सबसे नए तीन पन्ने :

Friday, October 9, 2009

शाम बाद के पारम्परिक कार्यक्रमों की साप्ताहिकी 8-10-09

शाम के प्रसारण में विविध भारती के पारम्परिक कार्यक्रम शामिल है यानि वो कार्यक्रम जिनसे विविध भारती की पहचान है और जो विविध भारती के लगभग शुरूवाती दौर से लेकर आजतक प्रसारित हो रहे है।

शाम 5:30 बजे फ़िल्मी हंगामा कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण शुरू हो जाता है जिसके बाद दुबारा हम 7 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुड़ते है।

7 बजने से 2-3 मिनट पहले क्षेत्रीय भाषा में झरोका प्रसारित होता है जिसमें 7 बजे के बाद से प्रसारित होने वाले क्षेत्रीय और केन्द्रीय सेवा के कार्यक्रमों की जानकारी दी जाती है फिर 7 बजे से 5 मिनट के लिए दिल्ली से समाचार प्रसारित होते है।

समाचार के बाद कुछ समय के लिए धुन बजती है ताकि क्षेत्रीय केन्द्र अपने विज्ञापन प्रसारित कर सके। इसके बाद गूँजती है जयमाला की ज़ोरदार परिचय (विजय) धुन जिसके बाद शुरू होता है कार्यक्रम। अक्सर शुरूवात में उदघोषक ने अपना और अपने साथ स्टूडियो में तैनात साथियों के नाम बताए फिर शुरू होता है फ़रमाइशों का सिलसिला।

सप्ताह भर एस एम एस द्वारा भेजी गई फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश पर ही गीत सुनवाए गए। ज्यादातर एक ही एस एम एस प्राप्त होने पर ही गीत सुनवा दिया गया।

शुक्रवार को सभी गीत नए थे जैसे दिल दिया है, इजाजत, जन्नत, चाँद के पार चलो और विवाह फ़िल्म का यह गीत -

हमारी शादी में अभी बाकी है हफ़्ते चार

शुक्रवार को विविध भारती के शनिवार को होने वाले जन्मदिन के लिए पुराने समय के निर्माता-निर्देशक जे ओमप्रकाश और नई गायिका मधुश्री के शुभकामना संदेश सुनवाए गए साथ में गीतों की झलक भी थी।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया पार्श्व गायक अमित कुमार ने। बढिया प्रस्तुति। कार्यक्रम का एक बहुत बड़ा भाग अपने पिताश्री किशोर कुमार को समर्पित किया। ऐसी बातें बताई जो श्रोता नहीं जानते जैसे किशोर कुमार अभिनय नहीं करना चाहते थे। फ़रेब फ़िल्म के गाने की रिकार्डिंग में बहुत ग़लतियाँ करते रहे। चतुरनार गीत पुराना है जो शास्त्रीय पद्दति का है जिसे बाद में पड़ोसन में हास्य रूप में रखा गया। इसके अलावा, मन्नाडे, हेमन्त कुमार और रफ़ी साहब को याद किया और उनके गीत सुनवाए इसीसे पुराने गीत अधिक सुनवाए। खुद के गीत भी सुनवाए जैसे बालिका वधू से और लव स्टोरी का गीत। आगे नहीं गाने का तय किया था फिर तेजाब के लिए अनुराधा पौडवाल के साथ गाया -

कह दो के तुम हो मेरी वरना

इस तरह कई नई जानकारियाँ देती अच्छी प्रस्तुति। इस कार्यक्रम को तैयार किया विनय तलवलकर और जयंत महाजन के तकनीकी और परिणीता नायक के प्रस्तुति सहयोग से कलपना (शेट्टी) जी ने।

रविवार और सोमवार को लगभग हर दशक से एक फ़िल्म का गीत फ़ौजी भाइयों के संदे्शों से प्राप्त अनुरोध पर सुनवाया गया। पचास के दशक से अब तक और सुनवाने का क्रम नया-पुराना मिलाजुला रखा।

रविवार को फ़िल्में रही - आओ प्यार करें (नई फ़िल्म), कुंआरा बाप, लावारिस, संगम, एक और नई फ़िल्म का ना मैं भूल रही हूँ और कवि कालिदास फ़िल्म का यह गीत -

शाम भई घनश्याम न आए

सोमवार की फ़िल्में रही - मेरे हमसफ़र (शीर्षक गीत), दादी माँ, नसीब, जांबाज़, ज़ुल्म की पुकार फ़िल्म का गीत संवादों के साथ सुनवाया गया और नई फ़िल्म तेरे नाम का यह शीर्षक गीत -

