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Tuesday, October 30, 2007

दिन की शुरूवात वन्दनवार से

हमारे परिवार में रोज़ दिन की शुरूवात वन्दनवार से होती है। यह मैनें बचपन से सुना, उस समय से जब मुझे कुछ ठीक से समझ में भी नहीं आता था।

पहले कुछ समय के लिए सुबह का प्रसारण 6:30 से शुरू होता था। कुछ समय के लिए वन्दनवार का नाम भी सुमंगलम था।

विविध भारती के पहले प्रसारण की signature tune हमारे घर में दिन का आग़ाज़ करती है। फिर वन्देमातरम, मंगल ध्वनि जिसके बाद पहले होता था चिन्तन लेकिन पिछले लगभग 5 वर्षों से यहां 5 मिनट के लिए समाचार भी होने शुरू हो गए।

फिर बजता है वन्दनवार का सुमधुर संगीत। उसके बाद चिन्तन जिसमें कम शब्दों में बोधगम्य बात बताई जाती है, कोई न कोई ऐसा संदेश जो जीवन में आशा जगाता है। फिर शुरू होता है सिलसिला भजनों का।

सच बताऊं इससे दिन की शुरूवात बहुत शान्त और शुभ होती है। सभी भजन अच्छे होते है। रचना, गायकी और संगीत बेजोड़।

नए भजन सुनना भी अच्छा लगता है। परन्तु पुरानी कुछ ऐसी भक्ति रचनाएं है जिन्हें सुने एक लम्बा समय बीत गया। जैसे जुतिका राय के मीरा भजन, हरिओम शरण के राम भक्ति गीत, केसरी डे के गाए भजन, रसखान की कृष्ण भक्ति रचनाएं जैसे -

मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं बृज गोकुल गांव के ग्वारन

युगल पुरूष स्वर में बहुत ही सुंदर रचना। ऐसे ही स्वरों में आल्हा छंद में रसखान के कुछ दोहे जोड़ कर एक गीत तैयार किया गया था जिसमें एक पंक्ति बार-बार आती थी -

ताहि अहीर की छोहरिया, छछिया भर छाछ पे नाच नचावे

साथ के कुछ दोहे इस तरह है -

सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावै
जाहि अनादि अनन्त अखंड अछेद अभेद सुभेद बतावै

आठहुं सिद्धि नवो निधि को सुख नन्द की धेनु चराए बिसारौं
रसखान कबौं इन आखिन सों बृज के बन बाग तड़ाग

ऐसे ही कबीर के भी कुछ दोहों से भक्ति रचनाएं है।

एक शबद गुरूशरण कौर तथा एक और महिला के स्वर में जो शायद संत गुरूनानक की रचना है -

तुम शरणाई आया साई
तुम शरणाई आया

एक और रचना -

सतगुरू नानक परकटया

क्या ही अच्छा हो कि जिस तरह से भूले-बिसरे गीत में अंत में के एल सहगल का गीत सुनवाया जाता है उसी तरह वन्दनवार में भी अंत में एक पुराना भक्ति गीत सुनवाया जाए।

Sunday, October 28, 2007

क्यों नहीं है विविध भारती किशोरों और युवाओं की पहली पसंद ?

पिछले तीन-चार दिनों से वाइरल की चपेट में हूँ पर आज मन फिर भी बेहद खुश है। ये खुशी सिर्फ मेरी आँखों में हो ऍसी बात नहीं। इसमें उन तमाम राँची वासियों की खुशी शामिल है जिनके लिए रेडिओ अभी भी मनोरंजन का प्रमुख साधन है। आखिर वो दिन आ ही गया जिसका मुझे कॉफी बेसब्री से इंतजार था। छोटे शहरों में निजी एफ एम चैनल का हाल के दिनों में तेजी से विस्तार हो रहा है और इसी क्रम में हुआ है राँची में तीन नए चैनल का एक साथ प्रवेश : बिग एफ एम, दैनिक जागरण वालों का रेडियो मंत्रा और रेडियो धमाल।

जिस तरह पिछले दो महिनों में रेडियो मिर्ची का स्वागत पटनावासियों ने किया है, इसमें कोई शक नहीं कि राँची में भी यहाँ के किशोरों और युवाओं में ये लोकप्रिय हो जाएँगे। पिछली बार जब पटना गया था तो देखा कि पान का नुक्कड़ हो या मोहल्ले में इस्त्री करने वाला धोबी सभी के ट्रांजिस्टर पर रेडिओ मिर्ची ही बज रहा है। ये भी नहीं है कि ये निजी चैनल बेहद उम्दा प्रोग्रामिंग करते हैं पर सबसे बड़ी बात है कि वो आम जनता की नब्ज़ पर ज्यादा बेहतर नज़र रखते हैं।

निजी चैनलों की बढ़ती लोकप्रियता से ये भी लगता है कि कहीं ना कहीं रेडियो में फिल्म संगीत के माध्यम से समाज के हर वर्ग को स्वस्थ मनोरंजन देने में विविध भारती पूर्ण रूप से सक्षम नहीं रही है।

इससे पहले मैं बात आगे बढ़ाऊँ, विविध भारती से अपने मोह भंग की कहानी जरूर बताना चाहूँगा। बचपन से ही रेडिओ मेरा बेहद प्यारा दोस्त हुआ करता था। विविध भारती के कार्यक्रम बहनें सुना करती थीं तो मैंने भी सुनना शुरु किया।

संगीत सरिता, भूले बिसरे गीत, समाचार, चित्रलोक, अनुरोध गीत....और फिर मन चाहे गीत, रंग तरंग, रविवारीय जयमाला, युवावाणी, चित्रशाला, एक से अनेक, साज और आवाज़, हवा महल, प्रायोजित कार्यक्रम, छाया गीत और आप की फर्माइश की बँधी बधाई फेरहिस्त मैंने अपने स्कूल के दिनों में बारहा सुनी।

हवा महल उन दिनों का हमारा सबसे पसंदीदा कार्यक्रम हुआ करता था जिसे हम सब बड़े चाव से सुनते थे। पर जैसे जैसे संगीत के प्रति मेरी अभिरुचि बढ़ी मैंने ये पाया कि विविध भारती नए गीतों को अपने कार्यक्रम में शामिल नहीं करती। नए गीतों को सुनने के लिए हमें अमीन सयानी की बिनाका गीत माला पर निर्भर रहना पड़ता था। और उसके प्रसारण को पाने के लिए शार्ट वेव के २५ मीटर बैंड पर हमें कितनी जद्दोज़हद करनी पड़ती थी वो हमीं जानते थे।

उम्र बढ़ी और ग़ज़लों में मेरी विशेष रुचि हुई, मैं नियमित रूप से रंग तरंग कार्यक्रम सुनने लगा और वो मेरा पसंदीदा बन गया। ये वो ज़माना था जब फिल्म संगीत अपने पराभव पर था और अनूप जलोटा, पंकज उधास और जगजीत सिंह के रिकार्डस खूब बिक रहे थे पर विविध भारती से कभी नई ग़ज़लों के एलबम सुनने को मैं तरस गया। विविध भारती से जुड़े अपनी जिंदगी के उन दस वर्षों में मैंने ना कोई बदलाव देखा और ना प्रस्तुतिकरण में कोई नयापन। और उसके बाद रेडियो तो बहुत ट्यून किया पर बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, हिंदी सर्विस, रेडिओ पाकिस्तान और ए आई आर का नेशनल चैनल ही मेरे पसंदीदा चैनल रहे।

१९९३ में जब पहली नौकरी के लिए फरीदाबाद पहुँचा तो वहाँ देश का पहला निजी चैनल टाइम्स एफ एम आ चुका था और उसने फिर से मुझे रेडिओ से नियमित रूप से जोड़ दिया। अपनी जिंदगी की पहली कमाई से मैंने एफ एम के साथ टू इन वन खरीदा। टाइम्स एफ एम ने शीघ्र ही अपनी प्रस्तुतिकरण शैली से मेरा मन मोह लिया और वो हमारे अविवाहित जीवन की दिनचर्या बन गया था। इधर जब से यूनुस भाई से परिचय हुआ है छुट्टी के दिनों में विविध भारती के कुछ कार्यक्रम को सुनना शुरु किया है। वैसे भी हमारी पीढ़ी और हमसे बड़े लोगों को प्रसन्न करने के लिए विविध भारती के पास बहुत कुछ है.....

पर आज भी, मुझे नहीं लगता कि किशोरों और युवाओं की पहली पसंद विविध भारती है, खासकर वहाँ, जहाँ कोई और विकल्प मौजूद है। ये हम सभी जानते हैं कि जब कोई बच्चा संगीत सुनना शुरु करता है तो पहले वो धुन और ताल की ओर ज्यादा ध्यान देता है। बाद में जब इसी बच्चे की संगीत समझ बढ़ती है वो गीत के बोलों और संगीत की बारीकियों को ज्यादा अच्छी तरह से समझता है। अगर विविध भारती शुरु से ही इस वर्ग को अपने साथ ले कर नहीं चलेगी, तो आगे चलकर संगीत सुनने के इतने विकल्पों के बीच क्या वो उसे सुनना पसंद करेगा?

इसमें तो कोई शक ही नहीं कि हमारे स्वर्णिम अतीत के यादगार गीतों और कलाकारों को पेश करने में विविध भारती का कोई सानी नहीं है, पर इस धरोहर को वो पीढ़ी दर पीढ़ी पहुँचाती रहे इसके लिए ये जरूरी है कि वो हर आयु वर्ग के दर्शकों को अपने साथ बाँध कर चलती रहे।

कुछ बातें जो मुझे आज भी विविध भारती के बारे में खटकती हैं, वो हैं

  1. गीत के साथ गीतकार और संगीतकार का नाम बताना तो विविध भारती कि वो खूबी है जो उसे निजी चैनल से ऊपर खड़ा करती है, पर क्या हर गीत के पहले फर्माइश करने वालों की फेरहिस्त पढ़ने की पुरानी परंपरा का निर्वहन करना आवश्यक है? इस समय का प्रयोग उद्घोषक क्या कुछ जानकारियों के साथ अर्थपूर्ण बातचीत में नहीं लगा सकता ?
  2. पुराने कर्णप्रिय संगीत का तो विविध भारती के पास अच्छा खासा भंडार है। पर अक्सर वो ही गीत बजते हैं जो पहले से सुने होते हैं।
  3. क्या विविध भारती के का बजट इतना होता है कि उसके पास नए फिल्मी और गैर फिल्मी एलबम्स के सभी सीडी समय से उपलब्ध हो। अक्सर जब भी किसी नए अच्छे गीत को सुनने कि तलब होती है वो पहले निजी चैनल पर ही सुनाई देते हैं।
  4. विविध भारती ने सूचना तकनीक के इस युग में आज तक अपनी एक वेब साइट भी नहीं बनाई, जहाँ कम से कम कार्यक्रम सूची हो। क्या अपने आप को भारत का सबसे ज्यादा सुने जाने वाले चैनल के लिए ये गर्व की बात है?
  5. विविध भारती में क्या इसके उद्घोषकों को वो पारिश्रमिक मिल रहा है जो निजी चैनलों के आस पास हो। इतने गुणी उद्घोषकों के रहते हुए भी मुझे नहीं लगता कि उनकी प्रतिभा का पूरा उपयोग विविध भारती कर रही है।
बड़े शहरों मे तो निजी चैनल पहले ही अपनी पहचान बना चुके हैं। जिस तरह कस्बों और छोटे शहरों में निजी चैनल अपनी पैठ बना रहे हैं, विविध भारती को इन सवालों के बारे में सोचना होगा। कहीं ऍसा ना हो कि जो स्थिति आज दूरदर्शन के DD1 और DD2 की हो गई है वो कल विविध भारती की हो जाए़...

Saturday, October 27, 2007

रंग भेद, काली रे काली रे...और ये काली कलूटी के नखरे बड़े...

दो दिन पहले रेडियोवाणी पर यूनुस भाई ने अंतरा चौधरी का गाया एक गीत आपको सुनाया था--काली रे काली रे...
मैने उस गीत से जुड़ी अपनी एक बेवक़ूफ़ी का ज़िक्र किया तो उम्मीद थी कि आपमे से कोई मुझे सहारा देगा लेकिन लगता है कि हम अपनी ही बात लिखते और पढ़ते हैं या फिर वाह बहुत बढिया. बधाई का जुमला हमने अपने क्लिपबोर्ड में copy कर रखा है और उसे यहां वहां चिपकाते रहते हैं.
काले गोरे का मसला क्या इतना भी ग़ौर तलब नहीं है कि उस पर दो शब्द कहे जाएं?
पेश है अपने रंग हज़ार से ये गीत...
सोचिये रेडियो से उन दिनों हज़ार बार बजने वाले इस गीत पर काली बीवियां क्या बहुत खुश होती होंगी?



अपने_रंग_हजार, इरफान, मेरी_काली_कलूटी

रेडियो एनाउंसर को याद रखना चाहिये कि वो स्‍टार नहीं होता, वो परिवार का सदस्‍य होता है---अमीन सायानी से एक साक्षात्‍कार


अमीन सायानी रेडियो की दुनिया की सबसे निराली और यादगार आवाज़ हैं ।
उनका ट्रेडमार्क स्‍टाइल है जो लोगों के दिलों पर छा चुका है । जब वो ख़ास अदा में 'बहनो और भाईयो' बोलते हैं तो लोग फौरन समझ जाते हैं कि ये कौन बोल रहा है ।
कल अन्‍नपूर्णा जी ने रेडियोनामा पर बिनाका गीतमाला का जिक्र किया तो मुझे लगा कि अमीन सायानी के इस पुराने साक्षात्‍कार को छापने का सही वक्‍त आ गया है । मुंबई के एक अख़बार के लिए ये बातचीत रीमा गेही ने की थी । जिसका अनुवाद यहां प्रस्‍तुत है ।

अमीन साहब दो महीने पहले करांची के अमेच्‍योर मेलोडीज़ ग्रुप के आपके एक दोस्‍त सुल्‍तान अरशद ने आपको करांची बुलवाया था, कैसा रहा वो अनुभव
अरे भई सुल्‍तान अरशद कमाल के शख्‍स हैं । उन्‍हें पुरानी फिल्‍मों के गीतों का अथाह ज्ञान है, उनका एक ग्रुप हुआ करता था पुराने गानों के शौकीन लोगों का । वो अपने छोटे छोटे आयोजन भी करते थे । अनिल बिस्‍वास, ओ पी नैयर और सलिल चौधरी इन आयोजनों का हिस्‍सा रह चुके हैं । पर विभाजन के बाद वो करांची चले गये और वहां भी उन्‍होंने इसी तरह का एक ग्रुप बनाया । उन्‍होंने मुझे पाकिस्‍तान इसलिए बुलाया था ताकि मेरे रेडियो प्रोग्राम गीतमाला के लिए मुझे सम्‍मानित कर सकें । मैं एक हफ्ते करांची में रहा और ये देखकर दंग रह गया कि वहां के लोगों को अभी तक गीतमाला की याद है । 1952 से रेडियो सीलोन के ट्रांस्‍मीटरों के ज़रिए मेरा प्रोग्राम गीतमाला पूरे एशिया में सुना जाता रहा है । ये सिलसिला क़रीब 1988 तक जारी रहा । मुझे पाकिस्‍तान में बहुत प्‍यार मिला । ऐसा नहीं लगा कि मैं दूसरे मुल्‍क में हूं ।


आजकल आप क्‍या कर रहे हैं अमीन साहब
देखिए आजकल मैं वही कर रहा हूं जो जिंदगी भर‍ किया है । रेडियो प्रोग्राम बना रहा हूं । जिंगल बना रहा हूं । और उन्‍हें सऊदी अरब, अमेरिका, न्‍यूजीलैन्‍ड और कनाडा के रेडियो स्‍टेशनों को भेज रहा हूं । कोशिश यही है कि जल्‍दी ही साउथ अफ्रीका, मॉरीशस और फिजी में भी दोबारा मेरे प्रोग्राम शुरू हो जाएं । हाल के दिनों में भारत में और विदेशों में मेरा एक शो काफी लोकप्रिय रहा है, जिसका नाम है 'संगीत के सितारों की महफिल' । मैं उसे दोबारा शुरू करना चाहता हूं । सच कहूं तो आज रेडियो की दशा ठीक नहीं है । वैसे रेडियो दुनिया का सबसे चमकीला, सबसे दिलकश माध्‍यम रहा है, वो भी दुनिया भर में । आप चाहें तो रेडियो के प्रोग्राम दिल लगा कर सुन सकते हैं और चाहें तो रेडियो पृष्‍ठभूमि में बजता रहे और आप अपना काम करते रहें । अगर ठीक से इसे संभाला जाये तो रेडियो पर आपको अनगिनत रंग दिखेंगे । बेमिसाल खुशबुएं मिलेंगी । और दिलकश आवाजें मिलेंगी ।




आजकल 'गीतमाला' जैसे शो क्‍यों नहीं हो रहे हैं
आज के ज़माने में गीतमाला जैसा शो कहीं नहीं चल सकता । इसकी वजह ये है कि लगभग हर रेडियो स्‍टेशन अपना काउंट-डाउन या हिट परेड चलाता है । इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि किस चैनल या किस शो की रेटिंग सही हैं । लेकिन मैं गीतमाला के 'रिट्रोस्‍पेक्टिव' के बारे में सोच रहा हूं । हो सकता है कि आप जल्‍दी ही इसे सुनें ।


भारत की आज़ादी के साठ साल हो चुके हैं, मैंने सुना है कि आपका परिवार आज़ादी की लड़ाई से गहरा जुड़ा रहा था । इस बारे में बताईये ना ।
जब भारत की आज़ादी की लड़ाई चल रही थी तो मैं बहुत छोटा था, बहुत उत्‍साही था । मेरा जन्‍म ऐसे परिवार में हुआ जिसमें देशभक्ति और देश के विकास की भावना कूट कूट कर भरी थी । मुझे उस ज़माने के तमाम महान नेताओं को सुनने का सौभाग्‍य मिला । चाहे वो महात्‍मा गांधी हों या पंडित जवाहर लाल नेहरू या फिर सरदार पटेल और मौलाना आज़ाद ।
बी जी खेर, मोरारजी देसाई और अरूणा आसफ अली जैसे लोग भी हमारे घर आया करते थे । क्‍योंकि मेरे मां गांधी जी की शिष्‍या थीं और समाज-सेवा करती थीं । बचपन में मुझे भी समझ में आ रहा था कि देश में बदलाव हो रहा है । आज़ादी मिलने वाली है । फिर जब मैं मुंबई में न्‍यू ईरा स्‍कूल और ग्‍वालियर के सिंधिया स्‍कूल में पढ़ने गया तब हमारे भीतर ये जज्‍़बा आया कि हम नये भारत के नौजवान हैं ।


आपके काम पर आपके परिवार का क्‍या असर रहा है

मेरी मां गांधीजी से जुड़ी थीं और वयस्‍क नव साक्षरों के लिए एक पाक्षिक पत्रिका निकालती थीं जो हिंदुस्‍तानी ज़बान में होती थी । इस पत्रिका का सारा काम हमारे घर से होता था । इससे मुझे सरल ज़बान में, जनता की ज़बान में अपनी बात रखने के संस्‍कार मिले । और मैंने जिंदगी भर इसी ज़बान में अपनी बात कही है ।


क्‍या ये सही है कि बचपन में आप गायक बनने की तमन्‍ना रखते थे

जी हां । स्‍कूल के दिनों में मैं 'कॉयर' में गाया करता था । मैंने शास्‍त्रीय संगीत की तालीम भी ली । लेकिन तेरह साल का होते होते मेरी आवाज़ फट गयी । और फिर तो एक भी सुर ठीक से नहीं लगता था । जब भी गाने की कोशिश करता तो कोई ना कोई टोक देता । लोग बेसुरा कहते । बस इसके बाद मेरे गाने पर रोक लग गयी । लेकिन मुझे संगीत से प्‍यार तो था ही इसलिए ऐसे पेशे में आ गया जिसका ताल्‍लुक संगीत से ही था ।


आजकल आप स्‍टेज पर ज्‍यादा नज़र नहीं आते, क्‍यों

जी हां लंबा वक्‍त हो गया मैंने किसी स्‍टेज शो का संचालन नहीं किया । हालांकि मैंने तमाम तरह के कार्यक्रमों का संचालन किया है । फिर चाहे वो संगीत के कार्यक्रम हों, वेरायटी शो हों या फैशन शो और अवॉर्ड फंक्‍शन । लेकिन इनमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है । आज भी मैं दस से बारह घंटे काम करता हूं । लेकिन पचहत्‍तर साल का हो चुका हूं । इसलिए ज़रा आराम करना चाहता हूं । बस यही वजह है कि आजकल मैं श्रोताओं में बैठकर दूसरों की पेशकश देखता रहता हूं ।


रेडियो की दुनिया में विज्ञापनों की जो भरमार है उसके बारे में आपका क्‍या कहना है
देखिए आज निजी रेडियो स्‍टेशनों की भरमार हो गयी है । इसलिए दिक्‍कत ये हो गयी है कि रेडियो स्‍टेशनों को खुद को जिंदा रखने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है । सबको ऐसे कार्यक्रम करने हैं जो दूसरों से अलग हों । पर हो ये रहा है कि सबके सब एक जैसे कार्यक्रम कर रहे हैं । स्‍टाइल एक जैसा है । इसलिए उन्‍हें ज्‍यादा कामयाबी नहीं मिल रही है ।


रेडियो की दुनिया में अच्‍छी आवाज़ होना कितना जरूरी है ।
मुझे नहीं लगता कि बहुत ज्‍यादा जरूरी है । मेरी आवाज कोई बहुत अच्‍छी नहीं है । हां ये जरूर है कि मैंने हमेशा साफ, दिलचस्‍प और सही बात कहने की कोशिश की है । गुजराती और अंग्रेज़ी ज़बानों की पृष्‍ठभूमि रही है मेरी । इसलिए शुरूआत में सही हिंदी बोलने में काफी परेशानी होती थी । मुझे अपनी भाषा और लहजे को साफ़ बनाने में कई साल लग गये और बड़ी मेहनत करनी पड़ी ।


रेडियो की दुनिया के नये लोगों को आप क्‍या सलाह देना चाहेंगे
देखिए पहले तो उन्‍हें ये बात दिमाग़ में बैठा लेनी चाहिये कि रेडियो अनाउंसर स्‍टार नहीं होता । वो श्रोताओं के परिवार का हिस्‍सा बन जाता है । इसलिए जब आप बोलें तो आपकी विश्‍वसनीयता होनी चाहिये । ऐसा ना लगे कि आप झूठ बोल रहे हैं । जब तक आप ईमानदार नहीं होंगे और जो कह रहे हैं उस पर आपको खुद भरोसा नहीं होगा, लोगों पर आपकी बात का असर नहीं होगा । रेडियो दुनिया का अकेला ऐसा माध्‍यम है जहां आधा काम आपके श्रोता करते हैं । आप अपनी पूरी कोशिश करते हैं, सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन करते हैं, फिर हर श्रोता अपनी कल्‍पना और अपनी भावनाओं से आपकी एक तस्‍वीर रचता है और आपसे जुड़ता है । ये कमाल की बात है ।


आभार--रीमा गेही । हिंदुस्‍तान टाइम्‍स मुंबई ।
ये तस्‍वीरें स्‍वर्ण जयंती के अवसर पर मैंने विविध भारती में खींची थीं ।

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: ameen-sayani, binanca-geet-mala, अमीन-सायानी, radio,

Friday, October 26, 2007

हिट गीतों की परेड

शीर्षक से ही बहुत से पाठक समझ गए होंगें आज मैं चर्चा कर रही हूं रेडियो सिलोन से प्रसारित होने वाले बहुत ही लोकप्रिय कार्यक्रम बिनाका गीत माला की।

जब बातें हो रेडियो की और बात न हो बिनाका गीत माला की यह तो हो ही नहीं सकता। जिनका बचपन अस्सी के दशक के पहले का है वे भूले नहीं होंगें हर बुधवार रात 8 से 9 हिट गीतों की परेड।

जी हां ! इस कार्यक्रम की हर बात निराली रही। सबसे बड़ी निराली बात ये है कि बिनाका गीत माला और अमीन सयानी एक दूजे के लिए बनें। रेडियो कार्यक्रमों के इतिहास में मैनें एक भी ऐसा कार्यक्रम नहीं देखा जिसे एक ही व्यक्ति ने प्रस्तुत किया हो।

इस कार्यक्रम को दो बार मनोहर महाजन और एक बार मधुर ने प्रस्तुत किया। हालांकि उन दिनों मनोहर महाजन की सिलोन के उदघोषक के रूप में लोकप्रियता बहुत थी। जहां तक मधुर जी की बात करें तो यह कहना न होगा कि आम तौर पर रेडियो प्रस्तुति में महिलाओं की आवाज़ अच्छी मानी जाती है पर यहां यह जादू भी नहीं चला। अमीन सयानी के अलावा ये कार्यक्रम किसी और की आवाज़ में अच्छा ही नहीं लगा। गला बैठ जाने पर भी अमीन सयानी की आवाज़ ही सुनी गई।

आवाज़ के साथ-साथ उनका अंदाज़ भी बहुत खास था। उनका बहनों और भाइयों कहने का जो अंदाज़ था, कसम से ये अंदाज़ मैनें किसी और में आज तक नहीं देखा। जबकि उनके श्रोताओं में १२-१५ साल से लेकर साठ साल से बड़ी उम्र वालें भी शामिल रहे। कहते है न कि दिल से कही गई हर बात अच्छी लगती है।

खास अंदाज़ के साथ उनकी भाषा भी खास रही जो न शुद्ध हिन्दी थी और न ही खालिस उर्दू। हमेशा उन्होनें सही शब्दों का प्रयोग किया। तभी तो इस एक घण्टे के कार्यक्रम को श्रोता मंत्र-मुग्ध हो सुनते थे।

एक घण्टे में सोलह गीत सुनाए जाते जिनका चयन रिकार्डों की बिक्री के आधार पर होता था। तभी तो वो इसे हिट गीतों की परेड कहते थे।

पिछले सप्ताह हुई रिकार्डों की बिक्री के अनुसार गीतों का क्रम बनता था यानि जिस गीत के रिकार्ड सबसे ज्यादा बिकते वह गीत सप्ताह का सबसे अधिक लोकप्रिय गीत माना जाता। इस तरह सोलह गीतों का क्रम होता।

जो गीत क्रम में सोलहवें नंबर पर होता वह कार्यक्रम के शुरू में यानि 8 बजे बजता उसके बाद क्रम से गीत बजते और नंबर एक पर जो गीत होता वो 9 बजे सुनाया जाता। इस क्रम को अमीन सयानी पायदान कहते जो उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ है सीढी।

वो इसे लोकप्रियता की सीढी भी कहते। हर सप्ताह ज़रूरी नहीं होता की क्रम वहीं रहे जिसके लिए वो कहते ये गीत लोकप्रियता की सीढी पर चढा या उतरा।


कभी कोई गीत कोई सप्ताह सोलह गीतों के क्रम से बाहर हो जाता और बाद में आगे किसी सप्ताह फिर से शामिल हो जाता तो इसके लिए कहा जाता कि गीत ने पुनर्प्रवेश किया है जो हिन्दी का शब्द है।

इसी तरह जब पहली बार गीत बजता तो कहा जाता गीत ने प्रवेश किया है। इन्हीं गीतों में से एक गीत और कभी कभी दो या ज्यादा से ज्यादा तीन गीत बहुत लोकप्रिय हो जाते तो इन्हें सरताज गीत कहा जाता और ये गीत बजाने से पहले एक विशेष धुन बजाई जाती जिसे सरताज गीत का बिगुल कहा जाता।

कभी सरताज गीत ही नंबर 1 पर होता और कभी सरताज गीत का क्रम अलग होता यानि सरताज गीत लोकप्रिय गीत तो होता पर ज़रूरी नहीं कि उसके रिकार्ड सबसे अधिक बिके हो।

25 बार बजने के बाद गीत रिटायर हो जाता क्योंकि दूसरे गीतों को भी तो शामिल किया जाना होता है। यह भी ज़रूरी नहीं की एक फ़िल्म का एक ही गीत बजें। रिकार्डों की बिक्री के अनुसार अधिक गीत भी बजते।

साल के अंत में दिसंबर के अंतिम दो सप्ताह बजने वाले १६-१६ हिट गीत साल के सबसे अधिक लोकप्रिय गीत माने जाते और साल के अंतिम बुधवार ९ बजे बजने वाला गीत होता साल का सबसे सुपर हिट गीत।

लोकप्रियता के इस क्रम को सभी संगीत प्रेमियों ने माना यहां तक कि फ़िल्म वालों ने भी। फ़िल्मों में भी इसकी चर्चा की गई याद कीजिए फ़िल्म अभिमान का वो सीन जहां असरानी कहते है जया भादुड़ी (बच्चन) से - मुबारक हो भाभी आपके चार गीत बिनाका गीत माला में आ गए।

आश्चर्य की बात है कि इतने सालों तक चले इस कार्यक्रम को एक ही व्यक्ति द्वारा पहचान मिली। गीतों को क्रम से प्रस्तुत करना बीच-बीच में बिनाका टूथ पेस्ट और टूथ ब्रश के विज्ञापन सुनवाना और साथ ही देश भर के श्रोताओं द्वारा भेजे गए पत्रों में से कुछ पत्र पढना, सभी कुछ पूरी निष्ठा और लगन से करते थे अमीन सयानी।

रेडियो और टेलीविजन के प्रायोजित कार्यक्रमों के इतिहास में बिनाका टूथ पेस्ट , टूथ पाउडर और टूथ ब्रश बनाने वाली कंपनी द्वारा प्रायोजित बिनाका गीत माला जैसा कार्यक्रम शायद कोई दूसरा नहीं।

Thursday, October 25, 2007

भृंग तुपकरी जी, नागपुरवाले :

बचपन में हम अक्सर एक खेल खेलते थे ...
गोलाकार में , सारे बच्चे बैठा जाते थे ओर एक बच्चा, दुसरे के कान में , आहिस्ता से, फूसफूसा कर कोइ, भी चीज़ का , वस्तु का , शहर का, फूल का , या किसी जानवर का नाम, या फिर किसी इंसान का नाम बोलता .... फिर , वही नाम गोलाकार से बैठे , दुसरे बच्चे को , फिर , आहिस्ता से, फुसफुसाकर , बतलाया जाता , जितने भी बच्चे उस गोला में शामिल होते, अंत में
, जों बच्चा नाम सुनता जों बच्चा नाम सुनता
उसे , वो नाम , जोर से बोला कर , सब को बतलाना पङता !
अजीब सा नाम , तब सुनाई देता ...
जो मूल , नाम से कई बार अलग बना जाता था ...
ये हम बच्चों का गेम का नाम हमीं खेलते थे या और बच्चे भी खेलते होंगे ये बताना मुश्किल हैं ....
पर अक्सर , जो सबसे मुश्किल नाम हम चुनते थे वो --
" भृंग तुपकरी " ही हुआ करता था ... हाँ हां हां ... चौंकिए मत !!
ये नाम के एक सज्जन नागपुर से , बंबई , पापा जी का बुलावे पर ,
विविध भारती बंबई केन्द्र में कार्य भार संभालने आ गए थे ..
तो आज उनकी यादों से ये सुना लिया जाये ....
'फिल्म जगत में प्रवेष करने के बाद पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी ने जहाँ एक ओर
" ऐ बाद्दे सबा इठलाती न आ " मेरा गुंचा ए दिला तो सूखा गया , मेरे प्यासे लबों को छुए बिना पैमाना ख़ुशी का टूटा गया " -- और ,
" वह दिल में घर किये थे और दिल ने ही न जाना,
कोइ दिलरुबा से सीखे यूँ दिला में समा जाना "
जैसी उर्दू की लोकप्रिय गज़लें ही नहीं वरन`
" ज्योति कलशा छलके, " और " नाच रे मयूरा " जैसे हिन्दी के गीत भी लिखे।
वे जो भी करते थे पूरी निष्ठा से करते थे और जों नही करना चाहते थे , उससे साफ इनकार कर देते थे। यही कारण था की जब उन्होने सं` १९५७ में " विविध भारती " कार्यक्रम , आकाशवाणी पर शुरू करने के लिए अपने सहयोगी के रूप में मुझे आकाशवाणी नागपुर केन्द्र से बंबई बुलवाया था, तब बड़ी नम्रता से कहा था की,
" यह विविध भारती कार्यक्रम आकाशवाणी का पहला कार्यक्रम होगा , जो पूरी तरह कलाकारों पर ही आधारित या आश्रित होगा। इसके लिए इसमें के हर कलाकार को इस बात का पूरा अवसर मिल सकता है की वह जो कुछ कर सकता है, कर दिखाए ! किन्तु इसका अर्थ यह नहीं की तुम जो न कर सको , उसे भी करने का प्रयास करो , क्योंकि ऐसे प्रयास यदि निष्फल नहीं तो निष्प्राण अवश्य होते हैं किन्तु जो कर सकते हो उसे पूरी लगन से, पूरे मन से करो, ताकि उसे अच्छा रूप मिल सके " ।
वे जितने नम्र ओर मधुर भाषी थे , अपने उतरदायित्व ओर कार्यों के संपादन में उतने ही कठोर भी रहते थे। ढुलमुल नीति न उन्हें पसंद थी न अपने किसी सहयोगी से वे ऐसी अपेक्षा रखते थे। भाषा के संबध में उनकी स्पष्ट राय होती थी की, " जिस भाषा पर तुम्हारा अधिकार नहीँ है , उसे तोडने मरोडने का भी तुम्हेँ अधिकार नहीँ है.यदि सँवार सको तो भाषा को सँवारो "
कहना नहीँ होगा कि उनकी हिन्दी, हिन्दी ही होती थी ,उनकी उर्दू, उर्दू ही होती थी और उनकी अँग्रेज़ी, अँग्रेज़ी ही होती थी. इन तीनोँ भाषाओँ पर उनका पूरा अधिकार था
और साथ ही सँस्कृत पर भी उनका पूरा अधिकार था किन्तु सँस्कृत मेँ उन्होँने लेखन बहुत कम किया है.
भारतीयता और भारतीय आयुर्वेद मेँ उनकी विशेष रुचि व गति थी. भारत - भारती से सम्बध विषयोँ के वे चलते - फिरते " विश्वकोष " " एन्साय्क्लोपीडीया" माने जाते थे. हमारी कोई भी, कैसी भी जिज्ञासा होती वे तुरन्त उसका समाधान बता देते.अधिक से अधिक यदि तुरन्त न बता पाते तो कुछ समय बाद, जरुरी छानबीन करके बता देते. हम पूछकर निस्चित हो जाते,वे बताकर भी निस्चिँत न होते बल्कि अधिक से अधिक जानकारी देने की चिँता मेँ जुटे रहते.
भारतीयता और भारतीय आयुर्वेद मेँ उनकी विशेष रुचि व गति थी. भारत - भारती से सम्बध विषयोँ के वे चलते - फिरते " विश्वकोष " " एन्साय्क्लोपीडीया" माने जाते थे. हमारी कोई भी, कैसी भी जिज्ञासा होती वे तुरन्त उसका समाधान बता देते.अधिक से अधिक यदि तुरन्त न बता पाते तो कुछ समय बाद, जरुरी छानबीन करके बता देते. हम पूछकर निस्चित हो जाते,वे बताकर भी निस्चिँत न होते बल्कि अधिक से अधिक जानकारी देने की चिँता मेँ जुटे रहते.
वे ऐसे बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे कि अब ऐसा लगता है कि जैसे हमने अपने प्रकाश का ऐसा आधारस्तँभ खो दिया है, जो हमारे अज्ञान को छूते ही दूर कर देता था.
लेख : श्री भृँग तुपकरी -- सँकलन : लावण्या

Wednesday, October 24, 2007

अपना घर

आज हम ऐसे कार्यक्रम की बात करेंगे जिसे फ़ुरसत में सुना जाता था। जी हां ! आप में से कुछ लोग तो ज़रूर समझ गए होंगें मैं बात कर रही हूं अपना घर कार्यक्रम की जो हर रविवार विविध भारती से दोपहर २ बजे से २:३० बजे तक प्रसारित होता था।

यह एक मैगज़ीन प्रोग्राम था जिसमें अलग-अलग तरह के तीन-चार कार्यक्रम होते थे जैसे गीत, नाटक - प्रहसन और रोचक वार्ता आदि।

कुछ कार्यक्रम बहुत लोकप्रिय हो जाते तब अपना घर में दुबारा सुनवाए जाते थे जैसे हवामहल में प्रसारित झलकियां ज़मीं के लोग और बेसन के लड्डू अपना घर में दुबारा सुनवाई गई।

अपना घर में सुना गया एक हास्य गीत मुझे अच्छी तरह से याद है। गीत का शीर्षक है - कुंवारों का गीत और गीत का मुखड़ा है -

चाहे गोरी दें या काली दें
भगवान तू एक घरवाली दें

पूरे गीत में यही कहा गया है कि चाहे जैसी भी हो, कितने भी अवगुण, अपगुण क्यों न हों, हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता, बस भगवान तू एक घरवाली हमें दे दो।

यह गीत युगल स्वर में था पर दोनों पुरूष स्वर थे। हार्मोनियम पर गाए इस गीत में तबले की संगत थी और अधिक साज़ नहीं थे। गीत लिखने वाले, धुन बनाने वाले और गायकों के नाम याद नहीं आ रहे।

अपना घर कार्यक्रम का संचालन भी बड़े रोचक अंदाज़ में होता था। मौजीरामजी प्रस्तुत करते थे साथ में और भी आवाज़ें होती थी। कभी कहा जाता था यह छाया जी, माया जी और रफ़िया जी की आवाज़े है। पता नहीं चल पाया कि ये नाम सच थे या मौजीराम की तरह ही नकली नाम थे। पर कार्यक्रम जब तक चला इसकी रोचकता बनी रही।

Monday, October 22, 2007

हर रविवार एक फ़िल्म

पहले विविध भारती से हर रविवार दिन में ११ से १२ बजे तक एक घण्टे के लिए एक फ़िल्म प्रसारित होती थी।

प्रसारित होने का मतलब है फ़िल्म की कहानी सुनाई जाती थी। जी नहीं ! कोई कहानी कहता नहीं था बल्कि फ़िल्म का आडियो भाग सुनाया जाता था।

कोई भी फ़िल्म ढाई से तीन घण्टे की होती है जिसे एक घण्टे में समेटना कठिन काम है। लेकिन इतनी कुशलता से संपादन किया जाता था कि लगता ही नहीं था कि फ़िल्म का कोई भाग छूट गया है।

कभी-कभी कुछ सीनस को आपस में जोड़ने से भी कहानी के क्रम में कुछ कठिनाई होती तो उदघोषक एकाध वाक्य कह कर कहानी का क्रम बनाए रखते। गीत भी अपनी जगह पर बजते। यह बात और है कि गीतों का केवल मुखड़ा बजता।

कहानी की समाप्ति पर फ़िल्म से जुड़े सभी के नाम बताए जाते। फ़िल्मों का चयन भी बहुत बढिया होता था जिसमें बूंद जो बन गई मोती जैसी सार्थक फ़िल्मों को चुना जाता तो दो चोर जैसी लोकप्रिय फ़िल्में भी शामिल होती।

हमारे एक मित्र है जिनकी आरंभिक शिक्षा गांव में हुई और उच्च शिक्षा के लिए वो शहर आए। वे बताते है कि उनके गांव में तीन-चार घरों में ही रेडियो था। हर रविवार को ११ बजे उन घरों के बाहर दरवाज़े पर चारपाई पर रेडियो रख दिये जाते और आवाज़ बढा कर फुल वाल्यूम पर रेडियो बजाया जाता। सारा गांव एक घण्टे तक तीन-चार समूहों में बंट कर फ़िल्म की कहानी सुनता।

अस्सी के दशक से हैद्राबाद में बारी-बारी से एक रविवार हिन्दी फ़िल्म और एक रविवार को क्षेत्रीय केन्द्र से तेलुगु फ़िल्म की कहानी सुनाई जाने लगी। फिर लगातार हर रविवार तेलुगु फ़िल्म ही बजने लगी जिससे विविध भारती के हिन्दी फ़िल्मों का क्रम टूट गया।

इस कार्यक्रम का शीर्षक चित्रपट या चित्रशाला था। ठीक से याद नहीं आ रहा।

वैसे चित्रशाला शीर्षक से पांच मिनट का एक कार्यक्रम रोज़ भूले-बिसरे गीत से पहले प्रसारित होता था जिसमें लघु वार्ता या काव्य पाठ सुनाया जाता था। कुछ समय से ये कार्यक्रम भी यहां हैद्राबाद में सुनाई नहीं दे रहा।

यह चित्रशाला कार्यक्रम भी फ़िल्म की कहानी सुनना बंद करने के बहुत समय बाद से यहां हैद्राबाद में सुनाई देने लगा। इसीसे ध्यान हीं नहीं आ रहा कि फ़िल्म की कहानी के कार्यक्रम का शीर्षक चित्रशाला था या चित्रपट या कुछ और।

Saturday, October 13, 2007

१३ अक्तूबर हरफ़नमौला अमर गायक स्व. किशोर कूमार

नीचे दिया हुआ कोमेन्ट मैनें रेडियोवाणी के लिये अगस्त २००७ में लिखा था । आज थोडे समय अभावके कारण उस टिपणीमें किशोरदा के कुछ १९७० यानि फिल्म आराधना के पहेले के उनके गाये कुछ मेरी पसंद के पर बहोत ही कम रेडियो पर सुनाई पड़ते गानोको याद किया है । उस समय हिन्दी की बोर्ड का इस्तेमाल पता नहीं था, इस लिये इन्ग्रेजी भाषा का उपयोग किया है, तो पाठक गण मूझे क्षमा करेंगे ऐसी प्रार्थना है ।
We are thankful to late Shri Sachindeo Burman sahab, Shri Khemchand Prakashji, Shri Devanandji Shri Rajesh Khannaji and Off cource Late Shri Anil Viswashji for giving us Shri Kishor Kumarji. We can't forgate Pair off shri Kalyanji-Anandji. C Ramchandji and Late Shri Rahulbeo Burmanji for Kishorji. I also had listen Ameen Sayani saheb's talk with Kishorda tributing to Shri S. D Burmanji after very few days of Burmanda's death.
I would like to remember Laherose Pooch loo-(KAFILA), To hai Chanda to mai hun Chakor (Ziddi-Khemchand Prakashji), Tere jahan se chal Diye-(Rukshana-Sajjad Husain), Mere Sukh Dookhka sansar tere Do Nainanme-(FAREB-Anil Viswasji) and off cource Aa mohobat ki Basti-Fareb-Anil Viswas which is nowaday very well known song). Dil Dilse Milakar Dekho- MEMSAHIB (Madan Mohan), Hal Tuze Apni Dunia Ka(ASHA-C. Ramchandji). Chup Hoja ameeron ki ye sone ki ghadi hai-BANDI (Music-Hemant Kumar ?), Moona bada pyara-MUSAPHIR9SALIL CHOUDHRY)

दि. १३-१०-२००५ के दिन केन्द्रीय विविध भारती सेवा के हल्लो फरमाईश कार्यक्रम अंतर्गत श्री रेणू बंसलजीने किशोरदा के बारेमें श्रोताओं के साथ की गयी अपनी बात चीत के संपादित अंश और श्रोताओं की पसंदके किशोरदा के गाये गीतों को प्रस्तूत किया था । उन श्रोताओं में से एक मैं भी था । जिसमें उनके कहने पर स्व. मदन मोहन साहब के संगीतमें श्री देव आनंदजी के लिये गाये गीत दिल दिल से मिला कर देखो (फिल्म : मेम साहब) मैने माउथ ओरगन पर बजाई थी । उसका शुरूका अंश गाने के शुरू के अंश (जिसमें गाने की प्रथम पंक्ती को सिटी पर बजाया गया है )के स्थान पर जोड़ कर प्रस्तूत किया गया था ।

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स्व. श्री किशोर कूमारजी को आज उनकी पूण्य-तिथी पर भावपूर्ण श्रद्धांजली

अमर हरफनमौला कलाकार स्व. श्री किशोर कूमारजी को आज १३ अक्तूबर के दिन उनकी पूण्य-तिथी पर भावपूर्ण श्रद्धांजली

नीचे दिया हुआ कोमेन्ट मैनें रेडियोवाणी के लिये अगस्त २००७ में लिखा था । आज थोडे समय अभावके कारण उस टिपणीमें किशोरदा के कुछ १९७० यानि फिल्म आराधना के पहेले के उनके गाये कुछ मेरी पसंद के पर बहोत ही कम रेडियो पर सुनाई पड़ते गानोको याद किया है । उस समय हिन्दी की बोर्ड का इस्तेमाल पता नहीं था, इस लिये इन्ग्रेजी भाषा का उपयोग किया है, तो पाठक गण मूझे क्षमा करेंगे ऐसी प्रार्थना है ।
We are thankful to late Shri Sachindeo Burman sahab, Shri Khemchand Prakashji, Shri Devanandji Shri Rajesh Khannaji and Off cource Late Shri Anil Viswashji for giving us Shri Kishor Kumarji. We can't forgate Pair off shri Kalyanji-Anandji. C Ramchandji and Late Shri Rahulbeo Burmanji for Kishorji. I also had listen Ameen Sayani saheb's talk with Kishorda tributing to Shri S. D Burmanji after very few days of Burmanda's death.
I would like to remember Laherose Pooch loo-(KAFILA), To hai Chanda to mai hun Chakor (Ziddi-Khemchand Prakashji), Tere jahan se chal Diye-(Rukshana-Sajjad Husain), Mere Sukh Dookhka sansar tere Do Nainanme-(FAREB-Anil Viswasji) and off cource Aa mohobat ki Basti-Fareb-Anil Viswas which is nowaday very well known song). Dil Dilse Milakar Dekho- MEMSAHIB (Madan Mohan), Hal Tuze Apni Dunia Ka(ASHA-C. Ramchandji). Chup Hoja ameeron ki ye sone ki ghadi hai-BANDI (Music-Hemant Kumar ?), Moona bada pyara-MUSAPHIR9SALIL CHOUDHRY)

नीचे दि.१३-१०-२००५ के दिन श्री रेणू बंसलजीने विविध भारती के राष्ट्रीय प्रसारणमें हल्लो फरमाईश अन्तर्गत श्रोताओं के साथ किशोरदा के बारेमें बात की थी और श्रोताओंकी पसंदके किशोरजी के गाने सुनाये थे, जिनमें मैं भी शामिल था । और मेरी पसंद पर स्व. मदन मोहनजी के संगीत निर्देषनमें श्री देव आनंद साहब के लिये गाया हुआ फ़िल्म ’मेम साहब’ का गाना ’ दिल दिल्से मिला कर देखो’ बजाया था, जिसमें गाने की पहली लाईन पर सिटी बजती है पर यहाँ उस जगह रेणूजीने मूझसे माउथ ओर्गन बजवा कर उसका शुरू का अंश गानेकी शुरूआतमें जोडा़ है ।

विविध भारती के नाम एक मुख़्तसर लेकिन प्यार भरी चिट्ठी

मेरे एक अज़ीज़ दोस्त हैं सुबोध होलकर। संगीत,साहित्य,कविता और उर्दू शायरी के क़द्रदाँ।
३ अक्टूबर को विविध भारती की पचासवीं सालगिरह के मौक़े पर मैने अपने कई मित्रों को एस एम एस कर सूचित किया कि आज हमारे सबसे प्रिय रेडियो चैनल अपनी स्थापना का पचासवाँ वर्ष पूर्ण कर रहा है।जितना भी मुमकिन हो सके आज विविध भारती ज़रूर ट्यून करके रखें।कई मित्रों ने मेरे एस एम एस का जवाब एस एम एस से ही दिया और कईयों ने फ़ोन कर शुक्रिया अदा किया मेरी सूचना के लिये।

सुबोध भाई ज़रा निराले ही हैं
उन्होने न फ़ोन किया न एस एम एस
उन्होने मुझे एक प्यार भरी चिट्ठी लिखी
मज़मून कुछ इतना प्यारा था कि लगा रेडियोनामा के ज़रिये उसे आप तक पहुँचाऊँ
इसकी भी ख़ास वजह थी
वह यह कि एक संजीदा इंसान विविध भारती जैसी प्रतिष्ठित प्रसारण संस्था को किस नज़रिये
देखता है वह वाक़ई आनंददायक अनुभूति है

इस चिट्ठी को जस का तस यहाँ लिख रहा हूँ।

अक्टूबर/५/०७

प्रिय संजय भैया...
तुम ज़िन्दगी में नहीं होते
तो ये जीवन अधूरा सा रह जाता

अब कैसा भरा भरा सा लगता है

परसों सुबह की मानिंद तुम्हारा एस एम एस मिला
दिन धन्य हो गया

दिन भर विवध भारती सुनता -देखता रहा
काम जो थे वो सेकेन्ड्री थे, सो वैसे ही निपटते रहे

एक बात फ़िर शिद्दत से महसूस हुई कि
विविध भारती सिर्फ़ संगीत नहीं
साहित्य भी है
कविता है
दिल है
दर्द है
आंसू है

बाबूजी (सुबोध का इशारा संगीतकार सुधीर फ़ड़के की ओर है)
के एक गाने पर तो आँसुओं से कहीं आगे चली गई बात

रोऊँ तो समंदर हूँ
चुप हूँ तो सहरा

सुबोध


ऐसी दीवानगी वाली चिट्ठी के लिये वाचाल मीमांसा ज़रूरी है क्या ?

Friday, October 12, 2007

अब क्यों न थोड़ा सा हंस लिया जाए

रेडियोनामा पर मेरे चिट्ठों की संख्या ने दो अंकों में प्रवेश किया है। आज मैं अपना दसवां चिट्ठा लिख रही हूं। इस मौके पर मैनें सोचा कि क्यों न थोड़ा सा खुश हो लिया जाए, हंसा जाए, मुस्कुराया जाए।

तो चलिए हम आपको एक चुटकुला सुनाते है। ओफ़्फ़फ़फ़ो ! सुनाते नहीं लिखते है। यह चुटकुला भी रेडियो से ही संबंधित है -

चुटकुला कुछ यूं है -

एक किसान के खेत में फसल खूब अच्छी हुई। फसल लेकर वह शहर गया बेचने। आमदनी भी खूब हुई सो किसान ने शहर में खरीददारी भी की।

बहुत सी चीज़े खरीदी। एक ट्रांसिसटर भी खरीदा। दुकानदार ने बजा कर बताया। किसान इतना खुश हुआ कि रेडियो के प्रोग्राम सुनते हुए ही गांव पहुंचा। सबको दिखाया, सुनाया।

लगातार बजते-बजते बैटरी डाउन हो गई। आवाज़ पहले कम हुई फिर बन्द हो गई। अब किसान को तो कुछ मालूम नहीं। मालूम होगा भी कैसे ? उसने दुकानदार को कुछ कहने का मौका ही कहां दिया ? वह तो ट्रांसिसटर की आवाज़ आनी शुरू होते ही खुशी से झूमने लगा था।

अब वह परेशान कि आवाज़ आनी बन्द हो गई। फिर उसे गुस्सा आ गया और उसने ज़ोर से ट्रांसिसटर को पटक दिया। पटकते ही ट्रांसिसटर टूट गया और मशीनरी, बैटरी बाहर निकल आए जिसको देख कर उसने कहा -

गाने वाले तो भाग गए पर बाजे-गाजे यहीं छोड़ गए।

क्यों आया न मज़ा। अरे भई यह चुटकुला ओरिजिनल मेरा नहीं है। मैनें भी यह चुटकुला रेडियो से ही सुना।

रेडियो सिलोन के प्रायोजित कार्यक्रम मराठा दरबार की महकती बातें कार्यक्रम में यह चुटकुला तबस्सुम ने सुनाया था जिसका विज्ञापन अमीन सयानी करते थे -

मराठा दरबार अगरबत्ती तीन अलग-अलग खुशबुओं में - ताज़े गुलाबों की खुशबू वाली मराठा गुलाब अगरबत्ती, मोगरे की सुगन्ध वाली मराठा मोगरा अगरबत्ती और केवड़े की महक वाली मराठा केवड़ा अगरबत्ती।

यहां देखिए गुलाब, मोगरा और केवड़े के लिए अलग-अलग और सही शब्द चुने गए।


और इसी खुशबू के साथ मैं ले रही हूं अल्पविराम। आपसे भेंट होगी नवरात्रि के बाद। आप सबको -

ईद और दशहरा मुबारक !

Thursday, October 11, 2007

मेरा विविध भारती पर इन्टर्व्यू

मेरा विविध भारती पर स्वर्ण स्मृति कार्यक्रम में दिनांक . २८-०४-२००७ के दिन प्रस्तूत इन्टर्व्यू (भेट कर्ता : श्रीमती कांचन प्रकाश संगीत)
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Wednesday, October 10, 2007

इन्स्पेक्टर इगल

अन्नपूर्णाजी,
नमस्कार । इन्स्पेक्टर इगल कार्यक्रमकी तराह के बारेंमें आपने जिस तरह बयान किया वह सही है, पर सिर्फ़ एक पर महत्व का सुधार मेरी और से कि, इन्स्पेक्टर इगल बनते थे स्व. श्री विनोद शर्मा, जिन्हों ने विविध भारती की वि.प्र. सेवा के किये दूसरा प्रस्तूत सप्ताहिक प्रायोजित कार्यक्रम कोहिनूर गीत गुंजार (प्रायोजक : कोहिनूर मिल्स-मुम्बई, निर्माता अजीत शेठ और उनकी पत्नी श्रीमती निरूपमा शेठ)प्रस्तूत किया था ।
इस प्रायोजित कार्यक्रम अन्तर्गत कोहिनूर मिल्स के उत्पादनों के जो जिन्गल्स कूकडे की आवाझ के साथ आते थे, उसमें साथ जूडी हुई आवाझ ब्रिज भूषणजी की थी । इस के साथ यह भी बता दूँ कि प्रथम प्रस्तूत प्रायोजित ( उन दिनों प्रयोजित की जगह वि. प्र. सेवा के उद्दधोषकों प्रेषित शब्द बोलते थे ।)कार्यक्रम ’रोस’ द्वारा प्रायोजित और श्री अमीन सायानी साहब द्वारा प्रस्तूत ’सेरिडोन के साथी’ था, जिसमें कोई भी पिल्मी हस्ती अपने तीन व्यावसायिक साथीयोँ के बारेमें बताते थे । रेडियो श्री लंका पर सेरिडोन का विज्ञापन १९६७ के पहेले श्री अमीन सायानी साहब ही करते थे । जो उनके भी पहेले श्री नक्वी रझवी नाम के उस जमाने के बहोत ही मशहूर आवाझी जादूगर प्रस्तूत करते थे, जो बादमें इस व्यायसाय को छोड अमेरिका चले गये थे ऐसा जब में ४.५ साल पहेले स्व. श्री बाल गोविन्द श्रीवास्तवजी और श्रीमती कमल बारोटजी को एक साथ मुम्बईमें मिला था तब मेरे पूछने पर उन लोगोने बताया था । अन्य विज्ञापन कर्ता और प्रायोजित कार्यक्रमों के प्रस्तूत कर्ता रेडियो श्रीलंका से धीर्ते धीरे नाता तोड कर विविघ भारतीसे जूडे, तब स्व. श्री विनोद शर्माजीने विविध भारती के अपने इस कोहिनूर गीत गुन्जार के बाद एक कार्यक्रम कोई अगरबत्ती के निर्माता के लिये रेडियो श्री लंकासे ( हर रविवार सुबह ९.१५ पर) प्रस्तूत किया था और बादमें उनके साथ साथ श्री अमीन सायानी साहब भी जूडे थे।} आपकी पिछली एक पोस्ट पर मेरी एक से ज्यादा टिपणी पढी होगी ।

हवालदार नायक की वो अदभुत हंसी

आज दूरदर्शन हो या कोई निजि चैनल कोई न कोई धारावाहिक प्रायोजित कार्यक्रम चलता ही रहता है। कुछ कहानियां वर्षों तक खींची जाती है तो कुछ धारावाहिकों में हर अंक में एक नई कहानी होती है। विषय भी अलग-अलग है या कहें सभी विषय है - सामाजिक समस्याओं से लेकर, गाने बजाने से लेकर भूत चुड़ैल और जासूसी कारनामों तक।

मुद्दा ये कि एक ही समय पर एक ही विषय पर कुछ मसालेदार परोसा जाता है और परोसने वाले होते है उन उत्पादों की कंपनी वाले जिन्हें बिक्री बढानी है। अब ये सोचने वाली बात है कि इसकी जड़े पीछे कहां तक है। जहां तक मेरी जानकारी है ऐसा सबसे पहला कार्यक्रम है - इंस्पेक्टर ईगल।

वैसे तो प्रायोजित कार्यक्रमों से श्रोताओं का परिचय रेडियो सिलोन ने कराया लेकिन वहां गाने जैसे बिनाका गीत माला, चुटकुले शायरी जैसे मराठा दरबार की महकती बातें, रोचक सवाल जवाब जैसे जौहर के जवाब या एस कुमार्स का फ़िल्मी मुकदमा जैसे कार्यक्रम थे। लेकिन नाटक के रूप में प्रायोजित धारावाहिक जो आज निजि चैनेलों के कारण हमारे जीवन का अंग बन चुके है, पहली बार शायद विविध भारती का इंस्पेक्टर ईगल ही था।

इंस्पेक्टर ईगल रात में हवामहल के बाद साढे नौ बजे प्रसारित होता। रहस्य और रोमांच से भरपूर किसी अपराध का पर्दाफ़ाश करती हर सप्ताह एक अलग कहानी होती इस साप्ताहिक कार्यक्रम में।

इसमें मुख्य पात्र दो थे - एक इंस्पेक्टर ईगल और दूसरा हवालदार नायक। ईगल फ्लास्क बनाने वाली कंपनी ने इसे प्रायोजित किया था इसीलिए इंस्पेक्टर का नाम ईगल रहा। कहानी की मांग के अनुसार अन्य पात्र भी होते।

हर सप्ताह एक रोचक किस्से को नाटक में ढाल कर पेश किया गया। आज तो एक भी किस्सा याद नहीं लेकिन याद है तो हवालदार नायक की वो अदभुत हंसी जो खीं खीं खीं से शुरू होती और लंबी खिंचती जिसके बीच में हिच्चचच भी होता। फिर इंस्पेक्टर ईगल की ज़ोरदार आवाज़ आती - हवालदार नायक और हवालदार नायक का खिसियाना जवाब सॉरी सर

हवालदार नायक बने थे युनूस परवेज़ जो फ़िल्मों में चरित्र भूमिकाएं करते थे। इंस्पेक्टर ईगल की भूमिका शायद धीरज कुमार ने की थी जो टेलिविजन धारावाहिक बनाते है।




Tuesday, October 9, 2007

सुनिये विविध भारती की स्वर्ण जयंति पर लताजी का ममता सिंह द्वारा लिया गया साक्षात्कार

A telephonic interview of Lata Mangeshaker by Radio Sakhi mamta Singh

विविध भारती की स्वर्ण जयंती पर हम सबने टीवी पर कई विशेष कार्यक्रम देखे हैं और कई किस्मत वालों ने रेडियो पर पूरा कार्यक्रम सुना भी है। यूनुस भाई ने रेडियो के जाने माने लोगों के फोटो भी रेडियोनामा पर हमें दिखाए हैं। इस सुअवसर पर रेडियो सखी ममतासिंह ने स्वर साम्राज्ञी, स्वर कोकिला लता मंगेशकर का एक टेलिफोनिक साक्षात्कार किया था। उस साक्षात्कार को आज मैं आप सबके लिये पेश कर रहा हूँ।

आधे घंटे के इस इंटरव्‍यू की फाइल बहुत बड़ी थी तो मैने सोचा इसका वजन कम कर दिया जाये, और किया भी; परन्तु मजा नहीं आया तो फाइल को काट कर दो भागों में किया ताकि इस्निप पर आसानी से जोड़ा जा सके और सुनने वालों को परेशानी हो। फिर भी इस साक्षात्कार का पूरा मजा लेने के लिये जिन मित्रों की नेट की स्पीड कम हो वे प्ले के बटन पर क्लिक करने के बाद पॉज कर दीजिये ताकि पूरा लोड हो जाये और सुनते समय अटके नहीं।

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Saturday, October 6, 2007

विज्ञापन जो भुलाए नहीं भूलते

विज्ञापनों से श्रोताओं को परिचित करवाया रेडियो सिलोन ने। सबसे अधिक विज्ञापन सवेरे ८ से ९ तक प्रसारित होने वाले आप ही के गीत कार्यक्रम में प्रसारित होते। इस कार्यक्रम में नए फ़िल्मी गीत बजते और वो भी फ़रमाइश पर।

साठ और सत्तर के दशक का तो फ़िल्मी संगीत बहुत ही बढिया रहा। ऐसे में साथ प्रसारित होने वाले विज्ञापनों को भूलना कठिन ही है। हर गीत के बाद विज्ञापन प्रसारित होते। विज्ञापनों की संख्या तो आज की तुलना में कम ही थी पर बार-बार प्रसारित होते थे।

कुछ विज्ञापन तो हर दूसरे तीसरे गीत के बाद आते। कभी-कभी तो लगातार हर गीत के बाद आते। मुझे अच्छी तरह से याद है तीन विज्ञापन जिसमें से दो तो अक्षरक्षर याद है। अक्सर ये तीनों विज्ञापन गीत समाप्त होते ही एक के बाद एक आते -

पहला सरकारी विज्ञापन परिवार नियोजन का जो इस तरह है -

फ़िल्मी गीत समाप्त होते ही लगभग उसी से जुड़ कर आवाज़ आती बस में कंडक्टर द्वारा बजाई जाने वाली घण्टी की जिसके बाद बस रूकने की आवाज़ फिर बस अड्डे का शोर। तभी कंडक्टर कहता -

जगह नहीं है, जगह नहीं है, इतने ज्यादा बच्चों के साथ किसी ख़ाली बस का इंतज़ार करें।

फिर घण्टी की आवाज़ और बस चली जाती। फिर महिला स्वर उभरता -

बेटियां हो या बेटे, बच्चे दो ही अच्छे

तब ये सब साथ-साथ हम भी बोला करते और मज़ा लेते। इसकी गंभीरता तब तो समझ में नहीं आती थी पर आज विस्फ़ोटक जनसंख्या में समझ में आता है।

इसी के पीछे दूसरा विज्ञापन आता साड़ियों का -

एक महिला स्वर - शीला ज़रा पहचानो तो मैनें कौन सी साड़ी पहन रखी है।

दूसरा स्वर - उं उं उं हार गए भई

पहला स्वर - ये है नाइलैक्स 644 और वो जो हैंगर पर लगी है न, वो है टेट्रैक्स 866

दूसरा स्वर - नाइलैक्स 644 और टेट्रैक्स 866

और विज्ञापन समाप्त। टेट्रैक्स की साड़िया तो इस देश में शायद ही कभी रही हो पर नाइलैक्स उस समय ख़ूब चली। मेरी मां ने भी पहनी और पसन्द की पर आज कहीं नज़र नहीं आती।

इसके बाद तीसरा विज्ञापन सोनी कैसेट का होता जो एक जिंजल (गीत) होता। बहुत अच्छा था पर मुझे याद ही नहीं आ रहा।

आज मार्किट में उत्पाद बढने से विज्ञापन भी बहुत बढ गए है। सुनते-देखते इतने ऊब गए है कि बड़े स्टार इन विज्ञापनों में होने के बावजूद भी विज्ञापन याद नहीं रहते। जब तक बजते तब तक एकाध मुख्य पंक्ति याद रह जाती लेकिन बजना बंद होते ही सब भूल जाते।

थोड़ी मीठी थोड़ी कैटी

जी हां ,यही पन्च लाइन है, इस नये एफ़ एम चैनल की (१०४.८), इसे भारत के पहले महिला एफ़ एम चैनल के नाम से भी प्रचारित किया जा रहा है, अब इसका क्या मतलब है, कुछ समझ नही आया, हो सकता है कि इसके सारे अर. जे. महिलाये हो, पर अगर ऐसा होगा तो इसे सुनने वाले श्रोताओं मे पुरूष ही अधिक होंगे. सही कह रहा हूँ ना ?
जो भी हो पर इन दिनो रोज सुबह ६ से ८ तक मै इसे सुन रहा हु, अगर आप भी सुबह कुछ सदाबहार नग्मे सुन कर तरो ताज़ा होना चाहते है, तो इसे सुनिये. सुबह सुबह लता, किशोर, रफ़ी और मुकेश के सुरीले गीतो को सुन कर उठना सचमुच सुखद है, और सबसे बडा फायदा ये कि किसी रेडीयो जोकी की बक बक सुनने की भी जरुरत नही, बस एक के बाद एक बेह्तरीन नग्मे, और कुछ नही.
बेसर पैर के एफ़ एम चैनलो की बाढ़ मे अच्छा संगीत कही खो सा गया है, अच्छे आर जे भी अब कम ही सुनने को मिलते है, ऐसे मे सुबह के स्लोट के लिये यह एक अच्छा विकल्प तो है ही.....

Thursday, October 4, 2007

जब सिर्फ़ आवाज़ ही पहचान थी

कल विविध भारती के स्वर्ण जयंती समारोह का विशेष प्रसारण सुना। कुछ पुरानी आवाज़ें गूंजी - मोना ठाकुर, भारती व्यास, यतीन्द्र श्रीवास्तव, किशन शर्मा। मन अनायास ही पीछे बहुत दूर चला गया जहां की यादें बहुत धुंधली है और हम तुलना करनें लगें तब और अब के प्रसारण में।

अब विविध भारती पर कार्यक्रम कुछ ऐसे शुरू होता है -

मैं हूं आपका दोस्त अमरकांत, कार्यक्रम वही आपका मन मीत भूले-बिसरे गीत
दोस्तों मैं हूं यूनुस ख़ान, अब से लेकर एक घण्टे तक आप मेरे साथ है
मैं निम्मी मिश्रा लाई हूं आप के मन चाहे गीत
मैं कमल शर्मा हाज़िर हूं जयमाला संदेश लेकर
मैं हूं आपकी रेडियो सखी ममता सिंह
मैं शहनाज़ अख़्तरी
कांचन जी नमस्कार, कमलेश जी नमस्कार और सभी सखी-सहेलियों को हमारा नमस्कार
श्रोताओं नमस्कार मैं कमल शर्मा और मैं रेणु बंसल

मुद्दा ये कि कार्यक्रम बाद में शुरू होता है पहले हम ये जान लेते है कि कौन हम तक ये कार्यक्रम पहुंचा रहा है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था।

पहले विविध भारती के किसी उदघोषक का नाम नहीं पता था। हालांकि उस समय रेडियो सिलोन पर उदघोषक अपना नाम बताते थे - विजयलक्ष्मी, मनोहर महाजन, शशि मेनन।

इन्हीं दिनों पत्रावली में श्रोताओं ने पत्र लिख कर उदघोषकों के नाम बताने का आग्रह किया जो टाल दिया गया। बहुत आग्रह होने पर नाम बता दिए गए और श्रोता सोचते रह गए किस नाम की कौन सी आवाज़ है।

उसी समय रविवार रात नौ बजे से सवा नौ तक एक कार्यक्रम शुरू हुआ - चतुरंग। जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है चार रंगों के गीत इसमें बजते थे - गीत, भजन, ग़ज़ल, कव्वाली। इनके गायक, संगीतकार, गीतकार और फ़िल्म का नाम बताया जाता था पर किसी एक गीत के लिए एक नाम नहीं बताया जाता था जो श्रोताओं के लिए पहेली होती थी। श्रोता पत्र लिखते आगामी अंकों में सही नाम बताया जाता।

इस कार्यक्रम का अंत एक ही वाक्य से होता था - अब चन्द्र कान्ता माथुर को अनुमति दीजिए। इस तरह हमने जाना पहला नाम चन्द्रकान्ता माथुर। उस समय हमारे पड़ोस में एक माथुर परिवार रहता था। वे इस कार्यक्रम को ऐसे सुनते जैसे उन्हीं के परिवार की बिटिया बोल रही हो।

इस समय शायद अपना घर कार्यक्रम में मौजीराम जी के साथ तीन महिला स्वर सुनाई देते जिनके नाम बताए जाते छाया जी, माया जी, रफ़िया जी । पता नहीं ये नाम असली थे या मौजीराम की तरह ही छ्द्म नाम थे।

फिर पत्रावली कार्यक्रम से एक और नाम की पुष्टि हुई - कान्ता गुप्ता।

तब हवामहल के बाद ९३० से १०३० तक मन चाहे गीत बजते थे। फिर ९३० बजे प्रायोजित कार्यक्रम आरंभ हुए और मन चाहे गीत कभी ९४५ तो कभी १० बजे से बजने लगे। फिर शुरू हुआ १० बजे से छायागीत।

वास्तव में छायागीत ही ऐसा पहला कार्यक्रम रहा जिससे श्रोताओं ने उदघोषकों के नाम जाने- बृज भूषण साहनी, चन्द्र भारद्वाज, एम एल गौड़, राम सिंह पवार, विजय चौधरी, अहमद वसी, कब्बन मिर्ज़ा और यह सिलसिला जारी है।

एक आवाज़ जो ग़ायब हो गई - अनुराधा शर्मा

एक आवाज़ जो हम सुनना चाहते है पर बहुत कम सुनाई देती है - शहनाज़ खान

लीजिए आ गयीं विविध भारती के स्‍वर्ण जयंती आयोजन की तस्‍वीरें ।

बढ़ा लीजिए अपने रेडियो की आवाज़
हो रहा है प्रोग्राम का आग़ाज़ । क्‍योंकि मैं हूं आपकी रेडियोसखी ममता सिंह ( स्‍वर्ण जयंती के लाईव प्रोग्राम में )


रेडियोसखी ममता सिंह, अमरकांत और गुज़रे दौर के नामी उदघोषक बृजभूषण साहनी



बृजभूषण साहनी स्‍वर्ण जयंती के अपने शो के बाद कितने रिलैक्‍स दिख रहे हैं ।


बृजभूषण साहनी का जाना और किशन शर्मा का आना
याद आ गया हमको गुज़रा ज़माना ।
तस्‍वीर इन नामी उदघोषकों के वज़न से हिल गयी है ।


यूनुस ख़ान, अमरकांत, कमल शर्मा और कोने में अहमद वसी रात दस बजे के लाईव प्रोग्राम में ।
अहमद वसी ने 'शाम रंगीन हुई है' और 'आके दर्द जवां है' जैसे फिल्‍मी गीत लिखे हैं ।



जश्‍न का माहौल और तस्‍वीरें खिंचाने की ललक ।
यूनुस खान, चित्रलेखा जैन, ममता सिंह, कमल शर्मा, महेंद्र मोदी और अमरकांत ।


पुराने उदघोषक रामसिंह पवार, अपने समकालीनों के साथ ।


अबे सुन बे गुलाब । यही कहा था निराला जी ने ।


अगर कोई ब्रेक डाउन ना हो तो मैं इसी तरह प्रोग्राम सुन सकता हूं ।
चिंतन की मुद्रा में एक इंजीनियर ।


ध्‍वनि तरंगों की ताल पर आप हैं यूनुस खान के संग ।


स्‍टूडियो के इस ओर विविध भारती परिवार के लोग ध्‍यान से कार्यक्रम सुनते हुए । कांच के उस पार कार्यक्रम प्रस्‍तुत कर रहे हैं यूनुस और अमरकांत । रात साढ़े दस बजे के बाद की तस्‍वीर ।


विविध भारती में चिट्ठियों की बरसात ।




लोकेंद्र शर्मा और यतींद्र श्रीवास्‍तव ।



अमरकांत और विजय चौधरी ।



विविध भारती की दुलहनिया पचास बरस की हो ली ।




ये बैनर तो महीने भर से सबको बता रहा था ।



तो ये रही विविध भारती की स्‍वर्ण जयंती की तस्‍वीरें ।
तीन अक्‍तूबर यानी कल के दिन विविध भारती में धूम मची रही ।
पर फिलहाल हम इतने उनींदे हैं कि ना तो कुछ दिखाई दे रहा है और ना ही सुनाई ।
तो फिलहाल जै राम जी की ।

Wednesday, October 3, 2007

पचास बरस की विविध भारती ...कुछ मलाल

दोस्तो आज विविध भारती अपने सुरीले सफ़र की सुनहरी पायदान पर पहुँच गई.इसके प्रसारणकर्ताओं ने अपनी कल्पनाशीलता और रचनात्मकता से 3 अक्टूबर यानी आज को पूरे दिन महकाए रखा. मुझे लगता है आज के इस दिन के लिये टीम विविध भारती को जितनी बधाई दी जाए कम है.पं.माखनलाल चतुर्वेदी,हरिवंशराय बच्चन,अमिताभ बच्चन,रामधारीसिंह दिनकर,भारतरत्न लता मंगेशकर,मनोज कुमार,तलत मेहमूद,सज्जाद,जयदेव,राहुलदेव बर्मन गुलज़ार,जैसे नामचीन व्यक्तित्वों की आवाज़े और स्मृतियाँ विविध भारती से मोगरे की सी ख़ूशबू बनकर हमारे कानों पर झरती रही. लेकिन क्या करूँ अपनी विविध भारती के पचास पूरे करने पर मन में थोड़ा सा मलाल रह गया.कुछ बिंदुओं में इसका
शब्दांकन कर रहा हूँ ...उम्मीद है आप सहमत होंगे क्योंकि शब्द मेरे हैं ...भावनाएँ आपकी ही हैं..

- आज आकाशवाणी के समाचार प्रसारणों में (जो रीजनल प्रसारण केंद्रों से सुनाई देते है) विविध भारती के पचास वर्ष पूर्ण होने पर दिन भर ख़बर जारी की जानी थी.इससे एक बड़ी श्रोता संख्या विविध भारती का विशेष प्रसारण की ओर आते.

- प्रसार भारती की अनुषंगी इकाई होने के कारण सूचना प्रसारण मंत्री के द्वारा समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर विविध भारती को बधाई का वक्तव्य जारी होना था.

-प्रधानमंत्री द्वारा भी विविध भारती की लम्बी यात्रा के लिये शुभकामना व्यक्त की जानी थी.
बहुत साधारण उपलब्धियों के लिये प्रधानमंत्री के वक्तव्य जारी हो जाते है तब विविध भारती का कारनाम तो विशिष्ट और ऐतिहासिक है

-स्वर्ण जयंति की पूर्व संध्या पर चालीस बरस से ज़्यादा समय बिता चुके जीवित / दिवंगत प्रसारणर्ताओं को सम्मानित किया जाना था.

-विविध भारती के प्रथम प्रोड्यूसर कविवर पं.नरेन्द्र शर्मा के नाम पर प्रसारण सम्मान प्रसार भारती द्वारा स्थापित किया जाना चाहिये था.

-3 अक्टूबर के शुभ दिन मुंबई में नये / पुराने प्रसारणर्ताओं,एडवरटाईज़िग एजेंसियों गायकों,संगीतकारों,कवियों,मीडियाकर्मियों,साहित्यकारों और गुज़रे ज़माने के फ़िल्म कलाकारों,गीतकारों,गायकों,संगीतकारों की मौजूदगी में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित करना चाहिये था.ज़रा सोचिये कोई एफ़.एम.चैनल पचास बरस पूरे कर लेगा तब पूरे देश को हिला कर रख देगा.विविध भारती तो पचास साल की हो गई...यहाँ मेरे शहर इन्दौर में अपनी तीसरी चौथी सालगिरह मना रहा चैनल पूरे शहर को मिर्ची मय बना देता है ( संयोगवश बता दूँ इन्दौर से ही एफ़.एम चैनल्स की शुरूआत हुई थी और रेडियो मिर्ची ने यहीं से 4 अक्टूबर के दिन अपना प्रसारण प्रारंभ किया था.)
क्या प्रसार भारती वाले इतने दरिद्र हैं कि एक शानदार शाम पचास साल से पूरे एशिया को हिन्दुस्तानी ज़ुबान,तहज़ीब और संगीत से रूबरू करवाने वाली प्रसारण संस्था को समर्पित नहीं कर सकती थी.जहाँ तक ख़र्च का सवाल है ऐसे आयोजनों के लिये तो प्रायोजक भी मिल सकते थे.

क्या ये भी नहीं हो सकता था :

-इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के मद्देनज़र विविध भारती के वैब एडिशन की शुरूआत की जाती.

-विविध भारती आकाशवाणी की सहोदर है..क्या विविध भारती की श्रोता संख्या बढ़ाने के लिये प्रत्येक
आधे घंटे में समाचार सुर्ख़ियाँ प्रारभ की जाए.हाल फ़िलहाल हम सुबह 6 बजे,8 बजे,शाम 7 बजे,रात 8.45 बजे और रात 11 बजे ही समाचार सुन पाते हैं

-दिन भर जारी रहने वाले कार्यक्रमों में क्रिकेट मैचों के स्कोर सुनाना प्रारंभ किया जाए.ये काम अभी एफ़ . एम चैनल कर रहीं हैं और इसके लिये प्रायोजक भी जुगाड़ कर पैसा कमा रही है.

बातें बहुत सी हैं...शिकायतें भी लेकिन आज जश्न के मूड को ख़राब नहीं करना चाहता. ये एक रेडियोप्रेमी श्रोता का दर्द है. मेरे लिये तो विविध भारती मौसी की तरह है जो वालदैन की मानिंद बोलना सिखाती है.आईये धन्यवाद दें विविध भारती की नई टीम को जिसमें राकेश जोशी,कमल शर्मा,निम्मी माथुर,अशोक सोनावणे,राजेन्द्र भाई,शहनाज़,ममता सिंह,रेणु बंसल,कांचन प्रकाश संगीत, युनूस ख़ान जैसे जुनूनी (इन्हे मै सुरीले जेहादी कहना चाहूँगा)शामिल हैं. इन सब ने मिल कर विविध भारती को नया जीवन दिया है. सब जानते हुए कि विविध भारती एक शासकीय प्रसारणसंस्था है इन सब ने अपने काम को महज़ नौकरी नहीं समझा.अपना ख़ून देकर इस संस्था को जिलाया है.

अपनी बात ख़त्म करते करते ये ज़रूर कहना चाहूँगा कि पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री ने विविध भारती को भुनाया है.फ़िल्म आने से पहले और स्क्रीन से विदा होने के बाद भी जिस तरह से विविध भारती फ़िल्म संगीत को जीवंत बनाए रखती है उसके लिये उसे क्या क़ीमत मिली है.तमाम फ़िल्म कलाकारों को सेलिबिटी बनाने में विविध भारती का अविस्मरणीय योगदान है क्या पुरस्कार मिला है इसके लिये उसे.
मेरी बात से आप सहमत हों तो ज़रूर अपनी बात कहें ...हो सकता है आपकी बात से कोई नई तस्वीर सामने आए....

विविध भारती.....ज़िन्दाबाद !

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अब विविध भारती सुनें 5.1 सराउंड साउंड सिस्टम पर

विविध भारती के 50 वें जन्मदिन (3 अक्तूबर 2007) पर आइए, आज आपसे यह तकनीकी टिप साझा करते हैं. विविध भारती सुनने का आनंद 5.1 सराउंड साउंड सिस्टम पर कैसे लें?

विविध भारती मैं कोई पिछले 30 वर्षों से लगातार सुनता आ रहा हूँ. राजनांदगांव में छात्र जीवन के दिनों में रेडियो की सर्किट में फेरबदल कर उसका स्पेशल एंटीना घर के छत पर लगाकर विविध भारती विज्ञापन प्रसारण सेवा नागपुर मीडियम वेव पर सुना करता था (दिन में दोपहर में 10-2 बजे तक शॉर्टवेव प्रसारण बंद रहता है, और आज भी रतलाम में घर पर छत पर एफएम के लिए एंटीना लगा है). तब प्रसारण के शोर (रेडियो की घरघराहट और सरसराहट) के बीच गीतों के बोलों को अपने कानों के प्राकृतिक नॉइस फ़िल्टर से ही दूर करना होता था.

परंतु अब स्थिति बदल चुकी है. मैं अब विविध भारती सेवा 5.1 सराउंड साउंड सिस्टम पर सुनता हूँ. डॉल्बी सराउंड साउंड मेंएकदम क्रिस्टल क्लीयर आवाज़.

यूँ तो विविध भारती प्रसारण सेवा देश भर में कोई 30 एफएम चैनलों के जरिए डिस्टार्शन (घरघराहट-सरसराहट मुक्त) फ्री प्रसारण करती है, परंतु उन स्थलों पर जहाँ यह सुविधा पहुँच नहीं पाती, इस तरह की सेवा डिश टीवी के जरिए प्राप्त की जा सकती है. भारत में अभी दूरदर्शन, जीटीवी, और टाटा-स्टार के डिश टीवी सेवाएँ हैं. दूरदर्शन की सेवा मुफ़्त है, जबकि अन्य में मासिक किराया देना होता है. डिश टीवी की कीमत कोई पंद्रह सौ रुपए से लेकर प्रारंभ होती है.

डिश टीवी और/या एफ़एम (एफएम प्रसारण व रिसीवर को स्टीरियो होना चाहिए) रेडियो के स्टीरियो आउट को आप डॉल्बी प्रोलॉजिक II तंत्र युक्त 5.1 सराउंड साउंड एम्प्लीफ़ॉयर सिस्टम (फ़िलिप्स या बॉस अनुशंसित) के स्टीरियो इनपुट में जोड़ें. डॉल्बी प्रोलॉजिक II तंत्र स्टीरियो ध्वनि को कृत्रिम रूप से 5.1 डिजिटल सराउंड साउंड में बदलता है, और इस वजह से आपको संगीत सुनने का आनंद कई गुना अधिक मिलता है.

अच्छे परिणाम के लिए स्पीकर सिस्टम आल्टेक लांसिंग या बोस का लें.

हालाकि विविध भारती के वे कार्यक्रम जो मोनो मोड में होते हैं – जैसे कि पुराने फ़िल्मी गाने जो स्टीरियो में रेकार्ड ही नहीं हुए हैं, वे 5.1 सराउंड साउंड में उतने प्रभावी नहीं लगेंगे, मगर नए जमाने के गाने जो चित्रलोक इत्यादि कार्यक्रमों में बजते हैं, उनका मजा कुछ और ही होता है.

इस विधि से आप किसी भी दूसरे स्टीरियो साउंड प्रसारण (जैसे कि रेडियो मिर्ची) या ऑडियो सीडी के संगीत का आनंद 5.1 सराउंड सिस्टम में ले सकते हैं.

तो फिर देर किस बात की? ले आइए आज ही एक 5.1 सराउंड साउंड सिस्टम.

विविध भारती को पचासवां जन्मदिन मुबारक

जैसा की यूनुस भाई ने कुछ दिन पहले जिक्र किया था की तीन अक्तूबर को विविध भारती के पचास साल पूरे हो रहें हैयूं तो हम बचपन से ही रेडियो सुनते रहे है पर इस बात पर कभी ध्यान ही नही दिया था कि विविध भारती कि शुरुआत कब हुई थी पर इस बार ब्लॉगिंग के परिवार से जुड़कर पता चला कि जिस विविध भारती को हम लोग इतने सालों से सुनते रहे है वो आज पचास साल का हो गया है


यूं अब रेडियो सुनना काफी कम हो गया है पर फिर भी जब भी मौका मिलता है सुन ही लेते है
कितनी ही यादें जुडी हुई है जिन्हे यूं यहां गिनवाने लगे तब तो कोई अंत ही नही होगापर फिर भी कुछ ऐसी बातें होती है जिन्हे हम कभी भी भूल नही पाते हैकितने कार्यक्रम है जैसे छायागीत,पिटारा ,आप की फरमाइश जो आज तक चले रहे है पर कुछ पुराने कार्यक्रम बंद हुए है जैसे चलचित्र की कहानियाँ तो कुछ नए कार्यक्रम शुरू भी हुए जैसे सखी सहेली

वैसे आजकल विविध भारती का रुप भी कुछ बदल गया है पर वो कहते है ना की समय के साथ बदलना अच्छा होता हैअब आप ये तो नही सोच रहे की विविध भारती तो बदला ही नही है पर ऐसा नही हैविविध भारती के पुराने श्रोता जानते होंगे कि पहले तो सुबह की सभा साढे नौ बजे ख़त्म हो जाती थी फिर बारह बजे दोपहर की सभा शुरू होती थी पर अब विविध भारती की सुबह की सभा साढे नौ बजे ख़त्म नही होती है बल्कि उस पर कुछ अच्छे और मनोरंजन से भरपूर कार्यक्रम आते हैअभी हाल ही मे हमने एक दिन सुबह पिटारा कार्यक्रम सुना हालांकि बीच मे से ही सुना था पर काफी ज्ञानवर्धक लगा

विविध भारती की एक खास बात है कि इस पर आने वाले कार्यक्रम हर उम्र के लोगों को ध्यान मे रखकर बनाए जाते थे और जाते हैबच्चों से लेकर युवा ,तो महिलाओं से लेकर बडे-बुजुर्गों तक के लिए कार्यक्रम और संगीत तो लाजवाब ही होता हैपर अब वो signature tune जो हर सभा के शुरू मे बजती थी वो अब शायद बजना बंद हो गयी है क्यूंकि अब तो सभा भंग ना होकर चलती ही रहती है


रेडियो कभी-कभी हमारे जीवन मे कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसका हमे अनुमान ही नही होता हैऔर कई बार ऐसी स्थिति या हालत होते है जब कोई भी communication का साधन नही होता है उस समय ये रेडियो ही होता है जिससे हम लोगों तक पहुंच सकते हैआज हमे २६ दिसम्बर २००४ मे अंडमान मे आयी सुनामी से जुडी बात याद रही हैजब सुनामी आयी थी तो कुछ समय बाद माने एक-दो घंटे बाद वहां सारे communication के साधन बंद हो गए थे ना फ़ोन काम कर रहे थे और ना ही बिजली थी कि टी.वी.देखा जा सके जिससे कुछ हालात के बारे मे पता चल सके पर एक साधन जो उस समय भी लोगों तक पहुंच पाने मे सफल हुआ वो था रेडियोरेडियो ही एकमात्र सहारा था जिसके द्वारा लोग दूसरे द्वीपों मे रहने वाले अपने रिश्तेदारों को अपनी खैरियत की खबर देते थे और उनकी खैरियत की खबर लेते थेसारा - सारा दिन सिर्फ लोगों के संदेश ही पढे जाते थेहालांकि ये एक तरह से अँधेरे मे तीर चलाने वाली ही बात थी क्यूंकि सुनामी ने जैसी तबाही मचाई थी वो तो हम सभी जानते हैपर फिर भी ये तीर निशाने पर लगा था मतलब की जब दूसरे द्वीप पर रहने वाले संदेश सुनकर अपना संदेश देते थे की वो सही-सलामत है तो आप अंदाजा लगा सकते है की इस रेडियो ने उस समय कितने ही परिवारों को उनके प्रियजनों से मिलवाया थाउस सुनामी के समय मे अगर रेडियो नही होता तो शायद वहां के लोगों को अपने परिवार वालों की खैरियत के बारे मे जानने मे और समय लगता


चलते-चलते विविध भारती के सभी श्रोताओं को और विविध भारती मे कार्यरत सभी लोगों को विविध भारती के पचास साल पूरे करने की बधाई और शुभकामनायें

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