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Friday, January 30, 2009

साप्ताहिकी 29-1-09

मंगलवार की शाम से विविध भारती पूर्व राष्ट्रपति श्री आर वेंकटरमन जी के निधन से शोक में डूबी रही। विभिन्न कार्यक्रमों के स्वरूप में परिवर्तन किया गया जिनकी प्रस्तुति संयत वाणी में पूरी सावधानी से की गई कि हमारी संस्कृति को आघात न लगे।

इस सप्ताह के आरंभिक दिन गणतंत्र दिवस, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्मदिन और बालिका दिवस के कारण विशेष रहे।

सुबह 6 बजे समाचार के बाद सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गाँधी के विचार बताए गए। उपनिषद के कथन बताए गए। वन्दनवार में नए पुराने भजन सुनवाए गए। काँवड़ियों के नए भजन अच्छे लगे। हर दिन कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में एकाध लोकप्रिय गीत के साथ भूले बिसरे गीत सुनवाए गए। गणतंत्र दिवस पर यह कार्यक्रम संतुलित रहा। सिर्फ़ आज़ादी के क्रान्तिकारी गीतों की ही भरमार नहीं रही बल्कि एक ऐसा गीत भी सुनवाया गया जिसमें आज़ादी के बाद पंचवर्षीय योजना और पंचायती राज जैसे कार्यक्रमों की सफलता की बात कही गई। इस युगल गीत में रफ़ी साहब की आवाज़ भी शामिल है। बोल कुछ इस तरह है - चलेगा पंचवर्षी प्लान… अंतिम दिनों में कार्यक्रम मूल रूप में प्रसारित हुआ पर गंभीर गीत सुनवाए गए।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला मेरी संगीत यात्रा जारी रही जिसमें प्रख़्यात संगीतज्ञ पंडित जसराज अपने बालसखा स्वामी हरिप्रसाद से अपनी संगीत यात्रा बता रहे है। विभिन्न रागों पर बंदिशे भी सुनाई। सूरदास और तुलसीदास के भक्ति पद भी सुनाए। संगीत के चमत्कार की बाते हम सुनते थे पर यहाँ अनुभव बताए जा रहे है। बताया गया कि बड़े भाई साहब का गला ख़राब हो गया और डाक्टर कुछ कर नहीं सके पर नवरात्र पर देवी माँ की स्तुति गानी शुरू की और सब कुछ ठीक हो गया। इसके अलावा विभिन्न पुरस्कारों और सम्मान की बातें बताई गई। पद्मश्री से लेकर आने वाले दिनों में केरल में दिए जाने वाले सम्मान तक की जानकारी दी।

7:45 को त्रिवेणी शुक्रवार को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को समर्पित रही। आलेख और प्रस्तुति अच्छी रही और उसके साथ सुनवाए गए गीत भी -

सुनो रे सुनो देश के हिन्दु मुसलमान
सुनो बहन भाई सुनो सुनो नौजवान
ये सुभाष की कथा सुनो रे

और समापन किया आज़ाद हिन्द फ़ौज के गीत से -

कदम कदम बढाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा
ये ज़िन्दगी है क़ौम की
तू क़ौम पर लुटाए जा

गणतंत्र दिवस पर भी अच्छी प्रस्तुति रही। इसके अलावा जीवन में झूठ बोलने और कोरे सपने देखने की तथा विभिन्न उद्येश्यों पर चर्चा हुई कि कैसे सबके जीवन के उद्येश्य अलग-अलग होते है।

दोपहर 12 बजे एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आई रेणु (बंसल) जी, शुरूवात शोले फ़िल्म के गीत से कर निर्माता निर्देशक रमेश सिप्पी को जन्मदिन की बधाई दी गई, इसके अलावा फ़िल्में रही हरे काँच की चूड़ियाँ, मिस्टर एंड मिसेज 55, बन्दिनी, साज़ और आवाज़, दुल्हन एक रात की, आमने सामने जैसी पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार की लोकप्रिय फ़िल्में जैसे हरे रामा हरे कृष्णा, बरसात, यादों की बारात लेकर आए अमरकांत जी। रविवार को कमल (शर्मा) जी शिकार जैसी साठ के दशक की फ़िल्में लेकर आए। सोमवार को आज़ादी के नए गीत शामिल रहे। मंगलवार को युनूस जी ले आए ए आर रहमान की फ़िल्में और दी ढेर सारी शुभकामनाएँ कि आस्कर ले आए - फ़िल्मों का क्रम भी अच्छा रहा रोज़ा, ताल, रंगीला, दिल से, रंग दे बसन्ती, जोधा अकबर, 1947 अर्थ, जाने तू या जाने न, इसके अलावा अन्नू मलिक के संगीत से सजा विरासत फ़िल्म का गीत भी शामिल रहा।
बुधवार से शोक के माहौल में चित्रपट संगीत प्रस्तुत किया गया जिसमें फ़िल्मों के गंभीर, उद्येश्यपूर्ण गीत सुनवाए गए जैसे रफ़्तार फ़िल्म का यह गीत -

संसार है एक नदिया दुःख सुख दो किनारे है
ना जाने कहाँ जाए हम बहते धारे है

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम इस सप्ताह सामान्य ही रहा पर बुधवार और गुरूवार को चित्रपट संगीत जारी रहा।

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में श्रोताओं की पसन्द के कुछ पुराने और नए गीत सुनवाए गए। शनिवार को देश भर में मनाए जा रहे राष्ट्रीय बालिका दिवस को ध्यान में रखकर श्रोताओं की पसन्द में से सुमन कल्याणपुर का गाया फ़िल्म दिल एक मन्दिर का यह उचित गीत चुनकर सुनवाया गया -

जूही की कलि मेरी लाड़ली
नाज़ों की पली मेरी लाड़ली
ओ आ किरण मेरी जुग जुग जिए
नन्ही सी परी मेरी लाड़ली

बुधवार और गुरूवार को फ़रमाइशी गानों में से गंभीर गीत चुन कर सुनवाए गए।

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। विभिन्न स्थानों से फोन आए छात्राओं ने अपनी शिक्षा और अपने करिअर के बारे में बताया। घरेलु महिलाओं के भी फोनकाल आए। उनसे बातचीत हुई और उनकी पसन्द के गाने सुनवाए गए। मुझे एक बात खलती है कि बातचीत में उनकी शिक्षा और उनकी पसन्द के कार्यक्रमों के बारे में और उस स्थान के बारे में ही बात की जाती है, मुझे लगता है कि जब यह एक अवसर है कि अलग-अलग स्थानों से महिलाएँ बात करती है तो वहाँ की संस्कृति के बारे में भी तो बात की जा सकती है जैसे वहाँ के विशिष्ट खान-पान, लोक पर्व आदि। हमारे देश में एक ही त्यौहार अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है, इस पर भी बात की जा सकती है। पत्रावली में कहा गया कि श्रोता कुछ ज्यादा जानकारी नहीं देते। मेरा मानना है कि अगर श्रोता नहीं कहते है तो विविध भारती तो उनसे पूछ सकती है।

सिर्फ़ हैलो सहेली ही नही हैलो फ़रमाइश का भी यही हाल है। विविध भारती के स्टूडियो से रटी रटाई बातें पूछी जाती है जैसे घर में कौन-कौन है, क्या पढते हो, क्या काम करते हो, शहर में क्या देखने लायक है, गाँव में क्या खेती होती है, आपके शौक़ क्या है और बस गाना…

मंगलवार को मासमीडिया के क्षेत्र में करिअर बनाने की जानकारी दी गई। बुधवार और गुरूवार को सखियों के फ़रमाइशी गीतों से चुनकर गंभीर गीत सुनवाए गए जैसे फ़िल्म कटी पतंग का लता जी का गाया यह गीत -

ना कोई उमंग है ना कोई तरंग है
मेरी ज़िन्दगी है क्या एक कटी पतंग है

पोलियो, सर्व शिक्षा अभियान जैसे विषयों की चर्चा गई। गुरूवार को सफल महिलाओं की जानकारी दी जाती है। इस सप्ताह कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की विख्यात गायिका एम एस सुब्बालक्ष्मी से संबंधित जानकारी दी गई। उनके जीवन, कलाकार बनने का सफ़र और संगीत के क्षेत्र में योगदान की चर्चा की गई।

शनिवार और रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए पर ज्वैल थीफ़ का यह गीत तो तीन दिन पहले ही छाया गीत में सुनवाया गया था -

दिल पुकारे आ रे आ रे आ रे
ओ अभी न जा मेरे साथी

इसी फ़िल्म का कोई और गीत सुनवा देते जैसे -

रूला के गया सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुना मौलियर का लिखा नाटक - पुराना मर्ज नया इलाज जिसके रूपान्तरकार और निर्देशक है विनोद रस्तोगी। यह इलाहाबाद केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है। किस भाषा से हिन्दी रूपांतर किया गया यह नही बताया. नाटक मजेदार रहा. लड़की जिस से प्यार करती है उससे पिता शादी नही करवाना चाहता, इसीलिए लड़की बीमारी का बहाना करती है और उसका प्रेमी डाक्टर बन कर आता है और इलाज नकली शादी बताता है पर पंडित असली शादी करवा देता है.

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में सेना की बातें हुई। कुछ सामान्य जानकारी दी गई। सुभाषचन्द्र बोस पर जानकारी दी। मेराथन दौड़ के बारे में बताया गया। असम की सैर की।


पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में बाईस्कोप की बातें कार्यक्रम के अंतर्गत लोकेन्द्र शर्मा ने बताई मेरे महबूब फ़िल्म की बातें। शोध और आलेख अशोक अय्यर जी का था जो बहुत अच्छा था। निर्माता निर्देशक हेच एस रवेल के बारे में बताया जिन्होनें इस फ़िल्म के अलावा और भी बेहतरीन फ़िल्में बनाई। उनकी पहली फ़िल्म पतंगा के इस मशहूर पुराने गीत का मुखड़ा भी सुनवया गया -

मेरे पिया गए रंगून वहाँ से किया है टेलीफून
तुम्हारी याद सताती है

मेरे महबूब से जुड़ी दिलचस्प बात यह रही कि निम्मी ने अपना यह चरित्र खुद चुना क्योंकि उन्हें नायिका से ज्यादा अच्छा यह चरित्र लगा और साथ में अशोक कुमार के साथ काम करने का मौका भी। एक उम्दा फ़िल्म के बारे में उम्दा बातें बताई गई।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में विपिन उपाध्याय से दांतों की सुरक्षा के बारे में रेणु (बंसल) जी ने बातचीत की. बुधवार को भक्ति संगीत में पुराने गायकों की रचनाएँ सुनवाई गई जैसे जुतिका राय, कानन देवी, एम एस सुब्बालक्ष्मी और गुरूवार को चित्रपट संगीत में शान्त, गंभीर प्रकृति के गीत सुनवाए गए।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में नई फ़िल्मों के गीत बजते रहे… वही हा हू चलता रहा… तथा सप्ताह के अंतिम दो दिन शान्त गीत बजते रहे।

7 बजे जयमाला में गणतंत्र दिवस के अवसर पर कुछ देशभक्ति गीत भी सुनवाए गए। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया अभिनेत्री और गायिका बहनें सुलक्षणा और विजेता पंडित ने। इस कार्यक्रम को दुबारा सुनना अच्छा लगा।

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर महामहिम राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया गया।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में भूपेन हज़ारिका की आवाज़ में असमी लोकगीत सुन कर बहुत आनन्द आया। सुबीर कुमार की आवाज़ में भी एक गीत अच्छा था। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी। इस बार की पत्रावली में भी नए साल की शुभकामनाएँ थी। इस बार की पत्रावली ख़ास रही। विदेशों में विविध भारती सुने जाने के प्रमाण मिले। जर्मन और अमेरिका से श्रोताओं ने विविध भारती सुनकर, कुछ कार्यक्रमों की रिकार्डिंग कर ईमेल भेजा और यही रिकार्डिंग सुनवाई गई। जर्मन में आवाज़ ज्यादा साफ़ लगी। मंगलवार को शोक की लहर में नाद सुनवाई गई। बुधवार को निर्माता राकेश सावन्त से रेणु (बंसल) जी की बातचीत की अगली कड़ी प्रसारित हुई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने।

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकी क्रोध हरण शलाका (रचना चिरंजीत निर्देशक दीनानाथ) ये तेरा घर ये मेरा घर (रचना दिव्या चौधरी निर्देशन गोवेन्द त्रिवेदी) शोक के समय गंभीर फ़िल्मी गीत सुनवाए गए।

9 बजे गुलदस्ता में इस सप्ताह सामान्य सा लगा। हालांकि आज़ादी के गीत और ग़ज़लें शायद एलबमों से मिल सकते… मंगलवार से भक्ति संगीत प्रसारित किया गया।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में गणतंत्र दिवस पर हिन्दुस्तान की क़सम फ़िल्म के गीत सुनवाए गए। इसके अलावा कहो न प्यार है, बारूद फ़िल्में इस कार्यक्रम में शामिल रही। शोक के दौरान चित्रपट संगीत में गंभीर फ़िल्मी गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक जे ओमप्रकाश से युनूस जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। अपनी फिल्मो के गीतों के बारे में बताया की किस तरह वो सिर्फ़ सिचुएशन बता कर ही गीत नही लिखवाते बल्कि संगीत का भी ध्यान रखते हुए यह भी संगीतकार से बताते की गीत कौन से राग में होना चाहिए.

10 बजे छाया गीत सोमवार को अच्छा रहा, आज़ादी के रंग में रंगा था। गीत, प्रस्तुति, सुन्दर संक्षिप्त आलेख, सभी बढिया रहा। मंगलवार से छाया गीत अपने मूल रूप में प्रसारित हुआ पर गंभीर भावों के गीतों के साथ। गुरूवार को केवल गीत सुनवाए गए वो भी संजीदा भाव के।

इस सप्ताह और पिछले सप्ताह भी पर्लस पोलियो अभियान के अंतर्गत श्रोताओं को 5 साल से कम उमर के सभी बच्चों को पोलियो की ख़ुराक पिलाना याद दिलाया गया। विभिन्न कार्यक्रमों में यह महत्वपूर्ण सूचना दी गई।

Tuesday, January 27, 2009

फ़िल्म आँखिन देखी का अनमोल गीत

पिछले शनिवार विशेष जयमाला कार्यक्रम प्रस्तुत किया था गायिका और अभिनेत्री बहनें सुलक्षणा और विजेता पंडित ने। दोनों ने अपने-अपने गीत भी सुनवाए। यह सब सुनते-सुनते मुझे याद आ गया एक गीत जिसे इस कार्यक्रम में शामिल किया जा सकता था पर पता नहीं क्यों, नहीं किया गया।

यह गीत है फ़िल्म आँखिन देखी का जो अस्सी के दशक में रिलीज़ हुई थी। मुझे लगता है बहुतों को इस फ़िल्म का नाम भी पता नहीं होगा। शायद बहुत कम शहरों में यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी। हैदराबाद में भी शायद रिलीज़ नहीं हुई थी पर यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। विविध भारती, उर्दू सर्विस का आपकी फ़रमाइश कार्यक्रम और क्षेत्रीय केन्द्रों से बहुत सुनवाया जाता था। इसके अलावा दूरदर्शन से चित्रहार में भी इस गीत को देखा जिसे बगीचे में फ़िल्माया गया है सुलक्षणा पंडित पर और साथ में नायक कौन है याद नहीं आ रहा। फिर यह गीत बजना बन्द हो गया।

यह एक युगल गीत है जिसे शायद… राजेन्द्र सिंह बेदी ने लिखा है… जी हाँ वही मशहूर कहानीकार

इस युगल गीत को गाया है रफ़ी साहब और सुलक्षणा पंडित ने। इस गीत के अंतरे में शास्त्रीय पुट है जिससे गीत बहुत मधुर लगता है। मुझे मुखड़ा याद है और एक अंतरा कुछ कुछ याद है जो इस तरह है -

सोना री तुझे कैसे मिलूँ (सुलक्षणा)
कैसे कैसे मिलूँ
ओ हो ओ ओ ओ

अमवा की बगिया (रफ़ी)
झरना कि नदिया (सुलक्षणा)
कहाँ मिलूँ तुझे कैसे मिलूँ
कैसे कैसे मिलूँ

घिरन घिरन बदरवा कारे (सुलक्षणा)
कारे कारे कारे कारे
डरे रे डरे रे
------ के -- सारे
सारे सारे सारे सारे
रंग लगा दूँ ऐसा कभी जो न छूटे (रफ़ी)
ओ ओ ओ ओ ओ (सुलक्षणा)
ओ ओ ओ ओ ओ (रफ़ी)
कजरा ला दूँ ऐसा कभी जो न छूटे

ओ ओ ओ ओ ओ (सुलक्षणा)
रूपा री तुझे कैसे मिलूँ
कैसे कैसे मिलूँ
ओ हो ओ ओ ओ
--------------

पता नहीं विविध भारती की पोटली से यह गीत कब बाहर आएगा…

Sunday, January 25, 2009

आ जा आ जा -तीसरी मंझील फिल्म से सेक्सोफोन पर धून्

गुरूवार दि. 22 जानवारी, 2009 का रेर गानो का छायागीत जो युनूसजी ने प्रस्तूत किया था किसी कारण वस छूट गया, तो दूसरे दिन यानि दि 23 जानवारी, 2009 के दिन डी टी एच पर से वी सी आर पर वीएचएस केसेट पर रेकोर्डिंग सेट कर के घर बंध कर के सभी लोग बाहर गये । तो इस के साथ रेर गाने तो मिले, जो शाम 5.30 पर छाया गीत के पुन: प्रसारण पर मिले, पर साथमें शाम 6 बजे सुबह की त्रिवेणी का पुन: प्रसारण जो नेताजी सुभाषचन्द्र बोझ पर केन्द्रीत था, वह भी रेकोर्ड हुआ और करीब 5 से 6 मिनिट तक के बचे समयमें सेक्सोफोन पर फ़िल्म तीसरी मंझील के गीत आजा आजा की धून भी रेकोर्ड हुई जो मैंनें पहेली बार सुनी } इस गाने की और धूनें जिसमें श्री महेन्द्र भावसारकी मेन्डोलीन पर और स्व. सरदार हझारा सिंह की इलेक्ट्रीक (हवाईन) गिटार पर रेडियो लोन से उन पूराने दिनोंमें सुनाई पड़ती थी । बादमें इइलेक्ट्रीक ओरगन पर शम्मी रूबीन की (ट्रिब्यूट टू महम्मद रफ़ी) और इलेक्ट्रीक हवाईन ग़िटार पर ही काझी अनिरूद्ध की और नन्दू भेंडेके वाद्यवृंद पर (नोन स्टोप डिस्को डांसींग विथ शम्मी कपूर ) सुनाई पड़ी । तो इस धून के लिये उद्दघोषक सिर्फ़ फिल्म का नाम ही बोले (शायद नंद किशोर पांडेजी ), तो युनूसजी से अनुरोध है कि इस धून के वादक कलाकार का नाम बतायें । क्या यह भी श्री मनोहरी सिहजीकी बजाई धून है या महेन्द्र कबीर की ?

मोदी साहब भी अपनी प्रतिक्रिया देंगे तो खुशी होगी । यह धून वाया वी एच एस तबदील हुई है, इस लिये स्टीरीयो के बजाय मोनो सुनाई पड़ेगी ।




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पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत ।

Friday, January 23, 2009

साप्ताहिकी 22-1-09

इस सप्ताह देश भक्ति का रंग विभिन्न कार्यक्रमों में नज़र आया। दोपहर के कार्यक्रम में कुछ ऐसी फ़िल्में भी चुनी गई जिसमें देशभक्ति गीत है और श्रोताओं ने भी इन देशभक्ति गीतों के लिए एसएमएस भेजें। सखि-सहेली में भी चर्चा की गई।

सुबह 6 बजे समाचार के बाद उपनिषदों से कथन के अलावा स्वामी रामतीर्थ, बाल गंगाधर तिलक, कालीदास के विचार बताए गए। वन्दनवार में नए पुराने भजन सुनवाए गए। एक नया मीरा भजन बहुत अच्छा लगा जिसमें शास्त्रीय पुट था। हर दिन कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा।

7 बजे भूले-बिसरे गीत शुक्रवार को संगीतकार ओ पी नय्यर को समर्पित रहा। उनके कुछ भूले बिसरे गीत सुनवाए गए तो यह लोकप्रिय गीत भी सुनवाया गया -

मैं बंगाली छोकरा करूँ प्यार को नमस्कारम
मैं मद्रासी छोकरी मुझे तुझसे प्यारम

रविवार को यह कार्यक्रम कुन्दनलाल (के एल) सहगल की पुण्य स्मृति में समर्पित किया गया। सहगल साहब के गीत सुनवाए गए साथ ही सामान्य बातें बताई गई जैसे उनकी आवाज़ कुन्दन की तरह है वग़ैरह वग़ैरह… पर उनके जीवन और काम के बारे में जानकारी नहीं मिल पाई। यहाँ तक कि हर गीत के साथ यह भी नहीं बताया गया कि यह फ़िल्म किस वर्ष में और किस बैनर तले रिलीज़ हुई थी। गीत अच्छे रहे जिन्हें हम रोज़ ही सुनते है जैसे ज़िन्दगी फ़िल्म की यह लोरी -

सो जा राजकुमारी सो जा

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला गंधार गुंजन के चौथे खण्ड के समापन के साथ ही श्रृंखला भी समाप्त हुई। इस चौथे खण्ड में ऐसे रागों की चर्चा की गई जिसमें गंधार का प्रयोग नहीं होता है। आमंत्रित कलाकार विख्यात गायिका शुभा जोशी जी से अशोक (सोनावणे) जी ने बातचीत करते हुए राग शुद्ध सारंग, सरस्वती, मौसमी राग मेघ और सुर मल्हार पर चर्चा की। हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई और फ़िल्मी गीत भी जैसे वृंदावनी सारंग में मन्नाडे का गाया महबूबा फ़िल्म का गीत - गोरी तोरी
पैजनिया

इनमें कुछ राग ऐसे भी रहे जिसमें फ़िल्मी गीत शायद ही तैयार किए गए हो ऐसे में नाट्य संगीत सुनवाया गया। कांचन (प्रकाश संगीत) जी की एक और श्रृंखला शुरू हुई - मेरी संगीत यात्रा जिसमें प्रख़्यात संगीतज्ञ पंडित जसराज अपने बालसखा स्वामी हरिप्रसाद से अपनी संगीत यात्रा बता रहे है। पहली कड़ी में बचपन की बातें हुई और संगीत यात्रा की शुरूवात की जो हैदराबाद में बीता। यह बताया कि अपने परिवार में ही आरंभिक शिक्षा मिली। बचपन से ही बेगम अख़्तर को सुना करते थे। ये सारी बातें उन्होंने मुझसे भी बताई थी जब मैनें हैदराबाद दूरदर्शन के लिए बातचीत की थी।

7:45 को त्रिवेणी में आज में जीने वाले और आने वाले कल की चर्चा हुई, नए पुराने ज़माने की बातें हुई, काल से होड़ लेने की चर्चा हुई, ज़िन्दगी के सफ़र की बातें अच्छी लगी और उसके साथ सुनवाए गए गीत भी।

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आए अशोक (सोनावणे) जी, फ़िल्में रही सुहाग रात, रखवाला, हमारी याद आएगी, बूट पालिश जैसी पुरानी और कुछ पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में जैसे अनपढ, एक मुसाफ़िर एक हसीना, बाप रे बाप, अदालत, आरती लेकर आए अशोक (सोनावणे) जी। रविवार को के एल सहगल की पुण्य स्मृति को ध्यान में रखकर चुनी गई फ़िल्म प्रेसीडेन्ट, अन्य फ़िल्में रही भाई भाई, साथी, काला बाज़ार, काजल, टैक्सी ड्राइवर, धूल का फूल, गुमराह। सोमवार को रही कुछ पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में जैसे हमसाया, बीस साल बाद, हमराही, उमराव जान, सफ़र, वो कौन थी, जानेमन। मंगलवार को युनूस जी ले आए सदाबहार फ़िल्मों के सदाबहार गीत रोटी, आराधना, आनन्द, सौतन, महबूबा, अमर प्रेम, प्रेम पुजारी। बुधवार को अमरकान्त जी लाए पूरब और पश्चिम, मिली, चुपके-चुपके, कालिया, बैराग जैसी सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर हाज़िर हुए कमल (शर्मा) जी, फ़िल्में रही बाम्बे टू गोवा, सच्चा झूठा, अन्नदाता प्यार किए जा, ज़हरीला इंसान, डार्लिंग डार्लिंग, खेल खेल में

यह कार्यक्रम बीच में 20 मिनट तक 12:15 से 12:35 तक क्षेत्रीय भाषा के प्रायोजित कार्यक्रम के प्रसारण के कारण हम नहीं सुन पाते है।

किशोर कुमार की आवाज़ में अन्नदाता फ़िल्म का यह गीत बहुत दिन बाद सुन कर अच्छा लगा -

गुज़र जाए दिन दिन दिन
के हर पल गिन गिन गिन
किसी की हाय यादों में किसी से मुलाक़ातों में
जब से हुए सिलसिले ख़्वाब हुए रंगीन

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में इस सप्ताह अच्छा लगा तन्हा दिल अलबम से शान का लिखा, स्वरबद्ध किया और गाया यह गीत जिस पर साँवरिया फ़िल्म के उनके लोकप्रिय गीत जबसे तेरे नैना की छाप दिखाई दी -

पास आओ न रूठे हो यूँ
मान जाओ न गुमसुम हो क्यों
दिल में हो जो खुल के बताओ न
गुमसुम हो क्यों

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में नए गीत अधिक सुनवाए गए। एकाध दिन लगभग पूरा कार्यक्रम कुछ पुराने गीतों का रहा। नागिन का यह गीत बहुत दिन बाद श्रोताओं ने पसन्द किया -

तेरे इश्क का मुझपे हुआ ये असर है
न अपनी खबर है न दिल की खबर है

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। महानगरों से फोन कम ही आते है, इस बार मुंबई से भी फोन आया। बिहार के एक छोटे से गाँव से कम उमर में ब्याही कम पढी लिखी सखि ने भी फोन किया। विभिन्न स्थानों से फोन आए जिससे वहाँ की हल्की जानकारी मिली जैसे नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक के बारे में। छात्राओं ने अपने करिअर की योजना के बारे में बताया जैसे कोई सेना में जाना चाहती है कोई अध्यापिका बनना चाहती है। उनकी पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए जैसे अपनापन फ़िल्म का यह गीत -

आदमी मुसाफ़िर है आता है जाता है

सोमवार को भुट्टे की नमकीन और मीठी गुझिया बनाना बताया गया। इसे घर में बनाया जा सकता है। मुझे याद नहीं आ रहा इस तरह की गुझिया के बारे में मैनें पहले कभी सुना हो। मंगलवार को शिक्षा के क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए स्कूल से लेकर कालेज तक में शिक्षक की नौकरी पाने के लिए क्या शैक्षणिक योग्यता होनी चाहिए, यह बताया गया। बुधवार को बताया गया कि फल खाने और फलों का रस लगाने से त्वचा की सुन्दरता भी बढती है और त्वचा कटना और झांइया दूर होती है और भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ जैसे मुँह की दुर्गन्ध दूर होती है। जानकारी नई नहीं है। लेकिन विविध भारती जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से फल (phal) को फ़ल (Fal) कहा जाता है तो अच्छा नहीं लगता। गुरूवार को सफल महिलाओं की जानकारी दी जाती है। इस सप्ताह गणतंत्र दिवस के अवसर पर महिला क्रान्तिकारी मैडम कामा के बारे में बताया गया। इलाज के लिए यूरोप गई मैडम कामा ने यूरोप में भारतीयों के साथ मिलकर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था।

शनिवार और रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार मस्त-मस्त गीत सुनवाए गए जैसे -

मेरे पैरों में घुँघरू बँधा दे तो फिर मेरी चाल देख ले (रफ़ी साहब की अवाज़ - फ़िल्म संघर्ष)
चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो (रफ़ी साहब और लता जी - फ़िल्म पाकीज़ा)

इस आधे घण्टे में गाने भी ज्यादा सुनवाए जाते है क्योंकि विवरण कम बताया जाता है इसीलिए यह कार्यक्रम अच्छा लगता है।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुना नाटक - हाय कुत्ते ने काट लिया। वहम हो गया कि कुत्ते ने काटा है और पेट में लगने वाले बड़े 14 इंजेक्शनों के डर से वह बौखला उठता है, ऊपर से एक के बाद लोग देखने आते है और सलाह देते जाते है। ऐसे हवामहलनुमा नाटक भी कभी-कभी इस कार्यक्रम में अच्छे लगते है।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में सेना दिवस पर सेना की बातें हुई। कुछ सामान्य जानकारी दी गई। लाइट हाउज़ स्तम्भ में अधिकतर (लगभग हर रविवार) खेल जगत की हस्तियों के बारे में बताया जाता है। इस बार भी त्रिपुरा के टेनिस खिलाड़ी सोमदेव देव बर्मन के बारे में बताया गया जिसके बाद ए आर रहमान के बारे में बताया गया, यह कुछ अटपटा लगा। इस बार सिर्फ़ के आर रहमान पर ही बात होती और विस्तार से होती, साथ ही संगीत जगत की कुछ और हस्तियों से इस पर फोन पर टिप्पणी ली जाती तो अच्छा लगता, आख़िर विश्व स्तर पर बहुत बड़ा सम्मान भारत को रहमान ने दिलाया। किताबों की दुनिया में इस बार भी विदेशी साहित्यकार की चर्चा हुई। साथ ही विभिन्न कोर्सों के लिए प्रवेश की सूचना दी गई।

पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में बाईस्कोप की बातें कार्यक्रम के अंतर्गत लोकेन्द्र शर्मा ने बताई हिन्दी फ़िल्मों के हास्य कलाकारों की बातें। फ़िल्मों के सीन भी सुनवाए जैसे गोविन्दा की फ़िल्में - आँटी नं 1 और दूल्हे राजा। लोकप्रिय चरित्र वाले सीन भी सुनवाए गए जैसे शोले के सूरमा भोपाली यानि जगदीप, चुपके चुपके के प्यारे मोहन यानि धर्मेन्द्र। ऐसे कार्यक्रम किशोर कुमार, महमूद, जानी वाकर और जानी लिवर के बिना तो होते ही नहीं है सो उनकी चर्चा तो हुई पर टुनटुन की कमी खली। कलाकारों के विचित्र अंदाज़ से, भाषा से कामेडी की बातें हुई। गीत भी अच्छे सुनवाए गए -

प्रिय प्राणेश्वरी, हृदेश्वरी
यदि आप हमें आदेश करी तो
प्रेम का हम श्रीगणेश करी (फ़िल्म हम तुम और वो)

जय गोविन्दम जय गोपालम
--------------
बमबम नाचे किशोर कुमारम

एक अच्छे कार्यक्रम के लिए धन्यवाद लोकेन्द्र (शर्मा) जी।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में स्त्री रोग विशेषज्ञ डा राकेश सिन्हा से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। महिलाओं के मासिक धर्म संबंधी समस्याओं पर विस्तृत और अच्छी जानकारी मिली। विविध भारती ने इस विषय को चुनकर अच्छा निर्णय लिया है क्योंकि अक्सर महिलाएँ ऐसी समस्याएँ छिपा जाती है। डाक्टर से सलाह तो दूर किसी से बताती भी नहीं। कभी-कभी घरेलु इलाज भी कर लेते है। कई बार बात बिगड़ने पर ही पता चलता है और इलाज कठिन हो जाता है। हमारा अनुरोध है कि इस कार्यक्रम को सखि-सहेली कार्यक्रम में दुबारा प्रसारित करें जिससे अधिक सखियों तक यह जानकारी पहुँच सके। बुधवार को हमारे मेहमान कार्यक्रम में अभिनेता जगदीप से रज़िया रागिनी की बातचीत सुनवाई गई। बातचीत से पता चला कि अभिनय यात्रा के पचास वर्ष पूरे हो चुके। बचपन से उनके जीवन के संघर्ष और करिअर की जद्दोजहद के बारे में विस्तार से चर्चा हुई। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत सुनवाए गए साथ ही हल्की फुल्की बातचीत होती रही।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में हंगामेदार अंग्रेज़ी मिले हिन्दी (हिंगलिश) गीत बजते रहे।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। नए गाने अधिक ही सुनवाए गए। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक कुमार शानू ने। खुद के गीत सुनवाए और फ़ौजी भाइयों से दिल से बात की, ऐसा नहीं लगा कि कार्यक्रम प्रस्तुत कर औपचारिकता पूरी कर रहे है।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में मन्नाडे, लता जी और साथियों की आवाज़ में कोईली (मराठी) गीत सुनवाया गया जो शायद बरखा गीत था। इसके अलावा रूना लैला की आवाज़ में सिन्धी पारम्परिक रचना (झूलेलाल की दमादम मस्त कलंदर नहीं) भी अच्छी लगी। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी। इस बार की पत्रावली में नए साल की शुभकामनाएँ थी और कुछ तारीफ़ें और शिकायते थी, कुछ सुझाव भी थे। एक सुझाव अच्छा लगा कि जयमाला में रविवार को देश भक्ति गीत ही सुनवाए जाए पर विविध भारती की असमर्थता भी वाजिब रही कि इतने देश भक्ति गीत है नहीं। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फिल्मी क़व्वालियाँ सुनवाई गई। बुधवार को निर्माता राकेश सावन्त से रेणु (बंसल) जी की बातचीत प्रसारित हुई। 15 साल से काम कर रहे इस युवा निर्माता से एक ही फ़िल्म वफ़ा के बाद की गई बातचीत यूथ एक्सप्रेस में अच्छी लगती थी, इनसे मिलिए कार्यक्रम में कुछ और उपलब्धियों के बाद बात की जाती तो ठीक रहता। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग देशगारा पर आधारित गीत - ओ रसिया रसिया रे… वैसे यह गीत बहुत दिन बाद सुनने को मिला।

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकी मेन होल का ढक्कन (रचना राघवेन्द्र नारायण दीक्षित और निर्देशक जयदेव शर्मा कमल), अजीब मुकदमा ( रचना और निर्देशिका डा मधुवन्ती) प्रहसन सुना - दूसरी लहर (लेखक और निर्देशक गंगा प्रसाद माथुर) मेहमान (रचना मधुकर सिंह निर्देशक जनार्धन राव) एक झलकी नया वेतनमान (निर्देशन गोवेन्द तिवारी) नई तो थी पर मसाला पुराना था जैसे पहले पहली तारीख़ के लिए जो सुनवा कर चटकारे लिए जाते थे वही अब नए वेतनमान पर सुनवाए गए। हल्का सा अंतर भी कोई अंतर है। लगता है अब हवामहल लिखने वाले रहे नहीं। सच है कि के पी सक्सेना जैसे लोग बिरले होते है।

9 बजे गुलदस्ता में इस सप्ताह भी नए पुराने गायक कलाकारों शायरों के गीत और ग़ज़लें सुनवाई गई।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में यस बास, दिल तो पागल है, अलबेला, जोश जैसी नई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक जे ओमप्रकाश से युनूस जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। अपनी लोकप्रिय फ़िल्म अपनापन के बारें में बताया विशेषकर इस फ़िल्म के अंत के बारे में बताया कि यह अंत उन्हीं का सोचा हुआ है जो दर्शकों को पसन्द आया। वैसे इसके बारे में हम यूनवर्सिटी में बहुत चर्चा किया करते थे। कुछ को इसका अंत अटपटा लगता था कि क्यों रीनाराय ने सुलक्षणा पंडित से यह नहीं कहा कि यह बच्चा उसका है। यहाँ तक कि दूरदर्शन पर यह फ़िल्म देखकर मेरे पिताश्री ने भी यही कहा पर मुझे लगा कि अगर वो कह देती तो इस एक सीन से पूरी फ़िल्म हल्की हो जाती। यही बात खुद जे ओमप्रकाश जी से सुनना अच्छा लगा। बहुत भावुकता से उन्होनें अपनी पढाई की बात की और इसका अहसास उनके पिताश्री ने उनकी पहली फ़िल्म आस का पंछी की रजत जयन्ती के समय दिलाया कि वो अधिकारी बनकर अपनी सृजनशीलता को इतने लोगों तक नहीं पहुँचा पाते। यह बात बहुतों की प्रतिभा देखकर सच साबित होती है।

10 बजे छाया गीत में युनूस जी ले आए वो नग़में जो इतने कम बजे कि जनता तक पहुँच नहीं पाए। एकाध गीत को छोड़ कर सभी गीत मैनें पहली बार सुने पर गीत मुझे साधारण ही लगे।

