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Tuesday, February 17, 2009

फ़िल्म कितने पास कितने दूर का शीर्षक गीत

1977 के आस-पास रिलीज़ एक बेहतरीन फ़िल्म है कितने पास कितने दूर। खूब चली यह फ़िल्म जिसका कारण रहा कि यह एक प्रायोगिक फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में एक ही विषय पर दो अलग कहानियाँ थी। मध्यांतर तक एक कहानी उसके बाद दूसरी कहानी। विषय एक ही कि पैसा पाने की चाह और जब ढेर सा धन मिल जाता है तब जीवन समाप्त हो जाता है।

पहली कहानी में एक कैबरे डांसर और उसके प्रेमी की कहानी है जो अपराध से पैसा प्राप्त करते है और पैसा हाथ में आते ही उन्हें मार दिया जाता है। दूसरी कहानी में अधेढ उमर में पैसे की चाह और लाटरी से ढेर सा पैसा मिलता है और हृदय गति रूकने से मृत्यु।

इस अधेढ व्यक्ति की भूमिका की है उत्पल दत्त ने। यह एक ही अभिनेता पूरी फ़िल्म यानि दोनों कहानियों में जाना पहचाना चेहरा है शेष कोई भी कलाकार जाना पहचाना नहीं है।

पैसा मिलने के बाद उत्पल दत्त गाना सुनने जाते है और वहाँ फ़िल्माया गया है यह शीर्षक गीत। वास्तव में यह गीत नहीं ग़ज़ल है। जिस अभिनेत्री ने इस ग़ज़ल को फ़िल्म में गाया है वो भी अन्जान चेहरा है। ग़ज़ल का फ़िल्मांकन सुन्दर है। हुक्का गुड़गुड़ाते उत्पल दत्त और सामने सफ़ेद लिबास में अभिनेत्री ने ग़ज़ल छेड़ दी और कोई तीसरा नहीं, शान्त संयत वातावरण।

इस ग़ज़ल को बहुत ख़ूब गाया है चन्द्राणी मुखर्जी ने। पिछले चिट्ठे में हमने चन्द्राणी मुखर्जी के गाए पहले हिन्दी फ़िल्मी गीत को याद किया था जो तपस्या फ़िल्म का था उसके बाद यह दूसरा गीत है। इसी ग़ज़ल से चन्द्राणी मुखर्जी का नाम हिन्दी फ़िल्मों के लिए जाना पहचाना बन गया था।

इसके बाद अस्सी के दशक के शुरू में ही एक फ़िल्म आई थी - यह कैसा नशा है। यह एक प्रेमकहानी थी। इसका प्रचार बहुत ज़ोर-शोर से हुआ था। इसमें गीत ज्यादा थे शायद सात-आठ और रोमांटिक गीतों में युगल स्वर थे चन्द्राणी मुखर्जी और शैलेन्द्र सिंह (बाँबी फेम) के। बहुत सुनवाए जाते थे यह गाने। फ़िल्म रिलीज़ हुई और बुरी तरह फ़्लाप हुई जिसके बाद रेडियो से इसके गीत बजना कम हुए और फिर बन्द ही हो गए और आज इन गीतों के न तो बोल याद आ रहे है और ना ही धुन पर थे बड़े अच्छे रोमांटिक गीत।

इसके बाद चन्द्राणी मुखर्जी ने हिन्दी फ़िल्मों में शायद कोई गीत नहीं गाया। आज हम याद कर रहे है कितने पास कितने दूर फ़िल्म की इस ग़ज़ल को जिसे सुने बरसों हो गए जिसका मुखड़ा है -

मेरे महबूब शायद आज कुछ नाराज़ है मुझसे
मैं कितने पास हूँ फिर भी वो कितने दूर है मुझसे
मेरे महबूब शायद आज

अंतरे मुझे बिल्कुल भी याद नहीं आ रहे।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगी यह ग़ज़ल…

5 comments:

mamta said...

और चंद्रानी मुखर्जी भी कुछ सालों बाद बिल्कुल गायब ही हो गई थी ।

admin said...

दुर्भाग्य से मैंने यह गजल पहले नहीं सुनी।

Qaseem Abbasi said...

मेरे पास ये गाना है....मैं कैसे इसको शेयर कर सकता हूँ?

annapurna said...

क़ासिम अब्बासी जी, आप अपने ब्लोग में गीत रखिए और इसकी सूचना यहाँ रेडियोनामा पर बातचीत के कालम विचार विमर्श में दे दीजिए।

Qaseem Abbasi said...

शुक्रिया अन्नपूर्ण!
मैंने ये अपने ब्लॉग में अपलोड कर दिया है.
http://life-amusicalfilm.blogspot.com/

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