तेरे नाम हमने किया जीवन अपना सारा सनम

मंगलवार के लिए एक-दो पुराने गानों के साथ ज्यादा नए गाने चुने गए - हरियाली और रास्ता, धडकन, मासूम, कारपोरेट, प्रोफ़ेसर का यह गीत -

मैं चली मैं चली पीछे पीछे जहाँ

बुधवार को करवा चौथ को ध्यान में रखकर फ़ौजी भाइयों ने एक ख़ास गीत सुनने के लिए एस एम एस भेजा और इसी गीत से कार्यक्रम की शुरूवात की गई तो बहुत अच्छा लगा। सुहागरात फ़िल्म का यह गीत है -

हैय्या ओ गंगा मैय्या
गंगा मैय्या में जब तक के पानी रहे
मेरे सजना तेरी ज़िन्दगानी रहे

इसके अलावा स्वर्ण सुन्दरी और इन नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए - फूल और कांटे, राजा हिन्दुस्तानी, बार्डर

गुरूवार को सुनवाए गए इन नई-पुरानी फ़िल्मों के गीत - जब वी मेट, कोयला, हद कर दी आपने, गोलमाल, आरज़ू, ब्रह्मचारी और शर्मिली फ़िल्म का यह गीत -

खिलते है गुल यहाँ खिल के बिखरने को

कभी-कभार फ़ौजी भाइयों को एस एम एस भेजने के लिए तरीका और नम्बर बताया जाता रहा।

कार्यक्रम के दौरान विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों के प्रायोजकों के विज्ञापन ही प्रसारित हुए। इस तरह विज्ञापनों की संख्या बहुत कम रह गई। समझ में नही आता कि कंपनियों ने विविध भारती से मुँह क्यों मोड़ लिया जबकि लगभग हर चैनल पर विज्ञापन नज़र आते है। क्षेत्रीय विज्ञापन तो एक भी नही था।

कार्यक्रम का समापन भी परिचय धुन से होता रहा। हाँ, एक बात मुझे बहुत अख़र गई, फ़ौजी भाइयों को फ़ौजी दोस्तों कहना। यहाँ भाई शब्द इतना अच्छा लगता है कि किसी और शब्द के प्रयोग से फ़ौजी भाइयों से अपनापन कम होता नज़र आता है। हर जगह नए प्रयोग ठीक नहीं होते ख़ासकर भावनात्मक स्तर पर।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत कार्यक्रम प्रसारित होता है। यह भी एक पारम्परिक कार्यक्रम है, बरसों से सुन रहे है, समय अक्सर बदलता रहता है पर इसकी परिचय धुन वही है। इस शुक्रवार को तो तमाशा सा हो गया। लोकसंगीत कार्यक्रम की उदघोषणा हुई, परिचय धुन भी बजी फिर कहा गया, आज लोकसंगीत में सुनिए ग़ैर फ़िल्मी गीत, फिर विवरण बताया गया फिर शुरू हुआ गाँधीजी का यह गीत -

सुनो सुनो ए दुनिया वालों बापू की यह अमर कहानी

इस तरह की प्रस्तुति अजीब लग रही थी कम से कम गाँधी जी की के जन्मदिन के अनुरूप गौरवशाली तो नही थी। तभी बड़ी अजीब बात हुई बीच में से गीत बन्द हो गया और संगीत बजा फिर बीच में से एक लोकगीत शुरू हो गया। लोकगीत समाप्त होने पर बताया गया - अभी आप राजस्थानी लोकगीत सुन रहे थे फिर एक और लोकगीत शुरू हो गया जिसका एक भी बोल समझ में नहीं आया। फिर समाप्ति की अजीब घोषणा हुई - कहा गया अभी आप फोक संगीत सुन रहे थे लोक संगीत कार्यक्रम में, बस फिर बज उठी परिचय धुन. क्या तमाशा था यह... विविध भारती के प्राण प्रतिष्ठित कार्यक्रम की इतनी गंदी प्रस्तुति...

शनिवार और सोमवार को पत्रावली में निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी आए। श्रोताओं ने पत्रों में आज के मेहमान कार्यक्रम की तारीफ़ की जिसमें युनूस खान जी ने गायक शब्बीर कुमार से बात की थी और उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम की भी तारीफ़ हुई जिसमें ख़्यात गायिका शारदा से बातचीत की जा रही है। मंथन कार्यक्रम को दुबारा शुरू करने का अनुरोध किया गया जिसके जवाब में कहा गया कि फ़िलहाल संभव नहीं है। एक पत्र आया कि पिटारा का चूल्हा चौका अच्छा कार्यक्रम नहीं है फिर उन्हें समझाया गया कि यह एक विस्तृत कार्यक्रम है। गुलदस्ता कार्यक्रम को कम से कम एक दिन फ़रमाइशी करने के अनुरोध में भी पत्र आया। दो-चार पत्र ऐसे भी आए जिनमें कहा गया कि जिन फ़िल्मों में गानों की संख्या बहुत कम है ऐसी दो-तीन फ़िल्मों के गाने मिलाकर एक दिन एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में प्रसारित किए जा सकते है जिस पर विचार करने की बात कही गई।

