सबसे नए तीन पन्ने :

Friday, November 28, 2008

साप्ताहिकी 27-11-08

सप्ताह की समाप्ति पर पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के निधन के समाचार से शोक की लहर उठी और गुरूवार रात में छाया गीत की जगह संजीदा गीत सुनवाए गए।

पूरे सप्ताह सवेरे 6 बजे समाचार के बाद प्रेमचन्द, टाँलसटाय, महात्मा गाँधी जैसे विद्वानों के विचार और स्वामी विवेकानन्द की युवा शक्ति को आह्वान करने की बातें चिन्तन में बताई गई। वन्दनवार में भजन भी सप्ताह भर अच्छे सुनवाए गए। अंत में देशगान भी अच्छे रहे पर विवरण नहीं बताया गया। हालांकि ऐसे गीत सुनवाए गए जो प्रसिद्ध कवियों की रचनाएँ है जैसे -

भारतमाता ग्राम वासिनी - सुमित्रानन्दन पंत का लोकप्रिय गीत है
यही है मेरा देश मेरा देश मेरा देश - बालकवि बैरागी की रचना है

कम से कम रचयिता का नाम तो बताया जा सकता था।

7 बजे भूले-बिसरे गीत में अधिकतर भूले बिसरे गीत ही बजे जैसे -

औरत तो है ज़हर की पुड़िया
बन्दूक से नहीं गोली से नही
प्यार से मर्द को बना रखा है ग़ुलाम

पर कुछ लोकप्रिय गीत भी सुनवाए गए जैसे मीना कपूर का गाया यह गीत -

मोरी अटरिया पे कागा बोले
मोरा जिया डोले कोई आ रहा है

7:30 बजे संगीत सरिता में श्रृंखला कौंस के प्रकार समाप्त हुई जिसे प्रस्तुत कर रही थी प्रसिद्ध गायिका अश्विनी भेड़े देशपाण्डेय। कौंस के विभिन्न रागों पर आधारित इस श्रृंखला में हर राग को गाकर समझाया गया जिसमें हारमोनियम पर संगत की सीमा शिरोडकर और तबले पर संगत की विश्वनाथ शिरोडकर ने। राग चन्द्र कौंस की जानकारी दी गई, बताया गया कि मालकौंस में दो स्वर कम कर राग चन्द्र कौंस तैयार किया गया। इस तरह तैयार यह राग 50-80 वर्ष पुराना ही है। इसमें गायन भी सुनवाया गया। इसी तरह राग मधुवन्ती से जन्म हुआ राग मधु कौंस का। इसकी जानकारी देते हुए राग मधुवन्ती पर आधारित ग़ज़ल सुनवाई गई -

रस्में उल्फ़त को निभाए तो निभाए कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाए कैसे

और एक गीत सुनवाया गया जिसमें राग मधुवन्ती और मधुकौंस दोनों की झलक थी पर अच्छा होता अगर ऐसा गीत सुनवाया जाता जो केवल मधुकौंस पर आधारित होता। राग सम्पूर्ण मालकौंस की जानकारी देते हुए बंदिशे सुनवाई गई। बताया गया कि संपूर्ण मालकौंस में कोई फ़िल्मी गीत ध्यान में नहीं आ रहा है और मराठी लोक गीत सुनवाया गया। बताया गया कि राग चारूकौंस कर्नाटक शैली के राग चारूकेशी से निकला है, जानकारी देने के बाद इस राग में भी गायन सुनवाया गया और साथ में प्यार का मौसम फ़िल्म का यह गीत -

तुम बिन जाऊँ कहाँ

कुल 7 कड़ियों की छोटी सी इस श्रृंखला की अंतिम कड़ी में बागेश्री कौंस और पंचम मालकौंस की जानकारी दी। यह बताते हुए श्रृंखला समाप्त की गई कि कौंस के कई प्रकार है जैसे हरि कौंस, श्याम कौंस आदि। बातचीत की अशोक (सोनावने) जी ने। धन्यवाद कांचन (प्रकाश संगीत) जी इस जानकारीपूर्ण कार्यक्रम को तैयार कर प्रस्तुत करने के लिए।

एक और श्रृंखला आरंभ हुई - नाद निनाद जिसे प्रस्तुत कर रहे है ख़्यात बांसुरीवादक विजय राघव राव। इसमें संगीत की प्रवृतियों को बताया जा रहा है। एक बहुत अच्छी बात से शुरूवात की गई कि गीत वाद्य और नृत्य की त्रिवेणी है हमारा संगीत। यह श्रृंखला छाया (गांगुली) जी द्वारा 1992 में तैयार की गई।

7:45 पर त्रिवेणी में शुक्रवार को क्रोध विषय पर बातें हुई पर गीत सुनवाए गए भूल विषय पर, पहला गीत ऐसी स्थिति का है कि जहाँ नायक से एक घर के मुखिया का एक्सीडेंट हो जाता है जिससे वह घर तहस-नहस हो जाता है, यह नायक की भूल है या अपरिपक्वता, यह फ़िल्म है राजश्री प्रोडक्शनस की शिक्षा इसमें क्रोध है ही नहीं, कृपया गानों के चुनाव ध्यान से करें। इसके अलावा वैज्ञानिक उन्नति की और किसी भी तरह का भेदभाव न करने की बातें हुई। मंगलवार को विषय स्पष्ट नहीं हुआ, पहले कहा गया हर एक में प्राकृतिक गुण और वर्जनाएँ होती है फिर प्रकृति की बात हुई फिर कुछ और…

दोपहर 12 बजे हर दिन प्रसारित हुआ कार्यक्रम एस एम एस के बहाने वी बी एस के तराने। शुक्रवार को पधारी निम्मी (मिश्रा) जी फ़िल्में रही काँटे, ताल, ज़ख़्म, अपने, अक्सर, सिंह इज़ किंग, चमेली, लगान जैसी नई लोकप्रिय फ़िल्में। आरंभिक काव्यात्मक उदघोषणा अच्छी लगी। शनिवार को दुश्मन, हरे राम हरे कृष्ण, आए दिन बहार के, तेरे घर के सामने, तेरे मेरे सपने, मेरा गाँव मेरा देश जैसी पचास से सत्तर के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में लेकर आए अमरकान्त जी। रविवार को जब जब फूल खिले, त्रिशूल, कन्यादान, मेहदी लगी मेरे हाथ, हसीना मान जाएगी जैसी साठ से अस्सी के दशक की अभिनेता शशिकपूर की लोकप्रिय फ़िल्में रही। सोमवार को दिल है कि मानता नहीं, राम लखन, पेज 3, जब वी मेट, मैनें प्यार क्यों किया, पुकार जैसी नई फ़िल्में लेकर आईं रेणु (बंसल) जी। मंगलवार को आए राजेन्द्र (त्रिपाठी) जी, फ़िल्में रही वीर ज़ारा, सलाम नमस्ते, गुरू, जानेमन जैसी नई फ़िल्में। बुधवार को आए कमल (शर्मा) जी फ़िल्में रही याराना, जवानी दीवानी, पराया धन, कारवाँ, अपना देश, टूटे खिलौने, खट्टा मीठा जैसी सत्तर अस्सी के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में। गुरूवार को आए कमल (शर्मा) जी और फ़िल्में रही सुजाता, बन्दिनी, दुलारी, बरसात, दिल दिया दर्द लिया, बरसात की रात, ग़ज़ल जैसी पचास साठ के दशक की लोकप्रिय फ़िल्में।

ऐसे गीत भी सुने जो बहुत लम्बे समय से नहीं बजे जैसे अपना देश फ़िल्म का यह गीत -

कजरा लगाके गजरा सजाके बिजली गिराके जय्यो न

समझ में नहीं आया श्रोताओं ने इस फ़िल्म में आशा भोंसलें और आर डी बर्मन के अपने विशेष अंदाज़ में गाए इस गीत के लिए एस एम एस क्यों नहीं भेजा -

दुनिया में लोगों को धोखा कभी हो जाता है

यह गीत अपने समय का बहुत-बहुत लोकप्रिय गीत है।

हर गाने के लिए संदेश भेजने वालों के नाम और शहर का नाम बताया जाता रहा। इस कार्यक्रम को विजय दीपक (छिब्बर) जी प्रस्तुत कर रहे है और प्रस्तुति सहयोग रहा निखिल धामापुरकर जी, मंगेश सांगले, सुभाष भावसार, स्वाति भण्डारकर और दिलीप (कुलकर्णी) जी का।

1 बजे म्यूज़िक मसाला में मन के मंजीरे एलबम से शुभा मुदगल की आवाज़ में राजस्थानी गीत सुना -

पधारो म्हारे देश

केवल भाषा सुन कर ही लग रहा था कि यह राजस्थानी गीत है, न तो गायकी और न ही अंदाज़ राजस्थानी था, आवाज़ भी काँप रही थी, लगा जैसे ज़बरदस्ती राजस्थानी गीत उनसे गवाया गया।

1:30 बजे मन चाहे गीत कार्यक्रम में नए पुराने गीत सुनवाए गए। प्रिंस फ़िल्म का यह गीत बहुत दिन बाद सुना -

बदन पे सितारे लपेटे हुए ऐ जाने तमन्ना किधर जा रही हो

3 बजे शुक्रवार को हैलो सहेली कार्यक्रम में फोन पर सखियों से बातचीत की शहनाज़ (अख़्तरी) जी ने। गृहणियों के, छात्राओं के, शिक्षित और कम पढी लिखी महिलाओं से बातचीत हुई। अक्सर फोन गाँव ज़िले से ही आते है पर इस बार एक फोन दिल्ली शहर से भी था। अधिकतर नए गाने ही पसन्द किए गए।

सोमवार को सूखे मेवे की चक्की और मूँगफली की बर्फ़ी बनाना बताया गया। इस दिन सांस्कृतिक एकता दिवस होने से संबंधित बातें भी बताई गई। साथ ही राजनैतिक क्षेत्र में विभिन्न क्षेत्रों से आई प्रथम महिलाओं से संबंधित जानकारी दी गई। मंगलवार को पर्यटन में मार्किंटिंग, कैटिरिन, टिकेटिंग जैसे पर्यटन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में करिअर बनाने के लिए कोर्स करने की जानकारी दी गई। गाने नए सुनवाए गए। बुधवार को सर्दियों में त्वचा की देखभाल के लिए घरेलु नुस्ख़े बताए गए जिसमें कहा गया कि सब्जियों और फलों के रस जैसे आलू, गोभी आदि साथ ही शहद और खाने का तेल आदि लगाने से त्वचा अच्छी रहती है। गुरूवार को सखियों की इस शिकायत पर कि उनके पत्र शामिल नहीं किए जा रहे, सखियों के पत्र ही पढे गए। एक पत्र उड़ीसा से आया था जिसमें अच्छी जानकारी दी गई कि मानव की रसोई का आरंभ कैसे हुआ जैसे आदि मानव ने कैसे कच्चे मांस से पका हुआ भोजन खाना और नमक मिला खाना शुरू किया। पर दोनों सखियों (निम्मी जी और चंचल जी) ने इसे मानव का विकास कहा जबकि यह सभ्यता का विकास कहलाता है और यह समाज शास्त्र का विषय है जबकि मानव का विकास विज्ञान की बातें है जिसमें मनुष्य के शारीरिक और मानसिक विकास की बातें की जाती है।

3 बजे शनिवार को क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद से तेलुगु में पर्यावरण से संबंधित प्रायोजित कार्यक्रम सुना - कोशिश सुनहरे कल की। रविवार को सदाबहार नग़में कार्यक्रम में हमेशा की तरह लोकप्रिय फ़िल्मों के लोकप्रिय गीत सुनवाए गए।

शनिवार और रविवार को नाट्य तरंग में सुना नाटक सात कदम आसमान में इस मूल गुजराती नाटक के लेखक है कुन्दनिका कपाड़िया जिसका हिन्दी रेडियो नाट्य रूपान्तर किया है प्रशान्त पाण्डेय ने जिसके निर्देशिक है सुदर्शन कुमार। यह नाटक आधुनिक होती महिलाओं पर केन्द्रित था कि कैसे उन्हें घर और समाज में हर स्तर पर दिक्कतें होती है क्योंकि जिस तरह महिलाएँ अपने विचार बदल रही है उसी तरह पुरूष और समाज नहीं बदल रहा।

रविवार को शाम 4 बजे यूथ एक्सप्रेस इस सप्ताह भी छुक-छुक करती रही। गानों के लिए समय कुछ अधिक ही रहा। किताबों की दुनिया में विदेशी चिंतक सुकरात पर जानकारी दी चित्रा कुमार ने। संगीतकार भप्पी लहरी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी गई और उनके गीत सुनवाए गए। एक श्रोता की भेजी सचिन तेंदुलकर के करिअर संबंधी जानकारी पढकर सुनाई गई जिसका औचित्य मुझे समझ में नहीं आया क्या युवा सचिन के बारे में नहीं जानते ?

4 बजे पिटारा में शुक्रवार को पिटारे में पिटारा कार्यक्रम के अंतर्गत बाईस्कोप की बातें कार्यक्रम में चाचाचा फ़िल्म की बातें बताई गई। इस फ़िल्म के बहुत से तार हैदराबाद से आन्ध्रप्रदेश से जुड़े है। यह फ़िल्म मैंनें देखी है। इस कार्यक्रम में लोकेन्द्र शर्मा जी ने इतनी अच्छी तरह से इस फ़िल्म की बातें बताई कि बहुत दिन पहले देखी गई इस फ़िल्म के सीन नज़रों के सामने आ गए ख़ासकर मन्दिर में जन्माष्टमी के समय गाया जाने वाला गीत - लल्ली सज धज कर चली, बालों में गजरा…

इस सीन में साड़ी पहने सिर पर पल्लू लिए हाथ में पूजा की थाली लिए पारम्परिक भारतीय छवि में हेलन बेहद ख़ूबसूरत लगी। बातें सुनते गए तो सीन याद आते गए, हेलन का बेजोड़ अभिनय जिसमें भरी हुई आँखों से बैसाखियों की ओर देखना फिर गाना सुन कर बैसाखियाँ घिसटते हुए दौड़ना सभी याद आने लगे। अच्छे संवाद संपादित कर सुनवाए गए। इतनी अच्छी प्रस्तुति रही कि पाश्चात्य नृत्य चाचाचा को लेकर बनाई गई नायक चन्द्रशेखर की इस फ़िल्म का श्रोता पूरा आनन्द ले सकें।

सोमवार को सेहतनामा कार्यक्रम में आयुर्वेद चिकित्सक कन्हैया लाल शाह से कांचन (प्रकाश संगीत) जी ने गठिया रोग पर बातचीत की। बढती उमर में होने वाला जोड़ो का दर्द उसके कारण पर विस्तार से जानकारी दी गई। एक बात अच्छी बताई गई कि अन्य देशों में मौसम के कारण स्वास्थ्य के लिए कुछ सीमा तक मदिरापान किया जाता है पर भारत के मौसम के अनुसार इसकी आवश्यकता ही नहीं है। बुधवार को आज के मेहमान में लेखक, निर्माता, अभिनेता सचिन से ममता (सिंह) जी की बातचीत सुनवाई गई। बालकलाकार से शुरू करिअर की अच्छी जानकारी दी। चंदा और बिजली जैसी फ़िल्म को भी याद किया और बालिका वधू की भी बातें हुई।

हैलो फ़रमाइश में शनिवार, मंगलवार और गुरूवार को विभिन्न स्तर के श्रोताओं के फोन आए जिसमें कम शिक्षित कामकाजी श्रोता भी थे, सभी से हल्की-फुल्की बातचीत होती रही और उनके पसंदीदा नए पुराने गीत बजते रहे।

5 बजे समाचारों के पाँच मिनट के बुलेटिन के बाद नए फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम फ़िल्मी हंगामा में सभी गीत नए सामान्य रहे।

7 बजे जयमाला में रोज़ फ़ौजी भाइयों के फ़रमाइशी गीत सुनवाए गए जिसमें नए गाने ज्यादा थे, कभी-कभार पुराने गीत भी सुनवाए गए जिसमें रविवार को बहुत अच्छे गीत शामिल रहे और स्वामी फ़िल्म का लता जी का गाया यह गीत तो बहुत दिन बाद सुना -

पल भर में यह क्या हो गया
लो मैं गई वो मन गया
चुनरी कहे सुन री पवन
सावन लाया अब के सजन