Tuesday, January 20, 2009

हम बच्चे हिन्दुस्तान के है

अस्सी के दशक के शुरूवाती सालों में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी - हम बच्चे हिन्दुस्तान के। यह फ़िल्म शायद फ़िल्म प्रभाग द्वारा तैयार की गई थी।

फ़िल्म तो उतनी लोकप्रिय नहीं हो पाई और जहाँ तक हैदराबाद की बात है मुझे ध्यान नहीं कि यहाँ यह फ़िल्म रिलीज़ भी हुई थी पर इस फ़िल्म के दो गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे। दूरदर्शन से चित्रहार में भी बताए जाते थे और रेडियो से भी बहुत सुनवाए जाते थे। यहाँ तक कि जयमाला में फ़ौजी भाई भी इन गीतों की फ़रमाइश करते थे। फिर यह गीत बजना बन्द हो गए।

यह दोनों गीत समूह गीत जैसे है और गायक कलाकारों में शायद लोकप्रिय नाम नहीं है। यह दोनों गीत छोटे बड़े बच्चों के समूह पर फ़िल्माए गए है जिनमें से एक ही चेहरा जाना पहचाना है - पल्लवी जोशी जिन्हें हम बाद में दूरदर्शन धारावाहिक मृगनयनी में शीर्ष भूमिका में और कुछ फ़िल्मों और टी वी धारावाहिकों में देख चुके है।

एक शीर्षक गीत है जिसके कुछ बोल मुझे याद है पर दूसरा गीत तो मुझे बिल्कुल ही याद नहीं आ रहा। शीर्षक गीत इस तरह है -

हम बच्चे हिन्दुस्तान के है
हम बच्चे हिन्दुस्तान के

शुरूवाती बोल शायद कुछ इस तरह है -

आज हिमालय की चोटी से ऊँची अपनी शान है
वीर तिरंगे को रखने की ली है हमने ठान रे
---------
हम भारत माँ की संतान है
हम बच्चे हिन्दुस्तान के है
हम बच्चे हिन्दुस्तान के

कमाल है जो गीत कभी जनवरी और अगस्त माह में बहुत गूँजा करते थे आज उनके बोल भी याद नहीं आ रहे।

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगें यह गीत…

Friday, January 16, 2009

साप्ताहिकी 15-1-09

इस सप्ताह देश भर में अलग-अलग नाम और ढंग से मनाए जाने वाले पर्व मकर संक्रान्ति, पोंगल, लोहिड़ी, बीहू की झलक नज़र आई।

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद चाण्क्य, गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस, विदेशी साहित्यकारों जैसे शेक्सपियर के विचार बताए गए। वन्दनवार में नए पुराने भजन सुनवाए गए जैसे हर दिन कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा। कभी कभार विवरण भी बताया गया जैसे मीना कपूर और साथियों की आवाज़ों में जयशंकर प्रसाद की रचना -

अरूण यह मधुमय देश हमारा

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में सुमन हेमाणी और कृष्णा कल्ले का गाया कमल राजस्थानी का लिखा यह गीत लगभग हम भूल से गए थे, बहुत-बहुत दिन बाद इस भूले बिसरे गीत को सुनना अच्छा लगा -

गिरा मोरा कँगना सैंया के अँगना

हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला गंधार गुंजन में तीसरे खण्ड में शाम के बाद गाए जाने वाले राग जैसे बागेश्री की चर्चा हुई और संगीत कार्यक्रमों की परम्परा के अनुसार समापन राग भैरवी से हुआ। इस श्रृंखला के चौथे खण्ड की शुरूवात हुई। चौथे खण्ड में ऐसे रागों की चर्चा की जा रही है जिसमें गंधार का प्रयोग नहीं होता है। आमंत्रित कलाकार है विख्यात गायिका शुभा जोशी जी जिनसे बातचीत कर रहे है अशोक (सोनावणे) जी। राग मदमाद सारंग, गोरख कल्याण, कम चर्चित राग नारायणी पर चर्चा हुई। हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई और फ़िल्मी गीत भी।
7:45 को त्रिवेणी में जीवन के अँधेरे की चर्चा हुई, एक दूसरे से अपनी बात कहने और सुनने की बात हुई, व्यक्तितत्व का नकारात्मक रूप भी बताया गया और सुनवाया गया यह गीत -

कुछ लोग यहाँ पर ऐसे है
हर रंग में रंग बदलते है

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आई सलमा (सय्यद) जी, फ़िल्में रही साहेब, डिस्को डाँसर, मि इंडिया, राम लखन, जाँबाज़, क़ुर्बानी जैसी अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को रोज़ा, भूल भुलैंया, मेजर साहब, मैं हूँ न, गैंगस्टर, जेसलमर जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। सोमवार को युनूस जी लाए सत्तर के दशक के लोकप्रिय नग़में, फ़िल्में रही लैला मजनूँ, खेल खेल में, रफ़ूचक्कर, कर्ज़, हम किसी से कम नहीं, कभी-कभी। मंगलवार को सलमा (सय्यद) जी ले आईं नई फ़िल्में विवाह, गुप्त, चालबाज़, जोरू का ग़ुलाम, जैसी नई फ़िल्में। बुधवार को संक्रान्ति को ध्यान में रखकर चुनी गई पुरानी फ़िल्म भाभी जिसके अलावा फ़िल्में रही हम दिल दे चुके सनम, दिल चाहता है, जो जीता वो सिकन्दर, हनीमून ट्रैवल्स, बँटी और बबली जैसी नई पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को पुरानी नई फ़िल्में लेकर हाज़िर हुई शहनाज़ (अख़्तरी) जी, फ़िल्में रही पारसमणि, दिल ने फिर याद किया, हिमालय की गोद में, कयामत से कयामत तक, मिशन कश्मीर

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में इस सप्ताह अच्छा लगा कमल ख़ान की आवाज़ में सुनो तो दीवाना दिल एलबम का यह गीत -

सुनो तो दीवाना दिल कहता है
हमसे मिल जाना कभी न कभी
तो तू भी मिलके हमसे खिल जाना

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में नए गीत अधिक सुनवाए गए।

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। जौनपुर, अहमदाबाद, उत्तर प्रदेश जैसे विभिन्न स्थानों से फोन आए। छात्राओं और कामकाजी महिलाओं ने फोन किया। अपनी पढाई और अपने काम के बारे में बताया। पसन्दीदा रेडियो कार्यक्रम बताए और अपने शौक भी। जौनपुर का मौसम पता चला कि वहाँ सर्दी हो रही है। उनकी पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए।

सोमवार को लौकी का हलवा और काजू रोल बनाना बताया गया। काजू रोल नई चीज़ है, अच्छी लगी यह रेसिपी, इसे बनाया जा सकता है। अच्छा होता अगर सक्रान्ति को ध्यान में रखकर तिल की कुछ नई पुरानी मिठाई बताई जाती। इस दिन जवाब फ़िल्म का कानन देवी का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुन कर अच्छा लगा -

तूफ़ान मेल दुनिया ये दुनिया

मंगलवार को यह कार्यक्रम लोहड़ी के रंग में रंगा था। करिअर के लिए शिक्षा कभी-कभार पैसों की कमी के कारण नहीं हो पाती है। इस दिशा में बैंकों से मिलने वाले शिक्षा ॠण की जानकारी दी गई। गुरूवार को सफल महिलाओं की जानकारी दी जाती है। इस बार 15 जनवरी भारतीय थल सेना दिवस के अवसर पर पहली महिला लेफ़्टिनेंट जरनल सुनीता अरोड़ा के बारे में बताया गया।

रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में नन्दलाल पाठक के मूल गुजराती नाटक ययाति का हिन्दी रेडियो नाट्य रूपान्तर सुनवाया गया।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में स्वामी विवेकानद के जन्मदिन युवा दिवस को ध्यान में रखकर उनके जीवन और कार्यों से संबंधित वार्ता सुनवाई गई। सर्दी के इस मौसम में नैनीताल की पहाड़ियों की सैर करवाई गई। साथ ही विभिन्न कोर्सों के लिए प्रवेश की सूचना दी गई।

पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में हमारे मेहमान कार्यक्रम में पहली महिला ट्रेन ड्राइवर सुरेखा यादव से युनूस जी की बातचीत प्रसारित हुई। पहले भी यह कार्यक्रम सुना था, फिर से सुनना अच्छा लगा। सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में डा समीर पारिख़ से पेट के रोगों पर निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। हमेशा की तरह विस्तृत और अच्छी जानकारी मिली। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत सुनवाए गए साथ ही हल्की फुल्की बातचीत होती रही।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में भूतनाथ, मेरे बाप पहले आप जैसी नई फ़िल्मों के गीत बजे।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। नए गाने अधिक ही सुनवाए गए।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में अवधि गीत सुनने में अच्छा लगा पर अब लिखते समय बोल मैं भूल रही हूँ, पनिया भरन को जाना … कुछ ऐसे ही थे। चन्द्राणी मुखर्जी का मारवाड़ी गीत भी अच्छा लगा। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी। इस बार की पत्रावली में नए साल की शुभकामनाएँ थी और कुछ तकनीकी शिकायते थी जैसे राष्ट्रीय चैनल पर चौबीस घण्टे प्रसारण नहीं हो रहा जिसके लिए बताया गया कि डीटीहेच पर प्रसारण हो रहा है। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में फिल्मी क़व्वालियाँ सुनवाई गई। बुधवार को गीतकार नुसरत बद्र से राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी की बातचीत की अगली कड़ी प्रसारित हुई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग किरवानी पर आधारित ब्रह्मचारी फ़िल्म का रफ़ी साहब का गाया गीत -

मैं गाऊँ तुम सो जाओ
सुख सपनों में खो जाओ मैं
गाऊँ तुम सो जाओ

8 बजे हवामहल में सुनी झलकियाँ चौखट से बाहर (रचना वीणा शर्मा निर्देशिका शकुन्तला पंडित) सुबह होने तक (रचना रेहाना निज़ामी निर्देशक गुरमीत) इस सप्ताह कुछ ऐसी झलकियाँ सुनवाई गई जो बहुत बार सुनी गई नहीं थी।

9 बजे गुलदस्ता में इस सप्ताह सबा अफ़गानी का यह कलाम अच्छा लगा जिसे आवाज़ दी जगजीत सिंह ने -

गुलशन की फ़कत फूलों से नहीं काँटों से भी रौनक़ है
ज़िन्दगी में ग़म की भी ज़रूरत है

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में परदेस, आनन्द आश्रम, लक्ष्य जैसी नई पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक जे ओमप्रकाश से युनूस जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनी। अपनी लोकप्रिय फ़िल्म आप की कसम के बारे में बताया कि यह फ़िल्म दक्षिण भारतीय कहानी पर आधारित है। यह भी बताया कि उनकी फ़िल्मों को उनसे ज्यादा दूसरों ने निर्देशित किया जैसे रघुनाथ झालानी। एक बात बड़ी अच्छी बताई कि उनकी फ़िल्मों में नायिका के पहारावे पर अधिक ध्यान रखा गया कि उनकी किसी भी फ़िल्म में किसी नायिका ने स्लीवलेस ब्लाउज़ भी नहीं पहना। मैं यह सुन कर चौंक गई। पहले ध्यान नहीं दिया पर अब जब भी उनकी फ़िल्में देखूँगी इस बात पर ध्यान दूँगी।

10 बजे छाया गीत में इस सप्ताह ही वही विषय और वही बातें रही। यहाँ एक बात मैं कहना चाहूँगी कि छाया गीत में रात की, चाँद तारों की बातें अच्छी लगती है पर दिन की, उजाले की बातें करने में हर्ज क्या है बशर्ते आलेख और गीत अच्छे हो।

Tuesday, January 13, 2009

भारत कुमार का यादगार गीत

जनवरी और अगस्त इन दो महीनों में भारत कुमार यानि मनोज कुमार चर्चा में कुछ अधिक ही आ जाते है। देश भक्ति और सामाजिक समस्याएँ उनकी हर फ़िल में नज़र आती है। आज हम उनकी एक ऐसी ही फ़िल्म यादगार का गीत याद कर रहे है।