मंगलवार को ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनवाई गई। यहाँ एक शिकायत है विवरण यानि गायक कलाकार, संगीतकार और रचयिता के नाम एक ही बार बताए गए, और नाम भी कठिन थे इसीलिए सुनना कठिन हो गया। आराम से और हो सके तो दो बार नाम बता दे तो ठीक रहेगा। तीन क़व्वालियाँ सुनवाई गई -

पैसा ही रंग रूप है

हसीना तेरे माथे पे ये आँचल अच्छा लगता है

तु हो महबूब ख़ुदा के - यहाँ शायद गायक कलाकार शिराज क़व्वाल और साथी है

बुधवार को इनसे मिलिए कार्यक्रम में रेणु (बंसल) जी की राधिका नायर से बातचीत प्रसारित हुई। राधिका जी पालतू जानवरों की सहायता से मंद बुद्धि बच्चों, मानसिक रोगी बड़ों-बुज़ुर्गों का इलाज करती है। बताया गया कि कुत्तों की ज्यादा सहायता ली जाती है, बिल्ली की सहायता लेना कठिन है। इन जानवरों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है। पूरी बातचीत सुनने के बाद भी यह स्पष्ट नहीं हुआ कि इलाज कैसे किया जाता है। बताया यह गया कि याददाश्त कमज़ोर होने पर कुत्ता साथ रखा जाता है जिससे रोगी कुत्ते से बात करता है लेकिन इससे याददाश्त ठीक होने में कैसे सहायता मिलती है, यह समझ में नहीं आया।

राग-अनुराग कार्यक्रम में रविवार को विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुनवाए जैसे -

राग सिन्धु भैरवी - प्यार से देखे जो कोई बहक बहक जाऊँ मैं (फ़िल्म - डार्क स्ट्रीट)

राग पीलू - सैया छोड़ दे बैय्या मोरी पतली कलैया मुड़ जाएगी

बहुत से राग - सोहनी, यमन, बहार, जौनपुरी पर आधारित स्वर्ण सुन्दरी फ़िल्म का यह गीत - कूँहू कूँहू बोले कोयलिया

गुरूवार को सुनवाए गए यह गीत -

राग दरबारी - फ़िल्म - आरज़ू - जब इश्क कहीं हो जाता है, तब ऐसी ही हालत होती है

राग बिलावल - फ़िल्म जिसने तेरा नाम लिया - मेरी अँखियों से दिल में तू आ रसिया

राग वृंदावनी सारंग - फ़िल्म महबूबा - गोरी तोरी पैंजनिया

राग-अनुराग एक ऐसा कार्यक्रम है जो सप्ताह में दो बार एक ही समय पर प्रसारित होता है। इस बारे में एक सुझाव है - कई बार पत्रावली कार्यक्रम से यह जानकारी मिली कि शाम 6:15 से 15 मिनट का कार्यक्रम सान्ध्य गीत प्रसारित होता है जिसमें फ़िल्मी भजन सुनवाए जाते है। यह कार्यक्रम हम क्षेत्रीय प्रसारण के कारण नहीं सुन पाते हो सकता है दूसरे शहरों में भी श्रोता नहीं सुन पाते हो। इस तरह हमें फ़िल्मी भजन बहुत ही कम सुनने को मिलते है। अगर राग-अनुराग सप्ताह में एक बार प्रसारित कर, एक दिन फ़िल्मी भजन सुनवाए जाए तो हमें भी इस कार्यक्रम का आनन्द मिलेगा।

8 बजे हवामहल में 2 अक्टूबर को यानी शुक्रवार को शिमला केंद्र की अच्छी प्रस्तुति थी। गुरूमीत रामल मीत का लिखा और निर्देशित लघु रूपक सुनवाया गया - महान आत्मा जिसमें गांधीजी के जीवन की झलक मिली, उनके धर्म, अहिंसा, विश्व बंधुत्व संबंधी विचार मिले साथ ही डा राधा कृष्णन्न के गांधी जी के संबंध में विचार भी जानने को मिले. पार्श्व में बापू का प्रिय भजन वैष्णव जन गूंजता रहा।