बहुत अच्छे बोल अमित खन्ना के और बहुत ही मधुर गीत।

शनिवार को विशेष जयमाला प्रस्तुत किया शायर और गीतकार नुसरत बदरू ने। प्रस्तुति काफी शायराना रही पर गीत ऐसे सुनवाए जो जाने-पहचाने नहीं थे, अंतिम दो गीत तो ग़ैर फ़िल्मी थे ही पर पूरा कार्यक्रम सुन कर लग रहा था जैसे ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं का गुलदस्ता कार्यक्रम सुन रहे है।

7:45 पर शुक्रवार को लोकसंगीत में मराठी, पूर्वी गीत सुनवाए गए जिसमें इन्द्राणी पाटिल का मराठी लोकगीत अच्छा लगा। पत्रावली में दोनों दिन, शनिवार और सोमवार को कुछ ऐसे श्रोताओं के पत्र शामिल रहे जो बरसों से रेडियो सुन रहे है। कुछ अच्छे कार्यक्रम बंद होने की शिकायतें भी हुई और सुझाव भी दिए गए। मंगलवार को बज्म-ए-क़व्वाली में ग़ैर फ़िल्मी क़व्वालियाँ सुनी। बुधवार के इनसे मिलिए कार्यक्रम में गायिका जसविन्दर नरूला से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की अगली कड़ी सुनवाई गई। गायिका ने आध्यात्मिक अनुभूति की बात की, जब कमल जी ने संघर्ष के बारे में पूछा तो भाग्य की बात बता दी। रविवार और गुरूवार को राग-अनुराग में विभिन्न रागों पर आधारित फ़िल्मी गीत सुने जैसे पाकीज़ा फ़िल्म का गीत।

8 बजे हवामहल में हास्य झलकियाँ सुनी -चक्कर बहस का (निर्देशक - एम एस बेग), तलाश एक वकील की (रचना - नदीम अजमेरी और निर्देशक - जटाशंकर शर्मा), शान्ति (रचना गंगा प्रसाद माथुर निर्देशिका लता गुप्ता) , अंगूर खट्टे है (निर्देशक कमल दत्त और रचना वी एस आनन्द)

रात 9 बजे गुलदस्ता में गीत कुछ कम ही रहे और ग़ज़लों की संख़्या अधिक रही। अच्छा लगा अहमद वसी का कलाम ख़ैय्याम के संगीत निर्देशन में आशा भोंसले की आवाज़ में सुनना।

9:30 बजे एक ही फ़िल्म से कार्यक्रम में पगला कहीं का, तेजाब, पहेली, दौलत जैसी साठ से अस्सी के दशक तक की लोकप्रिय फ़िल्मों के गीत सुनवाए गए।

रविवार को उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम में अभिनेत्री माला सिन्हा से कमल (शर्मा) जी की बातचीत की पहली कड़ी सुनी। अच्छी शुरूवात हुई। यह नई बात पता चली कि माला सिन्हा बचपन में गायिका थी, शिक्षा भी ली थी पर बन गई अभिनेत्री जिसकी शुरूवात हुई बंगला फ़िल्मों से, यह भी नई बात पता चली कि बम्बईया हिन्दी फ़िल्मों की तरह रोने-धोने के सीन के लिए कलकत्ता में ग्लिसरीन नहीं लगाई जाती बल्कि सचमुच रोना पड़ता है और रोना न आने पर निर्माता थप्पड़ मार कर रूलाते है। हर बात उन्होनें दिल से बताई और खुल कर बातें की। हिमालय की गोद में फ़िल्म का सीन सुनवाया गया और अनपढ फ़िल्म के साथ दिल तेरा दीवाना जैसी अन्य फ़िल्मों के गीत भी सुनवाए गए।

10 बजे शुक्रवार को कमल (शर्मा) जी द्वारा प्रस्तुत छाया गीत मज़ेदार रहा जो फ़िल्मों में प्रेतात्माओं पर आधारित था। सच बताया कि फ़िल्मों में भूत-प्रेत विशेषकर चुड़ैलें (महिला भूत) बहुत ग्लैमरस होती है जबकि वास्तव में भूत-प्रेत-चुड़ैलों को भयानक माना जाता है। संबंधित गाने भी अच्छे चुने गए। अमरकांत जी ने अपना वही पुराना कार्यक्रम दुबारा, तिबारा, जाने कितनी बार प्रसारित, को फिर से सुनवाया।

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें