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Friday, January 9, 2009

साप्ताहिकी 8-1-09

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद पुराणों से कथन के अलावा स्वामी विवेकानन्द, विदेशी चिंतकों, साहित्यकारों जैसे शरतचन्द्र के विचार बताए गए।

वन्दनवार में नए पुराने भजन सुनवाए गए जैसे कबीर की रचना -

मोको कहाँ ढूँढे रे बन्दे मै तो तेरे पास में

हर दिन कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा। हर सप्ताह की तरह इस सप्ताह भी अच्छे देशभक्ति गीत सुनवाए गए पर यह पता ही नहीं चलता कि इतने अच्छे गीत किसने लिखे, किसने स्वरबद्ध किए और किसने अपनी आवज़ दी। विवरण नहीं बताया जाता है।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में पहले क़व्वालिया कभी कभार ही सुनवाई जाती थी, आजकल नियमित सुनवाई जा रही है। अच्छा लगा गुरूवार को रजिया सुलतान फ़िल्म की क़व्वाली सुनना। हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रखला गंधार गुंजन में तीसरा खण्ड शुरू हुआ। तीसरे खण्ड में ऐसे रागों की चर्चा की जा रही है जिसमें अन्य स्वरों के साथ कोमल गंधार का प्रयोग होता है। आमंत्रित कलाकार है विख्यात गायक अजय पोहनकर जी। हमेशा की तरह सुबह गाए जाने वाले रागों से शुरूवात की गई और चर्चा में पहला राग रहा राग मियाँ की तोड़ी जो संगीत सम्राट तानसेन द्वारा पारम्परिक राग तोड़ी से तैयार किय गया है, राग बिलासख़ानी तोड़ी की भी चर्चा हुई जो तानसेन के पुत्र बिलासख़ान द्वारा तैयार किया गया है, इसके अलावा राग गुजरी तोड़ी, भीमपलासी पर चर्चा हुई। हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई और फ़िल्मी गीत भी जैसे राग मधुवन्ती पर आधारित दिल की राहें फ़िल्म का यह गीत -

रस्में उल्फ़त को निभाए तो निभाए कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाए कैसे

इस कार्यक्रम में सामान्य जानकारी भी मिल जाती है जैसे राग काफी की चर्चा करते हुए बताया गया कि इस राग में उप शास्त्रीय संगीत जैसे ठुमरी दादरा बहुत गाया जाता है और सुनवाया गया यह गीत - कासे कहू रे मन की बात

7:45 को त्रिवेणी में जीवन में सावधानी बरतने की सलाह दी गई, अकेलेपन की भी बात हुई, जीवन में कभी-कभार अनायास होने वाले कुछ नएपन की चर्चा अच्छी लगी और साथ सुनवाए गया गीत भी जो गीत गाता चल फ़िल्म से आरती मुखर्जी का गाया है -

मैं वही दर्पण वही ना जाने ये क्या हो गया
के सब कुछ लागे नया नया

युवा पीढी को सपने देखने और उन्हें पूरा करने मंजिल की ओर बढ़ने की सलाह देते नए गीत सुनवाए गए।

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आए कमल (शर्मा) जी, फ़िल्में रही श्री 420, जब जब फूल खिले, सोलहवाँ साल, अप्रैल फूल, हावड़ा ब्रिज, राजपूत, मेरे हमदम मेरे दोस्त, झुमरू जैसी पचास से अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को महबूबा, बनारसी बाबू, बेइमान, मन का मीत, गाय और गौरी, चोर मचाए शोर, शिकार, बंधन, हीरा पन्ना, उलझन जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। रविवार को आईं सलमा जी और फ़िल्में रही पत्थर के फूल, अमर अकबर एंथोनी, चलते चलते, कलाकार, कुदरत, एक जान है हम, नूरी, सागर, शहँशाह, गोलमाल रिटर्नस। सोमवार को शहनाज़ (अख़्तरी) जी लाईं नए पुराने लगभग हर दशक की फ़िल्म ममता, मौसम, नदिया के पार, क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता यह कार्यक्रम हमने क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम के कारण 12:15 से सुना। मंगलवार को पधारे अशोक (सोनावणे) जी, शुरूवात हुई संगीतकार जयदेव को श्रृद्धांजलि देते फ़िल्म रेशमा और शेरा के इस गीत से - तू चन्दा मैं चाँदनी। अन्य फ़िल्में रही सेहरा, रजनी गन्धा, सावन भादों, समझौता, जीवन मृत्यु, चुपके चुपके, अनुराग जैसी सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। बुधवार को आई मंजू (द्विवेदी) जी फ़िल्में रही धर्मात्मा, तीन देवियाँ, आम्रपाली, नमक हराम, कोरा काग़ज़, किनारा, इजाज़त, माचिस जैसी नई पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। पहला गीत आशा फ़िल्म से सुनवाया गया जो अभिनेत्री रीना राय के जन्मदिन को ध्यान में रखकर चुना गया। सभी गीत ऐसे ही सुनवा दिए गए क्योंकि सरवर से कनेक्शन न मिलने से श्रोताओं के संदेश नहीं मिले। गुरूवार को पधारी रेणु (बंसल) जी, फ़िल्में रही चितचोर, लैला मजनूं, स्वीकार किया मैनें, दाग़, कन्यादान, अजनबी, दीवार, इंतेक़ाम जैसी साठ सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में।

इन गीतों को बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -

अपनी आँखों के झरोको में बिठा लो मुझको
या किसी और तरह अपना बना लो मुझको (फ़िल्म मन का मीत)

समझौता ग़मों से कर लो ज़िन्दगी में ग़म भी मिलते है
पतझड़ आते ही रहते है के मधुबन फिर भी खिलते है (फ़िल्म समझौता)

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में पहला नशा एलबम से ललित के संगीत निर्देशन में सुनिधि चौहान का यह गीत हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध प्राचीन काव्य पंक्तियों से आरंभ हुआ पर बाद में नए रंग में ढल गया, वाकई सुनने में अच्छा लगा यह गीत -
कागा सब तन खाइयो चुन चुन खाइयो माँस
पर दो नैना मत खाइयो मोहे पिया मिलन की आस
क्यूं मैं न जानूँ
तुझ से ही मिलने को क्यूं करता है मन

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में कुछ ऐसे गीत भी सुनवाए गए जो बहुत दिन बाद सुनने को मिले जैसे -

तू इस तरह से मेरी ज़िन्दगी में शामिल है
जहाँ भी जाऊँ यह लगता है तेरी महफ़िल है (फ़िल्म - आप तो ऐसे न थे, गायिका - हेमलता)

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। कश्मीर, मध्य प्रदेश बालघाट, उत्तर प्रदेश जैसे विभिन्न स्थानों से फोन आए। घरेलु महिलाओं के साथ कम पढी लिखी काम-काजी महिलाएँ जैसे सिलाई करने वाली महिलाओं ने भी फोन किए। छात्राओं से भी काल आए और बातचीत में लड़कियों ने अपने करिअर की भी बातें की। बातचीत से पता चला कि कश्मीर में बर्फ़ पड़ रही है, बालाघाट में प्राचीन मन्दिर बहुत है। उनकी पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए जैसे दोस्ती फ़िल्म का गीत -

राही मनवा दुःख की चिन्ता क्यों सताती है
दुःख तो अपना साथी है

पर नए साल के पहले ही कार्यक्रम में इस गीत से शुरूवात कुछ अच्छी नहीं लगी।

मंगलवार को सखि सहेली कार्यक्रम में चिकित्सा के अन्य क्षेत्रों यानि पैरामेडिकल कोर्स में फिसियोथेरिपी के क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए जानकारी दी गई। बुधवार को स्वास्थ्य सौन्दर्य में तेजपत्ता के स्वास्थ्यवर्धक गुण के बारे में बताया गया। तनाव रहित रह कर सुन्दर दिखने की रटी रटाई बात दुहराई गई।

रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सामाजिक नाटक सुनवाए गए। शनिवार को जात-पात की समस्या पर आधारित नाटक सुनवाया गया - मंगल दीप जिसकी लेखिका है वीणा शर्मा और निर्देशक है जयदेव शर्मा कमल। यह आकाशवाणी के लखनऊ केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में खेल जगत की उपलब्धियों में जिमनास्टिक में विश्व स्तर की महिला खिलाड़ी की चर्चा हुई। किताबों की दुनिया में भी विदेशी साहित्यकार की चर्चा हुई। युनूस जी स्वाद के लिए देसी तड़का लगाते रहिए।

पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में बाइस्कोप की बातें कार्यक्रम में बरसात की एक रात फ़िल्म की बातें बताई गई। सबसे पहले निर्देशक शक्ति सामन्त के बारे में बताया गया कि वो पहले हीरो बनने की चाहत लिए मुंबई आए फिर अशोक कुमार की सलाह पर निर्देशक बने। अक्सर उनकी फ़िल्में हिन्दी और बँगला भाषा में साथ साथ बनी। जहाँ तक मेरा मानना है कटी पतँग, अमानुष, आराधना जैसी फ़िल्मों के सामने बरसात की एक रात फ़िल्म कमज़ोर ही रही। वैसे फ़िल्म की कहानी बताते हुए हमेशा की तरह अच्छी जानकारी दी गई।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में स्त्री रोग विशेषज्ञ डा संजीव से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। विषय रहा - बाँझपन। वाकई इस बातचीत से कई भ्रम टूटे जैसे कम जागरूक लोगों का यह भ्रम कि बाँझपन के लिए केवल महिला ही दोषी है, जागरूक लोगों का यह भ्रम कि जाँच से कारणों का पता लगाया जा सकता है, इलाज संभव है आदि… डाक्टर साहब ने बताया कि कुछ मामलों में कारण पता भी नहीं चलते। यह कार्यक्रम सिर्फ़ सेहत ही नहीं बल्कि जागरूकता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा। कृपया इसे सखि सहेली कार्यक्रम में सुनवाने की भी व्यवस्था कीजिए। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए। कभी-कभी ऐसे फोन आते है कि बातचीत सुन कर एक बढिया तस्वीर उभरती है जैसे एक श्रोता ने गाँव से फोन किया और बताया कि वो इंटरमीडियट में पढ रहे है, वहीं कालेज है, आगे भी पढना चाहते है। अपने गाँव के बारे में भी पूछने पर बताया कि वहाँ खेतों में कौन कौन सी फसलें है। इस तरह एक तस्वीर उभरी कि गाँव में कालेज में भी पढने वाले है जो अपना करिअर बनाना चाहते है, जागरूक भी है रेडियो सुनते भी है और कार्यक्रम में भाग भी लेते है, भाग लेने के लिए फोन की सुविधा भी है साथ ही अपनी मिट्टी से भी जुड़े है और खेती की जानकारी भी रखते है। अच्छी लगती है ऐसी बातचीत जो मैनें कई तरह से सुनी है जिससे अच्छी तस्वीरें उभरती है। इस तरह विविध भारती न सिर्फ़ दूरदराज के गाँवों से सीधे जुड़ी है बल्कि शहरी श्रोताओं को भी गाँवों की तस्वीर दिखा रही है। बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में अभिनेता शाबाज़ ख़ान से रज़िया रागिनी की बातचीत प्रसारित हुई। खुद के बारे में बताते हुए अभिनेता ने स्वीकार किया कि धारावाहिक टीपू सुल्तान में हैदर अली के रूप में ख़्याति पाने के बाद सही फ़िल्मों का चुनाव न कर पाने के कारण फ़िल्मों में लोकप्रिय नहीं हो पाए। अच्छी लगी ईमानदार स्वीकारोक्ति।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में धूम धड़ाके से नए गीत बजते रहे।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। नए गाने अधिक ही सुनवाए गए। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक तलत महमूद ने। खुद के गीत सुनवाए और उन गीतों से जुड़ी बातें बताई। शुक्रिया शकुन्तला (पंडित) जी ! बहुत अच्छा लगा यह अंक।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में उत्तर प्रदेश के लोक गीत भी सुनवाए गए पर राजस्थान का पी आर नाग और सुभाष का गाया लोक गीत मज़ेदार रहा जिसके बोल कुछ इस तरह रहे -

बाजो… बाजे बाजा
मैं --- का बन गया राजा

शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी। इस बार की पत्रावली थोड़ी हाइटेक रही, कहाँ ग्राम पोस्ट ज़िला से चिट्ठियाँ आती थी और अब ईमेल आते है यूएसए से जर्मनी से, लेकिन वही तारीफ़ें वही शिकायतें जैसे नई बोतल में पुरानी शराब… अंग्रेज़ी की कहावत है - ओल्ड वाइन इन न्यू बाँटल। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फिल्मी क़व्वालियाँ सुनवाई गई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग यमन पर आधारित पाकीज़ा फ़िल्म का गीत - ठाड़े रहियो ओ बाँके यार रे

8 बजे हवामहल में सुनी झलकियाँ हड़ताल (निर्देशिका चन्द्रप्रभा भटनागर), द सोर्ड आफ़ ससुर महान (निर्देशक लोकेन्द्र शर्मा), उपहार (रचना स्वदेश शर्मा निर्देशक गंगा प्रसाद माथुर) एक कवि का मकबरा (रचना अशोक कुमार श्याम निर्देशक कमल दत्त), एक और सच (निर्देशिका अनुराधा शर्मा) सबसे अच्छा लगा सुनना ज़नाना डिब्बा (रचना प्रभात त्यागी निर्देशक मदन शर्मा)

9 बजे गुलदस्ता में राजेन्द्र मेहता से कैफ़ी आज़मी का कलाम अच्छा लगा। सबसे अच्छी लगी सुदर्शन फ़ाके की नज्म जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की आवाज़ों में - वो काग़ज़ की किश्ती वो बारिश का पानी 9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में द ग्रेट गैम्बलर, ओम शान्ति ओम, आज़ाद, मान अभिमान, अपनापन, दो झूठ जैसी नई पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक जे ओमप्रकाश से युनूस जी की बातचीत की शुरूवात हुई।

10 बजे छाया गीत में युनूस जी अनमोल गीत ले आए। रामलीला फ़िल्म का गीत मैनें पहली ही बार सुना और वाकई गीत विषय से कुछ अलग होने से बड़ा अनमोल लगा। मस्त कलन्दर का गीत पहले शायद भूले बिसरे गीत में सुना है।

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