शनिवार को रोमेश शर्मा की लिखी झलकी सुनवाई गई - जूतों भरी कहानी जिसके निर्देशक है विजय दीपक छिब्बर। दुकान का मालिक और नौकर दोनों लड़कियों में गहरी रूचि रखते है, बहुत शौकीन भी है। चप्पलों के नाम भी लड़कियों और फ़िल्म कलाकारों पर रखे है - मीना, दिलीप… चप्पल दिखाते हुए लड़कियों का पैर भी पकड़ लेते है। एक ही पैर की चप्पल बेच देते है पर लड़की के बजाय उसकी माँ बड़बड़ाते हुए आती है और कहती लड़कियों को बार-बार बुलाने के लिए एक ही पैर की चप्पल बेचते हो… ऐसे ही चलता रहा नाटक…

रविवार की नाटिका अच्छी लगी। शबनम ख़य्यूम की लिखी - क्या मुसीबत है जिसके निर्देशक है गंगाप्रसाद माथुर। एक सही खरी बात के आस-पास हास्य बुना गया था, खरी बात है कि एक पढे-लिखे व्यक्ति के लिए चार कम पढे-लिखों के साथ रहना व्यावहारिक रूप से कठिन है। पति कहता है वो माँ ढूँढ रहा है पत्नी कहती है माँ भीतर के कमरे में है जबकि वह मैक्सिम गोर्की की पुस्तक माँ ढूँढ रहा है। हद तो तब हो जाती है जब वह शौख़त ख़ानवी की पुस्तक पगली ढूँढता है और पत्नी समझती है कि वह बेटी को पगली कह रहा है… वाकई क्या मुसीबत है यह अशिक्षित होना भी…

सोमवार को मज़ा नहीं आया। भोपाल केन्द्र की प्रस्तुति थी। प्रभा देवी दीक्षित की नाटिका - झगड़ा और निर्देशन मीनाक्षी मिश्र का। पति-पत्नी की नोक-झोक है। पत्नी ने बिल्ली पाल रखी है जो पति को पसन्द नहीं जिसके जवाब में पति ने कुत्ता पाला पर कुत्ता-बिल्ली दोनों में दोस्ती हो गई। उपदेश और हास्य दोनों एक साथ लेकर चलना कठिन है।

मंगलवार से धारावाहिक शुरू हुआ - एक क़दम आगे जिसकी लेखिका है विभा देवसरे और निर्देशक है कमल दत्त। वैसे कमल दत जी का नाम हो तो बात कुछ ख़ास ही होती है। यह धारावाहिक भी ख़ास है। पहली ही कडी से अच्छा लगने लगा। हमारे समाज में बेटी और बेटे के बीच होने वाले भेदभाव को विषय बनाया गया है। एक परिवार में लडकियाँ है - मीना और रीना जो पढाई के अलावा अन्य प्रतियोगिताओं की भी तैयारी करती है पर पिता को शिकायत है कि बेटा नहीं है जिसे पडोसी वर्माजी और बढावा देते है। पडौसी का लडका है गणेश जिसका मन न पढाई में लगता है और न खेल-कूद में। पिता से तेज़ आवाज़ में बात करता है तो कुछ नहीं पर जब लडकियों से कहा जाता है कि लडकी की तरह घर के काम करे तब लडकी का केवल यह कहना कि वह लडकी है तो इसमें उसका क्या दोष, अखर जाता है। हालांकि जब खेल-खेल में गेंद झाडियों में चली जाती है और वहाँ साँप नज़र आता है तब लडकी ही साहस दिखा कर साँप को लकडी से पीट कर भगाने की कोशिश करती है पर लडका डर जाता है।

बुधवार की कड़ी और भी अच्छी लगी। पेन्टिंग प्रतियोगिता में मीना और ग़णेश दोनों भाग लेते है। मीना को नग़द पुरस्कार मिलने से उन पैसों से बिजली का बिल चुक जाता है इस तरह गणेश के पिता वर्माजी से उधार लेने से अपने परिवार को वह बचा लेती है। गुरूवार को कहानी एक और कदम आगे बढी। रीना होनवार है और उसकी प्रिंसिपल चाहती है कि वह कैंप जाए जिससे उसकी प्रतिभा में और निखार आए पर दकियानूस पिता परम्पराओं की दुहाई देकर लड़की को बाहर कुछ दिन के लिए भेजने को तैयार नहीं उसके बाद वह शहर से बाहर चला जाता है ऐसे में बरसाती रात में वर्माजी की तबियत ख़राब होने पर उनका बेटा ग़णेश तो डर जाता है पर यह लड़कियाँ ही साहस कर डाक्टर को बुला लाती है। धारावाहिक जारी है…

वैसे यह हमारे समाज की सच्ची तस्वीर है। दिल्ली केन्द्र की बढिया प्रस्तुति।

हवामहल के बाद 8:15 से क्षेत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाते है फिर हम 9 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

1 comment:

डॉ. अजीत कुमार said...

इतनी विस्तृत जानकारी. लगा के हम एक बार फिर विविध भारती सुन रहा हूँ.

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें