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Tuesday, September 29, 2009

आइए आज याद करे एक मज़ेदार गीत

रेडियो से आजकल मज़ेदार गीत सुनने को ही नही मिल रहे। पहले कम से कम पहली अप्रैल को सुनवाए जाते थे। अब न तो श्रोता फ़रमाइश करते है और न विविध भारती अपने तरफ़ से सुनवाती है। एक ऐसा ही गीत है जिसे सुने बहुत समय हो गया।

1972 के आस-पास रिलीज़ फ़िल्म का जिसका नाम है - आज की ताज़ा ख़बर - इसमें मुख्य भूमिकाओं में है किरण कुमार, राधा सलूजा, असरानी, जगदीप, पेंटल। इसका चंपक भूमिया का चरित्र बहुत लोकप्रिय हुआ था।

इस गीत को किरण कुमार पर फ़िल्माया गया और फिर ऐसा मज़ेदार गीत किशोर कुमार ने गाया हो तो फिर क्या कहने। गीत के बोल है -

मुझे मेरी बीवी से बचाओ
अकड़ती है बिगड़ती है हमेशा मुझसे लड़ती है

(और अंत में बचाओ से मिलाए)

मुझे मेरी बीवी से ब ब ब ब मिलाओ

और बोल याद नहीं आ रहे।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, September 24, 2009

प्यार-मोहब्बत के गानों की दुपहरियों की साप्ताहिकी 24-9-09

विविध भारती का नाम लेने से दिमाग़ में एक ही बात आती है - फ़िल्मी गाने।

समाज में कुछ लोगो को तो यहाँ तक कहते सुना है कि दुनिया में चाहे कुछ हो जाए विविध भारती से तो बस चौबीसों घण्टे प्यार-मोहब्बत के गाने ही बजते रहते है। वैसे फ़िल्मी गानों के अलावा विभिन्न तरह के कार्यक्रम भी प्रसारित होते है जिनमें सेहतनामा जैसे कार्यक्रम भी शामिल है पर विविध भारती अपने स्वभाव के अनुसार इसमें भी फ़िल्मी गीत शामिल कर ही लेती है।

दोपहर के प्रसारण की बात करें तो इस समय मुख्य रूप से फ़रमाइशी फ़िल्मी गानों के ही कार्यक्रम प्रसारित होते है। एक-एक घण्टे के दो कार्यक्रम जिसके बीच आधे घ्ण्टे का शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम होता है।

सुबह के प्रसारण में त्रिवेणी कार्यक्रम के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है। कभी-कभार एकाध मिनट देर से जुड़ते है इसीसे आरंभिक बातें छूट जाती है। रविवार को क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम के कारण 12:30 बजे से जुड़ते है।

दोपहर 12 बजे एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुरूवात में 10 फ़िल्मों के नाम बता दिए जाते है फिर बताया जाता है एस एम एस करने का तरीका। पहला गीत उदघोषक खुद की पसन्द का सुनवाते है ताकि तब तक संदेश आ सके। फिर शुरू होता है संदेशों का सिलसिला। संदेश 12:50 तक ही करने के लिए कहा गया क्योंकि उसके बाद के संदेश शामिल नहीं किए जा सकते।

शुक्रवार को मंजू द्विवेदी जी साठ के दशक से अस्सी के दशक की फ़िल्में लेकर आई - अंदाज़, सच्चाई, दयावान, डार्लिंग-डार्लिंग, देस-परदेस, जीवा, धनवान, फ़रिश्ता, मनपसन्द, हरजाई। शनिवार को निम्मी (मिश्रा) जी लाई नई फ़िल्में - भूलभुलैया, फ़ना, दिल चाहता है, जब वी मेट, ज़ुबेदा, दस, चमेली, मैं ऐसा ही हूँ, नमस्ते लन्दन, ब्लैक एन्ड व्हाइट। रविवार को कुछ पुरानी फ़िल्में लेकर आए नन्द किशोर पाण्डेय जी - तेरे मेरे सपने, बावर्ची, गुड्डी, बीवी और मकान और बहुत दिन बाद श्रोताओं के अनुरोध पर सुनवाया गया नौकर फिल्म का यह गीत -

पल्लो लटको ओ म्हारो पल्लो लटके

सोमवार को इन पुरानी फ़िल्मों के साथ रेणु (बंसल) जी आई - जहांआरा, बरसात की रात, तराना, पाकीज़ा, शबनम, वल्लाह क्य बात है, मल्हार, बसन्त बहार, शादी, आह। इस दिन ईद का माहौल बना, कुछ ऐसे ही गीतों को सुनवाने के लिए श्रोताओं से संदेश आए जैसे -

मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का
कैसी ख़ुशी लेके आया चांद ईद का

मंगलवार को नई फ़िल्में रही - वीर-ज़ारा, धडकन, हम तुम, फ़िजा, सोलजर, कहो न प्यार है, मिशन काश्मीर, करीब। बुधवार को रेशमा और शेरा जैसी साठ सत्तर के दशक की बेहतरीन फ़िल्मों के साथ आए अशोक (सोनावणे) जी। इस दिन 12:15 से क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम प्रसारित हुआ फिर 12:30 बजे से हम केन्द्रीय सेवा से जुड़े। गुरूवार को नई फ़िल्मों के साथ आए कमल (शर्मा) जी, फ़िल्में रही - चेक दे इंडिया, देवदास, लगान, कृष, बंटी और बबली, सपने, अजनबी, रेफ़्यूजी