यह गीत मनोज कुमार पर ही फ़िल्माया गया है और इसे गाया है महेन्द्र कपूर और साथियों ने। इस गीत की विशेषता यह है कि यह गीत बहुत लम्बा है। शायद 5-6 या उससे भी अधिक ही अंतरे है। यह गीत फ़िल्म में बार-बार बजता है। आमतौर पर फ़िल्मों में बार-बार अगर कोई गीत बजे तो केवल मुखड़ा या एकाध अंतरा ही बार-बार बजता है पर इस फ़िल्म में बार-बार बजने वाले इस गीत में हर बार अलग अंतरा बजता है और हर अंतरा एक समस्या को उठाता है।

परिवार नियोजन की भी बात है तो फ़ैशन की भी बात उठी है। लड़कियों के फ़ैशन के साथ घटते कपड़ों की भी चर्चा है। शायद आपमें से बहुतों को याद होगा सत्तर के दशक में लड़कों के लिए फ़ैशन चला था बड़ा अजीब सा जिसमें गर्दन पर झूलते बाल होते थे लड़कियों की तरह। यह सारी बातें इस गीत में उभर कर आई है।

पहले रेडियो से यह गीत बहुत सुनवाया जाता था। पूरा गीत एक साथ तो नहीं सुनवाया जाता था, हर बार दो तीन अंतरे सुनवाए जाते थे। तब पूरा गीत याद भी था। अब बहुत दिन से नहीं सुनने से ठीक से याद नहीं रहा। मुखड़ा तो पूरा याद है पर अंतरे जितने और जिस क्रम में याद है, यहाँ प्रस्तुत है -

एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
एक तारा बोले
तुन तुन तुन तुन तुन

बात है लम्बी मतलब गोल
खोल न दे ये सबके पोल
तो फिर उसके बाद
ऊहूँ ऊहूँ ऊहूँ
एक तारा बोले
तुन तुन तुन तुन तुन

पहले तो था चोला ---- का
फिर घट घट के ------ का
चोले की अब चोली ही बनी
चोली के आगे क्या होगा
ये फ़ैशन बढता बढता गया
और कपड़ा तन से घटता गया
तो फिर उसके बाद
ऊहूँ ऊहूँ ऊहूँ
एक तारा बोले
तुन तुन तुन तुन तुन

अरे धत तेरी ऐसी तैसी
सूरत है लड़की जैसी
तंग पेट पतली टाँगे
लगती है सिगरेट जैसी
देश का यही जवान है तो
देश की ये संतान है
तो फिर उसके बाद
ऊहूँ ऊहूँ ऊहूँ
एक तारा बोले
तुन तुन तुन तुन तुन

---------------------------
हर साल कैलेण्डर छाप दिया
परिवार नियोजन ---------
तो फिर उसके बाद
ऊहूँ ऊहूँ ऊहूँ
एक तारा बोले
तुन तुन तुन तुन तुन

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Sunday, January 11, 2009

आकाशवाणी अमदावाद का माहवार कार्यक्रम 'ग्रामोफोन'

पिछली एक पोस्ट में मैंनें एक प्रादेशिक केन्द्र के अनोखे कार्यक्रमके बारेमें लिख़ने का इशारा दिया था, तो आज वह बात लिख़ रहा हूँ । साथमें इ स. 2009 के साल यह पहली पोस्ट लिख़ते हुए सभी को नव वर्ष की शुभ: कामनाएं देता हूँ ।
हालाकि सुरतमें आकाशवाणी अमदावाद रेडियो पर रिसीव करना बहोत ही मुश्कील है, क्यों कि वह मिडियम वेव (मध्यम तरंग) पर आता है, जो बेंड स्थानिय वीज उपकरणों, यातायात और हवामान की असर से पूरा प्रभावीत रहता है । इस लिये इस कार्यक्रम के प्रसारण के बारेमें जानकारी होते हुए भी नहीं सुन सकता था । पर इस बार यानिकी दिनांक 24 डिसम्बर, 2008 की रात्री 9.30 पर् मेरे घरमें सब टी वी धारावाहिक छोड़ कर इस कार्यक्रमको डी टी एच पर सुनने के लिये राजी हो गये और मैंनें अपने लेपटॉपको सेटटोप बोक्ष के साथ जोड़ दिया । फिर भी वोल्यूम लेवेल सेटींग की कमी आने पर सुनने में थोड़ी सी अन्य डिस्ट्रबंस की आवाझ आयेगी पर शब्द और गाना पूरा समझमें आयेगे ।
तो इस कार्यक्रम आकाशवाणी अमदावाद पर किस समय और किस व्यक्ती की कल्पना से किर किन केन्द्र निर्देषक के समय शुरू हुआ था इसका व्योवरा तो मेरे पास नहीं है, पर इतना तो जरूर कहूँगा कि हाल के लोकाभीमूख़ केन्द्र निर्देषक जिनका जिक्र मैं विविध भारती के 50 साल पूरे होने पर जो श्री कमल शर्माजी (संवादाता)ने मेरा पहला लेख प्रकाशित किया था, उसकी आपूर्ति रूप दूसरे लेखमें कर चूका हूँ, वैसे श्री भगिरथ पंड्या साहबने जारी रख़ा है । और उसके निर्माता है श्री रमेश प्रजापती और प्रस्तूत कर्ता उद्दघोषक है श्री प्रविण दवे । स्वाभाविक है कि बातचीत का माध्यम गुजराती भाषा है । इस कार्यक्रममें कई रॆर गानो के संग्राहको को उनके संग्रह में से कुछ: अनमोल मोती के साथ बूलाया जाता है । और कई नामी लोगोने इसको अपनी आवाझे और इन अनमोल मोतीयॉं से सजाया है, जिसमें श्री नलिन शह (मुम्बई), मधूसूदन भट्ट (राजकोट), श्री अरविन्द पटेल (भूत पूर्व सांसद ), श्री उर्विष कोठारी (गुजराती संवादाता और लेख़क ) से इस कार्यक्रम शोभित हुआ है । इस कार्यक्रम हर माह के चोथे बुधवार को रात्री 9.30 से 10.30 तक (अगर कोई राष्ट्रीय प्रसारण को सह प्रसारित नहीं होना होता है तब) प्रसारित होता है । इस बार श्री प्रविण दवेने श्री उर्विष कोठारी के बड़े भाई श्री बिरेन कोठारी, जो खूद् भी एक लेख़क है,उनसे बातें की थी और इस कार्यक्रम का एक अंश (बातचीत और गाना-जो भजन गायिका के रूपमें जानी पहचानी ज्यूथीका रॉय की गायी हुई कव्वाली हओ- दोनो) नमूने के तोर पर इधर प्रस्तूत है । (अगर मेरे पिछली एक पोस्टमें लिख़ने के अनुसार प्रादेशिक राज्य के मूख़्य केन्द्र को राज्यव्यापी एफ एम नेटवर्क मिलता तो कितना साफ़ सुनाई पड़ता !)


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पियुष महेता ।
नानपूरा-सुरत-395001.

Friday, January 9, 2009

साप्ताहिकी 8-1-09

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद पुराणों से कथन के अलावा स्वामी विवेकानन्द, विदेशी चिंतकों, साहित्यकारों जैसे शरतचन्द्र के विचार बताए गए।

वन्दनवार में नए पुराने भजन सुनवाए गए जैसे कबीर की रचना -

मोको कहाँ ढूँढे रे बन्दे मै तो तेरे पास में

हर दिन कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा। हर सप्ताह की तरह इस सप्ताह भी अच्छे देशभक्ति गीत सुनवाए गए पर यह पता ही नहीं चलता कि इतने अच्छे गीत किसने लिखे, किसने स्वरबद्ध किए और किसने अपनी आवज़ दी। विवरण नहीं बताया जाता है।

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में पहले क़व्वालिया कभी कभार ही सुनवाई जाती थी, आजकल नियमित सुनवाई जा रही है। अच्छा लगा गुरूवार को रजिया सुलतान फ़िल्म की क़व्वाली सुनना। हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रखला गंधार गुंजन में तीसरा खण्ड शुरू हुआ। तीसरे खण्ड में ऐसे रागों की चर्चा की जा रही है जिसमें अन्य स्वरों के साथ कोमल गंधार का प्रयोग होता है। आमंत्रित कलाकार है विख्यात गायक अजय पोहनकर जी। हमेशा की तरह सुबह गाए जाने वाले रागों से शुरूवात की गई और चर्चा में पहला राग रहा राग मियाँ की तोड़ी जो संगीत सम्राट तानसेन द्वारा पारम्परिक राग तोड़ी से तैयार किय गया है, राग बिलासख़ानी तोड़ी की भी चर्चा हुई जो तानसेन के पुत्र बिलासख़ान द्वारा तैयार किया गया है, इसके अलावा राग गुजरी तोड़ी, भीमपलासी पर चर्चा हुई। हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई और फ़िल्मी गीत भी जैसे राग मधुवन्ती पर आधारित दिल की राहें फ़िल्म का यह गीत -

रस्में उल्फ़त को निभाए तो निभाए कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाए कैसे

इस कार्यक्रम में सामान्य जानकारी भी मिल जाती है जैसे राग काफी की चर्चा करते हुए बताया गया कि इस राग में उप शास्त्रीय संगीत जैसे ठुमरी दादरा बहुत गाया जाता है और सुनवाया गया यह गीत - कासे कहू रे मन की बात

7:45 को त्रिवेणी में जीवन में सावधानी बरतने की सलाह दी गई, अकेलेपन की भी बात हुई, जीवन में कभी-कभार अनायास होने वाले कुछ नएपन की चर्चा अच्छी लगी और साथ सुनवाए गया गीत भी जो गीत गाता चल फ़िल्म से आरती मुखर्जी का गाया है -

मैं वही दर्पण वही ना जाने ये क्या हो गया
के सब कुछ लागे नया नया

युवा पीढी को सपने देखने और उन्हें पूरा करने मंजिल की ओर बढ़ने की सलाह देते नए गीत सुनवाए गए।

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आए कमल (शर्मा) जी, फ़िल्में रही श्री 420, जब जब फूल खिले, सोलहवाँ साल, अप्रैल फूल, हावड़ा ब्रिज, राजपूत, मेरे हमदम मेरे दोस्त, झुमरू जैसी पचास से अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। शनिवार को महबूबा, बनारसी बाबू, बेइमान, मन का मीत, गाय और गौरी, चोर मचाए शोर, शिकार, बंधन, हीरा पन्ना, उलझन जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। रविवार को आईं सलमा जी और फ़िल्में रही पत्थर के फूल, अमर अकबर एंथोनी, चलते चलते, कलाकार, कुदरत, एक जान है हम, नूरी, सागर, शहँशाह, गोलमाल रिटर्नस। सोमवार को शहनाज़ (अख़्तरी) जी लाईं नए पुराने लगभग हर दशक की फ़िल्म ममता, मौसम, नदिया के पार, क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता यह कार्यक्रम हमने क्षेत्रीय प्रायोजित कार्यक्रम के कारण 12:15 से सुना। मंगलवार को पधारे अशोक (सोनावणे) जी, शुरूवात हुई संगीतकार जयदेव को श्रृद्धांजलि देते फ़िल्म रेशमा और शेरा के इस गीत से - तू चन्दा मैं चाँदनी। अन्य फ़िल्में रही सेहरा, रजनी गन्धा, सावन भादों, समझौता, जीवन मृत्यु, चुपके चुपके, अनुराग जैसी सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। बुधवार को आई मंजू (द्विवेदी) जी फ़िल्में रही धर्मात्मा, तीन देवियाँ, आम्रपाली, नमक हराम, कोरा काग़ज़, किनारा, इजाज़त, माचिस जैसी नई पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। पहला गीत आशा फ़िल्म से सुनवाया गया जो अभिनेत्री रीना राय के जन्मदिन को ध्यान में रखकर चुना गया। सभी गीत ऐसे ही सुनवा दिए गए क्योंकि सरवर से कनेक्शन न मिलने से श्रोताओं के संदेश नहीं मिले। गुरूवार को पधारी रेणु (बंसल) जी, फ़िल्में रही चितचोर, लैला मजनूं, स्वीकार किया मैनें, दाग़, कन्यादान, अजनबी, दीवार, इंतेक़ाम जैसी साठ सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में।

इन गीतों को बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -

अपनी आँखों के झरोको में बिठा लो मुझको
या किसी और तरह अपना बना लो मुझको (फ़िल्म मन का मीत)

समझौता ग़मों से कर लो ज़िन्दगी में ग़म भी मिलते है
पतझड़ आते ही रहते है के मधुबन फिर भी खिलते है (फ़िल्म समझौता)

1:00 बजे म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम में पहला नशा एलबम से ललित के संगीत निर्देशन में सुनिधि चौहान का यह गीत हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध प्राचीन काव्य पंक्तियों से आरंभ हुआ पर बाद में नए रंग में ढल गया, वाकई सुनने में अच्छा लगा यह गीत -
कागा सब तन खाइयो चुन चुन खाइयो माँस
पर दो नैना मत खाइयो मोहे पिया मिलन की आस
क्यूं मैं न जानूँ
तुझ से ही मिलने को क्यूं करता है मन

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में कुछ ऐसे गीत भी सुनवाए गए जो बहुत दिन बाद सुनने को मिले जैसे -

तू इस तरह से मेरी ज़िन्दगी में शामिल है
जहाँ भी जाऊँ यह लगता है तेरी महफ़िल है (फ़िल्म - आप तो ऐसे न थे, गायिका - हेमलता)

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। कश्मीर, मध्य प्रदेश बालघाट, उत्तर प्रदेश जैसे विभिन्न स्थानों से फोन आए। घरेलु महिलाओं के साथ कम पढी लिखी काम-काजी महिलाएँ जैसे सिलाई करने वाली महिलाओं ने भी फोन किए। छात्राओं से भी काल आए और बातचीत में लड़कियों ने अपने करिअर की भी बातें की। बातचीत से पता चला कि कश्मीर में बर्फ़ पड़ रही है, बालाघाट में प्राचीन मन्दिर बहुत है। उनकी पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए जैसे दोस्ती फ़िल्म का गीत -

राही मनवा दुःख की चिन्ता क्यों सताती है
दुःख तो अपना साथी है

पर नए साल के पहले ही कार्यक्रम में इस गीत से शुरूवात कुछ अच्छी नहीं लगी।

मंगलवार को सखि सहेली कार्यक्रम में चिकित्सा के अन्य क्षेत्रों यानि पैरामेडिकल कोर्स में फिसियोथेरिपी के क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए जानकारी दी गई। बुधवार को स्वास्थ्य सौन्दर्य में तेजपत्ता के स्वास्थ्यवर्धक गुण के बारे में बताया गया। तनाव रहित रह कर सुन्दर दिखने की रटी रटाई बात दुहराई गई।

रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सामाजिक नाटक सुनवाए गए। शनिवार को जात-पात की समस्या पर आधारित नाटक सुनवाया गया - मंगल दीप जिसकी लेखिका है वीणा शर्मा और निर्देशक है जयदेव शर्मा कमल। यह आकाशवाणी के लखनऊ केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में खेल जगत की उपलब्धियों में जिमनास्टिक में विश्व स्तर की महिला खिलाड़ी की चर्चा हुई। किताबों की दुनिया में भी विदेशी साहित्यकार की चर्चा हुई। युनूस जी स्वाद के लिए देसी तड़का लगाते रहिए।

पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में बाइस्कोप की बातें कार्यक्रम में बरसात की एक रात फ़िल्म की बातें बताई गई। सबसे पहले निर्देशक शक्ति सामन्त के बारे में बताया गया कि वो पहले हीरो बनने की चाहत लिए मुंबई आए फिर अशोक कुमार की सलाह पर निर्देशक बने। अक्सर उनकी फ़िल्में हिन्दी और बँगला भाषा में साथ साथ बनी। जहाँ तक मेरा मानना है कटी पतँग, अमानुष, आराधना जैसी फ़िल्मों के सामने बरसात की एक रात फ़िल्म कमज़ोर ही रही। वैसे फ़िल्म की कहानी बताते हुए हमेशा की तरह अच्छी जानकारी दी गई।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में स्त्री रोग विशेषज्ञ डा संजीव से निम्मी (मिश्रा) जी की बातचीत प्रसारित हुई। विषय रहा - बाँझपन। वाकई इस बातचीत से कई भ्रम टूटे जैसे कम जागरूक लोगों का यह भ्रम कि बाँझपन के लिए केवल महिला ही दोषी है, जागरूक लोगों का यह भ्रम कि जाँच से कारणों का पता लगाया जा सकता है, इलाज संभव है आदि… डाक्टर साहब ने बताया कि कुछ मामलों में कारण पता भी नहीं चलते। यह कार्यक्रम सिर्फ़ सेहत ही नहीं बल्कि जागरूकता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा। कृपया इसे सखि सहेली कार्यक्रम में सुनवाने की भी व्यवस्था कीजिए। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए। कभी-कभी ऐसे फोन आते है कि बातचीत सुन कर एक बढिया तस्वीर उभरती है जैसे एक श्रोता ने गाँव से फोन किया और बताया कि वो इंटरमीडियट में पढ रहे है, वहीं कालेज है, आगे भी पढना चाहते है। अपने गाँव के बारे में भी पूछने पर बताया कि वहाँ खेतों में कौन कौन सी फसलें है। इस तरह एक तस्वीर उभरी कि गाँव में कालेज में भी पढने वाले है जो अपना करिअर बनाना चाहते है, जागरूक भी है रेडियो सुनते भी है और कार्यक्रम में भाग भी लेते है, भाग लेने के लिए फोन की सुविधा भी है साथ ही अपनी मिट्टी से भी जुड़े है और खेती की जानकारी भी रखते है। अच्छी लगती है ऐसी बातचीत जो मैनें कई तरह से सुनी है जिससे अच्छी तस्वीरें उभरती है। इस तरह विविध भारती न सिर्फ़ दूरदराज के गाँवों से सीधे जुड़ी है बल्कि शहरी श्रोताओं को भी गाँवों की तस्वीर दिखा रही है। बुधवार को आज के मेहमान कार्यक्रम में अभिनेता शाबाज़ ख़ान से रज़िया रागिनी की बातचीत प्रसारित हुई। खुद के बारे में बताते हुए अभिनेता ने स्वीकार किया कि धारावाहिक टीपू सुल्तान में हैदर अली के रूप में ख़्याति पाने के बाद सही फ़िल्मों का चुनाव न कर पाने के कारण फ़िल्मों में लोकप्रिय नहीं हो पाए। अच्छी लगी ईमानदार स्वीकारोक्ति।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में धूम धड़ाके से नए गीत बजते रहे।

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। नए गाने अधिक ही सुनवाए गए। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक तलत महमूद ने। खुद के गीत सुनवाए और उन गीतों से जुड़ी बातें बताई। शुक्रिया शकुन्तला (पंडित) जी ! बहुत अच्छा लगा यह अंक।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में उत्तर प्रदेश के लोक गीत भी सुनवाए गए पर राजस्थान का पी आर नाग और सुभाष का गाया लोक गीत मज़ेदार रहा जिसके बोल कुछ इस तरह रहे -

बाजो… बाजे बाजा
मैं --- का बन गया राजा

शनिवार और सोमवार को पत्रावली में पधारे निम्मी (मिश्रा) जी और महेन्द्र मोदी जी। इस बार की पत्रावली थोड़ी हाइटेक रही, कहाँ ग्राम पोस्ट ज़िला से चिट्ठियाँ आती थी और अब ईमेल आते है यूएसए से जर्मनी से, लेकिन वही तारीफ़ें वही शिकायतें जैसे नई बोतल में पुरानी शराब… अंग्रेज़ी की कहावत है - ओल्ड वाइन इन न्यू बाँटल। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फिल्मी क़व्वालियाँ सुनवाई गई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग यमन पर आधारित पाकीज़ा फ़िल्म का गीत - ठाड़े रहियो ओ बाँके यार रे

8 बजे हवामहल में सुनी झलकियाँ हड़ताल (निर्देशिका चन्द्रप्रभा भटनागर), द सोर्ड आफ़ ससुर महान (निर्देशक लोकेन्द्र शर्मा), उपहार (रचना स्वदेश शर्मा निर्देशक गंगा प्रसाद माथुर) एक कवि का मकबरा (रचना अशोक कुमार श्याम निर्देशक कमल दत्त), एक और सच (निर्देशिका अनुराधा शर्मा) सबसे अच्छा लगा सुनना ज़नाना डिब्बा (रचना प्रभात त्यागी निर्देशक मदन शर्मा)

9 बजे गुलदस्ता में राजेन्द्र मेहता से कैफ़ी आज़मी का कलाम अच्छा लगा। सबसे अच्छी लगी सुदर्शन फ़ाके की नज्म जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की आवाज़ों में - वो काग़ज़ की किश्ती वो बारिश का पानी 9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में द ग्रेट गैम्बलर, ओम शान्ति ओम, आज़ाद, मान अभिमान, अपनापन, दो झूठ जैसी नई पुरानी फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में निर्माता निर्देशक जे ओमप्रकाश से युनूस जी की बातचीत की शुरूवात हुई।

10 बजे छाया गीत में युनूस जी अनमोल गीत ले आए। रामलीला फ़िल्म का गीत मैनें पहली ही बार सुना और वाकई गीत विषय से कुछ अलग होने से बड़ा अनमोल लगा। मस्त कलन्दर का गीत पहले शायद भूले बिसरे गीत में सुना है।

Wednesday, January 7, 2009

अमिताभ बच्चन, प्रियंका गाँधी जैसे शौकिया रेडियो ऑपरेटर (HAM) आख़िर करते क्या हैं!?

रेडियोनामा से जुड़ते हुए जब युनुस जी से मैंने आशंका जाहिर की थी कि नियमित नहीं रह पाऊँगा, किसी विषय विशेष पर लिखते हुए! तो उन्होंने सहजता पूर्वक जवाब दिया कि अपने समय और सुविधा के मुताबिक लिखिएगा। हैम रेडियो पर पहली पोस्ट 'शौकिया रेडियो ऑपरेटर को HAM क्यों कहा जाता है?' के बाद आजकल करते-करते अगली कड़ी के लिए समय बीतता जा रहा था। एक दिन हिम्मत कर ही ली आपको बताने की कि शौकिया रेडियो ऑपरेटर (HAM) की सूची में सोनिया गांधी, अमिताभ बच्चन, प्रियंका गांधी, कमल हसन, दयानिधि मारन, कुमार बंगारप्पा सहित दुनिया भर के नोबल पुरस्कार विजेता, अविष्कारक, अन्तरिक्ष यात्री, राजकुमार, तानाशाह, राजनीतिज्ञ, फिल्मी सितारे, वैज्ञानिक, धार्मिक गुरु, खिलाड़ी, इतिहासकार, सत्ता प्रमुख आदि शामिल हैं। जिनसे आप सीधा संपर्क रख सकते हैं! जैसा कि नाम से ही विदित है 'शौकिया'। तो शौक की कोई कीमत नहीं होती। उस पर खर्च किए गए धन के सामने कोई तर्क काम नहीं आता। अपने शौक का औचित्य सिद्ध करने वाले बहुतेरे मिल जायेंगे। इससे अधिक जानकारी तो शास्त्री जी से ही मिल पाएगी।

शौकिया रेडियो सचमुच एक शौक है, कहा जाए तो यह एक वैज्ञानिक शौक है, लेकिन एक आपात स्थिति या प्राकृतिक आपदा की परिस्थितियों में इस शौक की उपयोगिता नज़र आती है। जैसे आप पत्र-मित्र बनाते हैं, आजकल इन्टरनेट पर नेट मित्र से बतियाते, चैट करते हैं। वैसे ही अपना ख़ुद का दो-तरफा रेडियो बनाकर, उपयोग कर, पूरे विश्व में जाने-माने या अनजाने व्यक्तियों से संपर्क करने की उत्तेजना, आनंद से दो-चार हो सकते हैं, रेडियो मित्र बना सकते हैं। Indian Wireless Telegraph Rules 1978 के मुताबिक शौकिया रेडियो सेवा मतलब, a service of self training communication and technical investigations carried on by amateurs, that is, persons duly authorised under these rules interested in radio techniques solely with a personal aim and without pecuniary interest.

यह, रेडियो ऑपरेटरों के बीच आपसी संचार द्वारा, स्वयं सीखी जाने वाली एवं तकनीकी जांच प्रक्रिया है। मोबाईल फोन जैसे यंत्र की रेडियो तरंगों के उपयोग से, एक हैम रेडियो ऑपरेटर, विभिन्न संचार उपकरणों और प्रणालियों के सहारे, विभिन्न प्रयोग कर, गहन इलेक्ट्रॉनिक्स विज्ञान सीख सकता है और साथ-साथ दुनिया भर में लोगों को इसके बलबूते सामान्य परिस्थितियों के अलावा आपातकालीन चिकित्सा, यातायात, बाढ़, चक्रवात, तूफान, भूकंप या किसी अन्य आपदा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान आपातकालीन संचार नेटवर्क स्थापित कर, महान सेवा प्रदान कर सकता है। पूरे विश्व में लाखों व्यक्ति, इस विधा का अनुसरण करते हैं, ब्लॉग की भाषा में बोले तो follower हैं।

जब मौजूदा सार्वजनिक या सरकारी संचार प्रणालियां असफल हो जायें तो यह एमेच्योर रेडियो स्टेशन 'दूसरी लाइन' के रूप में संचार व्यवस्था का काम करते है। जीवन के सभी क्षेत्रों से, तकनीशियनों से लेकर इंजीनियरों, शिक्षकों से लेकर वैज्ञानिक, छात्र से लेकर सेवानिवृत्त तक शौकिया रेडियो ऑपरेटर हैं। अन्य शौकों की तरह, उनमें से कई के लिए तो इस शौक का आकर्षण यह भी है कि स्वयं अपने हाथों से इसके उपकरण बनाना, चाहे वह छोटा सा एंटीना ही क्यों न हो या फिर ट्रांसमीटर बनाने जैसा जटिल कार्य या अपने ट्रांसमीटर, रेडियो और एक कंप्यूटर के बीच एक संबंध interface स्थापित करना।

शौकिया रेडियो का एक बेहतरीन प्रदर्शन, 1960 में भारत में तत्कालीन पोस्ट और टेलीग्राफ विभाग की हड़ताल के दौरान देखने को मिला था, जब शौकिया ऑपरेटरों ने जनता को बहुमूल्य सार्वजनिक सेवा गतिविधियों के साथ महत्वपूर्ण संदेश भेजने का प्रबंध किया था। सितम्बर 1979 में, मोरवी (गुजरात) में मच्छु बांध टूटने पर अचानक आयी बाढ़ के समय, पश्चिमी भारत के एक दर्जन से अधिक शौकिया रेडियो ऑपरेटरों ने राहत एजेंसियों, सरकारी अधिकारियों और आपदा के शिकार लोगों के लिए, राजकोट, बड़ौदा, अहमदाबाद और मुंबई आदि शहरों में आपातकालीन रेडियो स्टेशनों को सक्रिय कर सहायता प्रदान की थी। HAMs द्वारा इसी प्रकार की सेवायें, सौराष्ट्र में आये विनाशकारी तूफान, बंगाल की खाड़ी के ऊपर खराब मौसम की संभावना के चलते आंध्र प्रदेश में कई बार आये तूफान के दौरान भी प्रदान की गयी थीं।

जरा याद कीजिये लातूर (महाराष्ट्र) में आये भूकम्प, उत्तरकाशी के भूकम्प की, जहाँ हैम रेडियो ऑपरेटरों ने, प्रभावित लोगों के लिए व्यवस्था, दवाइयां, भोजन और कपड़ों के लिए समन्वय और राहत कार्यों के आयोजन के लिए आवश्यक संचार नेटवर्क प्रदान किया। हाल ही में उड़ीसा के विनाशकारी चक्रवात की आपदा के दौरान जब सभी संचार ध्वस्त हो गई थीं तो इसकी महत्ता एक बार पुन: साबित हुयी थी। उड़ीसा के मुख्य मंत्री निवास पर एक हैम रेडियो स्टेशन ने लगभग एक महीने तक देश की राजधानी के साथ संपर्क बनाए रखा। एशियाड जैसे बड़े खेल समारोह, हिमालय कार रैली आदि के दौरान शौकिया रेडियो स्टेशनों द्वारा अधिकारियों की सहायता हेतु इसे अक्सर याद किया किया जाता है। 2004 में आयी सुनामी के वक्त तो यह इकलौता संचार माध्यम था। माना जाये तो, यह विशेष तकनीकी खेल या शौक बहुत हद तक दूसरे गैर-सरकारी लोक सेवा संगठन (जैसे रेडक्रॉस) के समतुल्य एक राष्ट्रीय परिसंपत्ति है।

थोड़ा पीछे लौटें तो भारत के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने शौकिया रेडियो ऑपरेटर का लाइसेंस 1974 में प्राप्त किया था। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने वायरलेस उपकरणों पर आयात शुल्क घटाकर इस विधा को आगे बढ़ाने में मदद की थी, जिसके चलते आज भारत में शौकिया रेडियो ऑपरेटर की तादाद लगभग 18,000 पहुँच चुकी है। वे अपने व्यस्त कार्यक्रमों के बीच भी इस शौक को पूरा करते थे और एक सक्रिय शौकिया रेडियो ऑपरेटर माने जाते थे। यहाँ तक कि अपने मारे जाने के चंद घंटो पहले भी वे 'ऑन एयर' थे तथा उनकी आखिरी 'कॉल' विशाखापत्तन्नम से थी।

यह पोस्ट कुछ ज़्यादा ही बड़ी हो रही है। पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा था कि शौकिया रेडियो ऑपरेटर को HAM क्यों कहते हैं? अगली पोस्ट में आप पायेंगे कुछ और रोचक जानकारियां तथा भारत सहित, दुनिया के कुछ चर्चित व्यक्तियों की HAM पहचान (कहें तो आईडी) जिससे आप उनसे बतिया सकें!

Tuesday, January 6, 2009

अनोखी रात फ़िल्म का बिदाई गीत

बहुत दिन से रेडियो से नहीं सुने गए गीतों की श्रृंखला में आज हम याद दिला रहे है अनोखी रात फ़िल्म के गीत की।

वर्ष १९७० के आस पास रिलीज़ इस फ़िल्म के सभी गीत लोकप्रिय रहे और रेडियो के हर केन्द्र से चाहे वो विविध भारती हो या सिलोन या फिर उर्दू सर्विस हो या क्षेत्रीय केन्द्र बहुत सुनवाए जाते थे। बाद में भी कुछ गीत कभी-कभार सुनने को मिले पर यह गीत सुनने को नहीं मिला।

शादी ब्याह के इस भावुक गीत को फ़िल्म में नायिका ख़ुद गाती है क्योंकि बड़ी ही विचित्र स्थिति में उसकी शादी होने जा रही है। नायिका है ज़ाहिरा या ज़ाहिदा जो पहली बार देव आनन्द की फ़िल्म गैम्बलर में नज़र आई थी। इस गीत को बहुत अच्छी तरह से फ़िल्माया गया है, निर्देशन बहुत अच्छा है। अपने नाम की ही तरह अनोखी है फ़िल्म जिसमें एक रात विभिन्न तरह के चरित्र एक जगह इकट्ठा होते है।

इस बिदाई गीत को गाया है लता मंगेशकर ने, गीत के बोलों में हालांकि कोई ख़ास बात नहीं है, बल्कि ये वो आम बोल है जो घर-घर में बेटियों के ब्याह के लिए बोले जाते है पर अपने विषय के कारण गीत बहुत ही भावुक बन पड़ा है। बोल है -

महलों का राजा मिला के रानी बेटी राज करेगी
ख़ुशी ख़ुशी कर दो बिदा तुम्हारी बेटी राज करेगी

जिस घर जाए स्वर्ग बनाए दोनों कुल की लाज निभाए
यही बाबुल जी देंगे दुआ
यही बाबुल जी देंगे दुआ के रानी बेटी राज करेगी
ख़ुशी ख़ुशी कर दो बिदा तुम्हारी बेटी राज करेगी

बेटी तो है धन ही पराया पास इसे कोई कब रख पाया
भारी करना न अपना जिया
भारी करना न अपना जिया के रानी बेटी राज करेगी
ख़ुशी ख़ुशी कर दो बिदा तुम्हारी बेटी राज करेगी

पता नहीं विविध भारती की पोटली से कब बाहर आएगा यह गीत…

Sunday, January 4, 2009

एक मित्र की मदद करें

हमारे एक नये श्रोता/पाठक विनोद श्रीवास्तव ने एक मेल भेजी है जो अक्षरश: यहाँ प्रस्तुत है।
बहुत सालों पहले आल इण्डिया रेडियो पर दो कार्यक्रमों के बीच के खाली समय में एक कर्णप्रिय धुन बजायी जाती थी. वह धुन किसी तार वाद्य ( सितार, संतूर, बैंजो आदि ) पर बजायी गई थी. पुराने रेडियो श्रोताओं को उस धुन की याद जरुर होगी. वह धुन आजकल नही सुनाई पड़ती है. क्या कही से वह धुन पुनः सुनी जा सकती है? कृपया मार्गदर्शन करें.
अगर आप मित्रों में से किसी के पास वह धुन हो तो कृपया रेडियोनामा को भी भेजें, ताकि अन्य श्रोता/पाठक भी उस धुन को सुन सके। हम उसे रेडियोनामा पर आपके नाम से लगायेंगे।

#सागर नाहर

Friday, January 2, 2009

साप्ताहिकी 1-1-09

आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !

इस सप्ताह साल को अलविदा कहा गया और नए साल का स्वागत हुआ।

सप्ताह भर सुबह 6 बजे समाचार के बाद भगवान महावीर, विदेशी चिंतकों, साहित्यकारों जैसे वृन्दावनलाल वर्मा के विचार बताए गए। वन्दनवार में पुराने भजनों के साथ नए भजन भी सुनवाए गए जैसे -

गौरापति शंभु है कैलाश के वासी

बहुत दिन हुए हरिओम शरण जी के स्वर में हनुमान चालीसा नहीं सुनवाई गई।

हर दिन कार्यक्रम का समापन देशगान से होता रहा। यह देशगान बहुत सुनवाया जाता है फिर भी इसका विवरण नहीं बताया जाता, मुझे लगता है यह गीत राजेश रेड्डी जी का लिखा हुआ है -

ऐ वतन ऐ वतन ऐ वतन
जानेमन जानेमन जानेमन

7 बजे भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में संगीतकार एन दत्ता को उनकी पुण्य स्मृति पर याद किया गया और उन्हीं के संगीतबद्ध किए गीतों को सुनवाकर यह कार्यक्रम उन्हें समर्पित किया गया। कुछ भूले बिसरे नाम और आवाज़े गूँजी जैसे गायक कलाकार मंजू, मोती। साथ में लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए जैसे तलत महमूद का गाया सुजाता फ़िल्म का गीत - जलते है जिसके लिए

हर दिन समापन कुन्दनलाल (के एल) सहगल के गीतों से होता रहा। बहुत दिन हुए सहगल साहब का कपाल कुण्डला फ़िल्म का गीत नहीं सुनवाया गया।

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला गंधार गुंजन का दूसरा खंड समाप्त हुआ जिसे प्रस्तुत कर रहीं थीं ख्यात गायिका कुमुदिनी काटकरे जी। इसमें ऐसे रागों की जानकारी दी गई जिसमे अन्य स्वरों के साथ शुद्ध गंधार का प्रयोग होता है। राग छाया नट, विहाग, खमाज, बिलावल थाट के उतरांग प्रधान राग हमीर और शंकरा, शुद्ध कल्याण, कर्नाटक संगीत से हिन्दुस्तानी संगीत में आए राग कलावती पर चर्चा हुई। साथ ही हर राग पर बंदिशे भी प्रस्तुत की गई और फ़िल्मी गीत भी जैसे चोरी-चोरी फ़िल्म का गीत - रसिक बलमा

7:45 को त्रिवेणी में जीवन में धन की आवश्यकता, पल-पल भागते समय, जीवन के सुख दुःख की बातें हुई और मेल खाते नए पुराने गीत बजे। जाते साल और आते साल का असर भी दिखा जिसमें ईमेल और सेलफोन के आने से शुभकामना संदेश के कार्डों के कम होते चलन की चर्चा हुई। साल की अंतिम त्रिवेणी भी अच्छी रही जिसमें जीवन में समय को यूँ ही न बिताने की बात कही गई और नए साल के पहले दिन जीवन के रंग बताए गए, गीतों का चुनाव भी अच्छा रहा -

ये जीना है अंगूर का दाना
खट्टा मीठा खट्टा मीठा
खट्टा मीठा खट्टा मीठा

दोपहर 12 बजे एस एम एस एस के बहाने वी बी एस के तराने कार्यक्रम में शुक्रवार को आए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी, फ़िल्में रही परवरिश, नसीब, मि नटवरलाल, त्रिशूल, द ग्रेट गैम्बलर, अमर अकबर एंथोनी जैसी सत्तर अस्सी के दशक की अमिताभ बच्चन अभिनीत फ़िल्में। शनिवार को बीवी नं 1, आंटी नं 1, बेटी नं 1, कुली नं 1, अनाड़ी नं 1, हीरो नं 1, जोड़ी नं 1, सिर्फ़ तुम, गैंगस्टर, सोलजर जैसी लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। रविवार को फ़िल्में रही दिल से, परदेस, चक दे इंडिया, वन टू का फोर। सोमवार को शहनाज़ (अख़्तरी) जी लाईं राज़, प्रेम पुजारी, रज़िया सुल्तान, लैला मजनू, शोर, मुग़ले आज़म, जोधा अकबर जैसी नई पुरानी लोकप्रिय फ़िल्में। मंगलवार को आए कमल (शर्मा) जी फ़िल्में रही यह रात फिर न आएगी, आप आए बहार आई, कसमें वादे, प्यार का मौसम, ज्वैल थीफ़ जैसी साठ के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। बुधवार को साल के आखिरी कार्यक्रम के ज़ोरदार नग़में लेकर आए अशोक (सोनावणे) जी फ़िल्में रही अवतार, जूली, कारवाँ, कन्हैय्या, धरती, अंदाज़, पराया धन, खट्टा मीठा, सच्चाई जैसी साठ सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। इस अंतिम कार्यक्रम के लिए श्रोताओं ने बड़े ही अच्छे और उचित गानों के लिए संदेश भेजे जैसे -

ये राते नई पुरानी (फ़िल्म जूली जो बीतते साल और आने वाले साल के जश्न का गीत है)
ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना (अंदाज़)

और अवतार फ़िल्म का यह गीत तो बिल्कुल विविध भारती की तबियत से मेल खाता गीत था -

दिन महीने साल गुज़रते जाएगें
हम प्यार में जीते प्यार में मरते जाएगें
देखेंगें
देख लेना

वाकई दिन महीने साल गुज़रते जाते है पर विविध भारती पर वही प्यार मोहब्बत के गीत बजते जाते है। गुरूवार को पधारी सलमा जी, फ़िल्में रही बहार आने तक, सड़क, लाल दुपट्टा मलमल का, बाँबी, पत्थर के फूल, काला पत्थर जैसी लोकप्रिय फ़िल्में। यह साल का पहला दिन था पर ऐसा कुछ लगा नहीं। इस दिन भी कार्यक्रम सामान्य ही लगा।

1:00 बजे फाकिर मंत्र एलबम से फाकिर का गाया यह गीत सुन कर लगा वाकई म्यूज़िक मसाला कार्यक्रम सुन रहे है वरना यहाँ भी अक्सर ग़ज़लनुमा गाने ही चलते है -

दिन में तेरी याद सतावे
रात को भी चैन न आवे
दूरी मुझको रास न आवे
सुनती जाणा
हीरिए सोणिए आ भी जा

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में सत्तर के दशक की फ़िल्मों से लेकर 5-7 साल पहले तक रिलीज़ हुई फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए। इनमें कुछ ऐसे गीत भी शामिल रहे जिन्हें बहुत दिन बाद सुनवाया गया -

राजेश खन्ना, हेमामालिनी अभिनीत फ़िल्म प्रेमनगर का किशोर कुमार और लता जी का गाया यह गीत -

ठंडी हवाओं ने गोरी का घूँघट उड़ा दिया
काली घटाओं ने साजन को नटखट बना दिया

देव आनन्द, ज़ीनत अमान अभिनीत फ़िल्म हरे रामा हरे कृष्णा का ऊषा अय्यर (ऊथूप) और आशा भोंसलें का गाया शीर्षक गीत (टाइटिल सांग)

छोटी सी मुलाक़ात फ़िल्म का शीर्षक गीत -

छोटी सी मुलाक़ात प्यार बन गई
प्यार बनके गले का हार बन गयी

3 बजे सखि सहेली में शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। पूना, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे विभिन्न स्थानों से फोन आए। घरेलु महिलाओं के साथ कुछ छात्राओं और काम जैसे सिलाई करने वाली, साड़ियों पर मोतियों, धागों की कढाई करने वाली महिलाओं ने भी फोन किए। बातचीत से हिमाचल प्रदेश के मौसम का भी पता चला। उनकी पसन्द के नए पुराने गीत सुनवाए गए जिनमें से फ़िल्म एक बार मुस्कुरा दो का किशोर कुमार और आशा भोंसले का गाया यह गीत बहुत दिन बाद सुनना अच्छा लगा -

तू औरों की क्यों हो गई

सोमवार को गोवा का व्यंजन बाँलनट ब्राउनीज़, आड़ू का व्यंजन जिसमें केक और कस्टर्ड बना कर उसमें आड़ू डालकर बनाया बताया गया जो क्रिसमस के ढलते और नए साल के स्वागत करते माहौल के लिए उचित चुनाव है। वैसे हम भारतीय ऐसे व्यंजन अपनी रसोई में कम ही बनाते है, इसीलिए सुनना अच्छा लगा, बनाने में रूचि ली जा सकती है। मंगलवार को सखि सहेली कार्यक्रम में करिअर बनाने के लिए दी जाने वाली जानकारी में बताया गया कि इंटरव्यू कैसे दे। लगता है यह पहले भी बताया गया। बुधवार को स्वास्थ्य सौन्दर्य में पौष्टिक गाजर खाने की सलाह दी गई और इनके पौष्टिक तत्वों के बारे में भी बताया गया।


कमलेश (पाठक) जी एंड कंपनी दोनों दिन गुमसुम ही बनी रही। अच्छा होता अगर 31 को साल भर के चुनिंदा कार्यक्रमों के अंश सुनवाते। हालांकि लोक गीतों के, व्यंजनों के और महिलाओं से बातचीत के कुछ कार्यक्रम ख़ास रहे थे। नए साल के पहले दिन सभी सखियाँ आ कर हल्ला-गुल्ला करती तो मज़ा आता पर इस दिन भी उपदेश ही देते रहे…

रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में लोकप्रिय फ़िल्मों के सदाबहार गीत सुनवाए गए।

3:30 बजे शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में मुमताज़ शकील द्वारा रचित नाटक सिसकते पाषाण सुनवाया गया जिसके निर्देशक है सरताज नारायण माथुर। कलाकारों के दम्भ को दर्शाते इस नाटक में चोटी के शिल्पकारों द्वारा लगन से तैयार मूर्ति स्थापित नहीं हो पाती है जिसे एक ऐसा शिल्पकार धर्मा स्थापित करता है जिसका किताबी ज्ञान कम है। यह आकाशवाणी के जयपुर केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है। मुझे लगता है पहले भी यह नाटक प्रसारित किया गया है।

शाम 4 बजे रविवार को यूथ एक्सप्रेस में साल भर के ऐसे गीत चुन कर सुनवाए गए जिनमें से कुछ अधिक चर्चित रहे तो कुछ अनमोल रहे जैसे पंडित जसराज द्वारा गाया यह गीत - वादा … से वादा। इसके साथ खेल जगत की उपलब्धियाँ भी बताई गई जिसमें सबसे अच्छा लगा यह जानकर कि मणिपुर की महिला ने विश्व स्तर पर कुश्ती में उच्च स्थान प्राप्त किया पर जिन्हें कम लोग जानते है। यह साल भर की यूथ एक्सप्रेस की अच्छी उप्लब्धि रही।

पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम में कानून विशेषज्ञ वसुन्धरा देशपाण्डे से कांचन (प्रकाश संगीत) जी की बातचीत सुनवाई गई। यह सखि सहेली में प्रसारित कार्यक्रम का पुनःप्रसारण था। बातचीत वसीयतनामा विषय पर की गई। बहुत उपयोगी जानकारी मिली जैसे वसीयत पर जिन दो गवाहों के हस्ताक्षर होते है यदि ये दो डाक्टर और वकील हो तो ज्यादा ठीक रहेगा यानि यह प्रमाणित हो जाएगा कि वसीयतनामा पूरे होशोहवास में लिखा गया। यह भ्रान्ति भी दूर हुई कि वसीयत स्टाम्प पेपर पर ही नहीं, सादे काग़ज़ पर लिखी जाती है, महत्वपूर्ण होते है हस्ताक्षर।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में आँख कान गला (ईएनटी) रोग विशेषज्ञ डा दिनेश वाडरे से रेणु (बंसल) जी की बातचीत प्रसारित हुई। हमेशा की तरह इस बार भी विस्तृत और अच्छी जानकारी मिली। हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को भी विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में इस सप्ताह भी ऐसी फ़िल्मों के गीत शामिल रहे जिन्हें हम फ़रमाइशी कार्यक्रमों में भी सुनते है जैसे जब वी मेट

7 बजे जयमाला में सुनवाए गए गानों में नए पुराने अच्छे गीत सुनवाए गए। फ़ौजी भाइयो की पसन्द के इस गीत में मेरी पसन्द भी शामिल है -

फ्रीडम तर तर तर तर तर
दुनिया में लोगों को धोखा कभी हो जाता है
बातों ही बातों में यारों का दिल खो जाता है

आर डी बर्मन और आशा भोंसले के गाए आर डी के विशेष अंदाज़ के अपना देश फ़िल्म के इस गीत को बहुत दिन बाद याद किया गया। शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया सुप्रसिद्ध पार्श्व गायिका सुमन कल्याण्पुर ने। बहुत अच्छा लगा। शुक्रिया शकुन्तला (पंडित) जी, अब क्यों न कमल बारोट की प्रस्तुति हो जाए ?

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में कच्छी गीत सुनवाए गए। शनिवार और सोमवार को पत्रावली में इस बार भी श्रोताओं ने कुछ सुझाव दिए जिनमें से एक सुझाव था कि 1947 से 66 तक की फ़िल्मों के गीतों का कार्यक्रम भूले बिसरे गीत रात 9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम के स्थान पर प्रसारित किया जाए क्योंकि यह कार्यक्रम दिन में 9:30 बजे भी प्रसारित होता है। यहाँ मेरा कहना है कि हैदराबाद में विविध भारती से क्षेत्रीय भाषा के कार्यक्रम भी होते है जिससे सवेरे आठ बजे के बाद हम दोपहर 12 बजे से केन्द्रीय सेवा के कार्यक्रम सुनते है। यही स्थिति और भी स्थानों की होगी। इस तरह यह श्रोता एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम सिर्फ़ रात मे 9:30 बजे ही सुनते है। इसीलिए इस कार्यक्रम को पूरी तरह से हटाने के बजाए सप्ताह में 2-3 दिन पुराने गीत सुनवाए जा सकते है। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में निकाह फिल्म की क़व्वाली भी शामिल-ए-बज्म रही। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में मुंबई में प्राध्यापक, पक्षी निरीक्षक परवेश पांड्या जी से बातचीत की अगली कड़ी सुनवाई गई। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे राग खमाज पर आधारित मीरा फ़िल्म का वाणी जयराम का गाया गीत -

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

8 बजे हवामहल में सुनी हास्य झलकियाँ स्वर्ग का पासपोर्ट (रचना आर के शर्मा निर्देशक वी पी दीक्षित), अब ताली नही बजेगी (रचना पुष्पा दीक्षित निर्देशक विजय दीपक छिब्बर), बस स्टाप (निर्देशक गंगा प्रसाद माथुर) कैलेण्डर का चक्कर (रचना रामेश्वर सिंह निर्देशक सत्येन्द्र देव)

9 बजे गुलदस्ता में गीत और ग़ज़लें इस बार भी अच्छी सुनवाई गई पर नए-पुराने साल का खास माहौल नहीं मिला।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में अदालत, आबरू, धर्मपुत्र, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएगें फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अंतिम कड़ी सुनी जिसमें माला सिन्हा ने राजकपूर और मनोज कुमार के साथ यादें ताज़ा की।

10 बजे छाया गीत में रेणु (बंसल) जी की नए साल की पहली प्रस्तुति अच्छी लगी।

31 दिसम्बर को रात 11 बजे के बाद किसी विशेष कार्यक्रम की आशा थी जो पूरी नहीं हुई। लगता है विविध भारती के वो दिन लद गए जब विशेष अवसरों पर कवि सम्मेलन, संगीतमय और हास्य कार्यक्रम प्रसारित हुआ करते थे।

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