरू और अंत में संकेत धुन बजती रही जो बढ़िया और समुचित हैं।

गुरूवार को शाम बाद के प्रसारण में 7:45 पर प्रसारित हुआ साप्ताहिक कार्यक्रम राग-अनुराग। इस कार्यक्रम में विभिन्न रागों पर आधारित फिल्मी गीत सुनवाए गए।

शुरूवात की गुमराह फिल्म के गीत से जिसका दूसरा संस्करण सुनवाया गया जो आमतौर पर नही सुनवाया जाता - चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों, जिसके लिए राग का नाम मैंने सुना - नायकी कानडा

दूसरा युगल गीत सुनवाया गया गाइड फिल्म से - गाता रहे मेरा दिल जिसके लिए राग का नाम ठीक से सुनाई नही दिया।

समापन किया राग किरवानी में जुआरी फिल्म के गीत से - न जाने क्या करेगी तेरी झुकी झुकी नजर

इस तरह इस बार गीतों के चुनाव में विविधता नजर आई पर रागों की स्थिति स्पष्ट नही हो पाई।

Friday, November 26, 2010

बोलिवूड म्यूझीक के एकोर्डियन और सिंथेसाईझर वादक श्री सुमित मित्रा को जनम दिन की बधाईयाँ ।

दि.26, नवम्बर, 2010 की मेरी इसी विषय की पोस्ट जो श्री सागर भाईने इस ब्लोग के सम्पादक की हेसीयत से हंगामी रूप से हटा कर रख़ी थी, उसे उस कलाकार को जनम दिनकी बधाई के रूपमें इतने दिनों के बाद प्रस्तूत करना तो कोई रूपसे सही तो कैसे लगेगा पर उस कलाकार के बारेमें थोड़ी सी पहचान देने के लिये और जो जन्हें और उनके भारतीय फिल्म संगीत में उनके योददान को जानते है उनको ताझा करने के लिये उनकी जानकारीयोँ में से बहोत कम नीचे इन संजोग के आधीन जरूरी सुधार के साथ प्रस्तूत कर रहा हूँ ।

दि. 26 नवम्बर के दिन मुम्बई स्थित भारतीय फिल्म संगीत में अपने एकोर्डियन वादन द्वारा योगदान प्रदान करने वाले
श्री सुमित मित्राजीने अपना जन्मदिन मनाया था । मैं ख़ुश-किस्मत हूँ कि 21 (शायद?), फरवरी, 2010 के दिन बिल्लीमोरा के मेरे मित्र और वहाँ की गुन्जन ललित कला संस्थाके कर्ताहर्ता श्री नरेश मिस्त्रीजी (खूद भी एकोर्डियन वादक) द्वारा आयोजित एक फिल्म वाद्य संगीत के शो में उनके द्वारा आमंत्रित हो कर मैं मेरे मित्र सुरत के जी. रझाक बेन्ड के श्री फारूक भाई और अन्य मित्र श्री शिरीष भाई के साथ गया था और उस कार्यक्रम में सुमितजी और सेक्सोफोन, क्लेरीनेट और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्री सुरेश यादव को बहूत आनंद से सुना और देख़ा था ।

उनकी फिल्मी धुनों की आज तक सिर्फ एक रेकोर्ड उस समय की पोलिडोर नाम धारी रेकोर्ड कम्पनी ने निकाला था जिसमें फिल्म बॉबी के चार गीत उन्होंने एकोर्डियन पर नहीं पर इलेक्ट्रिक ऑर्गन पर बजाई थी, जिसमें उनकी मेरे साथ हुई बात के अनुसार एकोर्डियन पर धीरज कुमार ने साथ दिया था । जब की मूल गानेमें सुमितजीने ही एकोर्डियन बजाया है और बाद में उस इ पी रेकोर्ड को स्व. अरूण पौडवाल की बजाई एकोर्डियन पर फिल्म मेरा नाम जोकर के तीन गानो के ई पी रेकोर्ड की धून के साथ मिली जुली एल पी रेकोर्ड प्रस्तुत हुई थी । उस समय मुझे उनके साथ तसवीर खिंचवाने का मौका मिला था जो फारूक भाई और सुमितजी के सौजन्य से नीचे प्रस्तुत की है ।


नीचे देख़ीये और सुनिये उसी कार्यक्रम में उनके द्वारा बजाई गई फिल्म झुक गया आसमान के शीर्षक गीत की एकोर्डियन पर धुन जिसमें सिन्थेसाईझर पर बडोदरा के श्री दिलीप रावल है और पर्क्यूसन (इस शब्दमें कोई गलती हो तो सुधार बताईए) पर मुम्बईमें फिल्म उद्योग में सालों काम करने वाले श्री नरेन्द्र वकील है ।



नीचे आज रेडियो श्रीलंका पर मेरे द्वारा भेजी गई सूचना के आधार पर सुबह 7.34 पर वहाँ की उद्दघोषिका श्रीमती ज्योति परमारजी ने प्रस्तुत किया हुआ बधाई संदेश सुनिये ।



रेडियोनामा के इस मंच से भी श्री सुमितजी को जनम दिन की ढेर सारी शुभ: कामनाएँ ।
(सामान्य रूप से मेरी यह नीति नहीं रही है कि अन्य पोस्ट लेख़क की पोस्ट पर तूर्त (तुरंत) ही मेरी पोस्ट लिख़ दूँ । पर जनम दिन के बारेमें पोस्ट उसी दिन प्रकाशित करनी होती है, इस लिये संजयजी और अन्नपूर्णाजी क्षमा करें और नये जूडने वाले पाठको से अनुरोध है कि वे पोस्ट भी पढे, हालाकि युनूसजी जैसे तो पढ चूके (चुके) है संजय जी की पोस्ट)
पियुष महेता ।
सुरत ।

Thursday, November 25, 2010

ये ख़ामोशी श्रोताओं का सरासर अपमान है.





दो दिन सूने सूने निकल गये. ऐसा संगीत मैं सुनता नहीं जो सिवा धक-धक के कुछ और न बजाता हो.
आकाशवाणी के कर्मचारियों ने अपनी मांगों को मनवाने के लिये स्टुडियोज़ और उनमें चलने वाली मशीन को ख़ामोश कर दिया. उनकी ज़रूरतों और मांगों को लेकर मेरे मन में कोई विरोध नहीं लेकिन जो प्रसारणकर्मी हरदम अपने ट्रांसमिशन्स में श्रोताओं को अपनी ताक़त बताते हों वह दावा इन दो दिनों में निहायत असत्य और छद्म भरा महसूस हुआ. मेरे दफ़्तर और घर में कुछ जमा चार रेडियो सेट्स हैं और सुबह काम शुरू होने से लेकर शाम तक विविध भारती या क्षेत्रीय प्रसारण जारी रहता है. रेडियो के चलते कभी घड़ी पर नज़र डालने की ज़रूरत नहीं पड़ती और काम कभी बोझिल प्रतीत नहीं होता.आकाशवाणी दुनिया जहान की हलचलों से हमें बाख़बर भी करता जाता है...समाचार सुना देता है...स्कोर बता देता है. दु:ख तो इस बात का है कि इसी हड़ताल के दौरान बिहार चुनाव के परिणाम भी आने वाले थे और इसी दौरान आकाशवाणी ने गूँगा बनकर अपने सबसे बड़े श्रोता नेटवर्क को निराश ही नहीं किया गँवाया भी. काम निपटाते हुए रेडियो एक अच्छा साथी बन जुगलबंदी करता रहता है. टीवी पर भी परिणाम देखे जा सकते थे लेकिन इसके लिये बस उसी पर नज़र गड़ाए रखना ज़रूरी होता.


बहरहाल जिनको हड़ताल करना थी उन्होंने की. उनके अपने तक़ाज़े हैं और अपना सोच.लेकिन यह बात बार बार मन में ख़लिश पैदा करती रही कि देश की सर्वोच्च और विश्वसनीय प्रसारण सेवा ने एकदम काम ठप्प कर दिया.अपनी बात को मनवाने का कोई न कोई गाँधीवादी तरीक़ा भी हो सकता था. जैसे विविध भारती के उदघोषक तय सकते थे कि हम फ़रमाइशें नहीं पढ़ेंगे या विज्ञापनों का प्रसारण शेड्यूल क्रमानुसार नहीं चलने देंगे.. दर-असल बीते बीस सालों में आकाशवाणी जैसी शीर्षस्थ संस्था निहायत रस्मी तौर पर सक्रिय है. वहाँ काम करने वाले लोगों में अब जज़्बे की निहायत कमी आ गई है. प्रायवेट रेडियो चैनल्स पर मौजूद ग्लैमर भी आकाशवाणी में काम करने वाले कर्मियों की आँख की किरकिरी बनता जा रहा है. केन्द्रीय सरकार के मातहत काम करने वाले आकाशवाणी केन्द्रों के पास बड़े बड़े भूखण्ड और भवन हैं; जहाँ मानव संसाधन की कमी का सवाल ही नहीं उठता.इसके मुक़ाबिल एफ़.एम चैनल्स हज़ार – दो हज़ार वर्गफ़ीट के दफ़्तर में दस-बारह लोगों की टीम लेकर शानदार कार्यक्रम रच देते हैं और लाखों के विज्ञापन कबाड़ कर मोटा मुनाफ़ा भी अपनी कम्पनी को देते हैं.प्रसारण,भाषा लेखन,तकनीक और मार्केटिंग को लेकर एफ़.एम.चैनल्स के पास अपनी छोटी सी लेकिन जुझारू टीम होती है जबकि आकाशवाणी का ये आलम है कि यदि कोई रचनाशीलकर्मी एक अच्छा कार्यक्रम बनाना चाहता है तो उसे कहा जाता है जाइये आप ही शहर में घूम कर प्रायोजक ढूंढ़ लाइये.अब बताइये ऐसी कार्य-संस्कृति में कोई कैसे काम कर सकता है या गुणवत्तापरक कार्यक्रम रच सकता है. ये सारी बातें अपनी जगह एकदम ठीक हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि प्रसारण के शिखर संस्थान के कर्मचारियों का ये अड़ियल रूख़ जायज़ नहीं.

इस बार की हड़ताल प्रसार भारती और सरकार के हुक़्मरानों के लिये भी ख़तरे की घंटी है. उन्हें समझना होगा कि इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिये उनके पास क्या वैकल्पित इंतज़ाम हैं. आकाशवाणी की हड़ताल ने श्रोताओं के स्नेह को ज़मीन पर ला पटका है.स्व-हित और सुख के इस अभियान में बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय का नारा थोड़ा बेसुरा लग रहा है.

सदविचारों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 25-11-10 और मेरी 100 वीं साप्ताहिकी

आज मैं अपनी 100 वीं साप्ताहिकी लिख रही हूँ। यह साप्ताहिकी का तीसरा साल हैं। तीनो बार अलग-अलग तरह से साप्ताहिकी प्रस्तुत करने का मैंने प्रयास किया हैं। पहले साल पूरे कार्यक्रमों पर लिखने की कोशिश की थी लेकिन सभी कार्यक्रमों पर ठीक से नही लिख पाती थी क्योंकि पोस्ट बहुत लम्बी होती जाती थी। दूसरे साल एक-एक समय के प्रसारण पर लिखा। इस तीसरे साल श्रेणियों पर आधारित विभिन्न कार्यक्रमों पर लिखने की कोशिश कर रही हूँ। विविध भारती ने आधिकारिक तौर पर कार्यक्रमों की कौन सी श्रेणियाँ बनाई हैं, यह तो मैं नही जानती पर श्रोता की हैसियत से मैंने विभिन्न 10 श्रेणियों में कार्यक्रमों को रखा हैं और उसी के अनुसार लिख रही हूँ।

मुझे महत्वपूर्ण श्रेणी लगती हैं सदविचारों के कार्यक्रमों की जिसमे दो कार्यक्रम हैं चिंतन और त्रिवेणी दोनों ही दैनिक कार्यक्रम हैं और सुबह की सभा में प्रसारित होते हैं।

आइए, इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

इस बार की साप्ताहिकी पांच ही दिनों की हैं क्योंकि अंतिम दो दिन विविध भारती खामोश रही। इस सप्ताह एक विशेष अवसर रहा - गुरू नानक जयंति पर दोनों ही कार्यक्रम इससे अछूते रहे।

6:05 पर सुनाया गया चिंतन। शुक्रवार को आचार्य चिरानंदन स्वामी का कथन बताया - संतोष धन के आगे सभी धन फीके हैं। इससे क्लेश नही होता, आनंद होता हैं।

शनिवार को भगवद गीता का सूत्र वाक्य अर्थ सहित बताया गया कि कर्म करो फल की इच्छा मत करो।

रविवार को वेद व्यास का कथन बताया गया - जो निर्बल हैं वो सर्व गुण संपन्न हो कर भी क्या करेगा, पराक्रम में सभी गुणीभूत होते हैं। अच्छा होता इस दिन गुरू नानक के सन्देश से कोई बात बताते।

सोमवार को महात्मा विधुर का कथन बताया गया - कर्म की सफलता के लिए धर्म की स्थिरता जरूरी हैं। युवावस्था में वो काम करे जिससे वृद्धावस्था में जीवन सुखी रहे। जीवन में वो काम करे जिससे जीवनपर्यंत सुखी रह सके।

मंगलवार को एक लोकोक्ति बताई गई - पराई बुद्धि से राजा होने से बेहतर हैं अपनी बुद्धि से पतित होना।

एक बात की कमी महसूस हुई। देश भक्ति की भावना से प्रेरित कोई कथन नही बताया गया। स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा अपने अनुभव के आधार कहे गए कई ऐसे कथन हैं जो हममे देश प्रेम जगाते हैं।

7:45 को त्रिवेणी कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। यह कार्यक्रम प्रायोजित होने से शुरू और अंत में प्रायोजक के विज्ञापन प्रसारित हुए।

शुक्रवार की कड़ी उच्च स्तरीय रही। उच्च विचार, साहित्यिक भाषा और स्तरीय गीतों का चुनाव जिसमे संगीत से अधिक बोलो, भावों का महत्त्व हैं। कहा गया कि जिस भौतिक जगत का हम आनंद ले रहे हैं वह सुख महापुरूषों ने जगत में पहुंचाया हैं। जिनकी मानसिकता दूषित हैं उन्हें परनिंदा में आनंद मिलता हैं। वास्तविक आनंद मन में छिपा हैं। यहाँ कबीर का दोहा भी सुनाया - कर का मनका डार दे मन का मनका फेर

प्रदीप का गीत सुनवाया - आया समय बड़ा बेढंगा

यह गीत मैंने शायद पहली बार सुना - सफल वही जीवन हैं, औरों के लिए जो अर्पण हैं
समापन किया विजेता के गीत से - मन आनंद आनंद छायो

शनिवार को बताया कि हम जगत में आते हैं और कर्म कर चले जाते हैं। चलना ही नियति हैं - चलेवेति चलेवेति। जीवन में जिन पडावो पर हम रूकते हैं, स्थान बदलते हैं वह प्रगति हुई। गीत भी उचित चुने गए - मुसाफिर हूँ यारों

चल मुसाफिर चल

बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा

अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - परिचय, गंगा की सौगंध और रेलवे प्लेट फ़ार्म। इस तरह पुराने और बहुत पुराने गीतों से सजी इस त्रिवेणी में जगत में जीवन की स्थिति बताई गई।

रविवार को बताया गया कि समाज में अक्सर वादे निभाए नही जाते हैं, जिससे विश्वास टूटता हैं। चाहे कोई पेशा हो या प्यार, जब भी वादा करो इसे गंभीरता से लो और जिम्मेदारी समझ कर निभाओ जिससे विश्वास बना रहता हैं। चर्चा के दौरान ये गीत सुनवाए - ये वादा करो चाँद के सामने

ये नया गीत भी सुना - जो वादा हैं ये तुझसे मेरे सनम

अंत में उन फिल्मो के नाम भी बताए जिनके गीत सुनवाए गए - दिल भी तेरा हम भी तेरे, 1920 और अंत में जिस फिल्म का नाम बताया वह ठीक से सुनाई नही दिया। अच्छी थी प्रस्तुति पर इस दिन के लिए उचित नही लगी। इस दिन गुरू नानक जयंति जिसे प्रकाशोत्सव भी कहते हैं, को ध्यान में रख कर विषय उठाते तो अच्छा लगता।

सोमवार को बताया कि जीवन का रास्ता आसान नही हैं। कभी काँटों का रास्ता भी मिलता हैं, मंजिल दूर दिखाई देती हैं। कभी रास्ते में कोई हमराही मिल जाता हैं पर कभी अकेले ही मंजिल तक पहुँचना हैं। चर्चा के दौरान तीन गीत सुनवाए गए - इम्तिहान फिल्म से रूक जाना नही तू कही हार के

राही तू रूक मत जाना और अंत में सुनवाया - चल अकेला

मंगलवार को अच्छे विचार रहे, बताया कि जीवन में तनाव, उलझन आते ही रहते हैं। हमें इनसे घबराने के बजाय संघर्ष करना चाहिए। चर्चा करने से गम कम नही होते पर दूसरो के लिए भी उलझन हो जाती हैं। बेहतर यही हैं कि जीवन में हर आने वाले पल का स्वागत करो, वो जैसा भी हो, संभल कर चलो। तीनो गीत बहुत उपयुक्त चुन कर सुनवाए गए - गम छुपाते रहो, मुस्कुराते रहो

यूंही गाते रहो मुस्कुराते रहो, आओ रे

तुम आज मेरे संग हंस लो तुम आज मेरे संग गा लो

इस तरह भारी-भरकम विषय (मन का आनंद) से लेकर हल्के विषय (वादा निभाना) तक से सजी त्रिवेणी से दिन का शुभारम्भ हुआ और शेष दो दिन विविध भारती की खामोशी खलती रही।

दोनों ही कार्यक्रमों के लिए आरम्भ और अंत में संकेत धुन सुनवाई गई।

Tuesday, November 23, 2010

प्रसार भारती की आकाशवाणी और दूर दर्शन सेवा करीब करीब सम्पूर्ण ठप !

आज प्रसार भारती की रेडियो सेवा आकाशवाणी के सभी चेनल्स सुबह शुरू तो हुई पर बादमें पूरानी फिल्मो के गीतो और संगीत सरीता जैसे क्लासीक कार्यक्रम सुनने वाले काफ़ी श्रोताओनें चित्रलोक के समाप्ती के नियत समय पश्चाद्द किसी समय रेडियो ओन करने गये तो रेडियो सिग्नल्स गायब थे । रेडियो यानि सिर्फ एफ एम, इस प्रकार का अर्थ निकालने वाली नयी पिठी के मोबाईल धारक श्रोता लोगोने इधर उधर फ्रिक्वंसीझ ट्यून करके जन लिया की सिर्फ़ आकाशवाणी ही ठप हुई है और निजी चेनल्स अपना प्रसारण जारि रख़े हुए है । पर जो श्रोता निजी चेनल्स के करीब एक ही प्रकार के प्रसारण से उब गये है और विविध भारती के करीब हर घंटे पर बदले स्वरूप के कार्यक्रम को पसंद करते है वे निराश हो गये और इनमें से कुछ श्रोताओनें मूझे भी फोन करके पूछा की विविध भारती क्यों रूक गई । पूराने रेडियो श्रोता लोगों में से जिन के पास उपग्रहीय रिसीवर्स है जो डीटीएच (बिना शुल्क सेवा) या अन्य निज़ी उपग्रह प्रसारण नेटवर्क के पेय चेनल्स के साथ प्राप्त करते है वे रेडियो के बारेमें निराश हुए । पर विविध भारती की लधू तरंग कम्प संख्या, 9.87 मेगा हट्झ जो मुम्बई से विविघ भारती के उपग्रह प्रसारण को बेन्गलोर में प्राप्त करके भूमीगत प्रसारित कर रही है, वहाँ से बेन्गलोर के किसी स्थानिय स्टूडियो से बजने वाला दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत सुबह तो सुननेमें आया था, फिर कौन कोशिश करें ! दूर दर्शन किसी तरह पूराने कार्यक्रमो को दिख़ा रहा था । और वह भी नेशनल हिन्दी, गुजराती, डी डी भारती, डी डी इन्डीया, सभी सिर्फ़ सेटेलाईट द्वारा पर स्थानिय रिले-केन्द्रो तो बिलकूल ही बंध रहे । आज हमें भी एक बात समझनी चाहीए कि सरकार का यही उपक्रम है कि सभी कोर्पोरेसन्स को डिस-इनवेस्मेन्ट्स द्वारा निज़ी हाथोमें थमा देना । प्रसार भारती अटका है तो अभी तक एक ही कारण है सरकार चलाने वाली पार्टी का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रचार । पर बड़े उद्योग-गृहो कि इतनी पहोंच बढती दिख़ रही है कि प्रसार भारती का भी निज़ी-करण करवा सके तो आश्चर्य की बात नहीं होगी । और आज के निज़ी रेडियो-चेनल्स के प्रसारन को दुनते हुए अगर ऐसा हुआ तो सुनने वालों के क्या हालात होगे वह कल्पना भी डरावनी लगती है । और शायद आज कार्यरत कर्मचारी, अधिकारी भी शायद अपने आपको पेन्सन या अतिरीक्तता जैसी बातों को ले कर अपने आप को असुरक्षित महेसूस करेंगे । सरकारों का एक और उपक्रम आजकल चल रहा है, कि जब हडताल जोर पर होती है, तब बातचीत के लिये बूलावा कर्मचारी संगठनो को भेज़ कर आम जनता की सहानूभूती अपनी और करने की कोशिश करती है पर वह सिर्फ कर्मचारी आन्दोलनो की लडाई के टेम्पो को ठंडा कर देने की कोशीश ही होती है । सरकारओ को अपनी ही बढाई हुई महेंगाई सिर्फ कुछ भी नहीं करके तगडे वेतन पाने वाले सांसदो के सम्बंधमें ही नज़रमें आती है । जब की उसी के हिसाबसे थोडे कम बढे कर्मचारीयों वेतनो ज़्यादा लगते है तो, भरती, बढती पर अंकुश लगा कर रोजाना कर्मचारीयों द्वारा या कोंट्राक्ट द्वारा काम निकलवाने की निती बनायी जाती है । नीचे आकाशवाणी सुरत के सभी वर्ग के कर्मचारीयों द्वारा सामुहीक रूपसे चलाये जाने वाल्रे काम रोको आंदोलन अंतर्गत किये गये दिख़ावो की दो तसवीरें देख़ीये ।



पियुष महेता ।
सुरत-395001.

आएगी जरूर चिट्ठी मेरे नाम की

1974 के आसपास एक फिल्म रिलीज हुई थी - दुल्हन

इसमे नायक और नायिका हैं जितेन्द्र और हेमा मालिनी। यह शायद गुलज़ार की फिल्म हैं। बहुत लोकप्रिय हुई थी यह फिल्म और उसका यह गीत जिसे लताजी ने गाया हैं और हेमा मालिनी पर फिल्माया गया हैं। पहले रेडियो से बहुत सुनते थे पर अब लम्बे समय से नही सुना। जो बोल याद आ रहे हैं वो इस तरह हैं -

आएगी जरूर चिट्ठी मेरे नाम की सब देखना

हाल मेरे दिल का ओ लोगो तब देखना

आएगी .....

फिर परदेसिया छाने लगा हैं, पलको पे गम का बादल छाने लगा हैं

बरस पड़ेगे आंसू सब देखना आएगी....

करो ऐतेबार मेरा बात नही झूठी टूटा हैं दिल मेरा आस नही टूटी

मानेगा मेरा रूठा रब देखना आएगी....

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, November 19, 2010

जब विविध भारती कहे अपने मन की... कर्म की... साप्ताहिकी 18-11-10

विविध भारती रोज श्रोताओं से अपने मन की बात कहती हैं और सप्ताह में एक बार चर्चा करती हैं अपनी उस कार्य प्रणाली की जिससे वो बनी हैं - देश की सुरीली धड़कन। हाँ जी, हम बात कर रहे हैं उन दो कार्यक्रमों की जिसमे श्रोताओं से रूबरू हैं विविध भारती - छाया गीत और पत्रावली

छाया गीत आधे घंटे का दैनिक कार्यक्रम हैं जिसका प्रसारण रात में 10 से 10:30 बजे तक होता हैं। यह पूरी तरह से उदघोषको का अपना कार्यक्रम हैं। इसमे उदघोषक अपनी मर्जी से गीत सुनवाते हैं। कोरे गीत ही नही सुनवाते बल्कि एक भाव लेकर चलते हैं। उस भाव पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए उस भाव पर आधारित गीत सुनवाते हैं।

बहुत पुराना कार्यक्रम हैं यह। बरसों से सुनते आ रहे हैं। कई उदघोषकों के छाया गीत सुने - बृज भूषण साहनी, राम सिंह पवार, एम एल गौड़, कब्बन मिर्जा, विजय चौधरी, अचला नागर, मोना ठाकुर, अनुराधा शर्मा और भी कई नाम हैं जिनकी आवाजे आज सुनाई नही देती।

विविध भारती में उदघोषक बदलते हैं, आवाज बदलती हैं पर कार्यक्रम वही हैं। एक ही रूप में बरसों से सुनने से आज लगता हैं छाया गीत में ठहराव आ गया। आखिर कितने भाव हैं... प्यार, तकरार, उदासी, रूठना-मनाना, यादे, मौसम, ख्याल, सपना... संख्या तो सौवों में भी नही हैं और कार्यक्रम चल रहा हैं बरसों से।

आखिर एक भाव पर कहते हुए आप कितने समानार्थी शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं, शब्द कोष भी चुक जाता हैं। यादो पर मैंने कई बाते सुनी पर भाव वही रहे - किसी न किसी रूप में याद बनी रहती हैं। यही हाल सभी भावो का हैं। कई बार घूम-फिर कर वाक्य भी वही बन जाता हैं। बड़ी कोफ़्त होती हैं कि एक अच्छा कार्यक्रम दिन पर दिन ऊबाऊ होता जा रहा हैं।
ऐसा लगता हैं यह कार्यक्रम देकर उदघोषक अपनी ड्यूटी ही पूरी कर रहे हैं। कहीं गहरा भावनात्मक लगाव नजर नही आ रहा। एक तो भाव के धरातल पर कार्यक्रम चुकता जा रहा हैं ऐसे में उदघोषक कोई नया प्रयोग भी नही कर रहे हैं। रोज वही.. एक भाव लेते हैं उस पर एक आलेख लिख कर बोल देते हैं और उचित गीत सुनवा देते हैं, हाँ.. आलेख प्रस्तुति जरूर बढ़िया होती हैं। कभी-कभी काव्यात्मक अंदाज बहुत अच्छा लगता हैं।

पहले के उदघोषक गीतों के चुनाव में नए-नए प्रयोग करते थे। जैसे युगल गीत सुनवाते थे पर आवाजे सिर्फ गायकों या गायिकाओं की होती थी। इनमे हर गीत का भाव अलग होता था पर हर गीत, भाव अभिव्यक्त करते हुए ही सुनवाया जाता था। इससे विभिन्न भावो के होते हुए भी कार्यक्रम रोचक बन जाता था।

मुझे याद आ रहे हैं कुछ प्रयोग - ऐसे गीत सुनवाए गए जिनमे ढोलक की थाप हैं, ऐसे गीत जिनकी फिल्मो के नाम अंग्रेजी में हैं जैसे नाईट इन लन्दन, विविध त्यौहारों के गीत - होली, ईद, दीपावली, क्रिसमस, ऐसे गीत जिसके दो संस्करण हैं, शीर्षक गीत वगैरह...

ये थी उदघोषको के मन की॥ अब चर्चा करते हैं उस कार्यक्रम की जहां पत्रों के माध्यम से श्रोताओं से रूबरू होती हैं विविध भारती। 15 मिनट का साप्ताहिक कार्यक्रम हैं पत्रावली। देश के अलग-अलग भागो से श्रोता पत्र भेजते हैं। अधिकाँश पत्र मुझे उथले ही लगते हैं। अक्सर श्रोता लिखते हैं कि उदघोषको की आवाजे अच्छी हैं तो मुझे हँसी आती हैं, अरे भई... आवाज अच्छी हैं तभी तो उदघोषक हैं। कुछ फरमाइशे भी होती हैं, कुछ कार्यक्रम पसंद हैं कुछ नापसंद पर गहराई में नही बताते कि क्यों पसंद हैं क्यों नापसंद।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

रात 10 बजे का समय छाया गीत का होता है। शुक्रवार को प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने। रूप सौन्दर्य से शुरूवात की, चौदहवी का चाँद फिल्म का शीर्षक गीत सुनवाया इसके बाद यह गीत सुनना अच्छा लगा जो कम ही सुनवाया जाता हैं -

अपनी आँखों में बसा कर इक़रार करूं
जी में आता हैं के जी भर के तुझे प्यार करूं

फिर प्यार की चर्चा हुई। तीसरी मंजिल फिल्म का गीत सुना। रात के समय की प्रकृति का चित्रण भी हुआ। अनूठे कोमल भावो की प्रस्तुति हुई। साहित्यिक भाषा थी। सब अच्छा था पर सब पुराना लगा, नयापन नही था। एक बात अखर गई सभी गीत रफी साहब के थे और सभी एकल (सोलो)।

शनिवार को प्रस्तुत किया अशोक जी ने। रात की खुशबू, उसका आना पर पास हो कर भी न होने की शिकायत, रूठना-मनाना अधिक होने से रिश्तो में दरार का भय, वफ़ा होनी चाहिए आदि उम्दा भावो पर सुनवाए गीत - कभी रात दिन हम दूर थे
आ जाओ आ भी जाओ

उर्दू के अल्फाजो से सजी चिरपरिचित शैली रही। गानों में भी विविधता रही, गायक गायिकाओं के एकल, युगल गीत। अनपढ़ फिल्म का गीत भी शामिल था और कम सुनवाया जाने वाला यह गीत - सागर नही हैं तो क्या तेरी आँख का नशा तो हैं
इन सब के बावजूद सब पुरानापन रहा, नया कुछ नही लगा।

रविवार को प्रस्तुत किया युनूस (खान) जी ने। इस दिन बाल दिवस था, बेहतर होता बचपन का माहौल रखते पर प्यार का, उदासी का माहौल रखा। पहले दूरी बनाए रखने की बाते हुई और शुरूवात की इस गीत से - सजन संग काहे नेहा लगाए
बाद में साथ की चर्चा हुई - तुम और हम भूल के गम गाए प्यार भरी सरगम

गीत पुराने ही सुनवाए गए। फरार, फैशन फिल्मो के गीत। मैजिक रिंग फिल्म का सुबीर सेन गाया यह गीत भी सुनवाया जिसे मैंने शायद पहली ही बार सुना, अच्छा लगा - बुझ गया दिल का दिया तो चांदनी को क्या कहे

युनूस जी समापन हमेशा बढ़िया करते हैं - गीतों की झलकियों के साथ विवरण बताते हैं।

सोमवार को प्रस्तुत किया अमरकान्त जी ने। हमेशा की तरह संक्षिप्त आलेख रहा और बढ़िया रोमांटिक गीत सुनवाए। चर्चा की कि प्यार में जिन्दगी की नई शुरूवात होती हैं। प्यार के शुरूवात और इक़रार की चर्चा की इन गीतों से - आराधना से कोरा कागज़ था ये मन मेरा, रामपुर का लक्ष्मण से गुम हैं किसी के प्यार में, दीवार और पड़ोसन फिल्म से कहना हैं आज तुमसे ये पहली बार गीत भी शामिल था। अच्छा तो लगा पर नया नही लगा।

मंगलवार को प्रस्तुत किया निम्मी (मिश्रा) जी ने। सभी पुराने गीत थे। अधिकतर गीत जाने-पहचाने थे जैसे - खुदाया काश मैं दीवाना होता

ऐसा गीत भी शामिल था जो बहुत ही कम सुनवाया जाता हैं। इस गीत को भी बहुत दिन बाद सुन कर अच्छा लगा -

किसी की याद में दिल को हैं भुलाए हुए
ज़माना गुजरा हैं अपना ख्याल आए हुए

फिर भी कार्यक्रम में कोई नयापन नही थी।

बुधवार को प्रस्तुत किया राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। मोहब्बत के नगमे सुनवाए और चर्चा की। अधिकतर जाने-पहचाने गीत सुनवाए जैसे - झलके तेरी आँखों से

सुन ऐ बहार ऐ हुस्न मुझे तुमसे प्यार हैं

यह एक गीत बहुत ही कम सुनवाया जाने वाला गीत भी शामिल था - गुलशन की करने सैर खुदाया खैर

कार्यक्रम इस बार भी अच्छा था पर नया कुछ नही था। सबसे बड़ी अखरने वाली बात यह रही कि इस दिन बकरीद थी, अच्छा होता कुर्बानी, त्याग जैसी भावना पर चर्चा होती, क़व्वाली, गजले सुनवाई जाती।

गुरूवार को रेणु (बंसल) जी ने प्रस्तुत किया। रेणु जी मोहब्बत की चर्चा करती रही और गीत सुनवाती रही और साथ ही खेलो की चर्चा भी होती रही यानि तकनीकी गड़बड़ी से दो केंद्र मिल गए। हालांकि छाया गीत की आवाज तेज थी फिर भी खेलो के बारे में स्पष्ट सुनाई दे रहा था। लगभग अंतराल तक यही हाल रहा। उसके बाद सिर्फ छाया गीत ही सुना लेकिन बहुत धीमी आवाज में। गीतों का चुनाव बढ़िया रहा, गीत गाया पत्थरो से तेरे ख्यालो में हम, मैंने रखा हैं मोहब्बत अपने अफसाने का नाम गीत भी सुना और यह प्यारा सा गीत भी सुनवाया -

नील गगन की छाँव में दिन रैन गले से मिलते हैं
दिल पंछी बन उड़ जाता हैं हम खोए खोए रहते हैं