प्राप्त संदेशों के आधार पर अधिकतर लोकप्रिय रोमांटिक गीत सुनवाए गए जैसे शुक्रवार को सच्चाई फ़िल्म का यह गीत शामिल था -

सौ बरस की ज़िन्दगी से अच्छे है
प्यार के दो चार दिन

एकाध गीत अलग रहा जैसे गुरूवार को चेक दे इंडिया फ़िल्म का शीर्षक गीत उपदेशात्मक था।

आधा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर से बची हुई फ़िल्मों के नाम बता दिए जाते है और फिर से बताया जाता है एस एम एस करने का तरीका। एक घण्टे के इस कार्यक्रम के अंत में अगले दिन की 10 फ़िल्मों के नाम बताए जाते है।

इस तरह सप्ताह भर पुराने पचास के दशक से लेकर आज के दौर की फ़िल्में शामिल रही यानि हर उमर के श्रोता के लिए रहा यह कार्यक्रम। अधिकतर संदेश लोकप्रिय गीतों के लिए आए इसीसे इन फ़िल्मों के कम लोकप्रिय गीत सुनवाए नहीं जा सके।

हर गाने के लिए औसत 5-7 संदेश आए और संदेश के साथ कहीं 1-2 नाम थे तो अधिक से अधिक 5-8 नाम भी थे। सप्ताह भर इस कार्यक्रम को प्रस्तुत किया विजय दीपक छिब्बर जी ने। तकनीकी सहयोग रहा अशोक माहुलकर, सुमति शिंघाडे, प्रदीप शिन्दे, नि्खिल धामापुरकर, साइमन परेरा और तेजेश्री शेट्टी का।

1:00 बजे शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम अनुरंजनि में शुक्रवार को सुनवाया गया सविता देवी का ठुमरी गायन जिसके बाद राधिका मोइत्रा और कल्याणी राय की सरोद और सितार पर राग भैरव में जुगलबन्दी। शनिवार को नूरजहाँ का उप शास्त्रीय गायन और प्रतिमा देवी का सितार वादन सुनवाया गया। रविवार को भस्वराज राजगुरू का गायन सुनवाया गया, सुर मल्हार में दो बंदिशे सुनवाई गई -

बदरवा बरसन को आस

सजन बिन आस निरास भई

सोमवार को बी वी पलोसकर का गायन और रघुनाथ सेठ का बांसुरी वादन सुनवाया गया। बुधवार को विदुषी पद्मावती शालीग्राम का गायन और चन्द्रशेखर नार्लिंगकर का सुर बहार वादन सुनवाया गया। गुरूवार को विदुषी किशोरी अमोलकर और डा मंगलपल्ली बालमुरली कृष्णा के गायन की जुगलबन्दी सुनवाई गई।
राग पूर्या धनाश्री में बोल थे - कैसे दिन कटे

रविवार और गुरूवार को केवल गायन सुनने में ही अधिक आनंद आया और हर दिन गायन और वादन दोनों सुनवाए गए। सप्ताह भर बढिया संयोजन रहा - एक वादन और एक गायन की जुगलबन्दी रही, शास्त्रीय गायन के साथ उप शास्त्रीय गायन भी सुनवाया गया और सरोद, सितार, बांसुरी सुनने का आनन्द भी मिला।

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम प्रसारित हुआ जो प्रायोजित था। इस कार्यक्रम और अन्य कार्यक्रमों के केवल प्रायोजक के विज्ञापन ही प्रसारित हुए। पत्रों पर आधारित फ़रमाइशी गीतों में शुक्रवार को कुछ कम लोकप्रिय और कुछ नए गीत सुनवाए गए जैसे इन फ़िल्मों से - हीर रांझा, दो दिलो की दास्तान, तेरा जादू चल गया, दिल से, धड़कन। एकाध लोकप्रिय गीत भी सुना -

हर पल हर पल कैसा कटेगा हर पल

अन्य दिनों में फ़रमाइश के अनुसार लोकप्रिय गीत अधिक सुनवाए गए। लगता है श्रोता लोकप्रिय गीत ही अधिक सुनना चाहते है।

शनिवार को सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्मों जैसे अब्दुल्ला, शोर, ड्रीम गर्ल, सत्ते पे सत्ता, बातो बातों में के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए। अंतिम दौर में एक-दो नए गीत भी सुनवाए गए। रविवार को फरमाइश से अस्सी के दशक के गीत अधिक चुने गए एक-दो नए गीतों के साथ - थोड़ी सी बेवफाई, स्वयंवर, एक बार फिर, विरासत, कृष, हलचल, बरसात की एक रात। सोमवार को नई फ़िल्मों के गीत सुनवाने के लिए पत्र चुने गए जिनमें से आरंभ में कुछ अस्सी के दशक की फ़िल्में भी थी - स्वर्ग-नरक, एक दूजे के लिए, जब वी मेट, अपने, जैकपाट, वि्वाह, कुछ कुछ होता है। मंगलवार को अधिकतर अस्सी के दशक के गीत शामिल रहे - क्रान्ति, लवस्टोरी, नसीब, काला पत्थर फ़िल्मों से, एकाध नई फ़िल्म जैसे - मुझसे शादी करोगी के गीत भी सुनवाए गए।

बुधवार और गुरूवार को श्रोताओं के ई-मेल से प्राप्त संदेशों पर फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए। अच्छा लगा कि ई-मेल से संदेश भेजने वा्लों ने लगभग हर दशक की फ़िल्मों के गीत सुनने के लिए भी संदेश भेजे जैसे - संजोग, चौदहवीं का चांद, प्यार का मौसम, पगला कहीं का, राम तेरी गंगा मैली, बार्डर, नई फ़िल्में भी शामिल रही - अनवर, रब ने बना दी जोड़ी, ओंकारा

बहुत सुने जाने वाले गीतों के साथ कुछ ऐसे गीतों के लिए भी ई-मेल आए जो कम ही सुनवाए जाते है जैसे इजाज़त फ़िल्म का गीत -

ख़ाली हाथ शाम आई है

बुधवार को पुराने गीत अधिक सुनवाए गए और गुरूवार को नए गाने अधिक रहे।

ई-मेल की संख्या कम ही रही। अधिकतर गीत तो एक ही ई-मेल पर सुनवाए गए जबकि अन्य दिन हर गीत के लिए देश के दूरदराज से औसत 5-6 फ़रमाइशी पत्र और हर पत्र में नामों की लम्बी सूची रही जैसा कि बरसो से विविध भारती पर सुनते आ रहे है।

इस तरह पत्रों और ई-मेल संदेशों, दोनों से ही प्राप्त नई पुरानी फ़िल्मों के गीतों के अनुरोध पर सप्ताह भर मिले-जुले गीत सुनवाए गए जिनमें ज्यादातर गीत रोंमांटिक ही रहे। नवरात्रि और ईद के इस सप्ताह में शनिवार को प्यार-मोहब्बत के गाने ही बजते रहे पता ही नहीं चला की इस दिन से नवरात्री शुरू हुई है और ईद के गीत तो 12 बजे के कार्यक्रम में एस एम एस के संदेशों पर ही सुनने को मिले, मन चाहे गीत में कोई पत्र ईद के किसी गीत की फ़रमाइश के लिए नहीं आया।

3 अक्तूबर विविध भारती के जन्मदिन का रंग भी नज़र आया। विविध भारती का गीत भी सुनवाया गया - मैं हूँ विविध भारती। एक विशेष संदेश भी बताया गया कि इस दिन विशेष मन चाहे गीत प्रसारित होगा जिसके लिए श्रोता अपने जीवन की किसी विशेष घटना के साथ अपनी पसन्द के गीत के लिए संदेश भेज सकते है। एक और विशेष कार्यक्रम के बारे में बताया गया जिसे इस दिन 12 से 1:30 बजे तक अलका याज्ञिक और कुमार सानू प्रस्तुत करेंगे, अगर इन दोनों गायकों से श्रोता कुछ पूछना चाहते है तो 22 तारीख़ तक ई-मेल भेजने के लिए कहा गया।

मन चाहे गीत की समाप्ति पर 2:30 बजे से आधे घण्टे के लिए क्षेत्रीय प्रसारण होता है जिसमें मन चाहे गीत की ही तरह तेलुगु फ़िल्मों के फ़रमाइशी गीतों का कार्यक्रम जनरंजनि शीर्षक से प्रसारित होता है जिसके बाद केन्द्रीय सेवा के दोपहर बाद के प्रसारण के लिए हम 3 बजे से जुड़ते है।

श्री महेन्द्र मोदी साहब- जन्मदिन मुबारक़ हो ।

आज यानि दि. 24वीं सितम्बर के दिन विविध भारती के चेनल-हेड श्री महेन्द्र मोदी साहब का जन्म-दिन है । तो इस अवसर पर रेडियोनामा की और से मोदी साहब को न केवल इस वर्ष पर पूरी ज़िन्दगी सुन्दर रहे और आज जैसी शोहरत उनको हर-हमेंश मिलती रहे ऐसी शुभ:कामनाएँ ।

पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।

Tuesday, September 22, 2009

अन्नपूर्णाजी की पोस्ट बरखा बैरन-(फ़िल्म -सबक) ता. 24वी मार्च, 2009 सुनिये गाना

दि. 24वीं मार्च, 2009 के दिन अन्नपूर्णाजीने फिल्म सबक के बरख़ा गीत बरख़ा रानी (गायक-मूकेश) तथा बरख़ा बैरन (गायिका-सुमन कल्याणपूर) को याद किया था । मेरे सुरत निवासी मित्र श्री हरीश रघूवंशीने मूझे यू-ट्यूब की लिंक पर इसी गाने का नकली विडीयो (यहाँ मेरे कहने का मतलब वो नकली नहीं है पर किसीने श्राव्य गानेको सिर्फ़ सुमनजी के अलग अलग फोटो के साथ विडीयो बनाया है। )भेज़ी थी, जिसको को अपने लेपटोप पर आंतरीक ध्वनि-मूद्रीत करके सिर्फ़ श्राव्य मैंनें बनाया है और नीचे आप सभी के लिये तथा अन्नपूर्णाजी के लिये भी रख़ा है । तो सुनिये :

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पियुष महेता |
नानपूरा, सुरत ।

फ़िल्म लाल पत्थर की रफ़ी साहब की गाई ग़ज़ल

आप सबको ईद मुबारक !

ईद के माहौल में याद आ रही है क़व्वालियाँ, ग़ज़लें। आज याद करेगें लाल पत्थर फ़िल्म की रफ़ी साहब की गाई ग़ज़ल। यह फ़िल्म 1972 के आस-पास रिलीज़ हुई थी। फ़िल्म में एक कलाकार यह ग़ज़ल गाते है और राजकुमार को तबले पर संगत करते हुए बताया गया है। इस फ़िल्म के अन्य कलाकार है हेमामालिनी, राखी और विनोद मेहरा।

रेडियो से पहले यह ग़ज़ल बहुत सुनते थे ख़ासकर उर्दू सर्विस से श्रोताओं की फ़रमाइश पर बहुत सुनवाई जाती थी। अब बहुत दिनों से नही सुनवाई गई। ग़ज़ल के बोल है -

उनके ख़्याल आए तो आते चले गए
दीवाना आदमी को बनाते चले गए
उनके ख़्याल

जो साँस आ रहा है किसी का पयाम है
तन्हाइयों को और बढाते चले गए
उनके ख़्याल

होशोसवास पे मेरे बिजली सी गिर पड़ी
मस्ती भरी नज़र से पिलाते चले गए
उनके ख़्याल

इस दिल से आ रही है किसी यार की सदा
बेताबी ------------------


पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Thursday, September 17, 2009

सुबह के पंचरंगी प्रसारण की साप्ताहिकी 17-9-09

पहले विविध भारती से कहा जाता था - ये विविध भारती है आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम या कहते थे ये आकाशवाणी है विविध भारती का पंचरंगी कार्यक्रम. पंचरंगी कार्यक्रम के बारे में सुना था की शुरूवात में पांच तरह के कार्यक्रमों की योजना थी यानी पांच रंगों के कार्यक्रम जिनमें एक रंग फिल्मी संगीत, दूसरा शास्त्रीय संगीत, तीसरा लोकसंगीत और अधिक मुझे जानकारी नहीं है, खैर... आज के समय की बात करें तो सुबह के प्रसारण में 6 से 8 बजे तक के कार्यक्रमों में पांच रंग स्पष्ट नजर आते है - पहला रंग गूढ़ कथन का चिंतन है, दूसरा वन्दनवार का भक्ति संगीत, तीसरा पुराने फिल्मी संगीत का सुरीला रंग, चौथा शास्त्रीय गहराई में डूबा पारंपरिक संगीत और पांचवा रंग दिन भर के लिए उपदेश देता है.

अब एक नज़र इस सप्ताह के सुबह के कार्यक्रमों पर… इस सप्ताह दो दिन ख़ास रहे - सोमवार को हिन्दी दिवस - वास्तव में यह दिन विविध भारती के लिए पर्व का दिन होना चाहिए क्योंकि न सिर्फ़ देश में बल्कि विदेशों में भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में विविध भारती का बडा योगदान है पर सुबह के प्रसारण में हिन्दी दिवस की झलक तक नहीं मिली। आज गीतकार हसरत जयपुरी की पुण्य तिथि है जिनके लिए भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम समर्पित किया गया।

सप्ताह भर सुबह पहले प्रसारण की शुरूवात परम्परा के अनुसार संकेत धुन से हुई जिसके बाद वन्देमातरम फिर बताए गए दिन और तिथि, संवत्सर तिथि भी बताई गई जिसके बाद मंगल ध्वनि, यह सभी क्षेत्रीय केंद्र से प्रसारित हुए. इसके बाद 6 बजे दिल्ली से प्रसारित हुए समाचार, 5 मिनट के बुलेटिन के बाद मुम्बई से प्रसारण शुरू हुआ वन्दनवार कार्यक्रम से जिसकी शुरूवात मधुर संकेत धुन से हुई, यह धुन सुबह के समय के लिए बहुत उचित है फिर सुनाया गया चिंतन.

चिंतन में गूढ़ विचार बताए जाते है जो आध्यात्म की उंचाइयो को छूते है और हर दिन जीवन दर्शन का एक पाठ पढाते है जैसे महाभारत में बताए गए मानव लोक के छः सुखों को बताया गया, स्वामी रामतीर्थ द्वारा बताया गया वेदान्त का कथन कि ईश्वर स्वयं में है जिसे अनुभव किया जाना है, बाणभट्ट का कथन की इंसान की नियत धन की गरमी से लता के समान झुलसती है। सोमवार हिन्दी दिवस को स्वामी विवेकानन्द के विचार बताए गए कि विश्व को कुटुम्ब मानने की योग्यता उसी में होती है जो किसी भी तरह के भेदभाव को नहीं मानता है जबकि इस दिन भाषा संबंधी महात्मा गांधी जैसे किसी मनीषी के कथन बताए जा सकते थे।

वन्दनवार में अच्छे भक्ति गीत सुनवाए गए, ईश्वर के साकार रूप की भक्ति जैसे -

शिव स्तुति - हे गंगाधर हे शिवशंकर

निराकार रूप की भक्ति -

प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी

भक्ति गीत जैसे -

इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले
गोविन्द नाम लेकर तब प्राण तन से निकले

पारंपरिक रचनाएं भी सुनवाई गई -

ॐ जय जगदीश हरे

पुराने लोकप्रिय भजन भी शामिल रहे -

प्रबल प्रेम के पाले पड कर प्रभु को नियम बदलते देखा
अपना मान टले टल जाए भक्त का मान न टलते देखा

पर एक भी नया भजन नही सुनवाया गया।

सप्ताह भर कार्यक्रम की प्रस्तुति का आलेख भी अच्छा रहा, कहा गया कि ईश्वर प्रेम में है, समभाव में है, ह्रदय में विकार नही होना चाहिए, ईश्वर की उपासना पूरे मन से करना चाहिए आदि।

कार्यक्रम का अंत देशगान से होता रहा। अच्छे देशभक्ति गीत सुनवाए गए, लोकप्रिय गीत जैसे -

है स्वर्ग नही धरती पर धरती को स्वर्ग बनाना है

हर्ष से अपना आँगन द्वारा खुशिया आज मनाए री
आओ सखी मंगल गाए री

नया या बहुत कम सुना गीत -

जय जन्म भूमि जय हो

सप्ताह में एक बार भी गीतों का विवरण नही बताया गया।

6:30 से क्षेत्रीय प्रसारण में तेलुगु भक्ति गीत सुनवाए गए जिसके बाद 6:55 को झरोका में केन्द्रीय और क्षेत्रीय प्रसारण की जानकारी तेलुगु भाषा में दी गई.

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम के दूसरे भाग से हम जुड़े जो प्रायोजित है. इसीसे विज्ञापन भी प्रसारित हुए पर एक भी विज्ञापन क्षेत्रीय केंद्र का नही था. इस कार्यक्रम में भूली बिसरी आवाजे, गीतकार, संगीतकार और फिल्मो के नाम कम ही सुनाई दिए, जाने पहचाने गीत ही अधिक रहे. शुक्रवार को सुरैया का गाया अफसर फिल्म का लोकप्रिय गीत सुनवाया गया -

नैना दीवाने इक नही माने

साथ ही तलत महमूद, हेमंत कुमार के गाए गीत भी सुनवाए गए. रविवार को सुमन कल्याणपुर का फरेब फिल्म का कम सुना गीत प्रसारित हुआ -

ए जिन्दगी के साथी ना जाना जिन्दगी से

इसके अलावा लता, रफी, किशोर, आशा के अक्सर सुनाए जाने वाले गीत सुनवाए गए.

शनिवार को तो कार्यक्रम का एक अंश भी भूला बिसरा नही था.

आज गीतकार हसरत जयपुरी की पुण्य स्मृति में कार्यक्रम समर्पित किया गया। गीतों का चुनाव अच्छा रहा। उनके लिखे ऐसे गीत भी सुनवाए गए जो कम ही सुनवाए जाते है जैसे सुहागन फ़िल्म का लताजी और मन्नाडे का गाया गीत -

भीगी चाँदनी छाई बेखुदी

हर दिन कार्यक्रम का समापन कुंदनलाल सहगल के गीत से होता रहा. अक्सर लोकप्रिय गीत ही सुनवाए गए पर शुक्रवार को सुनवाया गया परवाना फिल्म का यह गीत कम ही सुनवाया जाता है -

टूट गए सब सपने मेरे
ये दो नैना सावन भादों
बरसे शाम सवेरे

इस कार्यक्रम में कुछ सामान्य जानकारी भी दी गई जो अच्छी लगी जैसे कुछ फिल्मों के रिलीज का वर्ष और बैनर बताया गया, एक ही नाम से बनने वाली अधिक फिल्मो की जानकारी ही दी गई. एकाध बार उस दिन प्रसारित होने वाले कार्यक्रम की भी जानकारी दी गई जैसे बताया कि एक ही फिल्म से कार्यक्रम में पुरानी फिल्म नदिया के पार के गीत सुनवाए जाएगे और गीत की झलक भी सुनवाई गई. इसके अलावा एकाध बार उदघोषक ने अपना नाम भी बताया और उनके साथ कंट्रोल रूम और ड्यूटी रूम के साथियो के नाम भी बताए।

पर हर दिन एक बात खटकती रही कि भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम की संकेत धुन नहीं है।

7:30 बजे संगीत सरिता में बढिया श्रृंखला चल रही है - एक धुन दो रूप जिसमें आमंत्रित कलाकार है लोकगीत गायिका सुचरिता गुप्ता और भोजपुरी फिल्मो के संगीतकार राजेश गुप्ता. इसमे उत्तर प्रदेश के उन लोकगीतों पर चर्चा की जा रही है जिन्हें फिल्मो में लिया गया है. सुचरिता जी ने लोकगीत गाये है जिनकी रिकार्डिग वाराणसी केंद्र में की गई. यहाँ निम्मी (मिश्रा) जी के साथ बातचीत कर रहे है राजेश जी. बताया गया कि भाव के अनुसार इन गीतों के नाम है. लोकगीत के साथ इसकी ताल की भी जानकारी दी जा रही है जिसे बजा कर सुना रहे है विवेक कुलकर्णी. इन गीतों को विभिन्न रागों की सहायता से फिल्मी गीतों में ढाला गया है. फिल्मी गीत भी सुनवाए गए.

ये लोकगीत और फिल्मी गीत है -

लाचारी गीत - मध्यम ताल - तोरी गोरी कलाई लुभाए जियरा

राग कल्याण की झलक - फिल्म मुझे जीने दो - नदी नारे न जाऊ

कजरी - बारामासा- नई दुलानी के ढैया बलमा दुपहरिया बिताए रहो

राग असावरी - फिल्म अगर तुम न होते - हम तो है छुई मुई

ख़ास ताल दीपचंद है -

लोरी - निंदिया काहे न आवे

धीरे से आजा रे अँखियन में निंदिया

काहे को ब्याही विदेश

इस बढिया कार्यक्रम का संयोजन कांचन (प्रकाश) संगीत ने किया है, प्रस्तुति सहयोग वसुंधरा अय्यर और तकनीकी सहयोग दिलीप कुलकर्णी, प्रदीप शिंदे, जयंत महाजन, शशांक काटकरे का है.

7:45 को त्रिवेणी में हर दिन एक अच्छा विचार बताया गया जैसे मौसम का असर हम पर भी पड़ता है, इसीलिए प्रकृति को न छेडे, मानव मन जल के समान है, सभी के लिए जीवन की अपनी परिभाषा है, माता-पिता का सम्मान किया जाना चाहिए। इन विचारों पर चर्चा करते हुए नए पुराने गीत सुनवाए गए।

सोमवार का विचार था - हर एक के जीवन में एक मंज़िल होनी चाहिए ताकि उसको पाने के लिए वह एक रास्ता बना कर आगे बढे। क्या ही अच्छा होता इस दिन भाषा से संबंधित कोई विचार लिया जाता।

त्रिवेणी के बाद क्षेत्रीय प्रसारण तेलुगु भाषा में शुरू हो जाता है फिर हम दोपहर 12 बजे ही केन्द्रीय सेवा से जुडते है।

Tuesday, September 15, 2009

15 सितम्बर, अभिनेता-निर्देषक श्री क्रिष्नकान्तजी को जन्मदिन की बधाई ।

प्रति-पत्रावलि,



आज वरिष्ठ चरित्र-अभिनेता तथा तीसरा किनारा जैसी फिल्मों के निर्देषक श्री क्रिष्नकान्तजी जन्म तारीख है । उनका जन्म हाव्ररा -कल्कत्तामें 15 सितम्बर, 1922 के दिन हुआ था । बादमें उनकी पढाई सुरतमें और ध्वनि अभियंता बनने के लिये वीजेटीआई मुम्बई में पूरी की थी । बादमें साउन्ड इंजिनीयर के रूपमें फिल्मोंमें प्रवेश लिया । फ़िर स्व. नितीन बोझ को जब निर्देषन के लिये मुम्बई आमंत्रीत किया गया, तब बान्गला भाषा की जानकारी के कारण उनके एक सहायक के रूपमें लिये गये । और अभिनेता के रूपमें भी शुरूआत हो गयी । पर अपने दिख़ावे के कारण वे जवानीमें ही मूख़्य अभिनेत्री के पिता बन गये । फिल्म पतितामें उषा किरणजीके लकवा-ग्रस्त अपाहीज़ पिता के रूपमें बहोत शोहरत हांसील हुई । फिल्म डिटेक्टीवमें दोहरी भूमिका की, जिसमें एक बूरे इंसान की थी । फ़िल्म जागते रहोमें भी देसी दारू के गुन्हेगार व्यापारी की भूमिका निभाई । फिल्म शेरू का गाना ओ ओ माटी के पुतले और फिल्म पोस्ट बोक्ष नं 999 का गाना जोगी आया ले के संदेशा भगवान का, इन दोनों गाने उन पर चित्रीत हुए थे । काश विविध भारती भूले बिसरे गीत या सदा बहार गीत में से एक कार्यक्रममें उनको याद करके इन दोनों या एक गाने को स्थान आज के दिन देती ! जैसे एक विदेशी हिन्दी रेडियो चेनलने किया । नाम दे पाता पर शायद विविध भारती को नाम देना पसंद नहीं आता । शायद विविध भारती को इस मंच से मेरा उनको याद करना भी जचेगा या नहीं ? कई सालोंसे इस बातको मं पहेले से याद कराता था । पर निराशा के सिवा कम से कम कुछ मामले में तो हांसिल नहीं होता, जिसमें यह मामला भी एक है । आप इस मंचसे आने वाले विज्ञापन के बारेमें जब पत्रावलि या मेईल से कहते है , वह शत-प्रतिशत सही है पर, लोगोको कोई असर नहीं होता । मेरी इस टिपणी के पूर्व पूरा पन्ना अब सीधी नहीं पर लिन्क्स के रूप में भूतिया श्रोता लोग द्वारा की गयी वही बात है । हाँ, रेडियो कार्यक्रम की समीक्षा वाले ब्लोग की बात या लिन्क देते है तो उसमें कोई व्यापार नहीं है । इस लिख़ाई को मैनें सीधे विविध भारती की वेब साईट की गेस्ट बूकमें रख़ने की कोशिश की थी पर रिजेक्ट हुई ।और यहाँ यह भी स्पस्ट करता हूँ कि वह पाडोशी रेडियो चेनल रेडियो श्री लंका -हिन्दी सेवा है और मेरी सुचना के आधार पर मेरे नाम के साथ प्रसारित हुआ था , श्री क्रिष्नकान्तजी को बधाई संदेश । श्रीमती अन्नपूर्णाजी से आज के दिन उनकी पोस्ट के तूर्त बाद ही मेरी इस पोस्ट को रख़ने के लिये माफ़ी की अपेक्षा है । पर दिन और तारीख़ के औचिन्त्य के लिये यह ज्रूरी हो गया ।

पियुष महेता ।

नानपूरा, सुरत ।

SURAT

दिल की किताब कोरी है कोरी ही रहने दो

आज याद आ रहा है रेहाना सुल्तान की एक फ़िल्म का गीत जो वर्ष 1972 के आस-पास रिलीज़ हुई थी। यह एक अच्छी सामाजिक फ़िल्म थी पर अधिक नहीं चली, फ़िल्म का नाम है - यार मेरा

इसमें नायक शायद अनिल धवन है। इसका यह युगल गीत किशोर कुमार के साथ लता या आशा जी ने गाया है। इसका केवल मुखडा ही मुझे याद है -

दिल की किताब कोरी है कोरी ही रहने दो
शायद इसमें ---- है ---- ही रहने दो

बहुत लम्बा समय हो गया इसे रेडियो से नहीं सुना।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Monday, September 14, 2009

मेरे आस-पास बोलते रेडियो-9

मेरे आस-पास बोलते रेडियो-9 -पंकज अवधिया


पीपल, पलाश और माहुल की पत्तियो से तैयार पत्तल गर्म-गर्म खिचडी परोसी जाये और फिर मुनगे (सहजन) की सब्जी के साथ उसे खाया जाये। खिचडी को कुछ समय तक इस पत्तल मे रखा रहने दिया जाये ताकि पत्तियो से उसकी अभिक्रिया हो सके। ऐसा महिने मे कम से कम दो बार तो अवश्य किया जाना चाहिये। अपनी वाणी को सुमधुर रखने की कामना करने वालो को देश के पारम्परिक चिकित्सक यह सलाह देते है। आप सोच रहे होंगे कि रेडियो वाले ब्लाग मे यह पारम्परिक चिकित्सा का पाठ कैसे शुरु हो गया? आप सही सोच रहे है। चलिये, मै इसका खुलासा कर ही देता हूँ। जब मैने इस ब्लाग की सदस्यता ली थी तो माननीय युनुस खान जी ने यह उम्मीद जतायी थी कि मै आवाज की गुणवत्ता सुधारने के लिये उपयोगी जडी-बूटियो के विषय मे लेख लिखूंगा ताकि रेडियो उद्घोषको को लाभ हो सके। “मेरे आस-पास बोलते रेडियो” की लम्बी लेखमाला मे मै रेडियो के विभिन्न पहलुओ पर लिखता रहा पर इस विषय मे नही लिख पाया। अब इस कमी को दूर करने का प्रयास कर रहा हूँ।

पीपल के पके फल जिसे पिकरी भी कहा जाता है, खाने मे स्वादिष्ट होते है। नाना प्रकार के पक्षी फलन के समय पीपल मे डेरा जमाये रहते है। यह फल मनुष्यो के लिये भी बहुत उपयोगी है। इसका मौसम भर सेवन आवाज को साफ रखता है। यह पेट साफ भी करता है। इसी तरह पीपल के एक रिश्तेदार गूलर जिसे डूमर भी कहा जाता है, के फलो को देशी अंजीर का दर्जा प्राप्त है। चाहे मुम्बई हो या रायपुर यह आसानी से मिल जाता है। बाजार मे नही बल्कि आस-पास बाग-बागीचो मे। इन फलो को बच्चे बडे चाव से खाते है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। गले के लिये इसकी विशेष महत्ता है। गूलर के पके हुये फलो के सेवन का मौका कभी भी नही चूकना चाहिये।

पारम्परिक चिकित्सक बच जिसे वचा भी कहते है, का टुकडा मुँह मे रखकर चूसने की सलाह देते है। बच आसानी से पंसारी की दुकान मे मिल जाती है। आजकल बडी कम्पनियाँ भी इसका विपणन कर रही है। ग्रामीण अंचलो मे बच्चो की तुतलाहट दूर करने के लिये आज भी इसका प्रयोग किया जाता है। यदि आपके पास बागीचा है तो आप इसे स्थायी तौर पर घर मे लगा ले। यह वनस्पति कम देखभाल के आसानी से उगती है। किसानी भाषा मे इसीलिये इसे “आलसियो की फसल” कहा जाता है। एक बार लगाया तो फिर ज्यादा देखभाल की जरुरत नही। आज के प्रदूषण भरे माहौल मे बच के पौधे वातावरण को साफ रखने मे अहम भूमिका निभाते है। बच के टुकडे को जब तक अच्छा लगे मुँह मे रखे फिर फेक थे। ज्यादा देर तक मुँह मे रखने से उबकाई आ सकती है।

गले की नियमित देखभाल के लिये गुनगुने पानी से गरारे करना लाभप्रद है, यह हम सभी जानते है। पर गरारे करने के बाद गले को गरम कपडे से लपेटकर रखना जरुरी है ताकि ठंडी हवा न लगे। ये उपाय कम लोग ही करते है। फिर गरारे के लिये अधिक गर्म पानी का उपयोग न करे। गरारे करने के कम से कम पन्द्रह मिनट बाद तक मौन रखे। इससे इसका असर बढ जायेगा। पानी के साथ फिटकरी ,हल्दी, शहद आदि मिलाकर भी गरारे किये जा सकते है पर सबसे उपयुक्त यही है कि नमक पानी के गरारे किये जाये। किसी भी तरह के संक्रमण चाहे वह स्वाइन फ्लू का ही संक्रमण क्यो न हो, से बचने के लिये सबसे सस्ता और प्रभावी उपाय है नमक पानी से गरारे और जल नेती का प्रयोग। जलनेती बहुत आसान है। पास के योग केन्द्र मे जाकर आप इसके विषय मे विस्तार से जान सकते है। जलनेती आपके गले के लिये विशेष लाभकारी है।

आवाज की दुनिया से जुडे लोग अदरक से विशेष मित्रता रखते है पर बहुत कम लोग जानते है कि अदरक का सेवन सम्भलकर किया जाना चाहिये। प्राचीन भारतीय ग्रंथ नाना प्रकार के त्वचा रोगो मे अदरक का प्रयोग न करने की सलाह देते है। साथ ही अदरक को साल भर भी नही लिया जाना चाहिये। देश के पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि लम्बे समय तक चाय मे अदरक का प्रयोग लाभ के स्थान पर नुकसान कर सकता है। दवा को दवा की तरह ही लिया जाना चाहिये।

पारम्परिक चिकित्सक पोखरा (कमलगट्टा) और सिंघाडा को गले के लिये अति उपयोगी मानते है। उनका कहना है कि मौसम विशेष मे उपलब्ध होने वाले इन उपहारो के उपयोग का अवसर नही चूकना चाहिये।

गले के लिये अनगिनत घरेलू नुस्खे है। इस लेख मे मैने उन प्रभावी उपायो की चर्चा की जिसके बारे मे कम ही जानकारी है। आशा ही युनुस जी और उनके साथियो के लिये यह जानकारी उपयोगी सिद्ध होगी।

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

Sunday, September 13, 2009

श्री गोपाल शर्मा द्वरा स्व. जयकिशनजी को श्रद्धांजली-रेडियो श्री लंकासे

रेडियोनामा के पाठको
कल यानि 12 सितम्बर को संगीतकर स्व. जयकिशन की पूण्यतिथी के अवसर पर रेडियो श्रीलंका की हिन्दी सेवा से विख़्यात और वरिष्ठ उद्दघोषक श्री गोपाल शर्माजी द्व्रारा जयकिशनजीकी मृत्यूके अवसर पर जो श्रद्धांजली कार्यक्रम, जो उस समय विविध भारती के बिज्ञापन प्रसारण सेवा के मुम्बई पूना और नागपूर सहीत अन्य केन्द्रों पर प्रायोजित कार्यक्रम के रूपमें प्रस्तूत किया गया था, प्रस्तूत किया गया । तो 15 मिनीट के इस कार्यक्रममे6 श्री गोपाल शर्माजीने सम्पादन की जो कमाल दिख़ाई है, उसका लूफ़्त आप भी उठायें । यह शॉर्ट वेव रिसेप्सन है । इस लिये एफ एम की गुणवत्ता यहाँ गेर-हाज़िर है । पर घ्यान से सुनने पर गाने और शर्माजी की टिपणीयाँ सुननेमें सिर्फ़ थोडी ही तकलीफ होगी पर पूरा समज़में आयेगा ही ।
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पियुष महेता ।
नांपूरा, सुरत ।

Tuesday, September 8, 2009

फ़िल्म प्रेमनगर का सुर मन्दिर का गीत

वर्ष 1975 के आसपास रिलीज फिल्म प्रेमनगर का एक गीत आज याद आ रहा है जिसे बहुत दिनों से रेडियो से नही सुना.

लता जी के गाए इस गीत को हेमामालिनी पर फिल्माया गया है. इसके जो बोल याद आ रहे है वो है -

ये कैसा सुर मंदिर है जिसमे संगीत नही
गीत लिखे दीवारों पे गाने की रीत नही

मूरत रख देने से क्या मंदिर बन जाता है
यूं ही पडा रहने से शीशा पत्थर बन जाता है
वो पूजा कैसी पूजा जिसमे प्रीत नही

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Wednesday, September 2, 2009

अन्नपूर्णा जी ने याद किया - ’ एक मुट्ठी आसमान ’

रेडियोनामा पर सर्वाधिक लिखने वाली लेखिका अन्नपूर्णाजी को विविध भारती से यह गीत न सुन पाना आश्चर्यजनक है । कल लिखी उनकी पोस्ट आज प्रवास से लौट कर देखी ।
उक्त गीत गीत प्रस्तुत है :



कृपया पूरी बफ़रिंग के बाद , बिना बाधा सुनें ।

Tuesday, September 1, 2009

फिल्म एक मुट्ठी आसमान का शीर्षक गीत

आज याद आ रहा है फिल्म एक मुट्ठी आसमान का शीर्षक गीत जिसे किशोर कुमार ने गाया है.

पहले रेडियो के सभी केन्द्रों से बहुत सुना करते थे पर अब बहुत दिनों से नही सुना. इस गीत का केवल मुखडा मुझे याद आ रहा है जो इस तरह है -

हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमान
हर कोई ढूँढता है एक मुट्ठी आसमान
कोई सीने से लगा ले उसका है अरमान
हर कोई ढूँढता है एक मुट्ठी आसमान

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

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