सोमवार को रात 7:45 पर पत्रावली में श्रोताओं के पत्र पढ़े रेणु (बंसल) जी ने और उत्तर दिए कमल (शर्मा) जी ने। हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान से गाँव, जिलों, शहरो से पत्र आए। लगभग सभी कार्यक्रमों की तारीफ़ थी। एक छात्र श्रोता की शिकायत थी कि नए गाने नही सुनवाए जाते जिसके उत्तर में गानों के चयन की जानकारी दी कि एकदम नए गाने तो नही सुनवाए जा सकते पर बाजार में आते ही गीत ले लिए जाते हैं और लेते समय इस बात का ध्यान रखा जाता हैं कि विविध भारती पारिवारिक चैनल हैं। क्षेत्रीय कार्यक्रमों के कारण केन्द्रीय सेवा के सभी कार्यक्रम नही सुने जा सकने की शिकायत पर बताया कि क्षेत्रीय केन्द्रों के लिए क्षेत्रीय भाषा के कार्यक्रमों की प्राथमिकता हैं, इसीलिए पूरा प्रसारण लघु तरंग (शॉर्ट वेव) पर सुनने की सलाह दी। हवामहल की कुछ झलकियों और कुछ फिल्मी कलाकारों से बातचीत की भी फरमाइश की गई। अंत में एकाध मिनट के लिए प्रसारण नही सुन पाए फिर संगीत सुना फिर अंतिम पत्र का अंतिम अंश सुना जिसमे आवाज भी साफ़ नही थी और प्रतिध्वनी भी थी। एक बात खली कि अंत में डाक पता और ई-मेल आई डी नहीं बताया गया। शुरू और अंत में उद्घोषणा की युनूस (खान) जी ने। कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक (छिब्बर) जी ने।

Thursday, November 18, 2010

पार्श्व-गायिका और रेडियो विज्ञापन प्रसारक श्रीमती कमल बारोट को जनमदिन की बधाई



(तसवीर प्राप्ती : श्री हरीष रघुवंशी )
दारेसलाम में 18 नवेम्बर, 1932 को पैदा हुई श्रीमती कमल बारोट भारत आ कर एक तरफ नये गायक गायिका की प्रतियोगीतामें हिस्सा ले कर सबसे पहेले कल्याणजी आनंदजी के संगीतमें फिल्म ओ तेरा क्या कहना के श्री सुबीर सेन के साथ गाये युगल गीत दिल दे के जाते हो कहाँ से फिल्म पार्श्व गायन के क्षेत्रमें प्रवेश कर सकी तो दूसरी और रेडियो श्रीलंका के भारत स्थित व्यापारी प्रतिनीधी रेडियो एडवर्टाईझींग सर्विसिस के स्व. बाल गोविन्द श्रीवास्तवजी द्वारा उनकी सहयोगी के रूपमें भी कदम रख़ा और बाल गोविंद श्रीवास्तव के अलावा स्व. शील कूमार के साथ भी कई फिल्मो के विज्ञापन और प्रायोजीत कार्यक्रम किये, जिसमें गीत गाया पत्त्थरोंनें, कश्मीर की कली, और सुहाग दिवान के साथ गुजराती फिल्म रमत रमाडे राम भी शामिल थी, ( कमल जी उसमें हिन्दीमें ही बोली थी, हाँ एन इवनिंग इन पेरीसमें शील कूमारजी और कमलजीने एक प्रायोजित रेडियो प्रोग्राममें फिल्म दर्शकोकी राये प्रसारित की थी, जो दर्शको की मातृभाषामें थी, इसमें एक गुजराती भाषी श्रोता के साथ वे सिर्फ़ प्रथम और अन्तीम बार रेडियो प्रसारणमें गुजराती बोली थी । हालाकि उनकी मातृभाषा गुजराती ही है और करीब चार साल पहेले मेरी उनसे मुलाकात (बाल गोविंद श्री वास्तवजी के साथ एक ही समय) हुई थी, तब काफ़ी बातें हुई थी । बादमें 1967 के बाद वे विविध भारती के मुम्बई पूना और नागपूर केन्दों के श्रोताओ तक ही विज्ञापन कार के रूपमें श्री बाल गोविंद श्रीवास्तवजी के साथ जूडी रही । और शक्तिराज फिल्म, श्री शक्ती मिल्स वगैरह प्रायोजित कार्यक्रम किये । उस दौरान पार्श्वगान तथा गैर फिल्मी सुगम संगीत हिन्दी और गुजरातीमें भी चलता रहा तथा पाकिस्तान से आये गझल गायक मेहदी हसन सहीत कई स्तेज़ शॉझ का आयोजन किया । पारसमणी का लताजी के साथ गाया गीत हस्ता हुआ नूरानी चेहरा ने लोकप्रियता की बूलंदी हासिल की । हाल वे लंडन और मुम्बई बारीबारी आती जाती रहती है । श्रीमती कमल बारोटजीको जनम दिन की शुभ: कामना और स्वस्थ लम्बे आयू की शुभेच्छा ।
पियुष महेता ।
सुरत ।

Wednesday, November 17, 2010

किशोर कुमार का गाया और उन्ही पर फिल्माया एक मजेदार अक्षर गीत

साठ के दशक के शुरू में या पचास के दशक के अंत की फिल्म हैं - दिल्ली का ठग

इसमे नायक-नायिका हैं किशोर कुमार और नूतन। इसमे इन दोनों पर फिल्माया गया एक मजेदार गीत हैं जिसे किशोर कुमार के साथ शायद आशा भोंसले ने गाया हैं। यह गीत पहले रेडियो के सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था पर अब बहुत लम्बे समय से नही सुना।

इस गीत के कुछ-कुछ बोल मुझे याद आ रहे हैं -

सी ऐ टी कैट, कैट मने बिल्ली, आर ऐ टी रेट, रेट मने चूहा (किशोर जी)

अरे मतलब इसका तुम कहो तो क्या हुआ

एम ऐ डी मेड, मेड मने पागल, बी ओ वाई ब्वाय, ब्वाय मने लड़का (आशा जी)

अरे मतलब इसका तुम कहो तो क्या हुआ

सी आर ओ डब्लू क्रो, क्रो मने कौआ , एन ओ एस इ नोज, नोज मने नाक

अरे मतलब इसका तुम कहो तो क्या हुआ

जी ओ ऐ टी गोट, गोट मने बकरी, एल आई ओ एन लाएन, लाएन मने शेर (किशोर जी)

अरे दिल हैं तेरे पंजे में तो क्या हुआ

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Saturday, November 13, 2010

१४ नवेम्बर सेक्षोफोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्री श्याम राज जी को जनम दिन की बधाई

आज यानि 14 नवेम्बर बाल दिन के अलावा भारतीय फिल्म संगीत के जाने माने सेक्षोफोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक स्व. मनोहरीदा के करीबी अन्य टेनर और सुपरानो सेक्षोफोन तथा वेस्टर्न फ्ल्यूट वादक श्री श्याम राजजी का जनम दिन है तो इनको रेडियोनामा की और से जनम दिन की बधाई देते हुए साथ जूड़ी उन पर मेरी पुरानी पोस्ट की लिन्क पर सुनिये और देख़ीये उनके द्वारा बजाई टेनर सेक्षोफोन और वेस्टर्न फ्ल्यूट पर दो धूने और मेरे द्वारा किया गया उनका साक्षात्कार ।
http://radionamaa.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C

पियुष महेता ।
सुरत

स्व. विजय किशोर दूबे साहबको श्रद्धांजलि

पिछले शनिवार यानि दिपावली और वि. स. हिन्दु नये साल के दिन रेडियो प्रसारक की हेसियत से विषेष रूप से रेडियो सिलोन यानि श्रीलंका ब्रोडकास्टींग कोर्पोरेसन की हिन्दी सेवा के लिये एक जबरजस्त नीव डालने वाले और श्री गोपाल शर्माजी के भी एक हद तक़ पथ-दर्शक रहे श्री विजय किशोर दूबेजी करीब 85 साल की आयु के बाद इस दुनिया को छोड कर चल दिये, इसके सर्व प्रथम समाचार पुणे के श्रोता श्री गिरीष मानकेश्वरजीने दिये जिसे बादमें श्री गोपाल शर्माजीने समर्थन दिया । मैनें उनको रेडियो सिलोन के सजीव प्रसारक के रूपमें कभी नहीं सुना था, जिसकी वजह यही थी, कि उनके 1956 में ही श्रीलंका छोडने के बाद मेरी रेडियो श्रवण यात्रा 3 अक्तूबर, 1957 से आरम्भ हुई थी । पर उसके बाद करीब 1961में एक फिल्म फ़ेअर एवोर्ड्स वितरण के समारोह की ध्वनि-मूद्री जो सिलोन से प्रसारित हुई थी, उसमें सुना था, बादमें उन्होंने एक साथी के साथ मिल कर फिल्म आशिक का निर्माण किया था और बादमें एच एम वी -इन्डीया का कार्यभार सम्हाला । और कितने सालोंसे निवृत थे । नीचे देख़ीये और सुनिये उनको बोलते हुए जो क्लिप श्री गोपाल शर्माजी की आत्म-कथा आवाझ की दुनिया के दोस्तों के विमोचन समारोह का एक अंश है ।


भगवान उनकी आत्माको शान्ती दे ।
पियुष महेता ।

Friday, November 12, 2010

फिल्मी कलाकारों के रूपक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 11-11-10

कार्यक्रमों का यह स्वरूप विविध भारती का नया रूप हैं। इस स्वरूप के कार्यक्रम कुछ ही समय से प्रसारित हो रहे हैं। ऐसे दो ही कार्यक्रम हैं - हिट सुपर हिट और आज के फनकार जो दैनिक हैं।

दोनों ही कार्यक्रमों का स्वरूप एक जैसा हैं, बारीक सा अंतर हैं। आज के फनकार कार्यक्रम जैसा कि शीर्षक से ही पता चलता हैं हर दिन किसी एक कलाकार पर केन्द्रित होता हैं। हिट सुपरहिट कार्यक्रम में शनिवार और रविवार को विशेष आयोजन होता हैं जिनके शीर्षक भी अलग हैं और शेष हर दिन किसी एक कलाकार पर केन्द्रित होता हैं।

हिट सुपरहिट कार्यक्रम में किसी एक कलाकार के हिट सुपरहिट गीत सुनवाए जाते हैं। उस कलाकार पर हल्की-फुल्की जानकारी दी जाती हैं। कभी-कभी सिर्फ गीत ही सुनवा दिए जाते हैं। इस तरह इस कार्यक्रम में गीत सुनवाना प्रमुख हैं।

आज के फनकार कार्यक्रम में गीत सुनवाना प्रमुख नही हैं, अक्सर गीतों की झलक ही सुनवाई जाती हैं। यहां कलाकार के बारे में जानकारी देना प्रमुख हैं। कोशिश की जाती हैं कि पूरी जानकारी दी जाए। बीच-बीच में कुछ रिकार्डिंग भी सुनवाई जाती हैं जिसमे विविध भारती के किसी अन्य कार्यक्रम में उसी कलाकार से की गई बातचीत होती हैं या अन्य कलाकारों द्वारा उनके बारे में कही बाते होती हैं। कभी फिल्मो के संवाद भी सुनवाए जाते हैं। कई बार ये दोनों कार्यक्रम ऐसे नए-पुराने, छोटे-बड़े, कलाकारों पर केन्द्रित होते हैं जिनका उस दिन जन्म दिन या पुण्य तिथि होती हैं। दोनों ही कार्यक्रमों की अवधि आधा घंटा हैं। हिट सुपरहिट कार्यक्रम हर दिन दो बार प्रसारित होता हैं। ये बाते इन कार्यक्रमों की रोचकता को कम कर देती हैं। अंग्रेजी में कहावत हैं न - शॉर्ट एंड स्वीट यदि यह मुहावरा इन कार्यक्रमों पर लागू हो तो दोनों कार्यक्रम बढ़िया हो जाए।

हिट सुपरहिट कार्यक्रम दोपहर में 1 बजे से 1:30 बजे तक प्रसारित होता हैं फिर यही कार्यक्रम रात में 9 बजे से 9:30 बजे तक प्रसारित होता हैं। कभी कुछ अंतर दोपहर और रात के प्रसारण में रखा जाता हैं कभी पूरा कार्यक्रम वैसे ही दुबारा प्रसारित किया जाता हैं। दो बार प्रसारण के बजाए एक समय कोई और कार्यक्रम प्रसारित किया जा सकता हैं। आज के फनकार कार्यक्रम भी हर दिन सुनना अच्छा नही लगता। एक जैसा कार्यक्रम हर दिन सुनते-सुनते ऊब होने लगती हैं। इस समय विविधता हो तो अच्छा रहेगा। खासकर जब दो से अधिक दिन तक ऐसे कलाकारों पर कार्यक्रम होता हैं जिनका जन्मदिन हो तब भी ऊब होने लगती हैं।

हमारा सुझाव हैं कि हिट सुपरहिट कार्यक्रम रोज एक ही बार प्रसारित कीजिए। दोनों ही कार्यक्रमों के लिए सप्ताह में एक दिन विशेष कार्यक्रम रख दीजिए जो उस सप्ताह में होने वाले कलाकारों के जन्मदिन और पुण्य तिथि पर आधारित हो। इस विशेष कार्यक्रम के अलावा एक दिन सामान्य रूप से आज के फनकार कार्यक्रम रख दीजिए। शेष समय में अन्य कार्यक्रम रखिए जो चाहे आधे घंटे का एक कार्यक्रम हो या 15 मिनट के दो।

ऐसे कई कार्यक्रम हैं जो कुछ ही समय पहले बंद हुए हैं उन्हें दुबारा शुरू किया जा सकता हैं जैसे - बज्म-ऐ-क़व्वाली, लोकसंगीत, अनुरंजनि, एक ही फिल्म से, फिल्मी और गैर फिल्मी नए गीत इनके अलावा कुछ अन्य कार्यक्रम भी सुनवाए जा सकते हैं जैसे फिल्मी भक्ति, देश भक्ति और हास्य गीतों के कार्यक्रम तथा बच्चो के कार्यक्रम

कुछ पुराने लोकप्रिय कार्यक्रमों को दुबारा शुरू किया जा सकता हैं जैसे - एक और अनेक कार्यक्रम जिसमे एक ही कलाकार के अन्य कलाकारों के साथ गीत सुनवाए जा सकते हैं, साज और आवाज कार्यक्रम - वैसे भी प्रसारण के दौरान अंतराल में फिल्मी गीतों की धुनें सुनवाई जाती हैं, इन्ही धुनों और मूल गीतों का कार्यक्रम भी प्रसारित किया जा सकता हैं।

एक बहुत पुराना रोचक कार्यक्रम था - चतुरंग जिसमे विविध विधाओं के फिल्मी गीत सुनवाए जाते थे जैसे गजल के बाद युगल गीत फिर एकल (सोलो) गीत फिर क़व्वाली, समूह गीत, भजन।

क्षेत्रीय कार्यक्रमों से भी कार्यक्रमों के कुछ स्वरूप लिए जा सकते हैं जैसे - हैदराबाद में एक हिन्दी फिल्मी गीतों का कार्यक्रम जो बहुत कम समय तक प्रसारित हुआ था - अक्स और आवाज जिसमे किसी एक ही कलाकार पर फिल्माए गए, एक ही कलाकार के गाए गीत सुनवाए जाते थे जैसे - अक्स राजकपूर का आवाज मुकेश की।

इस तरह लगातार इन दो कार्यक्रमों को सुनने के बजाए इन विविध कार्यक्रमों से प्रसारण की रोचकता बढ़ जाएगी।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन दोनों कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

दोपहर 1:00 बजे और रात 9 बजे प्रसारित हुआ हिट-सुपरहिट कार्यक्रम।

शुक्रवार को पार्श्व गायक कैलाश खेर के गाए गीत सुनवाए गए। सलामे इश्क, कारपोरेट, दिल्ली 6 फिल्मो के गीत सुनवाए। स्वदेश फिल्म का गीत -

यूंही चला चला ही सुना और यह गीत भी शामिल था - ये दुनिया उटपटांगा

रात में अल्लाह के बन्दे गीत से शुरूवात की परन्तु यह गीत दोपहर में सुनवाया ही नही गया।

शनिवार को प्रस्तुत हुआ - सैटरडे स्पेशल जिसमे ऎसी फिल्मो के गीत सुनवाए गए जिनके नाम आप शब्द से शुरू होते हैं। आप आए बहार आई, आप की क़सम फिल्मो के शीर्षक गीत सुनवाए। आप तो ऐसे न थे, पुरानी फिल्म आप की परछाइयां के गीत सुनवाए गए।

नई फिल्म आप का सुरूर से हिमेश रेशमिया का गाया यह गीत सुनवाया - ये तेरा मेरा मिलना

और इस गीत की जगह रात में नई फिल्म आप मुझे अच्छे लगने लगे का शीर्षक गीत सुनवाया गया।

रविवार को आयोजन रहा - फेवरेट फाइव। इसमे अभिनेता सोनू सूद से फोन पर बातचीत की रेणु (बंसल) जी ने। उनकी फिल्म दबंग की चर्चा की। रेणु जी के प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि पहले भी फिल्मी गीत सुना करते थे। यह भी बताया कि संगीत टीम का हिस्सा बनना चाहेगे। अपने चरित्रों के बारे में स्पष्ट किया कि अभी नकारात्मक भूमिकाएं हैं आगे सकारात्मक भूमिकाओं में भी उन्हें दर्शक देखेगे। व्यक्तिगत जीवन के सम्बन्ध में अपनी बहनों को याद किया। अपने पसंदीदा नए-पुराने 5 गीत सुनवाए - दबंग फिल्म के अलावा पुरानी फिल्मे मासूम, आंधी, हरे रामा हरे कृष्णा और यादो की बारात का यह गीत - चुरा लिया हैं तुमने जो दिल को फोन पर रिकार्डिंग स्पष्ट रही। शुरू और अंत में परिचय दिया और समापन किया निम्मी (मिश्रा) जी ने। इस कार्यक्रम को तेजेश्री (शेट्टे) जी के तकनीकी सहयोग से प्रस्तुत किया कल्पना (शेट्टी) जी ने।

सोमवार को पार्श्व गायिका साधना सरगम के गाए गीत सुनवाए गए। फिल्म साथिया, जाबांज, हम हैं राही प्यार के, सपने फिल्मो के गीत सुनवाए और यह गीत सुनवाया - सात समंदर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गई

लेकिन रात को इस कार्यक्रम का स्वरूप अलग रहा। साधना सरगम के बारे में हल्की सी जानकारी दी कि उनका पूरा नाम साधना खांडेकर हैं। बचपन में अपनी माँ से शास्त्रीय संगीत सीखा। बाद में प्रशिक्षण लिया फिर पंडित जसराज से सीखा। साथिया, हम हैं राही प्यार के, सपने फिल्म के गीत दोपहर की तरह ही सुनवाए पर दो गीतों को बदला गया - क्यों हो गया न फिल्म से और डोली सजा के रखना फिल्म का यह प्यारा सा गीत सुनवा कर गानों में अलग-अलग मूड और भाव बनाए रखे -

झूला बाहों का आज भी होना मुझे भैय्या

मंगलवार को संगीतकार अन्नू मलिक के स्वरबद्ध किए लोकप्रिय गीत सुनवाए गए। मैं खिलाड़ी तू अनाडी, रेफ्यूजी, बाजीगर फिल्मो के गीत सुनवाए गए। बौर्डर फिल्म से संदेशे आते हैं सुनवाया गया। उनकी चर्चित फिल्मो के नाम बताए। उन्हें मिले पुरस्कारों की भी चर्चा हुई। बताया कि पार्श्व गायन में भी उनका दखल हैं, कोरस में उनकी आवाज भी सुनी जा सकती हैं।

बुधवार को गीतकार फैज अनवर के लिखे गीत सुनवाए। तुम बिन, गुनाह, हैलो ब्रदर फिल्मो के गीत सुनवाए गए। दिल हैं के मानता नही फिल्म का शीर्षक गीत और साजन फिल्म का यह कम सुनवाया जाने वाला गीत सुनना अच्छा लगा -

पहली बार मिले हैं
मिलते ही दिल ने कहा मुझे प्यार हो गया

गुरूवार को गीतकार शायर जावेद अख्तर के लिखे गीत सुनवाए गए। 1942 अ लव स्टोरी फिल्म से एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा गीत सुनवाया गया। रेफ्यूजी, लगान, वीर जारा फिल्मो के गीत सुनवाए गए। जोधा अकबर फिल्म से यह गीत भी सुनवाया - कहने को जश्ने बहारां हैं

रात को वीर जारा के स्थान पर कल हो न हो फिल्म का शीर्षक गीत सुनवाया गया।

इस कार्यक्रम के दौरान और समापन पर कभी-कभार अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजको के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और अन्य कार्यक्रमों के लिए सन्देश भी दिए गए।

रात 9:30 बजे आज के फनकार कार्यक्रम प्रसारित किया गया। शुक्रवार को अभिनेत्री कैटरीना कैफ पर यह कार्यक्रम लेकर आई रेणु (बंसल) जी। नई अभिनेत्री होने से बताने के लिए बाते अधिक नही थी। बताया कि उनका जन्म होंगकॉंग में हुआ। फिर इंग्लैण्ड से मॉडलिंग शुरू की। मुम्बई में भी मॉडलिंग की। उन्हें पहचान मिली मैंने प्यार क्यों किया फिल्म से। पार्टनर फिल्म भी सफल रही। नमस्ते लन्दन में उनकी बढ़िया भूमिका थी और रेस फिल्म में पहली बार निगेटिव रोल किया। अजब प्रेम की गजब कहानी फिल्म की भी चर्चा की और नई फिल्म राजनीति की भी चर्चा हुई जिसका एक संवाद भी सुनवाया गया। इन सभी फिल्मो के गीत भी सुनवाए। इस कार्यक्रम को पी के ऐ नायर जी के तकनीकी सहयोग से विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया।

शनिवार को यह कार्यक्रम ख्यात अभिनेता संजीव कुमार की पुण्य स्मृति में निम्मी (मिश्रा) जी ने प्रस्तुत किया। उनका मूल नाम बताया - हरिहर जेठालाल जरीवाला। बताया कि बचपन से ही थियेटर से जुड़े रहे। उनकी पहली फिल्म हैं - हम हिन्दुस्तानी। साठ के दशक की उनकी शुरूवाती फिल्मो संघर्ष, शिकार की चर्चा की। खिलौना, कोशिश फिल्मो के उनके प्रशंसनीय अभिनय की चर्चा की। उनकी विभिन्न फिल्मो मौसम, अनोखी रात, अनुभव, सीता और गीता, अस्सी के दशक की अंगूर, टक्कर फिल्मो के नाम भी बताए। लीक से हट कर सिनेमा दस्तक और लीक से हट कर अभिनय पति पत्नी और वो की चर्चा हुई, गीत भी सुना - ठन्डे
ठंडे पानी से नहाना चाहिए

अन्य लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए मौसम, अनोखी रात फिल्मो से। पुरस्कारों की भी चर्चा हुई। फिल्म नया दिन नई रात में उनके नौ रूपों की चर्चा भी की और परिचय फिल्म की चर्चा से यह भी बताया कि रोमांटिक से बूढ़े तक का अभिनय किया। यहाँ एक बात अखर गई - लगभग एक ही समय में उनकी दो फिल्मे रिलीज हुई थी - परिचय और अनामिका, दोनों में जया भादुड़ी थी। परिचय में वह उनके पिता बने जबकि अनामिका में वह उनकी नायिका थी। यही तो एक बेहतरीन अभिनेता की पहचान हैं। अनामिका फिल्म का नाम भी नही लिया।

रविवार को यह कार्यक्रम कमल (शर्मा) जी ने अभिनेता कमल हसन पर प्रस्तुत किया। इस दिन उनका जन्मदिन था। बताया कि तमिलनाडू में जन्मे कमल हसन की पहली फिल्म तमिल में थी। हिन्दी सिने दर्शको से उनका परिचय फिल्म एक दूजे के लिए से हुआ। उनकी कलात्मक फिल्मे अप्पू राजा, पुष्पक और व्यावसायिक फिल्मे सागर, सनम तेरी क़सम की चर्चा की। उनके लेखन, निर्माण और नृत्य निर्देशन के काम के बारे में बताया। दशावतार नई फिल्म में उनके दस रूपों की भी चर्चा की। उन्हें मिले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की भी चर्चा हुई। इस दिन भी एक कमी खली उनकी चर्चित फिल्म चाची 420 की चर्चा नही की। इस फिल्म में उनकी अभिनय क्षमता उभर कर आई, फिल्म के अधिकाँश भाग में वो महिला के वेश में रहे।

सोमवार को यह कार्यक्रम संगीतकार राजेश रोशन पर लेकर आए युनूस (खान) जी। ख्यात संगीतकार रोशन के पुत्र के रूप में परिचय देते हुए पुरानी फिल्म ताजमहल का संगीत सुनवाया। बताया कि सबसे पहले गीतकार आनंद बक्षी ने उन्हें कल्याणजी आनंद जी का सहायक बनाया। पहली फिल्म उन्हें महमूद ने दी - कुंआरा बाप। इस फिल्म के लिए लोरी तैयार की - आ री आ जा निंदिया जिसके बाद कृष फिल्म तक उन्होंने कई फिल्मे की। उनके कुछ लोकप्रिय गीतों की झलक भी सुनवाई जिनमे कामचोर, करण-अर्जुन और मिस्टर नटवरलाल के लिए अमिताभ बच्चन से गवाया गया बच्चो की कहानी कहता गीत भी शामिल था। यह तो कहा कि उनके संगीत में विविधता हैं जो गाने सुनते समय महसूस भी हुई पर किस तरह का संगीत और किस तरह की विविधता, इसकी चर्चा नही हुई। इस कार्यक्रम को विजय दीपक छिब्बर जी ने प्रस्तुत किया पी के ऐ नायर जी के सहयोग से।

मंगलवार को अमरकांत जी ले आए अभिनेत्री नीलम पर कार्यक्रम। इस दिन उनका जन्मदिन था। कार्यक्रम से पता चला कि उनका पूरा नाम नीलम कोठारी हैं। जन्म हौंगकौंग में हुआ। परिवार का जेवर का व्यापार हैं। पहली फिल्म हैं जवानी जो 1984 में आई, उसके बाद अफसाना प्यार का, इल्जाम फिल्मे आई। उनकी गोविंदा के साथ जोडी खूब जमी। अग्निपथ में अमिताभ बच्चन की बहन की भूमिका की। बाद में निजी टेलीविजन चैनल पर एंकरिंग की फिर अपने परिवार का कारोबार संभालने लगी। कार्यक्रम में कुछ समय के लिए व्यवधान रहा, संगीत सुनाई दिया।

बुधवार को ममता (सिंह) जी और युनूस (खान) जी ने प्रस्तुत किया ख्यात पार्श्व गायक मन्नाडे पर यह कार्यक्रम। उनके गीतों का चुनाव अच्छा रहा। कुछ गीत पूरे और अधिकाँश गीतों की झलकियाँ सुनवाई। गैर फिल्मी और फिल्मी दोनों ही रचनाएं शामिल थी। बताया कि शुरूवात भक्ति गीतों से की। उनके शास्त्रीय संगीत के गीतों को अलग से सुनवाया जिसमे ख़ास रहा दिल ही तो हैं फिल्म का तराना। उनकी किसी कार्यक्रम के लिए की गई रिकार्डिंग के अंश सुनवाए जिसमे उन्होंने अपने कैरिअर की शुरूवात के बारे में बताया कि चाचा कृष्ण चन्द्र डे उन्हें संगीत जगत में ले आए। उनकी आवाज में मधुशाला भी सुनवाई जिसे गाने के लिए मिले प्रस्ताव की जानकारी दी। बसंत बहार फिल्म के लिए भीमसेन जोशी के साथ गाने के अनुभव भी बताए। उनकी आवाज की रिकार्डिंग के अंश अधिक हो गए, किसी अन्य कलाकार द्वारा उनके बारे में कही बातों की रिकार्डिंग भी सुनवाई जाती तो ज्यादा अच्छा लगता। उन्हें मिले पद्मश्री, पद्मभूषण, दादा साहेब फालके पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कारों की जानकारी दी। यह भी बताया कि आज भी स्टेज शो करते हैं। सबसे अच्छा लगा उनकी आवाज में यह गीत सुनना -

सावन की रिमझिम में थिरक थिरक नाच उठे मयूर पंखी रे सपने

गुरूवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ले आए ख्यात हास्य अभिनेता जॉनीवॉकर पर कार्यक्रम। उनका असली नाम बताया बदरूद्दीन जमालोद्दीन काजी। इंदौर में जन्मे इस अभिनेता ने कुछ समय के लिए मुम्बई में बस कंडक्टर की नौकरी भी की। पहली फिल्म थी - आखिरी पैगाम जिसमे छोटी सी भूमिका थी। गुरूदत्त ने जॉनीवॉकर नाम दिया और फिल्म बाजी में काम दिया फिर उनका साथ कई फिल्मो का रहा। यह पहले अभिनेता हैं जिनके नाम पर फिल्म बनी। सभी बड़े कलाकारों के साथ काम किया। उनके संवादों पर कभी सेंसर की कैची नही चली। अपने बेटे को भी वो फिल्मो में लाए। चर्चा की गई फिल्मो के गीत सुनवाए। आदमी और इंसान, आनंद फिल्मो के सीन सुनवाए। अच्छी जानकारी मिली और अच्छा रहा संयोजन। इस कार्यक्रम को पी के ऐ नायर जी के सहयोग से तैयार किया गया।

दोनों ही कार्यक्रमों की अपनी-अपनी संकेत धुन हैं। हिट-सुपरहिट की धुन में लोकप्रिय गीतों के संगीत के अंश हैं, यहाँ एक बढ़िया उपशीर्षक भी हैं - शानदार गानों का सुरीला सिलसिला। आज के फनकार की संकेत धुन सामान्य सी हैं। संकेत धुनें कार्यक्रमों के आरम्भ और अंत में सुनवाई गई।

Tuesday, November 9, 2010

फिल्म वो मैं नही का रोमांटिक युगल गीत

आज याद आ रही हैं 1975 के आसपास रिलीज एक बढ़िया सस्पेस फिल्म जिसका नाम शायद बहुत से लोग नही जानते, यह फिल्म हैं - वो मैं नही

इसमे नायक नवीन निश्चल की दुहरी या शायद तिहरी भूमिका हैं। इसमे नायिका हैं आशा सचदेव। इन दोनों पर फिल्माया गया एक रोमांटिक युगल गीत पहले रेडियो के सभी केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था पर अब वर्षो से नही सुना। इस गीत को शायद किशोर कुमार और आशा भोंसले ने गाया हैं। गीत के बोल मुझे याद नही आ रहे।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Friday, November 5, 2010

फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 4-11-10

आप सबको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

गुरूवार को दोपहर से दीपावली का माहौल महसूस हुआ। मन चाहे गीत कार्यक्रम शुरू करते हुए अशोक (हमराही) जी ने दीपावली की शुभकामनाएं दी।

आइए, बात करते हैं फरमाइशी गीतों के कार्यक्रमों की। फरमाइशी फिल्मी गीत विविध भारती की जान हैं, आन हैं, शान हैं और पहचान हैं। विविध भारती की शुरूवात के कुछ समय बाद से शुरू हुआ इस तरह का कार्यक्रम। गाँव जिला तहसील कस्बे से लोग एक पोस्ट कार्ड भेजते हैं जिस पर अनुरोध होता हैं कोई फिल्मी गीत सुनने का और विविध भारती उस गाँव जिला तहसील कस्बे के नाम के साथ कार्ड भेजने वाले सभी के नाम (चाहे जितने भी हो) पढ़ते हुए वह गीत सुनवा देती हैं। क्या बंधन हैं विविध भारती का श्रोताओं से !

यह सिलसिला वर्षों से चल रहा हैं और अब अपनी स्वर्ण जयंति मना चुकी विविध भारती पर अब भी जारी हैं। अगर यह कार्यक्रम न होते तो शायद कई गाँव जिला तहसील कस्बे के नाम हम जान भी नही पाते।
कार्यक्रमों के नाम भी क्या खूब हैं - एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने, मन चाहे गीत, हैलो फरमाइश, जयमाला, आपकी फरमाइश

आज भी मन चाहे गीत अपने उसी शीर्षक के साथ पारंपरिक रूप में चल रहा हैं। हालांकि हल्का सा परिवर्तन किया गया हैं, अब सप्ताह में दो दिन पत्र की बजाए ई-मेल से प्राप्त फरमाइश पूरी कर इसे आधुनिक बनाया गया हैं। बस, श्रोता ने लिखा कि ये हमारा मन चाहा गीत हैं, इसे सुनवा दीजिए और विविध भारती ने सुनवा दिया।

ठीक इसी तरह का कार्यक्रम हैं आपकी फ़रमाइश श्रोताओं की सुविधा का ध्यान रखते हुए इसका प्रसारण रात में होता हैं जबकि मन चाहे गीत का दोपहर में।

सबसे पुराना कार्यक्रम हैं जयमाला जिसके श्रोता सीमित हैं। यह केवल फ़ौजी भाइयो के लिए हैं। पहले फ़ौजी भाई पत्र लिख कर फरमाइश भेजते थे पर आजकल सुविधा के अनुसार ई-मेल, एस एम एस भेजते हैं। यहाँ नाम के साथ रैंक का बहुत महत्त्व हैं। फ़ौजी भाई अपने नाम के साथ रैंक लिखते हैं और अपने स्थान का नाम लिखते हैं जिससे शहर या राज्य का पता चलता हैं। पत्र लिखना हो तो उनके विशेष छपे अंतर्देशीय पत्र ही मान्य हैं, साधारण पत्र स्वीकार नही। उनके लिए सुविधाजनक समय, शाम में इसका प्रसारण होता हैं। शायद पहले इस कार्यक्रम में फ़ौजी भाइयो को सन्देश दिया जाता था और गीत भी सुनवाए जाते थे जो बाद में फ़ौजी भाइयों का फरमाइशी कार्यक्रम बन गया और इसी से प्रेरित हो बाद में मन चाहे गीत की शुरूवात की गई।

इस कार्यक्रम के स्वरूप को आधुनिक बनाया गया और दोपहर बाद के प्रसारण में शुरू किया गया कार्यक्रम हैलो फ़रमाइश जैसा कि शीर्षक से ही पता चलता हैं इसमे श्रोता फोन पर बात कर अपनी फरमाइश बताते हैं। इसमे श्रोता से सीधे बात होती हैं इसीसे कुछ और बाते भी हो जाती हैं। रिकार्डिंग का दिन और समय निश्चित हैं जिसकी सूचना देते हुए हर बार श्रोता को फोन नंबर बताए जाते हैं।

स्वर्ण जयंति के बाद एक अति आधुनिक कार्यक्रम शुरू किया गया हैं एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने जो सीधा (लाइव) प्रसारित होता हैं। कार्यक्रम के शुरू में फिल्मो के नाम बता दिए जाते हैं। श्रोता इन फिल्मो में से किसी फिल्म के किसी भी गीत के लिए एस एम एस भेजते हैं और तुरंत फरमाइश पूरी हो जाती हैं। हाँ, श्रोताओं की सुविधा का ध्यान रखते हुए कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की फिल्मो के नाम बता दिए जाते हैं। एस एम एस आधारित होने से प्रसारण समय में भी दिक्कत नहीं हैं और दोपहर में प्रसारित होता हैं।

हैलो फरमाइश कार्यक्रम सप्ताह में तीन दिन प्रसारित होता हैं और जयमाला शनिवार को छोड़ कर हर दिन जबकि अन्य कार्यक्रम दैनिक हैं।

आइए इस सप्ताह प्रसारित इन कार्यक्रमों पर एक नजर डालते हैं -

दोपहर 12 बजे का समय होता है इंसटेन्ट फ़रमाइशी गीतों के कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने का। हमेशा की तरह शुरूवात में 10 फ़िल्मों के नाम बता दिए गए फिर बताया गया एस एम एस करने का तरीका जो इस तरह हैं -

मोबाइल के मैसेज बॉक्स में जाकर टाइप करना हैं - वीबीएस - जगह छोड़े यानि स्पेस दे - फिल्म का नाम - स्पेस दे - गाने के बोल - स्पेस - अपना नाम और शहर का नाम और भेज दे इस नंबर पर - 5676744

और इन संदेशों को 12:50 तक भेजने के लिए कहा गया ताकि शामिल किया जा सकें। कभी पहला गीत उदघोषक की खुद की पसन्द का सुनवाया गया ताकि तब तक संदेश आ सके और कभी पहला गीत भी फरमाइशी ही रहा। फिर शुरू हुआ संदेशों का सिलसिला। सबसे अधिक सन्देश जिस गीत के लिए मिले वही गीत सुनवाया गया। नए पुराने सभी समय की फिल्मे चुनी गई। हर दिन एक समय की फिल्मो का चुनाव किया गया।

शुक्रवार को सत्तर के दशक की 10 लोकप्रिय फिल्मे चुनी गई। अमरकांत जी ने शुरूवात की हमजोली फिल्म के टिक टिक मेरा दिल बोले गीत से। इसके बाद श्रोताओं ने अलग-अलग मूड के लोकप्रिय गीतों के लिए सन्देश भेजे जिनमे से एक सन्देश मेरा भी था। आया सावन झूम के फिल्म का शीर्षक गीत, कटी पतंग फिल्म से रोमांटिक गीत -
प्यार दीवान होता हैं मस्ताना होता हैंहर खुशी से हर गम से बेगाना होता हैं
सरगम, खिलौना, मैं सुन्दर हूँ और प्रेमनगर फिल्मो के गीत सुनवाए गए।

शनिवार के लिए साठ के दशक की लोकप्रिय फिल्मे चुनी गई। शुरू किया फर्ज फिल्म के मस्त बहारो का आशिक गीत से। अन्य फिल्मे रही - मेरे सनम, आए दिन बहार के, मेरा साया, नाईट इन लन्दन। जब जब फूल खिले फिल्म का गुल बुलबुल का कहानी कहता गीत भी सुनवाया और हसीना मान जाएगी फिल्म के इस गीत की फरमाइश बहुत दिन बाद आई, सुन कर अच्छा लगा - ओ दिलबर जानिए

रविवार को तीन क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रमों के कारण हम 12 :40 पर जुड़े, तब बंटी और बबली का कजरारे गीत चल रहा था। उसके बाद सुना सलाम नमस्ते फिल्म का गीत। ये गीत लेकर आई रेणु (बंसल) जी। कार्यक्रम समाप्ति से पहले जैसे ही रेणु जी अगले दिन की फिल्मे बताने जा रही थी क्षेत्रीय प्रसारण से झरोका शुरू हो गया।

सोमवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ले आए ऐश्वर्या राय बच्चन की फिल्मे, इस दिन उनका जन्मदिन था। जोश, देवदास फिल्म का डोला रे डोला, आ अब लौट चले, धूम 2 का क्रेजी किया रे गीत और ताल तथा कुछ न कहो फिल्मो के शीर्षक गीत सुनवाए।

मंगलवार को शाहरूख खान का जन्मदिन था, उनकी फिल्मे लेकर आए युनूस (खान) जी। फिल्मो का चुनाव अच्छा रहा, उनकी शुरूवाती दौर की भी फिल्मे शामिल थी और आजकल की भी। जादू तेरी नजर गीत भी सुनवाया गया और तेरे नैना मेरे नैना गीत भी। बाजीगर और कल हो न हो फिल्मो के शीर्षक गीतों के साथ दिलवाले दुल्हनिया ले जाएगे, ओम शान्ति ओम, रब ने बना दी जोडी, कभी खुशी कभी गम फिल्मो के गीत संदेशो के आधार पर सुनवाए गए।

बुधवार को कमल (शर्मा) जी ले आए नई फिल्मे। सुहानल्ला गीत सुना, कभी अलविदा न कहना फिल्म का शीर्षक गीत और जहर फिल्म का गीत भी शामिल था। कुछ समय क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम का प्रसारण हुआ।

गुरूवार को राजुल (अशोक) जी ले आई साठ-सत्तर के दशक की लोकप्रिय बढ़िया फिल्मे जिनके लोकप्रिय रोमांटिक गीत श्रोताओं के संदेशों के अनुसार सुनवाए। गाइड, मेरे महबूब, तलाश, लोफर, पत्थर के सनम, द ट्रेन, आ गले लग जा, महबूब की मेहंदी और मेरे जीवन साथी फिल्म से यह गीत - ओ मेरे दिल के चैन

आधा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर से बची हुई फ़िल्मों के नाम बताए गए और फिर से बताया गया एस एम एस करने का तरीका। कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की 10 फ़िल्मों के नाम बताए गए। हर दिन 10 फिल्मो के नाम बताए गए पर 6-9 फिल्मो के ही गीत सुनवाए गए क्योंकि हर गीत के लिए औसत 10-12 सन्देश आए। कई संदेशो के साथ नाम भी बहुत थे तथा गीत भी पूरे सुनवाए गए। देश के विभिन्न भागो से संदेश आए। आरम्भ, बीच में और अंत में बजने वाली संकेत धुन ठीक ही हैं।

इस कार्यक्रम को गणेश (शिन्दे) जी, मनीष चन्द्र (वैश्य) जी, राजीव (प्रधान) जी के तकनीकी सहयोग से हम तक पहुंचाया गया और प्रस्तुत किया विजय दीपक (छिब्बर) जी ने।

दोपहर 1:30 बजे का समय रहा मन चाहे गीत कार्यक्रम का। नए-पुराने गीतों के लिए श्रोताओं ने फरमाइश भेजी। शुक्रवार को राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी सुनवाने आए फरमाइशी गीत। शुरूवात की रोटी फिल्म के इस बढ़िया गीत से -

गोरे रंग पे न इतना गुमान कर गोरा रंग तो दिन में ढल जाएगा

मेरे हमदम मेरे दोस्त, बादशाह, अदालत, जो जीता वही सिकंदर, घर, दूसरा आदमी, दिल तो पागल हैं फिल्मो के गीत सुनवाए गए और राजा हिन्दुस्तानी फिल्म का यह गीत -

कितना प्यारा तुम्हे रब ने बनाया जी करे देखता रहूँ

शनिवार को अशोक (सोनामने) जी ने इन नए पुराने फिल्मो के गीत सुनवाए - पूरब और पश्चिम, यादो की बारात, चांदनी फिल्म का शीर्षक गीत, कर्ज, तेरे नाम, हंसते जख्म फिल्म का यह गीत भी सुनवाया जिसे बढ़िया ढंग से स्वर बद्ध किया जाने से बहुत कर्णप्रिय लगता हैं -

तुम जो मिल गए हो तो ये लगता हैं के जहां मिल गया

यह नया गीत भी सुना - क्या ये मेरा पहला पहला प्यार हैं

रविवार को संगीता (श्रीवास्तव) जी ने सुनवाए मिले-जुले गीत इन फिल्मो से - बैराग, जीत, त्रिशूल, जिस्म, सत्तर के दशक की फिल्म हसीना मान जाएगी, परिंदा। विविध भाव के गीत रहे - दिल हैं के मानता नही फिल्म का शीर्षक गीत, काला पत्थर फिल्म से - एक रास्ता हैं जिन्दगी

और यह रोमांटिक गीत भी सुनवाया - हमको सिर्फ तुमसे प्यार हैं

सोमवार को गीत सुनवाने आई रेणु (बंसल) जी। शुरूवात की बहारो के सपने फिल्म के इस फड़कते गीत से - चुनरी संभाल गोरी
जाने अनजाने, जिगरी दोस्त, शरीफ बदमाश, सौदागर, नई फिल्म जब प्यार किसी से होता हैं, झंकार बीट्स फिल्मो के गीत, सत्ते पे सत्ता फिल्म का शीर्षक गीत, परिंदा फिल्म से यह गीत सुनवाया गया -

तुम से मिल के ऐसा लगा अरमां पूरे हुए दिल के

बातो बातो में फिल्म से उठे सबके क़दम गीत भी सुना। इस तरह इस दिन भी अलग-अलग भाव लिए गीत सुन कर अच्छा लगा।

मंगलवार को भी गीत सुनवाने आई रेणु (बंसल) जी। सिलसिला, अभिनेत्री, तेरी क़सम, खाकी, मोहरा, नमस्ते लन्दन के गीतों के साथ काला पत्थर फिल्म से कम सुने जाने वाले गीत की भी फरमाइश श्रोताओं ने भेजी। जानी दुश्मन फिल्म से यह गीत भी था - तेरे हाथो में पहना के चूड़ियाँ

कसमे वादे फिल्म का यह गीत अक्सर सुनवाया जाता हैं - कल क्या होगा किसको पता पर इस दिन इस दिन का आरंभिक हास्यप्रद भाग भी सुनवाया गया जिसे आर डी बर्मन ने गाया हैं जो अक्सर नही सुनवाया जाता।

बुधवार को अमरकांत जी ने सुनवाए ई-मेल पर आधारित गीत। देवर, कुर्बानी, सत्तर के दशक की फिल्म अंदाज, नई फिल्म साजन के गीतों के साथ यह गीत भी सुनवाया - रंग भरे मौसम के रंग चुरा के

गुरूवार को अशोक (हमराही) जी ले आए श्रोताओं के पसंदीदा नगमे। गजनी, ड़ोंन, पूरब और पश्चिम, देवदास, जख्म, नाजायज फिल्मो के गीत सुनवाए। विभिन्न मूड के रोमांटिक गीत सुनवाए, आंधी फिल्म से - तेरे बिना जिन्दगी से कोई शिकवा तो नही

साथ-साथ फिल्म से - ये तेरा घर ये मेरा घर

गंगा जमना फिल्म से दो हंसो का जोड़ा बिछुड़ गयो रे गीत भी बहुत दिन बाद ही सुना।

शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को शाम 4 बजे पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसारित हुआ कार्यक्रम हैलो फरमाइश। पिटारा की संकेत धुन के बाद इस कार्यक्रम की संकेत धुन सुनवाई गई।

शनिवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी ने। राजस्थान, मध्य प्रदेश के शहरों से फोन आए, लोकल कॉल भी थे। नए पुराने विभिन्न भावो के गीत सुनने के लिए अनुरोध किया। एक श्रोता ने परिवार के बच्चो के लिए दो कलियाँ फिल्म के गीत की फरमाइश की - बच्चे मन के सच्चे

तपस्या फिल्म का सन्देश देता गीत भी सुनवाया गया - जो राह चुनी तूने

श्रोताओं से हल्की-फुल्की बातचीत हुई, छात्र ने अपनी पढाई के बारे में बताया।

मंगलवार को फोन पर श्रोताओं से बातचीत की कमल (शर्मा) जी ने। छात्र, गृहिणी, बर्फ का काम, खाना पकाने वाले जैसे विभिन्न श्रोताओं ने अपने काम के बारे में बताया। हरियाणा के श्रोता ने वहां स्थित पृथ्वीराज चौहान के महल के बारे में बताया। नए पुराने गीत अनुरोध पर सुनवाए गए। रफी साहब का गाया पुराना गीत -

एक हसीं शाम को दिल मेरा खो गया

नई फिल्म फिर तेरी कहानी याद आई का एक ऐसा गीत फरमाइश पर सुनवाया गया जो बहुत ही कम सुनवाया जाता हैं - शायराना सी हैं जिन्दगी की फिजां

गुरूवार को श्रोताओं से फोन पर बातचीत की अशोक जी ने। श्रोताओं से दीपावली की शुभकामनाएं दी गई- ली गई। अलग-अलग क्षेत्र के श्रोताओं ने बात की जिससे विभिन्न जानकारियाँ मिली जैसे - पूना में हल्की सर्दी शुरू हो रही हैं। महाराष्ट्र के एक हरे-भरे क्षेत्र में सब्जियां अधिक उगी हैं, मराठवाडा में पानी से फसल खराब हो गई, एक महिला ने अपनी बहन को बेटा होने पर आराधना फिल्म के इस गीत का अनुरोध किया और सुनवाया गया यह गीत - चन्दा हैं तू

इस तरह नई पुरानी फिल्मो के गीत सुनवाए - अनजाना फिल्म से पहेली गीत, बहुत पुरानी फिल्म संगम का गीत।
सीतामढी, ग्वालियर से फोन आए, लोकल कॉल भी थे।

तीनो ही कार्यक्रमों में श्रोताओं ने विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों को पसंद करने की बात बताई। तीनो ही कार्यक्रमों में समाप्ति पर रिकार्डिंग के लिए फोन नंबर बताया गया - 28692709 मुम्बई का एस टी डी कोड 022 यह भी बताया कि हर शुक्रवार को 11 बजे से 1 बजे तक फोन कॉल रिकार्ड किए जाते हैं।

कार्यक्रम मनीष चन्द्र (वैश्य) जी, प्रदीप (शिंदे) जी के तकनीक सहयोग से हम तक पहुंचाया, रमेश (गोखले) जी, अमृता रानी जी के प्रस्तुति सहयोग से वीणा (राय सिंहानी) जी ने प्रस्तुत किया।

शाम बाद 7 बजे दिल्ली से प्रसारित समाचारों के 5 मिनट के बुलेटिन के बाद शुरू हुआ फ़ौजी भाईयों की फ़रमाइश पर सुनवाए जाने वाले फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम जयमाला। कार्यक्रम के शुरू और समाप्ति पर बजने वाली संकेत धुन अच्छी हैं, एकदम कार्यक्रम की परिचायक हैं।

शुक्रवार को शेफाली (कपूर) जी ने सुनवाए फ़ौजी भाइयों के पसंदीदा गीत छाया गीत के अंदाज में। नए-पुराने रोमांटिक गीत सुनवाए गए - एक दूजे के लिए, 1942 अ लव स्टोरी, बेताब और यह गीत भी शामिल था - नय्यो लगता दिल तेरे बिना

समापन किया अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो फिल्म के देश भक्ति के शीर्षक गीत से।

रविवार को कमल (शर्मा) जी ने सुनवाए यह मिले-जुले गीत - नई फिल्म साथी का गीत, हिमेश रेशमिया का झलक दिखला जा और यह गीत - कभी शाम ढले तो मेरे दिल में आ जाना

अलग-अलग मूड के गीत सुनवाए - पुरानी फिल्म कर्ज से - एक हसीना थी और बहुत पुरानी फिल्म खानदान से भी गीत शामिल था। राजा हिन्दुस्तानी फिल्म का गीत तकनीकी खराबी से ठीक से नही सुनवाया जा सका।

सोमवार को राजुल (अशोक) जी ने विभिन्न मूड के रोमांटिक गीत सुनवाए - ग़दर एक प्रेम कथा, सुर, कृष्णा कॉटेज फिल्मो के गीत भी शामिल थे।

वो लड़की बहुत याद आती हैं

मोहरा फिल्म से - न कजरे की धार न मोतियों के हारन कोई किया सिंगार फिर भी कितनी सुन्दर हो
गीत भी सुनवाए गए।

मंगलवार को बड़े मियाँ छोटे मियाँ फिल्म का शीर्षक गीत सुनवाया, मैंने प्यार किया फिल्म के ऐसे गीत की फरमाइश भी फ़ौजी भाइयों ने की जिसकी शायद ही पहले कभी फरमाइश की गई हो - मत रो मेरे दिल

पूरब और पश्चिम का देश भक्ति गीत भी सुनवाया - भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हैं

बुधवार को राजुल (अशोक) जी ने लगभग हर दौर के फिल्म के गीत सुनवाए - तीसरी मंजिल, कुछ कुछ होता हैं, निगाहें, हम साथ-साथ हैं फिल्म का शादी-ब्याह का गीत। राम तेरी गंगा मैली फिल्म का लोकप्रिय गीत हुस्न पहाडो का भी सुनवाया गया और फ़ौजी भाइयों ने कम सुने जाने वाले गीत की भी फरमाइश भेजी -

ये कैसी मुलाक़ात हैं मैं किस खुमार में हूँ

गुरूवार को ज्योति (शर्मा) जी ले आई इन फिल्मो के गीत - धनवान, गैम्बलर, राजा हिन्दुस्तानी और रब ने बना दी जोडी फिल्म का शीर्षक गीत और यह गीत जो कम ही सुनने को मिलता हैं - हमको तुमसे प्यार हैं

यह कार्यक्रम प्रायोजित रहा। प्रायोजको के विज्ञापन भी प्रसारित हुए, क्षेत्रीय विज्ञापन भी प्रसारित हुए। फ़ौजी भाइयों को एस एम एस करने का तरीका भी बताया गया जो इस तरह हैं -

मोबाइल के मैसेज बॉक्स में जाकर टाइप करना हैं - वीजेएम - जगह छोड़े यानि स्पेस दे - फिल्म का नाम - स्पेस दे - गाने के बोल - स्पेस - अपना नाम और रैंक जरूर लिखे और भेज दे इस नंबर पर - 5676744

10:30 बजे प्रसारित हुआ आपकी फ़रमाइश कार्यक्रम। यह कार्यक्रम भी प्रायोजित था इसीलिए प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए। इसमें श्रोताओं की फ़रमाइश पर कुछ समय पुरानी फिल्मो के गीत अधिक सुनवाए गए।

शुक्रवार को शेफाली (कपूर) जी गीत लेकर आई। गीत सुनवाने का अंदाज इसमे भी छाया गीत की तरह ही रहा। लोकप्रिय रोमांटिक गीत सुनवाए - ठाकुर जरनैल सिंह, गुमराह, शोला और शबनम, वो कौन थी, आस का पंछी फिल्मो से और रूप तेरा मस्ताना फिल्म से लताजी का गाया बहुत ही कम सुना जाना वाला यह गीत भी फरमाइश पर अंत में सुनवाया गया - देख लो इधर भी

शनिवार को परवरिश, उम्र क़ैद, सरस्वती चन्द्र, जी चाहता हैं फिल्मो के गीत और यह गीत भी सुनवाया - साथिया नही जाना के जी न लगे

रविवार को कमल (शर्मा) जी ने शुरूवात की अंखियों के झरोकों से फिल्म के शीर्षक गीत से, चिराग, गोरा और काला फिल्मो के गीतों के साथ ये गीत भी शामिल थे - दूर रह कर न करो बात करीब आ जाओ

और बहुत पुराना यह गीत - बड़े अरमान से रखा हैं बलम तेरी क़सम प्यार की दुनिया में यह पहला क़दम

सोमवार को माया, सावन की घटा, अनुपमा फिल्मो के गीतों के साथ यह गीत भी सुनवाया - आइए मेहरबां और गंगा जमुना फिल्म के इस गीत को सुनना अच्छा लगा जिसकी फरमाइश श्रोता कम ही करते हैं -
ढूंढो ढूंढो रे साजना मोरे कान का बाला

मंगलवार को कुछ पुरानी फिल्म कामचोर के साथ बहुत पुरानी फिल्मो के गीत सुनवाए गए - पतिता, एक दिल और सौ अफसाने, हमराज फिल्मो से और सती सावित्री फिल्म का यह गीत भी सुनवाया - तुम गगन के चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ
बुधवार को आई मिलन की बेला, लुटेरा, मिस्टर एक्स इन बॉम्बे जैसी पुरानी फिल्मो के गीत सुनवाए गए, यह गीत भी सुना - छोड़ कर तेरे प्यार का आलम

गुरूवार को श्रोताओं के ईमेल के अनुसार पुरानी नई फिल्मो के गीत सुनवाए गए - पुरानी फिल्म प्यार किया तो डरना क्या, सत्तर के दशक की फिल्म रोटी, हीरो, लावारिस फिल्मो के गीतों के साथ यह पुराना गीत भी सुना तलत महमूद की आवाज में -
बेचैन नजर बेताब जिगर ये दिल हैं किसी का दीवाना

बुधवार और गुरूवार को मन चाहे गीत और आपकी फ़रमाइश कार्यक्रम में ईमेल से प्राप्त फ़रमाइशें पूरी की जाती है अन्य दिन पत्र देखे जाते है। देश के अलग-अलग भागों से बहुत से पत्रों से गानों की फ़रमाइश भेजी गई और हर पत्र में भी बहुत से नाम रहे जबकि ई-मेल की संख्या कम ही रही। अधिकाँश गीत एक ही मेल पर सुनवाए गए। गाने नए पुराने दोनों ही शामिल थे।

हैलो फरमाइश कार्यक्रम को छोड़कर सभी कार्यक्रमों के दौरान अन्य कार्यक्रमों के प्रायोजक के विज्ञापन भी प्रसारित हुए और संदेश भी प्रसारित किए गए जिसमें विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में बताया गया।

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